Kahaniyon Ka Rachna Sansar - 2 in Hindi Short Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | कहानियों का रचना संसार - 2 - कहानी क्वारेंटीन

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कहानियों का रचना संसार - 2 - कहानी क्वारेंटीन

कहानी

कहानी

क्वॉरेंटाइन

कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन की खबरों से वृंदा परेशान रहने लगी है। उसका बेटा तुषार अपनी कंपनी की ओर से काम के सिलसिले में दुबई गया हुआ था कि 21 दिनों के लिए जैसे सब कुछ थम जाने की घोषणा हुई। बहू मालती पर इस खबर का कोई असर ही नहीं हुआ।मानो उसे पहले से ही आभास था कि ऐसा होने जा रहा है।

-सुन रही हो बहू!लॉकडाउन के कारण तुषार भारत नहीं लौट पाएगा।

-हाँ माँ जी! पर आप चिंता मत करो।वे कंपनी के होटल में ठहरे हैं और पूरी व्यवस्था है वहां।

-फिर भी परदेस तो परदेस है। चिंता लगी रहती है…. और हां उसका फोन आया तो मुझसे बात कराना।

सास और बहू के इस बातचीत के आधे घंटे बाद ही मालती का फोन बजा। बहू किचन के पास ही थी।फोन तुषार का ही था और इन दोनों के बीच बहुत देर तक बातें होती रही लेकिन जैसे मालती ने जानबूझकर तुषार से उनकी बात नहीं कराई।मालती मन मसोसकर रह गई। एक मां का हृदय हजारों किलोमीटर दूर से भी अपने बेटे की एक आवाज सुनने के लिए व्याकुल था।पति से बातचीत की संक्षिप्त जानकारी देते हुए मालती ने कहा- वे वहां ठीक हैं। कहा है कि मां बिल्कुल कमरे से बाहर न निकले।वृंदा ने हामी में सिर हिलाया।

दो साल पहले लकवा के आंशिक अटैक के बाद से वृंदा घर तक ही सिमट कर रह गई थी और पिछले छह महीने से घर के लोगों के व्यवहार के कारण उसने अपने आपको अपने छोटे से कमरे तक ही सीमित कर लिया था। यूं भी उसे चलने फिरने में परेशानी होती थी। कभी रविवार के दिन पोता विकास उसे सहारा देकर घर के दरवाजे तक लाता था,जहां वह सड़क से गुजरते हुए लोगों को देखा करती थी। पहले वह भी घर की बहुत महत्वपूर्ण सदस्या हुआ करती थी और मालती के हर काम में हाथ बंटाया करती थी, लेकिन जब शरीर ने साथ देना छोड़ा तो घर के लोगों ने भी उसका साथ छोड़ दिया। उस दिन तो हद हो गई जब तुषार के बॉस और उनकी पत्नी घर पर भोजन के लिए आमंत्रित थे ।वह उत्सुकतावश मेहमानों से मिलने थोड़ी देर के लिए हाल में आई थी। बॉस के जाने के बाद तुषार ने बुरी तरह मां को झिड़क दिया था- मां तुम अपने कमरे में ही रहा करो।जाने कैसी हालत में बाहर आ जाती हो। क्या असर पड़ा होगा उन पर हमारे घर का। यह सब सुनकर वृंदा उस दिन भारी मन से अपने कमरे में जो घुसी कि अब बाहर निकलना लगभग न के बराबर हो गया।

लॉकडाउन शुरू होने के कई दिनों के बाद हालात थोड़े से सुधरने पर अनेक यात्री स्पेशल फ्लाइट से स्वदेश लौटे। तुषार भी अपने शहर पहुंचा लेकिन उसे स्वास्थ्य जांच के लिए घंटों रोक लिया गया।हालात ऐसे थे कि उसके घर पहुंचने से पहले ही दरवाजे पर क्वॉरेंटाइन का नोटिस चस्पा हो गया। कोरोना वायरस की ऐसी घबराहट कि मालती तक विशेष रूप से एक कमरे में रह रहे अपने पति से अजीबोगरीब व्यवहार करने लगी। कोरोना वायरस की आशंका मात्र ने पति और पत्नी के प्रगाढ़ रिश्ते में भी एक दूरी डाल दी। अपने बेटे विकास को तो उसने तुषार के कमरे में झांकने से भी मना कर दिया था।चौदह दिनों के लिए दूर रहना तो मजबूरी थी लेकिन तुषार को ऐसा लगा कि पास आकर भी वह अपनी पत्नी और बेटे से हजारों किलोमीटर दूर हो गया है।

एक मां का ह्रदय कहां मानता है।एक दिन अपने कमरे से निकल,घिसट कर चलती हुई वृंदा बेटे के कमरे के पास पहुंची।झुर्रियों से भरा हुआ चेहरा। हाथों से नसें बाहर झांकती हुईं।शरीर कृशकाय। अपने कमरे से निकलकर कुछ फीट दूर बेटे के कमरे के पास पहुंचने में ही उसे बहुत समय लग गया। वृंदा की शारीरिक संरचना में तो अंतर आ गया था लेकिन कुछ बदला नहीं था तो वह था- बेटे के प्रति आंखों से झलकती उसकी वही गहरी ममता। तभी वहां मालती आई और तुषार के कमरे की ओर बढ़ने की कोशिश कर रही वृंदा को उसने हाथ पकड़कर दूर ही रोक दिया। निराश वृंदा ने दूर खड़ी होकर बेटे को पुकारा- तुषार!

मां की आवाज सुनकर तुषार खिड़की की ओर बढ़ा। मां को देखकर तुषार की आंखों में आंसू आ गए ।उसने बस इतना ही कहा- चौदह दिनों के लिए क्वॉरेंटाइन हूँ मां!मेरे पास मत आना।वृंदा ने डबडबाई आंखों से कहा- कोई बात नहीं बेटा! तुम जल्द ही इस मुसीबत से बाहर आ जाओगे। तुषार ने जोर-जोर से रोते हुए कहा- मां मैं तो बस केवल 14 दिनों के लिए…. और तुम न जाने अपने ही घर में कितने लंबे समय से क्वॉरेंटाइन हो। हमें माफ कर दो मां। यह दृश्य देखकर मालती को भी स्वयं पर ग्लानि होने लगी। वह वृंदा के पैरों में गिर पड़ी।


योगेन्द्र