यह कहानी है 1997 की। मेरा जन्म हुए अभी 6 महीने ही क्या हुए थे कि मुझे निमोनिया जैसी बीमारी ने जकड़ लिया था। मेरे हालात कुछ ऐसे हो गए थे जैसेकि मैं बचूँगा ही नहीं। मेरे माता-पिता बहुत परेशान और चिंतित थे। मुझे शहर के हर अस्पताल में ले गए। लेकिन सबने हाथ खड़े कर लिए थे। माँ बहुत घबराई हुई थी, लेकिन उम्मीद कर रही थी कि मेरा बेटा ठीक हो जाएगा। उन्होंने बहुत सारे मन्नतें भी मानी थी। इस आश में मेरे माता-पिता ने दिन रात एक किए हुए थे। भूखे प्यासे तो कभी दुकान से थोड़ी सी कुछ खाकर दिनभर भटकते थे। एक दिन किसी ने बताया कि एक डॉक्टर अशोक कुमार हैं जो बच्चों के डॉक्टर हैं। मुझे उनके पास ले गए। उन्होंने मुझे देखा मेरा उपचार शुरू हो गया और मैं जल्दी ठीक भी हो गया। माता-पिता बहुत खुश थे। माँ ने जो मन्नतें मांगी थी उसे पूरा भी कीं। इस हादसे से तो बच निकला लेकिन अगला और सबसे भयानक हादसा मेरा इंतजार कर रहा था। यह बात है साल 2006 की। सर्दी का मौसम था। शाम के तीन बजे स्कुल की छुट्टी हुयी। स्कूल की जीप से घर आ रहे थे। ड्राइवर ने सबको घर छोड़ता आ रहा था। अंत मे सिर्फ चार लोग थे जीप में। मैं मेरा दोस्त अंकित, ड्राइवर और खलासी। ड्राइवर थक गया था। खलासी ने ड्राइवर को आराम करने और खुद जीप चलाने को कहा क्योंकि खलासी उस समय नया नया जीप चलाना सीखा था उसको चलाने की भूख थी। लेकिन ड्राइवर को शक हो रहा था कि यह चलाता है कि नहीं खलासी जिद किया।ड्राइवर ने खलासी को दे दिया और खुद बगल मे बैठे गया। मैं और अंकित बीच वाली सीट पर बैठे थे। मैं किनारे पर था और अंकित बीच में। खलासी ने चलाना शुरू किया लेकिन एक गलती कर दी एक्सीलेटर इतना तेज दबा दिया और आगे रास्ते पर पड़ी मोटर साइकिल और साइकिलों को धक्का मारते हुए जब हैंडल घुमाया तब सड़क के किनारे पर गहरी नहर थी और पानी से लबा लब थी। उसी में जीप को फिल्म स्टाइल की तरह कूदा दिया। सभी लोग तो जीप में ही थे, लेकिन मैं ही जीप की नीचे गहरे नहर में गिर गया। आसपास के लोगों ने ड्राइवर और खलासी को पकड़ मारा पीटा पुलिस आई उन्हें ले गई। और मुझे अंकित को लोगों ने सही सलामत बाहर निकाल लिया। मुझे ढूंढने के लगभग दस लोगों ने नहर में कूद पड़े मुझे ढूंढने लगे। मैं लगभग पानी पी चुका था। बड़ी कोशिशों के बाद मुझे पानी से बाहर निकाला गया। मैं बेहोश था। मुझे पास के अस्पताल में ही एडमिट कराया गया। मैं मौत से बाहर तो आ गया था लेकिन यह सदमाँ मुझे और मेरे परिवार को झकझोर के रख दिया था। इस घटना से उबरने के बाद तीसरा घटना दस्तक दे दिया। यह बात है 2016 की जब मैं इण्टरमीडिएट की परीक्षा की तैयारी कर रहा था। सितम्बर माह में जब मैं सुबह 09:00 बजे कोचिंग से लौटकर हाथ मुँह धोकर खाना पीना करने के बाद अपने घर के कमरे में पंखा चलाकर लेटा हुआ था। तभी अचानक पंखा चलते-चलते खुल गया लेकिन ईश्वर सही थे कि उस पंखे का तार नहीं टूटा और तार के सहारे मेरे ऊपर से लगभग एक हाथ ऊपर से निकलकर दीवाल से जा टकराया। मैं बहुत सहम गया था। मेरी बुद्धि भी काम नहीं कर रहीं थीं। शरीर कांप रहा था। तब घर के लोग दौड़े आए और बाहर से बोर्ड से लाइन काटे। मुझे बाहर ले गए। मैं बहुत घबराया था। इस तरह से मेरे साथ हादसे हुए और मैं कई बार मरके जिंदा हुआ।
यह कहानी मेरी अपनी और सच्ची घटना पर है
- विशाल कुमार धुसिया