सुलतान अपनी चेयर पर बैठते हुए आयशा की ओर मुस्कुराकर देख रहा था । वह हंसते हुए सिर को ना में हिलाते हुए कहता है।
सुलतान: तो! यहां पर कैसे आना हुआ! और इतने दिनों से इस शहर में आई हो! मिल ने भी नहीं आई!? ।
आयशा: ( आंखे मींचकर खोलते हुए ) फॉर गॉड सेक कितनी दफा बता चुकी हूं! ना तो मुझे तुमसे कोई ताल्लुक रखना है! ना ही मुझे शोख है! यहां आने का! अगर बिजनेस की बात ना होती तो! मैं तुम्हारी शकल भी देखना पसंद नहीं करती।
सुलतान: अच्छा! और तुम्हे लगता है! तुमने कहां और मैं मान लूंगा!?।
आयशा: खुदा कसम तुम जैसा ढीढ़ इंसान मैने आज तक नहीं देखा!? किस मिट्टी के बने हो तुम!? समझ नहीं आता की! मैं तोड़ चुकी हूं! सारे रिश्ते बचपन में ही! ।
सुलतान: ( मुस्कुराकर टेबल पर पड़े पेपरवेट को घुमाते हुए ) अच्छा! तो फिर यूके में तुम्हारे! बॉडीगार्ड क्यों! भेजे थे!? जब तुम्हे लगा की की मैं मरने वाला हूं! ।
आयशा: ( स्टाक से सुलतान की ओर देखते हुए ) तुम... तुम्हे किसने कहा!? ।
सुलतान: ( व्यंग्य के साथ ) मुझे कौन कहेगा!? मैं माफिया हूं! आयशा तुम्हे नहीं लगता! की तुम कुछ ज्यादा हल्के में ले रही हो!? ।
आयशा: इसमें गुरुर करने वाली कौन सी बात है! की तुम माफिया हो!? ( गुस्से मे) ।
सुलतान: ( हस कर खड़े होते हुए ) गुरुर वाली ही तो बात है! आयशा... पूरी दुनिया थरथर कापती है मुझ से! ।
आयशा: ( गुस्से में हाथ को मुट्ठी में बंद करते हुए ) तुम भटक गए हो! सुलतान!.... लोगों को डराकर तुम कभी भी सुकून से नहीं रह सकते! ।
सुलतान: ( हंसते हुए... मानो जैसे कोई मजे की बात सुनी हो । ) हाहाहाहाहा.... अच्छा.... हाहाहा...! ( हंसी रोकते हुए.... उसकी चेयर के नजदीक टेबल के सहारे हाथ को मोड़कर खड़े रहकर ) कैसी बैगानी बाते कर रही हो!? तुम अभी भी उन उसूलों वाली जिंदगी से बाहर नहीं आई!? । उस डर डर के जीने वाली जिंदगी से तो मुझे यह जिंदगी काफी सुकून वाली लग रही है ।
सुलतान: वहीं तो! लेकिन अभी तक तुमने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया!? तुम्हारे गार्ड्स वहा पब में क्या कर रहे थे!? जिस दिन मुझ पर हमला हुआ था!? ।
आयशा: वो.... वो.... मेरी दोस्त... वहां पर थी...नशे में थी! इसलिए!?।
सुलतान: ( आयशा की एकटक देखते हुए ) अच्छा!? कौन सी दोस्त!? ।
आयशा: तुम्हे जानकर क्या करना!? और किस हक से पूछ रहे हो!?
सुलतान: वही तो मै पूछ रहा हूं! की किस हक से तुमने वो बॉडीगार्ड भेजे थे!? मैने कहां था तुम्हे!? हम्म्म!? नहीं ना! तो इस बार मैं ये भूल समझ कर जाने दे रहा हूं! आइंदा मैं नहीं चाहता की तुम मेरे किसी भी मसलों में पड़ो! चाहे मैं जीऊ या मरु! ।
आयशा: ( हताश होकर गहरी सांस लेती है। ) जैसी तुम्हारी मर्जी! बिल्कुल सही कहां तुमने मैं कौन होती हूं! तुम्हे कुछ कहने वाली! या तुम्हारे लिए कुछ करने वाली।जो करना है! वो करो! । उससे मेरा कोई लेना देना नहीं है!.. ना आगे कोई लेना देना होगा!।
सुलतान: ( सिर को हां में हिलाते हुए ) बिल्कुल वहीं तो कह रहा हूं! मुझसे दूर रहो! और मेरे मसलों से भी..! आइंदा एसी गलती मत करना! मुझे खुद को संभालना आता है! । किसी के सहारे की जरूरत नहीं है! जैसे आजतक संभालता आया हूं! वैसे आगे भी खुद को संभाल लूंगा ।
आयशा: वेरी वेल..... इफ धेट्स ऑल धेन...! मुझे चलना चाहिए! ( घड़ी में देखते हुए ) मुझे देर हो रही है।
सुलतान: ( हाथ से दरवाजे की ओर संकेत करते हुए ) यू केन...! ।
आयशा: ( आखिरी बार सुलतान की ओर देखती है! और पर्स उठाते हुए ऑफिस से बाहर चली जाती है। ) ।
सुलतान .. वहीं खड़े दरवाजे की ओर देख रहा था । ना वह उसकी जगह से हिला था और ना ही उसकी नजर हटी थीं। इतने सालो बाद आयशा को देखकर मानो जैसे वह अतीत में चला गया था । जब सुलतान के अम्मी अब्बू जिंदा था। और बाकी बच्चो की तरह वह भी खेलता था कूदता था! झगड़ता था! रूठता था। जब वह आयशा के साथ झगड़ कर जब रूठ कर आता तब उसके अम्मी अब्बू का सुलतान को समझना उसे चिढ़ाना!? । हर बात जैसे एक हवा के जोके की तरह आकर गुजर गई । यह वही आयशा थी जिसे वह हर बात बताया करता! जब वह खुश होता! जब वह दुखी होता! जब वह गुस्से में होता! चाहे जैसा भी मुड़ होता! उसके हर मुड़ का हल यहीं आयशा हुआ करती थी। पर इसी आयशा को वह खुद से दूर रखने लगा है। एक लम्हा था जब सुलतान का दिन आयशा के साथ शुरू होता! और आयशा के साथ ही खतम होता था। पर आज उसे वही आयशा के साथ वक्त बिताना तो दूर! पर एक नजर उठाके देखता भी नहीं । जैसे जैसे वक्त बीतता गया सुलतान हर उस रिश्ते को दफनाता गया जो उसे कमजोर करता या हर उस एहसास से भागता जो उसे इंसान बनाता था। वह बिलकुल उस बुत की तरह था जो कीमती हीरे जवारतो से नवाजा जाता था पर बेजान था बिल्कुल सुलतान की तरह जिसके पास सब कुछ था लेकिन फिर भी अंदर से खोखला था । बा तलब सुलतान और बुत में कोई फर्क ही नहीं था बस सुलतान चल फिर पाता था और बुत कैद रहता था । और अगर झांक कर देखे तो शायद सुलतान भी कैद था बिल्कुल उस बुत की तरह....।
इस्लामाबाद पाकिस्तान:
यूनिवर्सिटी कैंपस: दोपहर १२ बजे ।
नाज... कैंटीन मैं बैठ नाश्ता कर रही थी । आसपास बाकी स्टूडेंट चलपहल कर रहे थे। कुछ अपने दोस्तों के साथ गपशप कर रहे थे । कुछ लोग नाश्ता लेने के लिए लाइन में खड़े थे । एक और कुछ सीनियर नए आए स्टूडेंट को परेशान कर रहे थे । नाज चुपचाप अपना कर रही थी की तभी आमिना बैठते हुए कहती है ।
आमिना: क्या हुआ!? कौन से एसे ख्यालों में डूबी हुई है!? ।
नाज: ( नजर उठाते हुए ) कुछ नहीं! बस ऐसे ही! । तू बता आज इतनी लेट क्यों!? ।
आमिना: ( सेंडविच खाते हुए ) अरे! कुछ स्टूडेंट ने बीच लेक्चर में मजाक किया! और फिर सर की तकरीर शुरू हो गई।
नाज: ( सिर को हां में हिलाते हुए अपना नाश्ता करने लगती है। ) वैसे... एक बात मैने परेशान कर रही है! ।
आमिना: ( नाज की ओर देखते हुए ) बोल ना क्या हुआ है!? आज तू काफी मायूस सी लग रही है! सुबह तक सब ठीक था! ।
नाज: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) आज... वो हमारे लेक्चर के दौरान... साहिर आया था! ।
आमिना: हां! तो!? ।
नाज: वो हमारे आने वाले प्रोजेक्ट का... इंतजामिया है! ।
आमिना: तो!? ।
नाज: ( गुस्से में आमिना की देखते हुए ) तो ... तो.... तैने मेरी बात सुननी भी है या नहीं!? ।
आमिना: ( सेंडविच को प्लेट में रखते हुए नाज की ओर देखती है । ) अच्छा बॉल!।
नाज: तो यहीं की अगर उसकी वजह से मेरे ग्रेड पे तासीर हुई तो!? ।
आमिना: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) अरे! तू बस एक कैफियत निगाह की बुनियाद पर उसे तौल रही है । वो बकायदा एक शरीफ और आला इंसान है।
नाज: ( अजीब शक्ल बनाते हुए ) क्या!? ।
आमिना: तुझे अभी भी नहीं पता वो कौन है!? ।
नाज: ( सिर को ना में हिलाते हुए ) ।
आमीना: वो साहिर हसन है नाज!? ।
नाज: हां तो!? ।
आमिना: ( हैरत से नाज को देखते हुए ) इस यूनिवर्सिटी की एम.डी. का क्या नाम है!? ।
नाज: मिस्टर अहमद हसन! । ( आमिना की ओर आंखे बड़ी करके देखती है ।) नो राइट... । ( सिर को ना में हिलाते हुए ) ।
आमिना: ( सिर को हां में हिलाते हुए ) साहिर अहमद हसन ।
नाज: ( आंखे बंध करकर बाल भींचते हुए! टेबल पर सिर रखकर कहती हैं। ) कौन सा बदला ले रहा है, खुदा!? ।
आमिना: ( मुस्कुराकर ) इसमें खुदा की क्या गलती जब तुम ने बिना किसी को जाने फैसला करों तो फिर यही होगा ।
नाज: हां! ठीक ठीक है! अब तकरीर देने की जरूरत नहीं है। मैने ऑलरेडी गलती कर दी है! खुश अब ।
आमिना: मेरे खुश होने या ना होने से क्या होगा!? तुझे तो उसे मनाना है! ( केम्प्स की ओर सिर से इशारा करते हुए ) ।
नाज: ( देखती है तो अपने साहिर दोस्तों के साथ मशगुल था ) उसे कैसे मनाऊं! तैनू पता भी है क्या क्या बोला है! मैने उसे!? ।
आमिना: अब जो हो गया उसे जाने दे! सॉरी बोल दे बात खतम ।
नाज: इतनी आसानी से मान जाएगा क्या वो! ( साहिर की ओर देखते हुए ) ।
आमिना: ( हाथ को मोड़ते हुए ) डोंट नो! वैसे काफी गैरतमंद इंसान है! तूने कीतना उसे जलील किया है उस बात पर तेरी माफी डिपेंड करती है ।
नाज: यार तू मेरा टेंशन कम करने की बजाय मैनू और टेंशन दे रही है।
आमिना: ( हंसी रोकते हुए ) हां! तो अब हरकत ऐसी की है! ।
नाज: ( आमिना की ओर देखते हुए खड़े होकर ) तू मजे ले रही है ना!? ।
तभी आमिना हंसने लगती है । जिससे नाज चिढ़ते हुए! अपना बैग लेकर वहां से दूसरी ओर आगे बढ़ने लगती है। आमिना भी हंसते हुए उसे मनाने पीछे भागती है! ।
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