Agnija - 118 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 118

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अग्निजा - 118

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-118

भावना सबकुछ जान लेने के लिए अधीर हो रही थी। केतकी उसे बताते हुए मानो खुद भी फ्लैशबैक में चली गयी।

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भावना को पिकनिक जाने की अनुमति दी उसी दिन वॉशबेसिन के पास मुंह धोते समय आईने में अपना मुंह धोते हुए केतकी के मन में एक विचार आया। उसके मन में अपने शरीर पर टैटू बनवाने की इच्छा बड़े दिनों से दबी हुई थी। लेकिन उसे किस हिस्से में बनवाया जाए? औरोंसे हटकर, अलग जगह पर। आईने में देखते समय उसका ध्यान अपनी चमकते हुए सिर पर गया और वह खुश हो गयी। अरे, प्रकृति ने इतनी सुंदर जगह दी है तो क्यों न उसी पर टैटू बनवाया जाए?

उस दिन शाम को वह टैटू आर्टिस्ट अंकित मलिक से मिलने गयी। अंकित नौजवान था और अपने काम में व्यस्त था। 20-22 साल की एक नवयुवती की कलाई पर टैटू बना रहा था। उस लड़की से दर्द सहा नहीं जा रहा था। उसको बातचीत में उलझा कर बादाम के आकार का टैटू उसने जैसे-तैसे पूरा किया। उसके बाद एक 25 साल के लड़के का नंबर था। उसने अपने हाथ पर ‘लव यू फॉरएवर’ लिखवा लिया। जब उस लड़की को दर्द हो रहा था तब वह उसका उपहास उड़ाते हुए हंस रहा था, यह केतकी ने देखा था। लेकिन जब वह खुद सीट पर फैटा तो पहली सुई चुभोते साथ उसके मुंह से जोरदार चीख निकल गयी। लव शब्द लिखते तक उसने जैसे-तैसे दर्द सहन किया। तब तक वह रुंआसा हो गया था। बाकी का लिखवाने के लिए ‘मैं बाद में आता हूं’ कहकर वहां भाग ही गया।

अब केतकी की बारी थी। केतकी को याद आया कि वह कुछ दिनों पहले ही तारिका चिनॉय के साथ इस जगह पर आई थी।

अंकित को वह याद नहीं था, लेकिन उसने सिर्फ गर्दन हिला दी,‘अच्छा कहिए, कहां बनवाना है टैटू? फिलहाल लोग हाथों पर ही बनवा रहे हैं। ’

केतकी ने अपने सिर पर बंधा हुआ स्कार्फ हटाया और अपना गंजा सिर दिखाते हुए बोली, ‘सिर पर बनवाना है टैटू।’ अंकित मलिक आश्चर्य से देखता रह गया, ‘नो इट्स नॉट पॉसिबल...आज तक मैंने किसी के सिर पर टैटू नहीं बनाया है।’

‘नहीं बनाया तो अब बनाइए न...’

‘क्या बनाइए न...?उस जवान लड़के को देखा था, हाथ पर बनाते समय ही कितना कष्ट हो रहा था उसको, तो सिर पर कितना दर्द होगा?’

‘मैं तैयार हूं। कितना भी दर्द क्यों न हो...सहन करने के लिए तैयार हूं...’

‘कहना आसान है...’

‘ट्राय तो कीजिए...’

‘सॉरी, मुझसे नहीं हो पाएगा...’

केतकी ने उसे खूब समझाया, विनती की। ‘इस गंजेपन के कारण बाहर निकलने में परेशानी होती है, मुझे शर्म आती है। टैटू बनवा लेने से मेरे जीवन में बहुत बढ़ा परिवर्तन आ जाएगा। प्लीज।’

लेकिन अंकित बिलकुल भी राजी नहीं हुआ। केतकी निराश होकर लौट आयी।

अगले दिन शाम को वह फिर अंकित मलिक के पास गयी। इस बार वह प्रसन्न शर्मा को अपने साथ लेकर गयी थी। केतकी को दोबारा देखकर अंकित को आश्चर्य हुआ। ये लड़की पागल हो गयी है क्या? केतकी का नंबर आने पर कुछ कहने से पहले ही वह रोने लगी। ‘कितना भी दर्द क्यों न हो...मैं सहन करने के लिए तैयार हूं...मुंह से एक शब्द भी नहीं निकालूंगी...शिकायत नहीं करूंगी।’ अंकित ने प्रसन्न की तरफ देखा। प्रसन्न सिर्फ मुस्कुरा दिया। ‘प्लीज, जस्ट ट्राय।’

अब अंकित थोड़ा नरम हुआ। उसने केतकी से पूछा, ‘कौन-सा डिजाइन बनवाना है?’ केतकी एकदम जोश में आ गयी। पर्स में से एक कागज  निकालकर बोली, ‘मुझे पूरा ब्रह्मांड चाहिए...ओम, पंछी, तितली, फूल, एक लड़का, एक लड़की, एक पंख कुछ अक्षर जैसे के पी, एन,के बी, मेरे दोनों प्यारे कुत्तों के पंजे, यह सब कुछ मुझे अपने भीतर समा लेना है। हमेशा के लिए...मरते दम तक ये साथ रखना है..’ इस सूची को देखकर अंकित हकबका गया। ‘इतना सब बनाना है, वह भी सिर पर? ...माइ गॉड...’ केतकी द्वारा चुने गये प्रतीकों के बारे में प्रसन्न सोचने लगा। ‘कितना बारीकी से विचार करती है ये...इसके एक-एक प्रतीक के पीछे कितनी उदात्त भावना है...खूब संवेदनशील है ये लड़की..’ वह केतकी को और अधिक पसंद करने लगा। लेकिन केतकी प्रसन्न की ओर नहीं, अंकित की तरफ देख रही थी। अंकित ने उठकर बाजू में रखा हुआ रूमाल उठाया और अपने चेहरे पर उतरा हुए पसीने को पोंछा। उसके एसी बढ़ाया और पंखे की स्पीड भी बढ़ा दी। इसके बाद विचार करने लगा।

केतकी को महीने भर पहले की प्रसंग याद आ गया। वह स्ट्रीट डॉग के लिए आयोजित रैली में शामिल हुई थी। गली में भटकने वाले कुत्तों के प्रति सहानुभूति व्यक्त करने के लिए उसने अपने सिर पर पेन से कुत्तों के पंजे उकेर लिये थे। उसकी यह स्टाइल लोगों को बहुत पसंद आयी थी। लोग उसकी तरफ देखते ही रह गये थे। इस एकमात्र प्रसंग ने उसके भीतर की हीन भावना को कम कर दिया था।

मलिक तैयार हो जाए तो बात बने...और अंकित उठा। ‘ओके...यदि आपकी जिद ही है तो मैं कोशिश करके देखता हूं। लेकिन दो बातें ठीक से ध्यान में रख लें। एक तो यह कि आसान काम नहीं है, दूसरा यदि कोई परेशानी हुई तो उसका जिम्मेदार मैं नहीं रहूंगा।’

अंकित ने ओम से शुरुआत की। केतकी ने शुरु में केवल, ‘ओह...आह...ओ मां....’ इतना ही कहा और फिर थोड़ी ही देर में अपने होंठ कसकर बंद कर लिये। तकलीफ तो ही ही रही थी। वह उसकी आंखों से आंसू के रूप में बाहर आ रही थी। अचानक अंकित ने देखा कि परेशानी की वजह से केतकी रो रही है। उसने काम बंद कर दिया। केतकी ने बिनती की, ‘प्लीज चालू रखें...मुझे कोई हर्ज नहीं।’

अंकित ने मना करते हुए कहा, ‘डिजाइन शुरू करने के बाद तकलीफ के साथ-साथ जब शरीर में जब झनझनाहट महसूस होने लगती है तब हम काम बंद कर देते हैं। अब दो दिनों बाद आगे का काम करेंगे। ’

अंकित ने यह बात कह तो दी लेकिन उसे पूरा भरोसा था कि दो दिन तो क्या ये लड़की अब इधर कभी भी नहीं आएगी। केतकी और प्रसन्न के जाने के बाद अंकितन ने अपने आप को कुर्सी में झोंक दिया। अपने दोनों हाथों से अपना सिर कसकर पकड़ लिया फिर हाथ हटाकर सिर को जोरदार झटका दिया। उसके पास कोई इस तरह से टैटू बनवाने आएगा और वह उसे बनाएगा-इस बात पर उसे अब तक भरोसा नहीं हो रहा था। उसे लगा कि मोबाइल से फोटो खींच कर रख लिया होता तो अच्छा होता। जीवन के एक महत्वपूर्ण क्षण को वह कैमरे में कैद करने से चूक गया।

लेकिन वैसा होने वाला नहीं था। दो दिनों बाद केतकी वापस आयी। इस बार वह अकेली ही थी। अंकित को अपनी आंखों पर भरोसा ही नहीं हो रहा था। दोनों ने कोई बात नहीं की। अंकित ने आगे का काम शुरू किया। त्वचा छिल रही थी, उस पर चित्र उकेरे जा रहे थे, खून रिस रहा था। डिजाइन तैयार हो रहा था। उठते समय केतकी ने पर्स से रूमाल निकाला और अपनी आंखें पोछीं. ‘थैंक्स, दो दिन बाद फिर मिलेंगे।।’ उसने बस इतना ही कहा। इस तरह से पांच सिटिंग्स हुईं। अंकित के हाथ चलते थे और केतकी के आंसू निकलते थे। लेकिन वह अपने इरादे पर कायम थी। आखिरी दिन केतकी ने अंकित को पैसे दिये तो अंकित ने कहा. ‘थैंक्यू सो मच...आपकी वजह सेजीवन का यह पहला और आखिरी काम करने का मौका मिला।

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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