लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-126
केतकी का आत्मविश्वास दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा था। टैटू बनवाने के बाद सभी लोगों में अलग दिखाई पड़ने लगी थी। तिस पर गोआ का पानी चढ़ने के कारण उसका व्यक्तित्व और अधिक निखर गया था। काम करने का साहस तो उसमें पहले से ही था। सभी की सहायता करने की आदत भी थी। उसके दिमाग में नयी-नयी कल्पनाएं जन्म लेती रहती थीं। उन पर वह अमल भी करती थी। इनमें से यदि किसी के भीतर एक भी गुण हो, तो लोग उससे ईर्ष्या करने लगते हैं। फिर केतकी तो गुणों की खान ही थी...फिर उससे ईर्ष्या करने वालों की भला कौन सी कमी रहने वाली थी। उसकी कोई भी कमी तलाशने के लिए लोग लेंस लगाये बैठे रहते थे।
उस पर से केतकी के जन्मदिन पर किशोर वडगामा और दो विद्यार्थी अपना बाल मुंडवा कर स्कूल में आए थे। और अपने सिर पर ‘थैंक्यू केतकी मैडम,वी आर विद यू।’ लिखवा लिया था। यह देखकर तो प्रिंसिपल मैडम का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उन्होंने उन विद्यार्थियों को बुलाकर डांट लगायी। उन्हें स्कूल से निकाल देने की धमकी दी। उनमें से एक विद्यार्थी के पिता, मिस्टर भोजाणी प्रतिष्ठित उद्योगपति थे। उनको जब यह पता चला तो वे कीर्ति चंदाराणा से आकर मिले और उनसे बोले, ‘हमारे बच्चों ने बाल मुंडवाते समय हमें भी नहीं बताया था, लेकिन जब हमें इसके पीछे कारण पता चला तो हमें इन पर गर्व हुआ। इसमें बच्चों को स्कूल से निकाल देने का सवाल कहां से खड़ा हो गया? बच्चों की भावनाएं आप लोग समझ नहीं पाएंगे तो कैसे चलेगा?’
चंदाराणा ने मिसेज मेहता को फोन लगाकर वस्तुस्थिति का पता लगाया। उन्होंने मिसेज मेहता के साथ केतकी जानी और उन तीनों विद्यार्थियों को भी अपने केबिन में बुला लिया। मिसेज मेहता कहने लगीं, ‘बहुत से पालक नाराज हो रहे हैं। वे कह रहे हैं कि आप बच्चों को यह सब सिखाती हैं क्या? हम अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेंगे। कई बच्चों पर भी इस का असर हुआ है। सर, ये प्रकरण गंभीर है।’
चंदाराणा ने भोजाणी के बेटे कौशल से ऐसा करने के पीछे का कारण पूछा।
कौशल ने साफ और थोड़े शब्दों में उत्तर दिया, ‘सर, पहले मेरी पढ़ाई में बिलकुल भी रुचि नहीं थी। लेकिन अब मैं क्लास के पहले पांच विद्यार्थियों में शामिल हूं। ऐसा केवल केतकी मैडम के कारण हो पाया है। मेरे लिए वह मेरे माता-पिता की तरह ही हैं। उनकी समस्या को जानने के लिए मैंने इंटरनेट पर सर्फिंग की। वहां पर मुझे पता चला कि ऐसी बीमारी से ग्रस्त शिक्षकों का साथ देने के लिए विदेशों सभी विद्यार्थी एक दिन नीली पट्टी लगाकर स्कूल में आते हैं। मैं सभी विद्यार्थियों से तो ऐसा करने के लिए कह नहीं सकता था। लेकिन हम तीनों मित्रों ने केतकी मैडम का साथ देने के लिए ऐसा किया है। बाल निकालना तो कोई बड़ी बात नहीं है। सर...मैं तो केतकी मैडम के लिए कुछ भी कर सकता हूं। क्या हम इतनी छोटी गुरुदक्षिणा भी नहीं दे सकते क्या अपने गुरुओं को?’
चंदाराणा के चेहरे पर मुस्कान आ गयी, ‘कॉन्ग्रेचुलेशन मिस्टर भोजाणी, आपका बेटा कौशल एक संवेदनशील, समझदार गंभीर विचारों वाला लड़का है। आई एम प्राउड ऑफ हिम। कौशल...बेटा तुम जाओ...अपने कक्षा में जाकर बैठो।’
चंदाराणा ने घंटी बजाकर सभी लोगों के लिए चाय मंगवायी। उसके बाद उन्होंने तुरंत स्कूल के सभी बच्चों और शिक्षकों को हॉल में आधे घंटे के भीतर इकट्ठा होने का नोटिस दिया। आधे घंटे के बाद हॉल खचाखच भरा हुआ था। चंदाराणा और भोजाणी कुर्सी पर आकर बैठ गये। चंदाराणा ने माइक हाथ में लेकर कौशल भोजाणी सहित तीनों विद्यार्थयों को मंच पर बुला लिया। ‘इन तीनों विद्यार्थियों ने जो किया, वह करने का हममें से किसी ने विचार भी नहीं किया होता। मैं इन तीनों का अभिनंदन करता हूं। इन बच्चों को किस तरह से सम्मानित किया जाए, मुझे तो यही समझ में नहीं आ रहा है। इन तीनों बच्चों को मैं उनके माता-पिता के साथ अपने घर में भोजन के लिए आमंत्रित करता हूं। आएंगे न आप तीनों?’ कौशल अपनी जगह से ही बोला, ‘थैंक्यू सर...केतकी मैडम साथ में होंगी तो हमें और आनंद होगा।’ चंदाराणा ने हंसकर कहा, ‘अवश्य...तुम लोगो की इच्छा है, तो मैं उनसे भी बिनती करूंगा।’ इतना सुनकर केतकी उठ खड़ी हुई। ‘सर, मुझे इन बच्चों से कुछ कहना है, यदि आपकी आज्ञा हो तो...’
चंदाराणा ने उसे मंच पर बुलाकर उसके हाथ में माइक दिया। केतकी ने एक बार सभी लोगों पर नजर घुमायी। फिर बोलना शुरू किया, ‘इन बच्चों की भावनाओं का मैं आदर करती हूं। आप मेरा साथ देना चाहते हैं। सहानुभूति जताना चाहते हैं। मुझसे प्रेम करना चाहते है। मानसिक संबल देना चाहते हैं। मैं सभी से हाथ जोड़कर बिनती करती हूं कि आगे से ऐसा कुछ न करें। सिर्फ इतना करें कि भविष्य में बिना बालों वाला कोई व्यक्ति दिखाई दे तो उस पर गुस्सा न करें, उसे दुतकारें नहीं, उन्हें अस्पृश्य न मानें। उसके साथ अपनापा दिखाएं। गंजापन कोई रोग नहीं है। ये छूत की बीमारी तो बिलकुल भी नहीं है। ये केवल ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। इस बीमारी का कारण हमारी कोई गलती या गलत आदत नहीं है। इसका कोई इलाज नहीं है। फिर लोग हमारा तिरस्कार क्यों करते हैं? ऐसी किसी बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति पर प्रकृति पहले ही अन्याय कर चुकी होती है, फिर ऐसे व्यक्ति का हम भी तिरस्कार क्यों करें? हमें तो सहानुभूति दिखानी चाहिए। सहायता करनी चाहिए। इन तीनों बच्चों ने मेरे लिए बाल निकलवाए इस बात के लिए नहीं, तो उनके भीतर जो मानवता है, जो दया भाव है और उसके लिए उन्होंने जो हिम्मत दिखायी है, मैं इस हेतु उन्हें सलाम करती हूं। मैं इन तीनों की ऋणी हूं। मैं आज सबके सामने आपको वचन देती हूं कि जीवन में आप मुझे जो कुछ भी करने के लिए कहेंगे वह करने के लिए मैं प्रतिबद्ध रहूंगी।’
तालियों की गड़गड़ाहट हुई। चंदाराणा ने तीनों बच्चों को अपने पास बुला लिया। भोजाणी. केतकी और तीनों विद्यार्थी एक कतार में खड़े हो गये। प्रसन्न ने उनके कई फोटो अपने मोबाइल फोन से खींच लिये। चंदाराणा ने केतकी से कहा कि इस बीमारी के लिए वह स्वयं या उनका स्कूल कुछ कर सकता हो तो अवश्य बताए। केतकी ने इस बीमारी के बारे में बहुत सारी जानकारी दी और लोगों का आभार माना।
शाम को जब यह बात केतकी ने भावना को बतायी, तो भावना ने उन तीनों विद्यार्थियों से मिलने की जिद पकड़ ली। केतकी ने उसे धीरज रखने के लिए कहा लेकिन किसी काम के बहाने भावना घर से बाहर निकल गयी। बाहर से उसने प्रसन्न को फोन किया और तीनों बच्चों के घर जाकर थैंक्स के कार्ड के साथ तीनों के घर में एक-एक किलो का केक दे आयी। भावना जब घर लौटी तो केतकी अपने पीसी पर मेल चेक कर रही थी। एक मेल देखकर वह चीख पड़ी, ‘ओह, दिस इज इंपॉसिबल...मजाक ही होगा यह तो...’
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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