लेखक: प्रफुल शाह
प्रकरण-116
चंद्रिका ने सबकुछ विस्तारपूर्वक उसे बताया और वहां से चली गयी। लेकिन भावना के मन से उसके शब्द निकल नहीं रहे थे। भावना को याद आया कि केतकी मंदिर के चबूतरे पर बैठकर किस तरह वहां पर कुत्तों को बिस्किट खिलाती थी...उसे देखते साथ कुत्ते भागकर उसके पास आ जाते थे। उसके आसपास घूमते रहते थे। उससे प्रेम जताते थे। इतना कि उसके दिए हुए बिस्किट खाना भी भूल जाते थे। केतकी जान भी नहीं पायी और वे उसके मित्र बन गये। मेरा अकेलापन दूर करने के लिए मुझे भी एक कुत्ता भेंट किया। लेकिन मेरी गैरहाजिरी में उसका क्या? वह अकेला घर में क्या करता होगा, अकेले-अकेले घर में भूतों की तरह इधर-उधर घूमता रहता होगा? अकेलापन कितना तकलीफदेह होता है यह मुझे केतकी बहन को देखकर समझ में आता है। इस मूक प्राणी पर हो रहा यह अत्याचार दूर करना ही होगा। ये विचार भावना का पीछा नहीं छोड़ रहे थे। घर पहुंचकर वह कुत्ते को अपने से दूर नहीं कर पा रही थी। न जाने कितनी ही देर उसके साथ बातें करती रही, उसके साथ खेलती रही, उसका दुलार करती रही। यह देखकर केतकी को बहुत खुशी हो रही थी। उसको ठीक समय पर सही रास्ता दिखाने और सही सलाह देने के लिए उसने मन ही मन एक बार फिर प्रसन्न का धन्यवाद किया। कुत्ते के साथ खेल रही भावना का फोटो खींच कर उसने फेसबुक पर अपलोड किया और हिंदी और अंग्रेजी में पोस्ट लिखने लगी।
दूसरे दिन भावना, चंद्रिका को लेकर बगीचे के पास स्थित उस तीसरी बिल्डिंग में रहने वाले दंपति से मिलने गयी। महिला उत्तरप्रदेश की रहने वाली थी। उन दोनों का उसके घर आना उसे अच्छा नहीं लगा, यह उसके चेहरे से साफ झलक रहा था।
चंद्रिका ने उसे बताया, ‘नमस्ते आंटी, ये भावना है। इसके पास एक डॉग है। उसकी कंपनी के लिए ये लोग एक और डॉग खोज रहे हैं, इसलिए मैं इसे लेकर यहां आयी हूं।’ इतना सुनकर उस महिला के चेहरे के भाव एकदम बदल गये। वह खुश हो गयी। हंसकर बोली, ‘अंदर आइए न, बैठिए...’ दोनों बैठ गयीं। भावना ने विनम्रता के साथ पूछा, ‘यदि आपको बुरा न लगे तो हम उसको गोद लेना चाहेंगे...आपको भी उससे लगाव...’ ‘लगाव था...बहुत था...लेकिन अब मेरा बेटा छोटा है...इस कुत्ते को संभालने में बड़ी परेशानी हो रही है...तुम ले जाओ...लेकिन एक शर्त है मेरी... ’
भावना को लगा कि इसे खाने के लिए क्या दिया जाए, मुझसे मिलने दिया जाए, कब नहलाया जाए, कैसा संभाला जाए, उसे मारना नहीं है, जैसी अलग-अलग हिदायतें दी जाएंगी लेकिन उसने एक ही शर्त रखी, ‘एक बार ले जाने के बाद मैं उसे वापस नहीं लूंगी, जो भी हो तुम्हारी जिम्मेदारी होगी। मंजूर है?’
भावना उसकी तरफ देखती रह गयी। ‘इसे यह कुत्ता अब बोझ बन गया है...और यह किसी भी हालत में इसे अपने से दूर करना चाहती है...’
‘बोलो...है मंजूर?’ ‘हां...एकदम मंजूर है...कहां है वह?’
उस औरत ने गैलरी खोली, गैलरी खोलते साथ बहुत तेज दुर्गंध आयी। वहां पर जरा भी सफाई नहीं थी. गैलरी खोलते साथ वह मूक प्राणी घबरा गया। घबराकर उसने पेशाब कर दिया। यह देखते साथ वह औरत बोली, ‘कितना भी समझाओ...मगर जानवर तो जानवर ही ठहरा...’ भावना उस कुत्ते के पास जाकर बैठ गयी। वह असहाय सा उसकी ओर देखता रहा। वह डर रहा था। थर-थर कांप रहा था। भावना ने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरा। धीरे-धीरे अपनी उंगलियां उसके सिर पर और बाकी शरीर पर फेरने लगी। उस प्राणी को समझ में आ गया कि उसे प्रेम किया जा रहा है। उसे मार नहीं पड़ेगी। उसने आसपास नजर दौड़ायी तो वह सिहर गयी। उस कुत्ते का मल-मूत्र, उसके बिस्किट सब एक ही जगह पर पड़े हुए थे। उस पर मच्छर घूम रहे थे। भावना से वह सब देखा नहीं गया। वह कुत्ते को लेकर उठी। ‘मैं इसे कब ले जा सकती हूं?’ ‘कब क्या, आज ही ले जाओ...इसी वक्त...लेकिन वापस मत लाना...मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं?’
‘ठीक है...और कोई खास बात...इसकी पसंद का कोई खाना, दवाई?’
‘जो हो वो खाने दे देती हूं...सच कहूं तो बहुत नखरे हैं..जैसे इसका बाप कुछ छोड़ गया हो इसके लिए...और कभी डॉक्टर के पास लेकर नहीं गये इसलिए दवा का सवाल नहीं...इतना परेशान होने के लिए न वक्त है न जरूरत ही..’
‘क्या नाम है इसका?’ भावना ने पूछा।
उस औरत ने मुंह टेढ़ा किया और बोली, ‘कभी कुत्ती...कभी कुतिया...और क्या?’
भावन को इतना गुस्सा आया कि लगा उसका सिर ही फोड़ दिया जाए। लेकिन बाद में लगा कि अच्छा हो कि इस कुत्ते की ओर ध्यान दिया जाए। भावना और चंद्रिका जैसे ही उस कुत्ते को लेकर वहां से निकलीं उस औरत ने खुशी-खुशी दरवाजा बंद कर लिया। उस आवाज से वह कुत्ता एक बार फिर डर गया। भावना घर पहुंची तो केतकी को आश्चर्य हुआ। वह कुछ बोली नहीं, पर आश्चर्य से उसकी ओर देखती रही।
भावना की आंखों से आंसू बहने लगे। केतकी ने उसे अपने पास बिठाया। उसके हाथों के कुत्ते पर उसने प्रेम से हाथ फिराया। थोड़ी देर बाद भावना बोली, ‘केतकी बहन, यह बहुत दुःखी है। इस पर कितने अत्याचार हुए हैं, बता नहीं सकती। मेरा अकेलापन दूर करने के लिए तुम लोग एक कुत्ता लेकर आ गये। लेकिन हम दोनों की गैरहाजिरी में वह अकेला पड़ गया था, उसका क्या होगा? यह सवाल मुझे लगातार खाये जा रहा था, तभी चंद्रिका ने मुझे इसके बारे में बताया।’ भावना ने सबकुछ विस्तार से बताया, यह सुनकर केतकी को अपनी बहन पर गर्व हुआ।
‘तुम बहुत संवेदनशील हो। अच्छा हुआ इसे यहां लेकर आ गयी। अब सबसे पहले दो काम करो। एक, इसे डॉक्टर को दिखाकर लाओ और दूसरा ये कुतिया जिस घर में थी उस घर के आसपास के बच्चों से पूछो कि इसे क्या पसंद है, लोग इसके साथ किस तरह का व्यवहार करते थे।ठीक है? ’
भावना ने खुशी-खुशी केतकी का हाथ पकड़ लिया। डॉक्टर ने साफ-साफ बताया कि यह कुतिया बहुत कमजोर है। उसके मन में डर बैठा हुआ है। ठीक से सफाई न होने के कारण इसके बालों में कीड़े पड़ गये हैं। समय पर इसे यहां नहीं लाया गया होता तो शायद इसका बचना भी मुश्किल था। डॉक्टर ने दवाइयां लिख दीं। चंद्रिका और भावना ने जानकारी इकट्ठी की तो मालूम हुआ कि इस कुतिया को पटाखों की आवाज से भी डर लगता था। लेकिन फिर भी दिवाली के दिनों में उसे गैलरी में ही बांध कर रखा जाता था। रात भर पटाके फूटते रहते थे और वह थरथर कांपते हुए गैलरी में बैठी रहती थी। चुपचाप। क्योंकि भौंकने पर उसे लाठी से मारा जाता था। घर में कोई भी मेहमान आये तो वह उसे देखकर डर जाती थी और पेशाब कर देती थी। इस कारण उसे और भी मार पड़ती थी। खाने-पीने को नहीं दिया जाता था। केतकी और भावना के लिए यह एक नया मिशन था। दोनों किसी प्रिय रिश्तेदार की सेवा की जाती है, उसी तरह इस कुतिया की देखभाल करने लगीं।
अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार
© प्रफुल शाह
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