The Art of War - 7 in Hindi Anything by Praveen kumrawat books and stories PDF | युद्ध कला - (The Art of War) भाग 7

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युद्ध कला - (The Art of War) भाग 7

5. ऊर्जा (शक्ति)

सुन त्ज़ू के अनुसार— एक बड़ी सेना पर नियंत्रण करने तथा कुछ लोगों का नियंत्रण करने में सैद्धांतिक रूप से समानता है, अंतर केवल व्यक्तियों की संख्या का है।
अपने नेतृत्व में एक बड़ी सेना को लेकर युद्ध करना तथा एक छोटी सेना के साथ युद्ध करने में कोई अंतर नहीं है। यह चिन्हों तथा संकेतों को स्थापित करने की विधि मात्र है।
इस बात को सुनिश्चित करने के लिए कि आपकी सेना दुश्मन के आक्रमण को बर्दाश्त कर सके और उसका आत्मविश्वास बना रहे,‌ आपको सीधी सरल तथा टेढ़ी और अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार की चालें चलनी होंगी।

हमारा प्रयास होना चाहिए कि दुश्मन हमारे सीधे सादे हमले को गुप्त तथा योजनाबद्ध तरीके से नियोजित आक्रमण समझे एवं ठीक इसके विपरीत हमारे योजनाबद्ध तरीके से किए गए आक्रमण को वह सीधे-सादे तरीके से किया हुआ हमला समझे।

शत्रु की सेना पर आपकी सेना का ऐसा असर होना चाहिए जैसे अण्डे को चक्की के दो पत्थरों के बीच डालकर कुचलने पर होता है। परंतु इस तरह के परिणाम प्राप्त करने के लिए दुश्मन के गुण एवं अवगुण दोनों की जानकारी होनी बहुत ही जरूरी है।
हर प्रकार के युद्ध में सीधे तथा सरल (प्रत्यक्ष) तरीके अपनाए जा सकते हैं परंतु जीत हासिल करने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी घुमावदार (अप्रत्यक्ष) चालों का इस्तेमाल किया जाना जरूरी होता है।

अप्रत्यक्ष युक्तियों को दृढ़तापूर्वक विकसित करें, इनके इस्तेमाल से शत्रु की सेना पर आगे या पीछे कहीं से भी धावा बोला जा सकता है।

अप्रत्यक्ष युक्तियों का यदि दक्षतापूर्वक उपयोग किया जाए तो ये धरती और आकाश की तरह कभी भी समाप्त नहीं होंगी। ये उसी प्रकार अनंत बन जाती हैं जैसे कि नदियां और जल की धारा, सूर्य और चंद्रमा यदि ये युक्तियां कभी समाप्त होती भी हैं तो इनका पुनर्जन्म हो जाता है— बिल्कुल वैसे ही जैसे कि चार ऋतुएं जाने के बाद पुनः वापस लौट आती हैं।
संगीत में कुल सात स्वर होते हैं। किन्तु सात सुरों का संगम इतनी धुनें बना देता है जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
इन्द्रधनुष में कुल सात रंग होते हैं। फिर भी आपस में मिलकर वे इतने रंगों का निर्माण कर देते हैं जिन्हें पहले कभी नहीं देखा गया है।
दुनिया में केवल पांच प्रमुख स्वाद हैं- कडुवा, मीठा, तीखा, नमकीन तथा खट्टा। किंतु इनका सम्मिश्रण इतने तरह के स्वाद बना सकता है जिन सभी का रसास्वादन नहीं किया जा सकता।
इसी प्रकार युद्ध में आक्रमण के केवल दो ही तरीके हैं प्रत्यक्ष एवं परोक्ष। किन्तु इन दोनों को मिलाकर युद्ध की अंतहीन श्रृंखलाएं बनाई जा सकती हैं।
प्रत्यक्ष एवं परोक्ष विधियां बारी-बारी से एक दूसरे के लिए मार्ग प्रशस्त करती हैं। यह इसी प्रकार से है जैसे कि आप एक अंतहीन वृत्त (गोलाकार) में घूम रहे हों। इतने बड़े और अधिक मिश्रणों की संभावनाओं को कौन समाप्त कर सकता है?
उत्तेजित सैनिकों का आगे बढ़ना तूफान के उस प्रवाह के समान होता है जो अपने मार्ग में आने वाली बड़ी से बड़ी चट्टान तक को उखाड़ देता है।
आपका निर्णय इतने ऊंचे स्तर का होना चाहिए कि शत्रु पर आक्रमण करके उसे पूरी तरह से नष्ट किया जा सके। बिल्कुल उसी तरह जैसे बाज सही समय पर आक्रमण करके अपने शिकार को नष्ट कर देता है। अतः एक अच्छा योद्धा वही है जो हमला करने में बहुत खतरनाक होता है तथा निर्णय लेने में तेज।
दूसरे शब्दों में खिची हुई कमान (धनुष) की तुलना ऊर्जा से की जा सकती है परंतु तीर के छोड़े जाने को ही निर्णय कहा जाएगा।
युद्ध के शोरगुल तथा कोलाहल के बीच अनियंत्रण तथा अनुशासनहीनता की गलतफहमी पैदा हो सकती है। असमंजस तथा घोर अव्यवस्था के बीच (जहां आपकी सेना के सिर पैर तक का पता न चलता हो) सुव्यवस्थित बने रहकर ही आप अपनी विजय को सुनिश्चित बना सकते हैं।
दिखावटी अव्यवस्था अच्छे अनुशासन को दर्शाती है, बनावटी कायरता बहादुरी का सूचक है, तथा कमजोरी का बहाना करना आपके शक्तिशाली होने का प्रमाण है।

यदि आप शत्रु को गुमराह करने के लिए घबराहट अथवा उलझन का अभिनय करना चाहते हैं तो सर्वप्रथम अपनी सेना के भीतर आदर्श एवं पूर्ण अनुशासन का विकास करें। यदि आप दुश्मन को फंसाने के लिए कायरता का अभिनय करना चाहते हैं तो अपनी सेना में अभूतपूर्व साहस का निर्माण करें। तथा यदि आप अपने शत्रु को घमण्डी बनाकर मात देने के लिए स्वयं को दुर्बल दिखाना चाहते हैं तो इसके लिए आपकी सेना में गजब की ताकत होनी चाहिए।

नियंत्रण को अनियंत्रण के चोगे में छिपाने का आसान तरीका है सेना को टुकड़ियों में बांट देना। साहस को कायरता के भीतर छिपाने के लिए आपके पास गुप्त ऊर्जा का होना अत्यावश्यक है। स्वयं को दुर्बल दर्शाकर अपनी शक्तियों का प्रयोग करना आपकी कौशलपूर्ण व्यवस्थाओं के प्रयोग की योग्यता पर निर्भर करता है।

हसियुंगनू को बर्बाद करने के इरादे से हेन के पहले सुलतान काओ सू ने वहां की व्यवस्थाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए गुप्तचर भेजे। हसियुंगनू को यह सब पहले ही पता चल चुका था, अतः उसने बड़ी ही होशियारी से अपने सभी अच्छे सैनिक और ताकतवर घोड़ों को छिपा दिया, जिसके चलते गुप्तचर मात्र कमजोर सैनिक तथा मरियल मवेशियों को ही देख पाए। परिणाम स्वरूप सभी गुप्तचरों ने राजा को आक्रमण की सलाह दी। किन्तु लाओ चिंग एकमात्र व्यक्ति था जिसने इस फैसले का विरोध किया। उसने कहा, "जब दो देश युद्ध करने वाले हों तो उनके द्वारा अपनी शक्ति का मन मुताबिक प्रदर्शन करना स्वाभाविक है। हमारे गुप्तचरों ने जो देखा निश्चित रूप से दुश्मन की चाल है। अतः इस छद्म सूचना के आधार पर शत्रु पर धावा बोलने का निर्णय करना बुद्धिमत्तापूर्ण नहीं होगा। " किन्तु बादशाह ने उसके इस सुझाव को नज़रअंदाज करते हुए आक्रमण कर दिया और पोटेंग में स्वयं को शत्रु से घिरा हुआ पाया ।

वह सेना जो दुश्मन को नाकों चने चबवा दे, ताकत का अंदाजा न लगने दे, चारा डालकर शत्रु को अपने जाल में फंसाकर गलत कदम उठाने पर मजबूर कर देती है।

341 ई. पू. 'ची' राज्य (जो 'वी' राज्य के साथ युद्ध की तैयारी कर रहा था) ने 'तेन ची' तथा 'सन पिन' को जनरल 'पेंग चुआन' के विरुद्ध युद्ध करने के लिए भेजा। 'सन पिन' और पेंग चुआन एक दूसरे के जानी दुश्मन थे। सन पिन ने कहा, “ची राज्य अपनी कायरता के लिए बदनाम है तथा इसलिए हमारा दुश्मन हमसे नफरत करता है, फिर क्यों न इसी बात का फायदा उठाया जाए?" अतः जब सेना ने वी राज्य की सीमा में प्रवेश किया तो उसने पहली रात सेना को एक लाख मशालें जलाने का हुक्म दिया, अगली रात पचास हजार तथा उसके बाद मात्र बीस हजार। यह देखकर पेंग चुआन बहुत प्रसन्न हुआ। उसने मन ही मन सोचा, "मुझे पता था ये लोग डरपोक हैं, तभी तो आधे से भी ज्यादा लोग भाग चुके हैं।” सन पिन ने युद्ध से भागने का अभिनय किया, वह एक तंग घाटी में जा पहुंचा। सन पिन ने अनुमान लगाया कि पेंग चुआन उसे ढूंढते हुए देर रात तक वहां जरूर पहुंच जाएगा। उसने एक पेड़ की छाल उतरवा दी और उस पर गुदवा दिया, “इस वृक्ष के नीचे पेंग चुआन की मौत होगी।" अंधेरा होने पर उसने तीरंदाजों की एक मजबूत टुकड़ी को घात लगाकर हमला करने के लिए वहां छिपा दिया और आदेश दिया जैसे ही उन्हें पेड़ के नीचे रोशनी दिखाई दे तीरों की बौछार की जाए। देर रात पेंग चुआन वहां आ पहुंचा। यह जानने के लिए कि पेड़ पर क्या लिखा है उसने रोशनी की तो उसे तीरों की बौछार से छलनी कर दिया गया, यह देखकर उसकी सेना भाग खड़ी हुई। अपनी सेना की इतनी बुरी पराजय को देखकर पेंग चुआन ने निराश होकर गला काटकर आत्महत्या कर ली।

एक चतुर नायक सेना की संयुक्त शक्ति का उपयोग भली भांति करना जानता है, वह एक अकेले सैनिक से अधिक की अपेक्षा नहीं करता। वह प्रत्येक सैनिक की प्रतिभा/प्रवीणता के अनुसार उनसे काम लेता है तथा जिनमें गुण न हों उनसे गुणों की अपेक्षा नहीं करता।

सर्वप्रथम वह देखता है कि उसकी सेना में कितनी क्षमता है, उसके बाद वह व्यक्ति निपुणता एवं योग्यता पर ध्यान देता है तथा प्रत्येक व्यक्ति से उसकी योग्यता के अनुसार काम लेता है। वह उन व्यक्तियों से उत्तम तथा परिपूर्ण परिणामों की अपेक्षा नहीं करता जिनमें कुशलता की कमी होती है।

सही व्यक्ति का चुनाव तथा संग्रहित ताकतों का उपयोग करना ही उसकी सबसे बड़ी योग्यता होती है।
जब वह संयुक्त ऊर्जा / शक्ति का प्रयोग करता है तो उसके योद्धाओं का बल ढलान से फिसलते हुए लट्ठों या पत्थरों के समान होता है क्योंकि पत्थर अथवा लकड़ी के लट्ठे का यह प्राकृतिक स्वभाव होता है कि वह समतल मैदान / धरातल पर स्थिर बना रहता है, परंतु जैसे ही उसे ढलान से नीचे छोड़ा जाता है तो वह असाधारण गति पकड़ लेता है। ठीक इसके विपरीत चौकोर आकार वाली चीजें इस काम के लिए उपयोगी साबित नहीं होती हैं।
अतः अच्छे योद्धाओं द्वारा जिस ऊर्जा का निर्माण किया जाता है। उसकी तुलना हजारों फुट ऊंचे पर्वत से नीचे गिरते गोल पत्थर से की जा सकती है। ऊर्जा के विषय में इतना कहना ही पर्याप्त होगा। युद्ध के मैदान में तेजी के साथ बदलाव एवं उन्नति तथा अचानक आक्रमण करके छोटी सेना के द्वारा भी जीत हासिल की जा सकती है।