House of Cards - Episode 22 in Hindi Fiction Stories by Rajshree books and stories PDF | ताश का आशियाना - भाग 22

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ताश का आशियाना - भाग 22

"हम दोनों कहां जा रहे हैं इतनी सुबह सुबह?"
"मैंने तुम्हें बताया तो था।"
"मुझे एक शॉर्ट फिल्म फेस्टिवल में डॉक्युमेंट्री सबमिट करनी है, उसके काम से ही जा रहे हैं।"
"तों फिर हम दोनों क्यों जा रहे हैं?"
जनरली भारत में देखा जाता है कि हमेशा जब भी कभी लड़का लड़की को मिलने बुलाता है तो लड़की अपने दोस्त को भी अपने साथ लेकर जाती हैं।
यही काम फिलहाल प्रतीक्षा कर रही थी।
दोनों कुछ ही देर में, काशी मंदिर के पास पहुंच चुके थे।
प्रतीक्षा ने ऑटो वाले को पैसे दिए,रागिनी भी उसके साथ ही थी।
उसने देखा, एक लाल जैकेट वाला आदमी उन दोनों की तरफ पीठ कर किसी से बात कर रहा था।
"हां जल्दी आजा, हां ठीक है, मैं संभाल लेता हूं।" उस आदमी ने फोन रख दिया।
रागिनी को लाल जैकेट देख कर थोड़ा शक तो हो रहा था, लेकिन पीछे मुड़ते ही शक यकीन में बदल गया।
रागिनी की आंखें आश्चर्य से बड़ी हो गई यही कुछ हाल सिद्धार्थ का भी था।
"हेलो मायसेल्फ प्रतीक्षा, प्रतिक्षा सरपोत्तदार।"
आवाज से दोनों का भ्रम टूट गया और तब कहीं जाकर.... प्रतिक्षा के आगे बढ़ाएं हाथ को प्रतिसाद मिला।
"रागिनी मीट सिद्धार्थ, सिद्धार्थ शुक्ला बनारस पर मै जो डॉक्युमेंट्री बनाने वाली हूं उसी में यही आवाज देने वाले हैं। और सिद्धार्थ यह मेरी दोस्त रागिनी।" सिद्धार्थ ने रागिनी को और रागिनी ने सिद्धार्थ को देखा।
हेलो!
हाय!
फॉर्मेलिटी दोनों ने ऐसी जताई जैसे दोनों एक दूसरे को जानते ही नहीं थे। हाथ मिलाकर फॉर्मेलिटी खत्म होते ही तीनों काशी मंदिर के तरफ चल दिए।
चलते–चलते प्रतीक्षा कुछ अपनी बातें बता रही थी।.... प्रतीक्षा बता रही थी कि कैसे वो इंदौर से बनारस सपना पाले आई है। अगर यह सपना उसका पूरा हो जाता है तो वो एक दिन इंडिया की बेस्ट सिनेमैटोग्राफर बनेंगी।
सिद्धार्थ रागिनी अभीभी दोनों फिलहाल एक दुसरे के अस्तित्व से सक्ते में ही थे। जैसे मन में कुछ चल रहा हो और अचानक से कहीं जाने वाली ब्रह्मवाणी भी इरिटेटिंग करने लगे। ऐसा ही कुछ हो रहा था सिद्धार्थ और रागिनी के साथ।
दोनों अगल-बगल थे, की प्रतीक्षा पीछे छूटते जा रही थी और उसकी बाते भी।
"आ गए हम सिद्धार्थ!" प्रतीक्षा हाफते हुए बोली।
सिद्धार्थ बुदबुदाया, "इतनी जल्दी।"
सिद्धार्थ की आवाज इतनी भी छोटी नहीं थी कि दोनों सुन ना सके।
रागिनी यह सुनते ही थोड़ा सा शर्मा सी गई थी उसने अपनी बालों की लट को कान के पीछे जो कर लिया था।
लेकिन प्रतीक्षा, यह सुनते ही ऑफेनेडेड हो गई थी।
"10 मिनट से चल रहे हैं, सिद्धार्थ। इतनी जल्दी! कैमरा गले में धर–धर के मेरे गले की हड्डी दुखने को आ गई और तुम बोल रहे हो इतनी जल्दी?"
सिद्धार्थ सकपका उठा, "हां...शायद... हम रोज ही आते हैं इसलिए हमें यह डिस्टेंट थोड़ा छोटा लगा होगा।"
प्रतिक्षा को और भी गुस्सा करना था, लेकिन उसने अपनी वाणी पर नियंत्रण रख लिया।
"ठीक है ,अभी चलते हैं तुमने कहा था शुरुआत यहीं से होने वाली है।"



सिद्धार्थ इस डॉक्युमेंट्री में आवाज देने वाला है।
और प्रतीक्षा इसकी शूटिंग करने वाली हैं।
कहानी के कुछ भाग, हम बनारस के कुछ प्रसिद्ध स्थान घूमेंगे।
जिससे प्रतीक्षा की डॉक्युमेंट्री पूरी हो सके और इससे ही रागिनी और सिद्धार्थ की कहानी आगे बढ़ सके।
ऐसे किसी भी भाग को पढ़ने से पहले, जो भी स्थानीय क्षेत्र, परिसर या फिर व्यक्ति का परिचय इस कथा में होगा उसका उपयोग सिर्फ एक मनोरंजन के मात्र किया गया है।
यह कथा किसी भी व्यक्ति या क्षेत्र का प्रमोशनल एडवर्टाइजमेंट नहीं करती।
(Copyright act 1976)


प्रतिक्षा ने अपनी शूटिंग चालू कर दी।
बनारस भगवान शंकर का शहर, कहां से शुरू करे कभी पता ही नहीं चलता।
88 घाट और हर एक घाट की अपनी कहानी अपना आयाम।
एक तरफ दशाश्वमेध घाट जहां की शाम की आरती की उपस्थिति में दस लाख से भी ज्यादा भक्तगण आते हैं।
दुसरी तरफ मणिकर्णिका घाट जहां सब शिव शंकर में विलीन हो जाते हैं।
आज हम उसी नरेश जी के चरणों में विलीन होने आए
लोग अपनी श्रद्धा में विलीन हो चुके हैं। अपनी मुरादे मांगने के लिए इतने बेचैन हो रहे हैं, मानो भगवान के दर्शन से ही उनके सारे कष्ट हर लिए जाएंगे।
द्वार पर द्वारपाल के तौर पर खड़े दो पंडित भगवान से अपने भक्तजनों को मिलाने का मार्ग दे रहे हैं।
(सिद्धार्थ ने पहले ही परमिशन ले ली थी इसलिए उसे अंदर जाने दिया गया। रागिनी और प्रतीक्षा भी थी)
मंदिर का वातावरण मंगलमय था प्रतीक्षा यह देख कर कुछ देर के लिए सब भूलकर चारों और उसने कैमरा घुमाया।
थोड़ा और अंदर गए तो एक कुहा था जिसके चारों और कटघरे बंधे हुए थे।
जब काशी विश्वनाथ की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी तब कुछ अतिरेकी होने दिल को तोड़ने की कोशिश की। मंदिर टूट गया लेकिन भक्तों की श्रद्धा बची रही।आज भी इस यह के अंदर शिवलिंग छुपा हुआ है। इसकी नियमित पूजा अर्चना की जाती है।
रागिनी भी यहां सब चीजें महसूस तो कर रही थी पर उसका मन दोनों की नजदीकियों से धड़क रहा था।
प्रतीक्षा सिद्धार्थ से कुछ ज्यादा ही शारीरिक स्नेह और दिखा रही थी।
एक पॉइंट का शॉट लेते हुए, सिद्धार्थजी आप भी ना! सिद्धार्थजी आपकी आवाज बहुत ही सूथिंग है।
शॉट लेते ही अपने कैमरे को सामने कर देना।
या उसकी छाती पर ऐसे ही हाथ रख देना।
सिद्धार्थ को यह असहज कर रहा था उससे भी ज्यादा... उसे कुछ अटपटा सा लग रहा था, वो थी रागिनी की आंखें।
रागिनी बिना पलक झपकाए बस सिद्धार्थ को देख रही.. थी।
रागिनी की नजर जाते ही सिद्धार्थ प्रतीक्षा से दूर हो गया।
और कहने लगा, इसे गोल्डन टेंपल भी कहा जाता है।
थोड़ा और तीनों अंदर गए तो शिवलिंग का भी दर्शन हुआ।
यह यहां का प्रसिद्ध शिवलिंग है, यह 60 सेंटीमीटर इतना ऊंचा है।
रागिनी मंदिर को देखने में इतनी व्यस्त थी कि उसका ध्यान नहीं था कि कब उसका कंधा, सिद्धार्थ के कंधे से छू गया।
रागिनी पहले तो भीड़ के कारण घबरा गई पर सिद्धार्थ को देख मानो वो रिलैक्स हो गई।
रागिनी का दिमाग तो रिलैक्स हो गया लेकिन दोनों के दिन जोर-जोर से धड़कने लगे।
लेकिन भगवान का ही शुक्र था की प्रतीक्षा की आवाज से एक बार फिर उनके दिल की रिदम सही गती से दौड़ने लगी।
"वह मुझे मंदिर में अंदर तक नहीं जाने दे रहे।" प्रतिक्षा.. उदास हुई।
सिद्धार्थ ने जवाब दिया, "जाने भी नहीं देंगे, इतनी इंफॉर्मेशन काफी है।"
तीनों बाहर आए तो प्रतीक्षा बाहर की सराउंडिंग की भी शॉट्स ले रही ही थी।
चलते चलते तीनों अहिल्याबाई देवी के पुतले के पास आकर खड़े हो गए।
"मुझे बहुत भुख लगी है।" रागिणी अपने पेट पर हाथ रख बुदबुदाई।
प्रतिक्षा ने यह बात नही सुनी, लेकिन सिद्धार्थ ने सुन ली।
"कचोरी खाओगी।" सिद्धार्थ ने बड़े सलीके से पूछा।
"हा पर प्रतीक्षा?"
"उसे भी पूछ लो।"
"प्रतिक्षा!तुम खाना खाने चलोगी।" रागिनी प्रतीक्षा का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए बोला।
"हां क्यों नहीं! पर तुम्हारा दोस्त भी आने वाला था ना?"
"वो सीधा ठठेरी बाजार पहुंच जाएगा।" सिद्धार्थ ने जवाब दिया।
"ठीक है फिर चलते हैं।"
तीनो राम भंडार जा पहुंचे।



राम भंडार के पास ब्लैक गॉगल, फटी हुई जीन्स काले बाल व्हाइट शर्ट पहने 25– 26 साल का लड़का खड़ा था।
बाहर बहुत भीड़ थी, प्रतीक्षा उस दुकान के शॉट लेने में व्यस्त थी।
सिद्धार्थ ने रागिनी को तुषार से मिलवाया, "यह रागिनी ये..."
सिद्धार्थ बयान से बाहर हो चुका था, उसे रागिनी की क्या बोल कर पहचान करवाए समझ नही आ रहा था।
तुषार के आंखे चमक उठी।
"भाभी!!" तुषार उत्साहित हो चुका था।
"जी नहीं मेरी दोस्त।"
तुषार आवाज की तरफ आंख उठाकर देखते ही फ्रीज हो गया।
काले बाल, लाल ओंठ,‌बाहो में भर सके ऐसा पतला शरीर, फुल टू गर्लफ्रेंड मटेरियल।
"Hi I am your film editor, Tushar."
"Hi pratiksha."
"तुम्हें पता भी है ना डॉक्यूमेंट्री के बारे में।" प्रतीक्षा ने.... तुषार से पूछा।
"हा पता है।"
" फिर बात की तुमने studio से?" इस बार सवाल सिद्धार्थ ने दागा।
"हा कर ली है, आज एडवांस देने जाना है।"
"अडवांस, इसकी क्या जरुरत हम घर पर एडिटिंग नही कर सकते?" प्रतीक्षा अस्वस्थ होकर बोल उठी।
"कर सकते है पर विजुअल्स, बैकग्राउंड, साउंड एडजस्ट करना थोड़ा डिफिकल्ट हो जायेगा।"तुषार ने जवाब दिया।
"मेरे पास लैपटॉप है।"
"वो तो मेरे पास भी है और वह भी एप्पल का।"
"Guys will you please shut up." सिद्धार्थ ने दोनों की लड़ाई को पुर्णविराम लगाया।
"देखिए प्रतीक्षा अगर आप चाहती है की आपकी फिल्म एक अच्छी फिल्म बनकर वो सिलेक्ट हो तो आपको थोड़ा फाइनेंसियल रिस्क लेना ही पड़ेगा।"
"यह काम वीडियो एडिटिंग स्टूडियो में बडे आसानी से हो जाएगा, उनके पास इक्विमेंट होते है, प्रीमियम सब्सक्रिप्शन होता है।"
"हा फिर... आप कहते है तो ठीक ही होंगा।"
तुषार यह सुन ऊपर के ओठो को नीचे के ओठो पर लाकर सिर हिलाने लगा।
जैसे की कह रहा हो, क्या बात है भाई क्या जादू कर डाला आपने।

आखिकार चारो का आर्डर आ गया रागिनी जो दूबकर बैठी थी उसके चेहरे पर रिलीफ छा गया जब उसे हाथ में बड़ी कचोरी और सब्जी मिली।
उसने खाना मिलते ही जगह ढूंढी और एक वरांडे पर जाकर बैठ गई।
औरत को देख, वहाँ बैठा आदमी उठ गया और खड़ा होकर खाना खाने लगा।
आखिरकार उसे खाना खाते हुए ठसका लग गया।
वो लगते ही पहले कदम जो उठे थे वो किसके थे पता नही था पर जब उसने बॉटल से पानी पिया और आसुओं से भरी हुई आंखे खुली तो सामने सिद्धार्थ था।
सिद्धार्थ ने चिंता से पूछा, "तुम ठीक हो?"
"हा, thank you."
रागिनी और सिद्धार्थ का इंटरेक्शन देखते ही तुषार को शक हुआ लेकिन उसने बिना कुछ जाने दावा ठोक देना सही नहीं समझा।
उसने सोचा, आकर्षण भी तो कोई चीज होती है।
सिद्धार्थ ने ओनर से शूटिंग की परमिशन मांग ली।
यह दुकान यहाँ तब से है जब से ब्रिटिशो का राज भारत वर्ष पर था। १८८७ में बनी यह दुकान आज भी अपने स्वाद के कारण जिंदा है।
पुरे बनारस में जाओ और घी की बड़ी कचोरी न खाओ यह हो ही नहीं सकता, यही तो ख़ास बात है इस रामभंडार की
सबसे खास बात है की दादा परदादाओ के खाने का स्वाद अब तक लोगो के जीवा पर घुलता आ रहा है बिना थके बिना रुके।
प्रतीक्षा भी बिना थके शूटिंग कर रही थी।
रागिनी सिर्फ वहाँ बैठे–बैठे बोर हो चुकी थी। उसे उबासी आ रही थी।
"आपको यहा बोर हो रहा है।"
"हा तो चलिए फिर लस्सी पिलाते है।"
"हा क्यों नही!" रागिनी झट से मान गई।
"आई थिंक, उनका शॉट अभी खत्म हो ही चुका होंगा।
उन्हे भी पूछ लेते है।" तुषार की यह वाक्य कहते ही,
रागिनी ने प्रतीक्षा और सिद्धार्थ की तरफ देखा।
दोनो की नजदीकया कुछ ज्यादा ही थी।
वैसे तो सिद्धार्थ के मायने से बराबर थी, कैसे शूट हुआ और क्या एडिट करना होंगा यह डिस्कशन हो रहा था दोनो में।
रागिनी की आंखों में जलन देख तुषार विस्मयीत हो गया।
उसने सोचा, आग बराबर की लगी है दोनो तरफ जवानी की।
पर सच का सामने उसे भविष्य में होने वाला ही था।
"चलो!" रागिनी तडाक से बोली
"कहा चलो?" तुषार ने हड़बड़हाट में पूछ लिया।
"तुमने ही कहा था ना लस्सी पीने जाते है दोनो, फिर चलो।"
"उन दोनो का क्या?" तुषार ने सिद्धार्थ और प्रतीक्षा की तरफ देखते हुए कहा।
"अगर उन्हें जरूरत महसूस हुई तो वह खुद आ जाएंगे।"
तुषार पहले थोड़ा झिझका पर लेकिन उठ खड़ा हुआ।
जब दोनों बाइक पर बैठे तो उनकी तरफ सिद्धार्थ का ध्यान गया।

"कहा जा रहे हो तुम दोनो?"
यह सवाल तो तुषार से पुछा पर आंखें रागिनी पर थी।
"वो लस्सी पीने जा रहे हैं। रागिनीजी बोर हो रही थी तो सोचा उन्हे कुछ डेजर्ट खिलाया जाएं।"
"बोर हो रही थी!" कहकर सिद्धार्थ ने रागिनी की आँखों में झांका पर रागिनी ने आँखे फेर ली।
"चलो ना तुषार!" रागिनी की जब ज़िद करते हुए उंगलियां तुषार के कंधे पर ठहर गई तो यह सिद्धार्थ को असहज कर गया।
"रुको हम भी चलते है।"
दो ही मिनट में चारो की गाड़ी वहाँ से चल दी।
चारो "ब्लू लस्सी शॉप" पर पहुंच गए।
ठंड थी पर लस्सी पीने का क्रेज कम नहीं हुआ था लोगो का।
"बाप रे! ठंड में इतनी भीड़ तो गर्मी में कितनी रहती होंगी।"
"वो तो होगी ही ना अलग 100 प्रकार की लस्सीया मिलती है यहां।" सिद्धार्थ ने प्रतीक्षा की जिज्ञासा का जवाब दिया।
तुषार ने भीड़ से बचते–बचाते ऑर्डर दे दिया।
तब तक, प्रतिक्षा ब्लू लस्सी शॉप से जुड़ी शूटिंग कर रही थी। चाहे वो लस्सी बनाते वक्त लस्सी वाले की हो या वहा की भीड़ की।
उनके परोसने की शैली, बनाने के शैली, दुकान के बाहर का वातावरण, दुकान का ढांचा सब उसके कैमरे में कैद हो रहा था।
सिद्धार्थ रागिनी की तरफ ही देख रहा था।
"अगर इतनी ही नींद आ रही तो क्यों आई?"
रागिनी ने सवाल का जवाब देना जरूरी नहीं समझा और वो वहा से उठ किसी दूसरी जगह जाकर बैठ गई।
यह देखकर बाजू में बैठा तुषार हंसने लगा लेकिन जैसे ही उसने सिद्धार्थ की आंखे देखी उसकी हंसी गायब हो गई।
"मैं देखता हु आई की नही लस्सी।" इतना कह वो वहा से उठ गया।
"प्रतिक्षा, चलो लस्सी आ गई।" तुषार ने आवाज लगाया।
"हा आई।"
"यह तुम्हारे लिए all fruit लस्सी।"
"Wow it look delicious."
चारो लस्सी पीने लगें की तभी बीच में ही प्रतीक्षा बोल पड़ी, "जाते हुए एक इंटरव्यू यहां का भी ले लेंगे।"
यह बात सुनते ही रागिनी का लस्सी पीने का मजा किरकिरा हो गया।
"तुषार..."
"हू!"
"क्या मुझे तुम घर छोड़ सकते हो?"
यह बात सुनकर सिद्धार्थ कुढ़ गया, "क्यों?"
रागिनी भी थोड़ा चिडचिड़सी हो गयी थी।
"मैं बोर हो रही हु, you guys can continue. सिर्फ मुझे तुम घर छोड़ दो।" रागिनी ने सिद्धार्थ को इग्नोर करते हुए तुषार से गुहार लगाई।
"पर रागिनी..." तुषार बोलने जाने ही वाला था की सिद्धार्थ ने उसे बीच में काट दिया।
"मै छोड देता हूं तुम्हे।" आवाज में मृदुता ना के बराबर थी, पर रागिनी भी अपने ही गुस्से में थी।
"पर सिद्धार्थजी वो इंटरव्यू?" प्रतीक्षा हड़बड़ाहट में पूछ उठी।
"तुमने जो शॉट लिए है, वह काफी है।"
रागिनी कटोरी रख गाड़ी की तरफ चल दी।