The Art of War - 6 in Hindi Anything by Praveen kumrawat books and stories PDF | युद्ध कला - (The Art of War) भाग 6

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युद्ध कला - (The Art of War) भाग 6

4. सुनियोजित व्यवस्थापन

कुशल योद्धा सर्वप्रथम स्वयं को अपराजित (अजेय) बनाता है और फिर उस मौके का इंतज़ार करता है जब दुश्मन को पराजित किया जा सके।
खुद को पराजय से बचाए रखना स्वयं हमारे हाथों में होता है परंतु दुश्मन को पराजित करने का अवसर स्वयं दुश्मन द्वारा दिया जाता है।

एक अच्छा योद्धा स्वयं को पराजय से बचाने में माहिर होता है, इसके लिए वह अपने सैनिकों को छिपाकर रखता है, उनके रास्तों को गुप्त रखता है तथा बचाव के उपाय एवं सावधानियों का निरंतर पालन करता है। (चेंग यू)

परंतु फिर भी यह निश्चित नहीं होता कि वह शत्रु को पराजित कर ही देगा।
इसलिए कहावत है— आपको यह पता होना चाहिए कि बिना युद्ध किए कैसे जीता जाए।
पराजय से बचने के लिए रक्षात्मक दांव-पेचों का इस्तेमाल किया जाता है तथा दुश्मन को हराने के लिए आक्रामक होना पड़ता है। रक्षात्मक होना दुर्बलता की निशानी है जबकि आक्रामक होना हमारे शक्तिशाली होने का सूचक है।
रक्षात्मक कौशल में कुशल सेनानायक अपनी सेना को गुप्त स्थान पर छिपा देता है जबकि हमला करने में प्रवीण सेनानायक दुश्मन पर आकाश की ऊंचाई से प्रकाश की गति से टूट पड़ता है। इन तरीकों के इस्तेमाल के द्वारा एक ओर जहां हम स्वयं की रक्षा करते हैं वहीं दूसरी ओर जीत को हासिल कर लिया जाता है।

सरल अथवा पहुंच (वश) के अंदर की जीत को हासिल करने में कोई बहादुरी नहीं है, न ही दुर्बल को परास्त करने में किसी प्रकार का गौरव है। असली जीत है योजनाएं तैयार करना, दबे पांव आगे बढ़ना, दुश्मन के इरादों को ध्वस्त करना, उसकी योजनाओं को असफल करना तथा ऐसा करते हुए बिना खून बहाए विजयश्री को प्राप्त करना।

पतझड़ में गिरे हुए पत्तों को बटोरने मात्र से आप बहादुर नहीं बन जाते हैं, सूर्य और चंद्रमा को देख पाना तीव्र दृष्टि का प्रमाण नहीं है, न ही बादल की गर्जना अथवा तूफान की आवाज को सुन लेना तेज श्रवण शक्ति का परिचायक है।

'हो शिन' हमें असाधारण क्षमता, तेज नज़र तथा त्वरित श्रवण शक्ति का उदाहरण देते हुए बताता है— 'वू हो' 250 स्टोन (350 पौंड/159 किलो ग्राम) वज़न की तिपाई उठा लेता था, 'ली चू' सौ कदम दूर रखे राई के दाने तक को देख लेता था तथा 'शी कुआंग' (सुप्रसिद्ध नेत्रहीन संगीतकार) मच्छर के कदमों की आहट तक को भांप लेता था।

हमारे पूर्वज उसे चतुर योद्धा मानते हैं जो न केवल युद्ध में विजय प्राप्त करता है बल्कि वह जीत को आसान बनाने में भी प्रवीण होता है।

चीजों को उसी रूप एवं अवस्थाओं (जिसमें वे हैं) में देखने वाले योद्धा को अक्सर हार का सामना करना पड़ता है, परंतु अपनी दूरदर्शिता के चलते वर्तमान के पार देख पाने की क्षमता रखने वाला योद्धा सरलता पूर्वक विजय प्राप्त कर लेता है।

उसकी जीत पर न तो उसकी बुद्धिमत्ता की सराहना होती है और न ही उसकी बहादुरी की प्रशंसा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हासिल की गई जीत, पैदा की गई उन अदृश्य परिस्थितियों के चलते प्राप्त की जाती है जिन्हें साधारण लोग देख नहीं पाते। परिणामस्वरूप उसे किसी भी प्रकार का मान-सम्मान नहीं दिया जाता क्योंकि दुश्मन बिनाँ लड़ाई और खून-खराबे के ही हार मान लेता है।
वह अपने युद्ध बिना कोई गलत कदम उठाए जीतता है।

वह अपनी सेना को अनावश्यक कूच (मार्च) के लिए तैयार नहीं करता है, न ही वह निरर्थक आक्रमण की योजनाएं बनाता है क्योंकि मात्र शक्ति के बल पर विजय प्राप्त करने का प्रयास करने वाला योद्धा अक्सर पराजय का सामना करता है। ठीक इसके विपरीत जो योद्धा भविष्य की उन संभावनाओं एवं परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने की योग्यता रखता है जो वर्तमान में प्रकट ही नहीं हुई हैं, कभी भी भूल नहीं करेगा तथा हर हाल में विजयी होगा।

उसका गलती न करना उसकी जीत को सुनिश्चित बनाता है, दूसरे शब्दों में— पहले ही से हारे हुए शत्रु पर विजय प्राप्त करना इसी को कहा जाता है।‌
युद्ध में निपुण योद्धा सर्वप्रथम अपनी पराजय को असंभव बनाता है, वह स्वयं को ऐसी अवस्था में स्थापित कर लेता है जहां उसकी पराजय का प्रश्न ही नहीं उठता तथा वह दुश्मन को परास्त करने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देता।
एक अच्छा योद्धा पहले जीत की योजना तैयार करता है तथा बाद में सुनिश्चित योजनानुसार युद्ध करता एवं उसे जीतता है, वहीं दूसरी ओर हारने वाला योद्धा पहले युद्ध करता है तथा बाद में अपनी सफलता की संभावनाओं को तलाशता है।

युद्ध में सर्वप्रथम ऐसी अचूक योजनाएं बनाइए जो निश्चित रूप से विजय दिलाएं, उसके बाद ही अपनी सेना को युद्ध के लिए कूच करने का आदेश दें। यदि आप ऐसा नहीं करेंगे और मात्र अपनी ताकत पर निर्भर रह कर आगे बढ़ेंगे तो युद्ध में आपकी जीत अनिश्चित है।

अत्यधिक निपुण मार्ग दर्शक (लीडर) नैतिक नियमों को विकसित करता है, तथा निरंतरता एवं दृढता के साथ प्रणाली एवं अनुशासन का पालन करता है, इसीलिए सफलता उसके कदम चूमती है।
तरीकों की बात करें तो सेना की पांच विधियाँ होती हैं, जिनमें पहली है मापन, दूसरी है मात्रा अथवा संख्या का अनुमान/आकलन, तीसरी है गणना, चौथी है अवसरों का संतुलन तथा पांचवीं है जीत। जिसमें माप का अस्तित्व पृथ्वी (दूरी) पर निर्भर करता है, मात्रा का माप पर, गणना का मात्रा के अनुमान पर, अवसरों का संतुलन गणनाओं पर तथा विजय अवसरों के संतुलन पर आधारित होते हैं।
जीतने और हारने वाली सेनाओं के बीच उतना ही अंतर होता है। जितना कि तुला (तराजू) के एक पलड़े में एक पौंड का वजन रखा जाए तथा दूसरे में अनाज का एक दाना ।
विजयी सेना की रफ्तार सौ कोस ऊंचाई से गिरने वाले झरने के पानी के बहाव के समान होती है।
कौशलपूर्ण व्यवस्थाओं के लिए इतना ही पर्याप्त है।