Jhopadi - 4 in Hindi Adventure Stories by Shakti books and stories PDF | झोपड़ी - 4 - बेसहारा लोग

The Author
Featured Books
Categories
Share

झोपड़ी - 4 - बेसहारा लोग

मेरा सब कुछ ठीक चल रहा था। दादाजी भी स्वस्थ और हट्टे- कट्टे थे। अभी लगता था 20- 25 साल और उन्हें यमराज भी नहीं हिला सकता है। मेरे गांव वाले भी सभी खुश और प्रसन्न थे। सब अपने काम को अच्छे ढंग से निपटाते और सुबह- शाम योगासन और भगवान की आराधना करते। सात्विक रूप में गांव की दिनचर्या चल रही थी। सभी गांव वाली हट्टे -कट्टे और निरोग थे।


तभी एक समस्या उत्पन्न हो गई। दूर के कई गांवों में बिना बारिश के सूखा पड़ गया और वहां लोग मरने लगे। कोई इधर भागा, कोई उधर भागा। शरणार्थियों का बहुत बड़ा सैलाब चारों दिशाओं में भागा जा रहा था। कई शरणार्थी हमारे गांव के आसपास खाने-पीने की चाह में आ गये और वह वहां सड़क किनारे और रेलवे लाइनों के किनारे झुग्गी -झोपड़ी डालकर रहने लगे। हम लोगों ने जी भर कर उनकी मदद की। कुछ समय बाद उनके इलाके में सूखा खत्म हो गया और ज्यादातर शरणार्थी वहां से वापस अपने घर चले गए। लेकिन कुछ ऐसे शरणार्थी भी थे जिन्हें हमारे यहां की आबोहवा पसंद आ गई और वे यहीं रह गए। हालांकि इनकी संख्या भी काफी थी। मैंने अपने गांव के मुखिया से सलाह मशवरा किया और हमने शरणार्थियों की मदद करने की ठान ली। आस -पास के गांव वालों ने भी मदद का आश्वासन दिया। हमने एक कोष के निर्माण का दायित्व लिया। इस कोष में मैंने अपनी तरफ से एक करोड़ रुपए का दान दिया। गांव के पढ़े -लिखे एक व्यक्ति को इसका कोषाध्यक्ष बनाया गया। यह पद उसकी ईमानदारी को देखकर दिया गया था। सभी लोगों ने अपनी हैसियत के अनुसार और अपनी इच्छा के अनुसार इस कोष में दान दिया। अब इसमें काफी पैसा जमा हो गया था। अब हमने इस कोष से शरणार्थियों की मदद करने का निर्णय लिया। हमने शरणार्थियों के लिए कुछ मकान बनाने का निर्णय लिया। हमने थोड़ी सी जमीन खरीद कर वहां कोष द्वारा मिले रुपयों से कुछ मकानों का निर्माण किया और एक शुभ मुहूर्त देखकर गाजे-बाजे के साथ शरणार्थियों को उसमें प्रवेश दिलवाया। साथ ही हमने शरणार्थियों को अच्छे वस्त्र, दो-तीन महीने का राशन आदि प्रदान किया और कुछ नकद धन भी प्रदान किया। शरणार्थी बड़े खुश हुए। उनकी किस्मत बदल चुकी थी। वह झुग्गी -झोपड़ी छोड़ कर सभ्य समाज का अंग बन चुके थे। इसके बाद हमने शरणार्थियों के लिए रोजगार की व्यवस्था भी की। इससे शरणार्थी लोग प्रसन्न और आनंदित हो गए।

उनके मुखिया को एक थोड़ा सा बड़ा घर दिया गया। सबके पशुओं के लिए भी जगह दी गई। क्योंकि उनके रोजगार की व्यवस्था हो चुकी थी। इसलिए धीरे -धीरे वह भी संपन्न होने लगे। उनमे सभी जातियों के लोग थे। इसलिए धीरे-धीरे हमारे गांव वाले भी इन लोगों से शादी -विवाह आदि का भी संबंध करने लगे। शरणार्थियों के बच्चों के लिए स्कूल आदि भी खोले गए। उनके लिए हॉस्पिटल, मंदिर आदि की व्यवस्था भी की गई। अपनी तरफ से हम ने उनके लिए कोई कमी नहीं रखी। उनको खेती के लिए भी थोड़ी- बहुत जमीन दी गई। उन के मुखिया ने और शरणार्थियों ने हमें बहुत -बहुत धन्यवाद किया। हम लोग भी परमपिता परमेश्वर की संतान का अपनी तरफ से भला करने पर बहुत प्रसन्न हुये। इस तरह से शरणार्थियों की समस्या भी मिटी और शरणार्थी भी समाज की मुख्यधारा में सम्मिलित हो गए।

धीरे-धीरे शरणार्थी काफी पढ़े-लिखे संपन्न, बहुत अमीर होने लगे। वे उन्नत नस्ल के पशुओं को पालने लगे और उन्नत तरीके से खेती भी करने लगे। यहां की जलवायु उन्हें बहुत अच्छी लगी थी। हमारा एरिया संपन्न हो गया था। इसलिए दूर- दूर से लोग यहां आकर बसने लगे थे। लेकिन हमने इस बात का ध्यान रखा कि विकास के कारण उस एरिया में प्रदूषण और भ्रष्टाचार ना बढे़। दादा जी यह सब देखकर बड़े खुश हो रहे थे। वह दौड़- दौड़ कर असहाय शरणार्थियों और बेसहारा लोगों की मदद किया करते। वह श्रम से और धन से भी उनकी मदद करने की कोशिश करते। मैंने भी अपनी तरफ से शरणार्थियों को अपने फार्म हाउस की अच्छी -अच्छी नस्ल की गायें दान में दी। इससे मेरे मन को बहुत शांति मिली। सरकार भी हमारे सम्मिलित प्रयास से बहुत प्रसन्न हुई और उसने भी हमें पुरस्कृत किया। समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में भी हमारे इन प्रयासों की चर्चा और सराहना हुई। हालांकि हमें इस बात से कोई खास असर नहीं पड़ा। लेकिन इससे समाज के धनी और सामर्थ्यवान लोगों के बीच हलचल शुरू हो गई और उन्होंने भी गरीबों की मदद करने के लिए अपने हाथ आगे किये। उनके प्रयासों से क्षेत्र में और राज्य में गरीबी की समस्या का निदान बड़ी तेजी से होने लगा। सत्य है एक फूल की खुशबू बहुत दूर- दूर तक जाती है और सभी उस फूल की खुशबू से प्रसन्न हो जाते हैं और वह भी अपने आसपास फूल उगाने की कोशिश करते हैं। इसी प्रकार एक अच्छा व्यक्ति एक अच्छा कार्य करता है तो अन्य लोग भी उसकी देखा देखी में अच्छा कार्य करने की कोशिश करते हैं। जिससे समाज का आध्यात्मिक और बौद्धिक विकास होता है।


अब हम लोगों ने एक कोष बनाकर उसमें काफी धन एकत्रित कर लिया। इस धन से हम बाढ़ पीड़ितों और सूखा ग्रस्त लोगों की देश और विदेश में मदद करने लगे तथा उन्हें भोजन, वस्त्र, मकान और नगद धनराशि उपलब्ध कराने लगे। साथ ही साथ उनके रोजगार की चिंता भी करने लग गये। यह देखकर शायद परमपिता परमेश्वर हम पर और भी अधिक प्रसन्न हो गया और हमारा क्षेत्र संपन्न और संपन्नतर होता गया और हम उस धन से समाज का भौतिक और आध्यात्मिक विकास करने में जी जान से लग गये।


हमारे दादा जी और हमारे गांव वाले और गांव के मुखिया जी यह सब देखकर बहुत प्रसन्न होते और इसका श्रेय कभी-कभी मुझे दे देते। लेकिन मैं विनम्रता से कहता भाई मेरा इसमें क्या हो? यह तो आप सब लोगों का प्रयास था, जिससे इतना बड़ा कार्य हो रहा है। यह सुनकर वे सब बहुत प्रसन्न होते। यह देखकर मुझे भी बड़ा आनंद मिलता और मैं उस परमपिता परमेश्वर का बहुत-बहुत धन्यवाद करता कि मुझे इतना अच्छा क्षेत्र इतना अच्छा देश और इतने अच्छे क्षेत्रवासी, देशवासी मिले जिनके हृदय में दैवी गुण विद्यमान हैं। और सच में वह सतयुग के प्राणी ही महसूस होते।