Agnija - 120 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 120

Featured Books
Categories
Share

अग्निजा - 120

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-120

कुछ दिनों से भावना यह महसूस कर रही थी कि केतकी कभी-कभी अपने ही विचारों में घंटों मग्न रहती थी। उसे अकेलापन खाता होगा क्या? मां की याद सताती होगी क्या? या फिर जीतू याद आता होगा? वह तमाम परीक्षाओं से गुजर चुकी है, लेकिन इन सबका बोझ उसके मन पर सदा के लिए रहेगा। उसका पूरा जीवन संघर्ष में ही गुजरा। उसने कभी आराम किया ही नहीं। उसे अपने जीवन में कभी निश्चिंतता मिली ही नहीं। उसके जीवन में कुछ थ्रिलिंग अवश्य होना चाहिए ताकि वह दोबारा ताजादम हो सके। कुछ रोमांटिक होना चाहिए, वह भी तुरंत, लेकिन क्या किया जा सकता है? भावना के मन में उठ रहे इस सवाल का जवाब उसे तब मिला जब वह निकी पुकु को लेकर शाम को बगीचे की बेंच पर बैठी थी। शाम को वह निकी पुकु को खेलते हुए देख रही थी। तभी चंद्रिका उसके पास आकर बैठ गयी। भावना का उसकी तरफ ध्यान नहीं था। उसने अपना गला खखारते हुए भावना का ध्यान अपनी ओर खींचा। भावना उसकी तरफ देखकर हंसी। ‘सॉरी निकी-पुकु को आनंदित देखकर मैं उनमें खो गयी थी।’

‘बधाई, यह वही निकी है, भरोसा ही नहीं होता। तुम दोनों बहनों के पास जादू है। मेरी एक समस्या का समाधान तलाशने में मेरी मदद करोगी क्या?’

‘मैं भला तुम्हारी क्या मदद कर सकती हूं? अपनी इतनी हैसियत नहीं।’

‘वैसी बात नहीं है, पहले मेरी बात पूरी सुन तो लो। हम, मतलब मैं, गायत्री, अलका और मालती ने मिलकर एक प्लान बनाया है।’

चंद्रिका ने अपना पूरा प्लान विस्तार से समझाया। और फिर पूछा, ‘बताओ, इसमें मेरी मदद कर सकती हो? तुम्हारी केतकी दीदी को इसके लिए तैयार करोगी?’

‘वे तैयार नहीं होगी। लेकिन इसके लिए उससे पूछने की जरूरत नहीं। उसके बिना भी यह कामहो जाएगा। अपने प्लान में अब मुझे भी पांचवी के रूप में शामिल कर लो। ओके?’

चंद्रिका को कुछ समझ में नहीं आया,लेकिन उसे भावना के इरादे पर भरोसा था। उसे खुशी हुई, वह बोली ‘तुम कन्फर्म करो, तब आगे की बातें तय करेंगे।’

भावना ने अंगूठा उठाकर हां कहा। चंद्रिका मन में आशा लेकर गयी। भावना ने मोबाइल निकाला और प्रसन्न शर्मा का फोन नंबर डायल किया।

केतकी को चिंता नहीं हो रही थी, लेकिन उत्सुकता थी, कौतूहल था। केबिन में हल्के से खटखटाया और पूछा, ‘मे आई कम इन सर?’

‘प्लीज, कम इन।’ केतकी हल्के से दरवाजा बंद करके कीर्ति चंदाराणा के केबिन में दाखिल हुई। चंदाराणा ने उसे बैठने का इशारा किया। वह कुछ देर तक केतकी की तरफ देखते रहे, ‘केतकी, तुम्हें मुझ पर कितना और किस तरह का विश्वास है?’

‘सॉरी, लेकिन आपके मन में यह सवाल क्यों उठना चाहिए? इस केतकी के व्यक्तित्व निर्माण में आपका बहुत बड़ा हाथ है, आपका आशीर्वाद है मुझ पर। आप आज ही नहीं, जीवन के आखरी क्षण तक मेरे अपने बनकर ही रहेंगे। आप पर मुझे अपने से ज्यादा विश्वास है। मुझे अपनी मां और भावना पर जितना भरोसा है, आप पर भी उतना ही है।’

चंदाराणा के चेहरे पर खुशी झलक उठी, ‘एक कागज पर बिना देखे दस्तखत कर देंगी?’

‘हां, दीजिए...’

‘अरे, पर उस कागज पर कुछ भी लिखा हो सकता है...’

‘सर, उस कागज पर मेरा इस्तीफा हो सकता है। मेरे पास कोई बड़ी प्रॉपर्टी नहीं। लेकिन हो सकता है उसके बारे में लिखा गया हो। और मुझे जरा भी चिंता नहीं, क्योंकि आप मेरा अहित कभी भी नहीं करेंग इस बात का पूरा विश्वास है।’

‘तो ठीक है, ये कागज लीजिए और इस पर दस्तखत कर दीजिए।’ चंदाराणा ने उसके सामने एक फाइल सरका दी। उसमें एक कागज पर केवल सही करने का स्थान दिखाई दे रहा था। ऊपर क्या लिखा हुआ है, पढ़ा नहीं जा सकता था. क्योंकि उसके ऊपर एक कोरा कागज रखा हुआ था। केतकी ने एक क्षण का भी विचार किए बिना उस जगह पर दस्तखत कर दिए। चंदाराणा ने घंटी बजाकर भृत्य को बुलाया। केतकी ने जिस कागज पर दस्तखत किए थे वह उसके हाथ में देते हुए बोले, ‘यह कागज प्रिंसिपल मेहता के हाथों में दे दो।’ भृत्य के जाने के बाद चंदाराणा ने इंटरकॉम उठाया, ‘’मिसेज मेहता, केतकी कल से बारह दिन की छुट्टी पर जा रही हैं, उनका आवेदन आपके पास भिजवाया है। उन दिनों के लिए आप वैकल्पिक व्यवस्था कर लीजिए।

चंदाराणा ने फोन रख दिया। केतकी उनकी तरफ देखती रही।

‘’सर, मैं छुट्टी पर हूं, वह भी बारह दिन के लिए?

‘हां, विश यू हैप्पी जर्नी....आपको चेंज की आवश्यकता है...एक अच्छा चेंज।’

‘लेकिन सर, मैं तो कहीं नहीं जा रही..फिर छुट्टी किसलिए? ’

‘वो सह हो जाएगा। अब आप अपनी कक्षा में जाइए। और एक प्रार्थना करता हूं, यदि मानेंगी तो...और आदेश चाहिए हो तो आदेश दूंगा...मानेंगी?’

‘सर, मुझे यह सब किसी पहेली की तरह लग रहा है...पर आप आदेश दें...’

‘सब कुछ भूलकर मौज करिएगा...खूब मजा..मौज-मस्ती और आराम...’

केतकी हंसी, ‘सर, आपका प्लान क्या है, मुझे मालूम नहीं। लेकिन आपका आदेश का तिरस्कार नहीं होगा। आप जो कुछ कर रहे होंगे वह मेरी भलाई के लिए ही होगा। थैंक्यू वेरी मच।’

केतकी केबिन से बाहर निकल गयी, तभी भावना का मैसेजा आया। ‘स्कूल की छुट्टी होने के बाद तत्काल घर आना।’ उसका मैसेज देखकर केतकी को चिंता होने लगी, इसलिए उसने भावना को फोन लगाया। लेकिन भावना ने फोन काट दिया। तुरंत दूसरा मैसेज आया, ‘डोंट वरी, ऑल इज फाइन। जस्ट कम सून...’

केतकी को हंसी आ गयी। ‘निश्चित ही सभी लोग मिलकर कोई गेम खेल रहे हैं।’ उसने प्रसन्न को फोन लगाया। उसने भी फोन काट दिया। लेकिन मैसेज आया, ‘जरूरी काम है, आधे दिन की छुट्टी लेकर निकल गया हूं। फ्री होते ही फोन करूंगा।’

केतकी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसने अपनी गर्दन को एक झ

का दिया और सीधे अपनी क्लास की ओर निकल गयी। मिसेज मेहता और तारिका चिनॉय उसे दूर से देख रही थीं। दोनों के चेहरों पर नाराजगी का भाव था, नहीं शायद गुस्सा था....नहीं..नहीं...ईर्ष्या का भाव था...

शाम को केतकी घर पहुंची। उसने दरवाजे की घंटी बजायी। एक बार...दो बार...लेकिन दरवाजा खुला नहीं। इसलिए उसने पर्स में से चाबी निकालकर दरवाजा खोला। प्रसन्न और भावना एक छोटी सी डायरी में कुछ लिखते हुए बैठे थे। और उनके आसपास खरीदारी की हुई बहुत सारी बैग बिखरी पड़ी थीं।

‘अरे भावना, दरवाजा खोलने के लिए तो उठो न...’

‘प्लीज केतकी बहन, बहुत जरूरी काम चल रहा है...डिस्टर्ब मत करो...’

केतकी ने आगे बढ़कर उसके हाथों से डायरी छीन ली. ‘जरूरी काम? मुझसे भी जरूरी?’

‘हम्मम कह सकती हो...’

केतकी को यह बात पसंद नहीं आयी। ‘वेरी गुड..तो अब बताओ कि यह जरूरी काम क्या है...’

‘तुमको उसका महत्व समझ में नहीं आएगा...लेकिन मेरी केतकी बहन है न ...वह दस दिनों के लिए गोआ जा रही है...गोआ...

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

====