Struggles in life of a small bird in Hindi Moral Stories by Vikas Kumar books and stories PDF | एक बार फिर से उजड़ गया मेरा घर

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एक बार फिर से उजड़ गया मेरा घर

आज चुनमुन चिड़िया बहुत खुश थी. उसने आज ही अपने छोटे-छोटे पंखों से उड़ना सीखा था. वो आस-पास के घरों के ऊपर से उड़कर इंसानों और उसके रंग-बिरंगे घरों को देख रही थी. कोई लाल रंग का, तो कोई सफ़ेद रंग का, हर घर का अपना अलग ही रंग था. यह सब देखकर चुनमुन को काफ़ी अच्छा लग रहा था.
वो आगे बढ़ ही रही थी कि अचानक से उसे पीछे से किसी ने आवाज़ लगाई. उसने पीछे मुड़कर देखा, तो उसकी मां काफ़ी तेज़ी से उसकी ओर बढ़ी आ रही थी. चुनमुन ने अपनी रफ़्तार धीमी कर दी. मां ने पास आते ही उसे तुरंत घर की ओर चलने को कहा. चुनमुन ने कहा - मां मैं थोड़ी देर नदी की ओर जाना चाहती हूं. मां ने मना कर दिया और साथ में ही घर चलने की बात कही.

चुनमुन ने मां की बात मानी और दोनों घर की ओर चल दिए. मां को देखकर उसे लगा कि कोई बात है, जिसकी वजह से उसकी मां परेशान दिख रही थी, लेकिन उसने कुछ पूछा नहीं.

दोनों घर के पास के एक पेड़ पर जा बैठे. वहां उसके पिताजी और छोटा भाई पहले से उन दोनों की राह देख रहे थे. जब चुनमुन ने अपनी आंख से ये मंजर देखा, तो वो दंग रह गई. कुछ लोग मिलकर उस पेड़ को काट रहे थे जिस पर उसका घर था. चुनमुन ने अपने पिता और मां की ओर देखा, लेकिन दोनों चुप ही थे. वे जानते थे कि वे अब कुछ नहीं कर सकते. गुस्से में चुनमुन अचानक से उड़कर अपने घर की ओर गई, लेकिन वहां इंसानों के सामने टिक न पाई. अपने घर को बचाने की जद्दोजहद में उसे मामूली चोट भी आ गई थी. मां-बाप ने उसे सहारा दिया और सभी फिर उसी पेड़ पर आ बैठे.

चुनमुन के पिता ने कहा - अब कोई और ठिकाना तलाशना होगा. शायद इंसानों को रहने के लिए जगह कम पड़ रही है.
चुनमुन ने गुस्से में कहा - लेकिन वो हमारा घर था. कोई कैसे...
चुनमुन के पिता ने उसे बीच में ही टोका - कोई बात नहीं, हम वैसे भी छोटे हैं. हमें ही सहना पड़ेगा.
ये कहकर सभी एक नए ठिकाने की तलाश में निकल पड़ें. उनका नया ठिकाना था, एक पुरानी हवेली. यहां वैसे भी कोई नहीं आता था. कुछ दिन शांति से बीते. चुनमुन अब अच्छे से उड़ना सीख चुकी थी.
लेकिन एक रोज़ फिर वही हुआ. कुछ लोग आए और उसी पेड़ को काटने लगे जिस पर उसका घर था. एक बार चुनमुन का परिवार फिर से बेसहारा हो गया था.
पिता ने लड़ने की बजाय नई जगह तलाशने की सोची. धूप की तपन इतनी थी कि इंसान भी कुछ देर धूप में रहने पर गिर पड़ते थे. ऐसी धूप में चुनमुन का परिवार अपने लिए नया बसेरा ढूंढ रहा था. थोड़ी देर सुस्ताने के लिए चुनमुन का परिवार नीचे उतरा, लेकिन जैसे ही सबने क्रांकिट की ज़मीन पर पैर रखे सबका पैर जलने लगा. फिर सबने एक पानी की टंकी के पास सुस्ताने की सोची. पानी टंकी के पास थोड़ा-सा पानी गिरा था जिसे पीकर सबने अपनी प्यास मिटाई, लेकिन यह इतना नहीं था कि पूरे परिवार को राहत दे पाता. खाना तो चुनमुन के परिवार को सुबह से ही नसीब नहीं हुआ था. थोड़ा सुस्ताने के बाद, चुनमुन का परिवार फिर से हवा में था.
उड़ते-उड़ते ही अचानक से उसके पिता ज़मीन पर आ गिरे. चुनमुन का पूरा परिवार उसके पिता की ओर लपका. चुनमुन की मां ने अपने पति को उठाने की कोशिश की, लेकिन उनके शरीर में अब जान बची ही नहीं थी. वो गिरे भी थे तो बीच सड़क पर. मां ने सभी को संभालने की कोशिश की, लेकिन थोड़ी देर बाद वो भी गिरकर वहीं मर गई. पति का मरना शायद उसके लिए बड़ा सदमा था. चुनमुन की हालत अब खराब थी. उसका छोटा भाई श्याम, जिसने अभी-अभी उड़ना सीखा था, वह भी डर गया था. चुनमुन ने मां-बाप दोनों को उठाने की कोशिश की, लेकिन वह नाकाम रही. थक हारकर चुनमुन और उसका भाई श्याम सड़क किनारे पेड़ पर जा बैठे और अपने मां-बाप को देखकर रोते रहे. तभी एक तेज़ रफ़्तार कार ने मां-बाप के शरीर को रौंद दिया. अब वहां कुछ नहीं बचा था. सिर्फ़ उसके मां-बाप के कुछ पंख हवा में उड़ रहे थे.

कुछ देर बाद चुनमुन और उसका भाई श्याम, दोनों नए बसेरे की तलाश में हवा में उड़ गए.

(अगर हम कुछ नहीं कर सकते, तो कम-से-कम इन बेज़ुबानों के लिए छत-बगीचे वगैरह में पानी तो रख ही सकते हैं)

Story By - Vikas Kumar