Wo Koun tha - 1 in Hindi Thriller by Darshana books and stories PDF | वो कौन था???? - 1

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वो कौन था???? - 1

रेत जीवन के आद्र रूप से शुष्क रूप होने का परिचय देती है। वैसे ही आज की ये कहानी किसी के जीवन के खुशहाल पहलू से उसके दर्दनाक पहलू को दिखाती है। ये वहीं कहानी है जिसमें सुख के फूल भी है और दुख की वर्षा भी....................

लगभग 900 साल पहले
स्वर्ण श्रोणितपुर
वीर किला

शिव मंदिर का दृश्य

मुख्य पुरोहित शिव मंदिर में जो अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है महादेव शिव की आराधना कर रहे है। पुष्प बेलपत्र और दूध धतूरे से शिवलिंग का अभिषेक कर रहे है। और बाकी सब पुरोहित सामान्य जन और गुरु के अतिरिक्त साधक भी जहां उपस्थित है। सब अर्चन कर शिव से प्रार्थना कर रहे है। मुख्य पुरोहित भी मन ही मन भगवान से पूछ रहे है कि:- हे शिवजी। अगर आज भी हमे उतराधिकारी ना मिला तो सब व्यवस्था शून्य हो जाएगी। प्रभु आपके एक संकेत रूप में ही हम अपना मुख्य चुनते है। कोई भी व्यक्ति अब यहां हमें इस पीढ़ी में इस पद के योग्य नहीं मिल रहा। कृपया आप हमें मार्ग प्रशस्त करे कि वो कौन है जिसे आपने इस बार चुना है। और वो शिव मंदिर के बाहरी हिस्से में अा गए।

जहां पर उन्हें एक स्त्री दिखाई दी जिसके मस्तक पर तेज़ और स्वर में आद्रता थी। मुख्य पुरोहित को देख वो अाद्र स्वर में बोली:- मुख्य पुरोहित मेरा प्रणाम स्वीकार करे। आज यहां शिव के वीरों का चुनाव है तो जिज्ञासावश मै यहां अा गई।

मुख्य पुरोहित:- आपका नाम क्या है पुत्री??

स्त्री आदर से बोली:- मेरा नाम शिविका है मुख्य पुरोहित। मैं यही की निवासी हूं। और शिव के वीर के दर्शन की इच्छुक भी।

मुख्य पुरोहित:- जितना सरल ये कार्य तुम्हे लग रहा है उतना सरल है नहीं! मेरा विश्वास स्वयं चरमरा रहा है क्योंकि बीस वर्षों से शिव के वीर की पदवी रिक्त थी पर लंबे समय तक उसका रिक्त रहना इस राज्य के भाग्य के लिए उचित नहीं। जब से इस राज्य का राजकुमार जन्मा है अशुभता उसके पदचापों का पीछा करते हुए इस राज्य में अाई है। जन्म के साथ उसकी मां का मरण होते ही विकास तो इस राज्य का रास्ता ही भूल गया है। ज्योतिषी कहती है कि....

तनिक ठहरिए मुख्य पुरोहित। ज्योतिषी और शिवत्व दोनों का एक दूसरे से संबंध नहीं हो सकता। किसी नवजात शिशु पर राज्य की अवनति का दोष लगाना उचित नहीं। और शिव के वीर के पद की रिक्तता में भी क्या पता महादेव की ही इच्छा हो।

मुख्य पुरोहित:- सत्य तो सत्य रहेगा पुत्री। और मेरी वृद्ध आंखे वो देख रही है जो तुम्हारी वयस्क आंखे नहीं देख सकती।

शिविका:- समय के साथ आंखे धुंधला जाती है मुख्य पुरोहित।

मुख्य पुरोहित:- पर अनुभव तो बढ़ता है ना पुत्री। अब तुमसे विदा लेता हूं। मंदिर में कई आवश्यक कार्य शेष है अभी।

इतना कहकर मुख्य पुरोहित मंदिर के भीतर चले गए। पर उन्हें इस बात का आभास नहीं हुआ कि शिव ने उनकी बात सुन भी ली है और उसका संकेत भी दे दिया है। शिविका के माध्यम से.....।।।


अगला भाग

( राजकुमार सुर की खोज)

राजकुमार.... ये शब्द स्वर्ण श्रोणितपुर के अधिकांश निवासियों के लिए दहशत का ही पर्याय था। परंतु शिविका का दृष्टिकोण अलग था। वो किसी व्यक्ति का पक्ष उसकी सुनी किंवदंती के आधार पर नहीं साक्ष्य के न्याय के आधार पर करती थी। शिविका का व्यक्तित्व उस जोहरी से कम ना था जो देखते ही स्वर्ण क्या है और नकली क्या, इसका फर्क बता देता है। या फिर कह सकते है कि बुराई की गहरी सुरंग से भी वो चमकते मोती ढूंढ पाने में समर्थ थी जबकि राजकुमार ठीक उसके विपरीत।
दोष ढूंढ़ना उनका व्यवहार था और हठ पर अड जाना उनकी आदत।

एक दिन अपने मित्र श्लोक के साथ वो एक शर्त लगा बैठे जो असंभव थी। जो उन्होंने पूरी करने की ठान ली। तब श्लोक ने उनसे कहा:- ये तो मैंने उपहास में कहा था मित्र! अब तुम ही बताओ स्वयं मुख्य पुरोहित शिव के वीर को ढूंढ नहीं पा रहे तो तुम कैसे ढूंढोगे?? वैसे भी कौन है ऐसा योग्य राज्य में जो इस राज्य में तुम्हारे समीप होकर भी तुमसे छिपा है।

तब श्लोक एक क्षण सोचने लगा कि तभी राजकुमार बोला:- तुम ठीक कह रहे हो मित्र। इस राज्य में तुमसे अच्छा कोई इस पद को नहीं संभाल सकता। श्लोक इस बात को सुन उत्साहित होता है और फिर राजकुमार के गले लग जाता है।

किन्तु ये सब उसकी कल्पना होती है। जिसे राजकुमार भंग करते हुए कहता है:- तुमने ठीक कहा। मुझे शीघ्र ही अपनी खोज शुरू कर देनी चाहिए। पर प्रजा के लिए जब मेरा अस्तित्व ही अशुभ है तो फिर मै केवल शिव के वीर के योग्य व्यक्ति को ढूंढूंगा पर उसका अभिषेक नहीं करूंगा।

क्या???? किन्तु क्यों????:- श्लोक अचंभित होकर बोला।

राजकुमार:- तुम इतने अचंभित क्यों हो रहे हो श्लोक।

श्लोक:- नहीं कुछ नहीं मित्र। तुम बस एक संगत शिव के वीर को ढूंढो। आगे का कार्य तो मुख्य पुरोहित करेंगे ना। इसलिए तुम चिंता मत लो।

राजकुमार:- ठीक है मित्र। मुझे प्रथम विशालकाय प्राण वृक्ष को ढूंढ़ना होगा जहां पर शिव के पूर्व वीर उतराधिकारियों की आत्मा का एक अंश निवास करता है। हो सकता है वहीं मेरे प्रश्नों के उत्तर मिले।

श्लोक:- तुमने ठीक कहा। पर सुना है वो वृक्ष अति विचित्र है चन्द्र किरणों के प्रकाश में जीवंत हो उठता है। पर इन चन्द्र किरणों के अस्तित्व के लिए नीलकमल मणि प्राप्त करना आवश्यक है। जो शिव मंदिर में है पर उसे केवल वही व्यक्ति उठा सकता है जिसको एक शिव मंदिर के मुख्य का आशीष मिले ?????

तभी गुरु मा वहां अा जाती है और बात और आगे बढ़ाते हुई कहती है:- नीलकमल वहीं उठाएगा या उठाएगी?? इसका निर्णय शिव कर चुके है। और आशीष के लिए तो हम सदैव तत्पर है। पर राजकुमार आपके जीवन का एक बहुत बड़ा भाग भी इस पर टिका है। समय को चुनाव करने दे क्योंकि चुनाव तो वहीं होगा किन्तु अगर आप स्वयं विधाता बनेंगे तो उस विधाता की लेखनी की दिशा घूम जाएगी।

राजकुमार:- दिशा चाहे घूम जाए गुरु मा पर मेरा निर्णय यही रहेगा। आप आशीष दे गुरु मा अक्षोहिनी।

गुरु मा:- आशीष तो मेरा तुम्हारे साथ है। अपने गंतव्य को पा जाओगे आप राजकुमार!!

धन्य गुरु मा:- राजकुमार ने कहा।

और चला गया शिव मंदिर की ओर। क्या मिल पायेगा राजकुमार शिविका से जाने अगले भाग में........??????