विश्वास (भाग --26)
काफी मुश्किल से टीना को नींद आयी। वो तो 10 बजे दादी ने उठा दिया था क्योंकि भुवन के भाई उससे जाने से पहले मिलनी चाहते थे। टीना जल्दी से तैयार हो कर नीचे आयी। सब नाश्ता कर रहे थे। "कितने बजे की ट्रेन है आप लोगों की"। टीना ने राजेश से पूछा, "दीदी मेरी और श्याम को 12:30 की है और दोनो भैया की 1:20 , पर हम सब एक साथ निकलेंगे"।
"10:30 बजे गए। आप लोगों की तैयारी हो गयी"?? "हाँ मैडम जी हो गयी", टीना के पूछने पर नरेन ने कहा, आप के जो दोस्त है न उन्होने सात बजे से शोर मचा कर रखा है"। नरेन ऐसे बोला की टीना हँसे बिना रह नही पायी।
मोहन ने एक बैग नरेन को तो एक बैग राजेश को दिया जिनमे मिठाई, मठरी और नमकीन थी। "एक बार ऊपर आओ तुम लोग", भुवन ने सब लडकों को बुलाया। "चलो दीदी आप भी आ जाओ"। राजेश ने सीढियाँ चढते हुए टीना को कहा।
"नहीं तुम सब जाओ, क्या पता कुछ सीक्रेट बात करनी हो तुमसे भुवन ने"।
"ऐसा कुछ नहीं है दीदी, कुछ होगा तो भैया आपको बाहर रूकने को बोल देंगे"। राजेश ने कहा तो वो भी "ठीक है", बोल कर ऊपर चल दी।
ऊपर जा कर देखा तो भुवन नरेन और रवि को कुछ नोट्स दे रहा था। राजेश और श्याम को भी कुछ किताबें और नोट्स दिए। "ज़रा ध्यान से मन लगा कर पढाई करो। कंपीटिटव एग्जाम्स की तैयारी भी करनी शुरू कर दो"। भुवन ने कहा तो चारों "जी भैया", एक साथ बोले।
टीना ये सब देख कर मुस्करा दी। "भुवन ने चारों को कुछ पैसे दिए और फालतू घूमना वगैरह बंद करो", पर लेक्चर भी दिया। टीना चलो तुम भी नाश्ता करो, फिर चलते हैं। "हाँ आती हूँ", बोल कर उसने राजेश को देखा वो मुस्करा दिया, "देख लिया आपने , मैंने कहा था न कि कुछ सीक्रेट नहीं था"।
"मैं नीचे जा रही हूँ , तुम सब भी आ जाओ"। "टीना तुम भी आना भैया की शादी में"। टीना जाने लगी तो रवि ने कहा। "हाँ जरूर आऊँगी और हम सब खूब मस्ती करेंगे। अब चलो सब नहीं तो सबसे डाँट खाओगे"।
सब नीचे अपना सामान ले कर आ गए। जैसा कि हर घर में होती है, सब उनको तरह तरह की हिदायतें दे रहे थे। "आप लोग हर बार क्यों भूल जाते हो कि ये लोग पहली बार नहीं जा रहे हैं"। भुवन ने हँसते हुए कहा। सबसे आशीर्वाद ले कर सब चल दिए। "शेरनी का लगता है मन नही भरी बातों से, चलों इनको रेलवे स्टेशन छोड़ आते हैं और आते हुए बाजार घूम लेंगे"। भुवन के ऐसे कहने पर टीना के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
गाडी बड़ी थी पर फिर भी सामान की वजह से एडजस्ट हो कर बैठ गए। "माँ आज सरला चाची के सेंटर की छुट्टी है, तो वो अभी दादी से मिलने आएँगी", जाते जाते भुवन बता गया। "ठीक है बेटा, हम घर पर ही हैं टीना का ध्यान रखना"।
रेलवे स्टेशन तक पहुँचने में 10मिनट लगे। राजेश ने टीना का नं माँगा तो टीना ने दे दिया और सबका नं खुद भी सेव कर लिया। "नं तो तुम सबने ले लिया है, पर टीना और तुम सब यह बात ध्यान रखना कि सिर्फ संडे को या छुट्टी के दिन बातें करना बाकी की समय सिर्फ पढना है"। भुवन ने सब को चेतावनी देते हुए कहा।
टीना देख रही थी कि चारों भुवन की कितनी इज्जत करते हैं। उसके पैरेंटस और पूरा गाँव भी सम्मान करता है भुवन का। सचमुच उसको एक अनमोल दोस्त मिल गया है। रेलवे स्टेशन तो पहुँच गए थे, पर ट्रेन में टाइम था तो वो लोग प्लेटफार्म पर एक बेंच पर बैठ गए।
"अच्छा अब ट्रेन आने में कुछ समय है, भीड़ बढने लगी है, चले टीना हम निकलते है"। भुवन ने कहा तो नरेन भी बोला" हाँ आप लोग जाओ"। सबसे विदा ले कर दोनो बाहर आ गए।
भुवन ने टीना को गाडी में बैठे -बैठे बाजार घुमा दिया। बाजार ज्यादा बड़ा नही था। भुवन ने बताया कि रोज की जरूरत का सामान तो यहीं मिल जाता है, बाकी की शापिंग शहर से करनी पड़ती है जो 40 कि. मी. दूरी पर है। टीना की नजर लकडी से बने खिलौनो पर पड़ी तो उसने गाड़ी रूकवा कर कुछ खिलौने खरीदे।
एक जगह कुम्हार ने मिट्टी के जग, गिलास , कटोरी, मटके, गुल्लक और दही जमाने के बरतन सजा रखे थे। टीना ने उससे जग, गिलास, गुल्लक और दही जमाने के लिए दो बरतन लिए। टीना ने पैसे देने चाहे पर साथ में भुवन को देख कर उसने लेने से मना किया पर भुवन के देने पर ले लिए।
"आप क्यों पैसे दे रहे हो यह गलत बात है, मेरे पास न होते तो आप देते"। "शेरनी मुझे पता है तेरे पास पैसे हैं, पर यहाँ तो मैं ही दूँगा, दिल्ली में मेरी शाॉपिंग के पैसै तुम दे जेना मैं कुछ नहीं कहूँगा"। इसके बाद टीना कुछ नहीं कह पायी।
क्रमश: