लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-129
पांच मिनट तक किसी ने कुछ नहीं कहा। बोल ही नहीं पा रहा था कोई कुछ। सबकी नजरों में सवाल थे, पर उत्तर किसी के पास नहीं थे। तो कुछ लोग उत्तर देने की स्थिति में ही नहीं थे। ऐसे ही पांच-सात मिनट गुजर गये और केतकी नैपकिन से अपना चेहरा पोंछते हुए बाहर
आयी। भावना भागकर उसके लिए पानी का ग्लास ले आयी। उसने केतकी के सामने रख दिया। केतकी ने उसकी तरफ देखा लेकिन हाथ नहीं बढ़ाया। भावना ने ग्लास टेबल पर रख दिया और वह केतकी के पैरों के पास बैठ गयी।
प्रसन्न उठा और उसने दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा, ‘सबसे पहले मैं सभी लोगों से माफी मांगता हूं। एकदम मन से, अपने अंतःकरण से। सभी लोगों ने जिन पंक्तियों को पढ़ा और उनकी तारीफ की वे मैंने लिखी हुई नहीं थीं।’ चंदाराणा ने आश्चर्य व्यक्त किया, ‘क्या? फिर किसकी थीं वे?’ उपाध्याय मैडम नाराज होते हुए बोलीं, ‘फिर हम लोग यहां इकट्ठा किसलिए हुए थे। और केतकी का अचानक इस तरह रोना...बच्चो सबकुछ ठीक तो है न?’
प्रसन्न उनके पास जाते हुए बोला, ‘सब ठीक है। आप चिंता न करें। आप सभी ने अभी जो कविताएं पढ़ीं, उसमें से एक भी शब्द मेरा नहीं था...ये सारा लेखन केतकी का है।’
उपाध्याय मैडम आश्चर्यचकित रह गयीं, ‘क्या?केतकी का? केतकी लिखती है?’
चंदाराणा के चेहरे पर आश्चर्य और तारीफ दोनों एकसाथ दिखने लगे। ‘वंडरफुल, आई एम प्राउड ऑफ यू...लेकिन ये सब इस तरह से आयोजित करने का कारण क्या है?’
‘सर, ये केतकी की सिर्फ कविताएं ही नहीं हैं...उसकी वेदनाओं का हिस्सा हैं...उसके अनुभव...उसके जीवन भर का दुःख है...इस दुःख को लेकर वह एक वीरान महल में अकेले जी रही है। जी रही है, ऐसा भी नहीं कहा जा सकता...झुलस रही है...उसे आत्मविश्वास की आवश्यकता है.. अन्यथा वह जीवन भर ऐसे ही भीतर ही भीतर कसमसाती रहेगी। उसे एक ऐसा अवसर मिला है...लेकिन वह उसके लिए तैयार नहीं हो रही है। इसीलिए उसके भीतर की रचनात्मकता और क्षमता को बाहर निकालने के लिए मुझे यह प्रयास करना पड़ा.. ’
प्रसन्न का अधूरा वाक्य पूरा करते हुए भावना बोली, ‘हमको यह नाटक करना पड़ा। केतकी बहन की डायरी के चार पन्नों की फोटोकॉपी निकालकर मैंने ही प्रसन्न भाई को दी थी। आई एम सॉरी...’
उपाध्याय मैडम ने उसे प्रेम से अपने पास खींचा। ‘अच्छे काम के लिए कभी कभी झूठा काम भी करना पड़े तो बुराई नहीं मैं तुम लोगों को माफ तो नहीं करूंगी पर तुम लोगों को धन्यवाद अवश्य दूंगी।’
‘सही है...मेरा भी यही मानना है, लेकिन अब यह तो बताओ कि केतकी के पास कौन सा अवसर चल कर आया है?’चंदाराणा को उत्सुकता लगी हुई थी।
भावना ने जोश से भरकर कहा, ‘केतकी बहन को सौंदर्य प्रतियोगिता के ऑडिशन के लिए आमंत्रण मिला है।’ उपाध्याय मैडम का मुंह आश्चर्य से खुला रह गया। चंदाराणा ने ताली बजाते हुए कहा, ‘दैट्स वंडरफुल... सिंपली फेंटास्टिक...कॉन्ग्रेचुलेशन्स...’
भावना ने रुंआसी होकर कहा, ‘लेकिन केतकी बहन ऑडिशन में जाने वाली नहीं है...’ अब केतकी बोली, ‘हां, वहां जाने का कोई मतलब नहीं है। लोग मेरी तरफ देखेंगे, मेरी हंसी करेंगे, मजाक उड़ाएंगे। मुंह पर नहीं तो, पीछे ही सही बातें करेंगे। ताने मारेंगे।’
प्रसन्न उससे सहमत था, बोला, ‘ये तो एकदम सही है। लेकिन कम से कम सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लेने वाली तुम अकेली एलोपेशियन होगी, यह बात तुम्हें समझ में आ रही है न? इस वजह से तुम अपने लिए न सही, तो देशभर के सभी एलोपेशियन से ग्रस्त लोगों के लिए प्रेरणा का काम करोगी। बाल नहीं हैं तो क्या हुआ? तुम्हारे भीतर जो हिम्मत और साहस है, वैसा किसी में नहीं।’
उपाध्याय मैडम ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘प्रसन्न तुम्हरा कहना एकदम सही है, लेकिन निर्णय तो केतकी को ही लेना है...केतकी तुमने बहुत कुछ सहन किया है, यह ठीक है। तुम एक साहसी लड़की हो। तुम यदि प्रतियोगिता में शामिल होगी तो जैसा कि तुम कह रही हो, लोग तुम्हें ताने तो मारेंगे, तुम्हारे बारे में भला-बुरा कहेंगे, उससे तुम्हें तकलीफ भी होगी लेकिन एक बात ध्यान में रखना...शरशैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह के नीचे पांच बाण हों या पच्चीस...उससे उन्हें क्या फर्क पड़ना है? वेदना तो फिर भी होनी ही है...तुम बहुत धीरज वाली हो। किसी के ताने-फिरकों की चिंता करने वाली नहीं। तुम्हारे भीतर केवल एक काल्पनिक डर समाया हुआ है। तुम वहां जाओगी तो तुम्हारा क्या नुकसान हो सकताहै?’
‘मैडम, फालतू फेरा पड़ेगा...मेरा चयन हो ही नहीं सकता...’
चंदाराणा गंभीर होकर बोले, ‘ये भरोसा अच्छा लगा...जब चयन होना ही नहीं है ये मालूम है, तो हताश और निराश होने का सवाल ही कहां खड़ा होता है? और मुंबई का फेरा हम मुंबई ट्रिप में बदल डालें तो?’
‘सर, आप क्या कह रहे हैं, मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा।’
‘तुम और भावना इसी बहाने मुंबई घूम कर आ जाओ। तुम बस हां कहो, सारी जिम्मेदारी मेरी। मुंबई ट्रिप मेरी ओर से तुम दोनों को गिफ्ट...’
भावना खुशी से चीख पड़ी, ‘वाह...मैं भी मुंबई देखूंगी...’
‘हां, ऑडिशन के पहले दिन सुबह वहां पहुंचो। एक दिन उस शहर से एडजस्ट होना। मानसिक तैयारी करना और आराम भी करना। दूसरे दिन ऑडिशन, तीसरे दिन मुंबई दर्शन। केतकी...आप जाएं, इस बात का आग्रह तो नहीं कर सकता, लेकिन बिनती जरूर करूंगा...प्लीज। ’
केतकी का गला रुंध गया, ‘सर, आप तो मुझे सिर्फ आदेश दें...’
भावना फटाक से बोली, ‘...तो हम जा रहे हैं पक्का?’
केतकी ने हामी भरी। तीनों ने तालियां बजायीं। पुकु-निकी भौंकने लगे।
उपाध्याय मैडम ने केतकी के पास जाकर उसका हाथ प्रेम से दबाया, ‘हम मुंबई के कई स्थान देखने के लिए आए हैं, ऐसा समझना। उसी में सौंदर्य प्रतियोगिता भी शामिल है...और बाकी ये सोचना कि भावना को लेकर मुंबई में मौज-मस्ती करनी है।’ केतकी थोड़ा अटकते हुए बोली, ‘हां...यह तो ठीक है...पर...’
‘तुमको पुकु-निकी की फिक्र होगी न...मैं समझ गयी। लेकिन इन दोनों को मैं संभाल लूंगी। ओके?’
केकती खुशी से हंस पड़ी।
प्रसन्न ने तालियां बजाते हे कहा, ‘अटेंशन प्लीज...मैं नकली कवि था और इसके लिए मैंने आप सभी से माफी भी मांग ली है लेकिन ज्योतिषशास्त्र का कोई ज्ञान न होते हुए भी मैं कहता हूं कि केतकी कोई न कोई पुरस्कार अवश्य लेकर आएगी।नहीं तो.. ’
केतकी ने व्यंग्य से पूछा, ‘नहीं तो?’
सभी प्रसन्न की तरफ देख रहे थे। केतकी को लगा, एकदम पागल है यह लड़का। या तो उसका मुझ पर बहुत प्रेम है या फिर वह मेरा हौसला बढ़ाने के लिए ऐसा कह रहा होगा।
उस रात उसकी कविता, जीवन, पांच सच्चे सह अध्येता, मुंबई और सौंदर्य प्रतियोगिता इन सबका विचार करते हुए केतकी को देर रात तक नींद ही नहीं आयी।
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जीतू उसकी तरफ ध्यान से देख रहा था। उसके चेहरे पर उपहास था। केतकी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। वह बोला, ‘ तुम? तुम सौंदर्य प्रतियोगिता में जा रही हो? दिमाग तो खराब नहीं हो गया है? ऐसी प्रतियोगिताओं में सेटिंग रहती है...सेटिंग...तुम्हारी जैसी लड़की को केवल मनोरंजन के लिए बुलाते हैं ये लोग। तुम सुंदर हो इसलिए नहीं बुला रहे हैं तुमको। दुनिया में किसी भी टकली औरत को सौंदर्य प्रतियोगिता जीतते हुए तुमने देखा-सुना है? मेरी बात मानो, और मुंबई जाने का विचार रद्द कर दो। उस पर भी यदि तुमको अपने सिर पर ताज रखना ही हो तो मैं तुम्हें खरीद कर ला देता हूं वैसा ही ताज बाजार से। लेकिन उसके पैसे तुम्हें ही देने होंगे... ’ इतना कहकर जीतू जोर-जोर से हंसने लगा, ‘टकली सुंदरी...मस्त है न यह शीर्षक? जाने का विचार छोड़ दो...ऐसे कोई जाता है क्या?’ जीतू जोर से हंस रहा था। अचानक केतकी नींद से जाग गयी। वह पसीना-पसीना हो रही थी। लेकिन इस सपने ने उसे हताश करने के बजाय चुनौती दे दी। ‘जीतू, तुम मुझे कोई भी सलाह देने के लायक नहीं हो। फिर भी, अनजाने ही तुमने सपने में आकर ही सही मेरी सहायता कर दी। थैंक्यू...अब तो मैं मुंबई जाकर ही रहूंगी...’
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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