Shiva in Hindi Motivational Stories by Gurpreet Singh HR02 books and stories PDF | महादेव

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महादेव

महादेव की कहानी सतगुरु के अनुसार
आदियोगी या शिव का महत्व यही है – ऐसी कोई घटना नहीं हुई। कोई युद्ध नहीं हुआ, कोई टकराव नहीं हुआ। उन्होंने युग की जरूरतों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने मानव चेतनता को इस प्रकार से बढ़ाने के साधन और तरीके दिए, कि वे हर युग में प्रासंगिक रहें। जब लोग भोजन, प्यार या शांति से वंचित हों और आप उनकी कमी को पूरा करते हैं, तो आप उस समय सबसे महत्वपूर्ण बन सकते हैं। लेकिन जब ऐसा कोई अभाव न हो, तो एक इंसान के लिए सबसे महत्वपूर्ण आखिरकार यह है कि खुद को और ऊपर कैसे उठाएँ या खुद को विकसित कैसे करें।

हमने सिर्फ उन्हें महादेव की उपाधि दी क्योंकि उनके योगदान के पीछे की बुद्धि, दृष्टि और ज्ञान अद्भुत है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कहाँ पैदा हुए, आप किस धर्म, जाति या वर्ग के हैं, आप पुरुष हैं या स्त्री – इन तरीकों का इस्तेमाल हमेशा किया जा सकता है। चाहे लोग उनको भूल जाएँ, लेकिन उन्हें वही तरीके इस्तेमाल करने होंगे क्योंकि उन्होंने मानव तंत्र के भीतर कुछ भी अछूता नहीं छोड़ा। उन्होंने कोई उपदेश नहीं दिया। उन्होंने उस युग के लिए कोई समाधान नहीं दिया। जब लोग वैसी समस्याएँ लेकर उनके पास आए, तो उन्होंने बस अपनी आँखें बंद कर लीं और पूरी तरह उदासीन रहे।

मनुष्य की प्रकृति को समझने, हर तरह के मनुष्य के लिए एक रास्ता खोजने के अर्थ में, यह वाकई एक शाश्वत या हमेशा बना रहने वाला योगदान है, यह उस युग का या उस युग के लिए योगदान नहीं है। सृष्टि का अर्थ है कि जो कुछ नहीं था, वह एक-दूसरे से मिलकर कुछ बन गया। उन्होंने इस सृष्टि को खोलकर एक शून्य की स्थिति में लाने का तरीका खोजा।

आदियोगी को शिव क्यों कहा गया
इसीलिए, हमने उन्हें शि-व का नाम दिया – इसका अर्थ है ‘वह जो नहीं है’। जब ‘वह जो नहीं है’, कुछ या ‘जो कुछ है’ बन गया, तो हमने उस आयाम को ब्रह्म कहा। शिव को यह नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उन्होंने एक तरीका, एक विधि बताई – सिर्फ एक नहीं, बल्कि हर संभव तरीका बताया कि चरम मुक्ति को कैसे पाएँ, जिसका अर्थ है, कुछ से कुछ नहीं तक जाना।

शिव कोई नाम नहीं हैं, वह एक वर्णन है। जैसे यह कहना कि कोई डॉक्टर है, वकील है या इंजीनियर है, हम कहते हैं कि वह शिव हैं, जीवन को शून्य बनाने वाले। इसे जीवन के विनाशकर्ता के रूप में थोड़ा गलत समझ लिया गया। लेकिन एक तरह से वह सही है। बात सिर्फ यह है कि जब आप ‘विनाशकर्ता’ शब्द का इस्तेमाल करते हैं, तो लोग उसे कुछ बुरा समझ लेते हैं। अगर किसी ने ‘मुक्तिदाता’ कहा होता तो उसे अच्छा माना जाता। धीरे-धीरे ‘शून्य करने वाला’, ‘विनाशकर्ता’ बन गया और लोग यह सोचने लगे कि वह बुरे हैं। आप उन्हें कुछ भी कहिए, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता – बुद्धिमानी की प्रकृति यही है।

अगर आपकी बुद्धिमानी एक खास ऊँचाई पर पहुँच जाती है, तो आपको किसी नैतिकता की जरूरत नहीं होगी। सिर्फ बुद्धि की कमी होने पर ही आपको लोगों को बताना पड़ता है कि क्या नहीं करना है। अगर किसी की बुद्धि विकसित है, तो उसे बताने की ज़रूरत नहीं है कि क्या करना है और क्या नहीं

शिव के रूप और नाम
शिव के कई रूप हे और उनको बहुत नाम से जाना जाता है
जिनके बारे मे सतगुरु ने अच्छे से बताया हे सतगुरु के अनुसार

– भयानक दुख, तकलीफ। जब मृत्यु का पल आता है तब बहुत सारे जन्मों की यादें जबर्दस्त तीव्रता के साथ प्रकट हो जाती हैं और जो भी दर्द और दुख आपको होने हैं, वे एक सेकंड के एक छोटे से भाग में ही हो जाते हैं। फिर भूतकाल का कोई भी अंश आप में नहीं रहता। अपने सॉफ्टवेयर को खत्म कर देना दर्दनाक होता है पर मृत्यु के पल में ये होता ही है और आपके पास कोई चारा नहीं होता। वे इसे जितना कम कर सकते हैं, कर देते हैं ताकि तकलीफ जल्दी खत्म हो जाये। वैसा तभी होगा जब हम इसे बहुत ज्यादा तीव्र बना देंगे। अगर ये हल्का हुआ तो खत्म नहीं होगा, हमेशा चलता रहेगा।

9.आदियोगी
यौगिक परंपरा में, शिव को भगवान की तरह पूजा नहीं जाता। वे आदियोगी अर्थात पहले योगी और आदिगुरु, पहले गुरु भी हैं, जिनमें से यौगिक विज्ञान का जन्म हुआ। दक्षिणायन की पहली पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा होती है जब आदियोगी ने यह विज्ञान अपने पहले सात शिष्यों, सप्तर्षियों को सिखाना शुरू किया।

ये किसी भी धर्म के अस्तित्व में आने से भी पहले की बात है। लोगों के मानवता को तोड़ने के विभाजनकारी तरीके ढूंढने से पहले, मानवीय चेतना को ऊँचे स्तर पर ले जाने के लिये शक्तिशाली साधनों का पता लगाया जा चुका था और उनका प्रचार, प्रसार भी किया गया था। उन साधनों की बनावट, उनकी खासियत, इतनी ज्यादा है कि विश्वास नहीं होता। ये पूछना कि क्या उस समय लोग इतने खास थे, ठीक नहीं है क्योंकि ये चीजें किसी खास सभ्यता या विचार प्रक्रिया से नहीं आयीं थीं। ये अंदर की समझ से, आत्मज्ञान से आयीं थीं। यह आदियोगी ने ही बताया था। आज भी, आप उन चीजों में से कुछ भी बदल नहीं सकते क्योंकि उन्होंने हर चीज़ इतने सुंदर ढंग और बुद्धिमत्तापूर्ण तरीके से कही है। जिसे समझने में ही आपका सारा जीवन लग सकता है।

10.शिव का त्र्यम्बक रूप
शिव को हमेशा ही त्र्यम्बक कहा गया है क्योंकि उनके पास एक तीसरी आँख है। पर, तीसरी आँख का मतलब ये नहीं है कि उनके माथे पर कोई दरार बनी हुई है। इसका मतलब सिर्फ ये है कि उनकी समझ अपनी पूरी संभावना पर पहुँच गयी है। ये तीसरी आँख दिव्यदृष्टि की आँख है। हमारी दो भौतिक आँखें सिर्फ ज्ञानेन्द्रिय हैं। वे हर तरह की बकवास मन में भरती रहती हैं क्योंकि आप जो भी देखते हैं वो सच नहीं होता। आप इस व्यक्ति या उस व्यक्ति को देखते हैं और उनके बारे में कुछ सोचने लगते हैं, पर आप उनमें शिव को नहीं देख पाते। इसीलिये, एक और आँख, जो गहरी समझ वाली हो, खुलना ज़रूरी है।

आप चाहे कितना भी सोचें, या फिलोसोफी करें, पर आपके मन में स्पष्टता नहीं आ सकती। आप जो भी तार्किक स्पष्टता बनाते हैं, उसे कोई भी नष्ट कर सकता है और मुश्किल हालात इसको पूरी तरह से उल्ट-पुल्ट कर सकते हैं। सिर्फ जब, दिव्यदृष्टि खुलती है, जब आपके पास आंतरिक दृष्टि होती है, तभी एकदम सही स्पष्टता आती है।

हम शिव को जो कुछ भी कहते हैं, वह और कुछ नहीं पर पूरी समझ का ही स्वरूप है। इसी संदर्भ में हम ईशा योग सेंटर में महाशिवरात्रि का उत्सव मनाते हैं। ये एक अवसर है और एक संभावना है जिससे सभी लोग अपनी समझ को कम से कम एक स्तर आगे ले जा सकें। यही शिव की बात है। यही योग है। ये कोई धर्म नहीं है, ये अंदरूनी विकास का विज्ञान है।