विश्वास (भाग -25)
"संध्या चलो तुम भी टीना बाबा का आशीर्वाद ले लो", भुवन ने कहा तो संध्या टीना की और बढ़ती उससे पहले ही टीना ने उसे रूकने को कहा, "प्लीज आप वहीं रूको मैंने सिर्फ मजाक किया था, आप दोनो ही मुझसे बड़े हैं"।
"टीना जाओ संध्या और उसके पापा को भुवन के साथ घर छोड़ आओ"। भुवन के पापा के कहने पर वो दोनों उनको छोड़ने चले गए। संध्या को दिल्ली आने को कह वो लोग वापिस आ गए। संध्या ने भी मुस्करा कर "जरूर आऊँगी" कहा।
"कैसे लगा तुम्हे हमारा गाँव "? भुवन ने टीना से पूछा। "गाँव तो बहुत अच्छा है और यहाँ के लोग भी अच्छे हैं"। टीना ने जवाब दिया। रात को सब की राय से सब्जियाँ डाल कर खिचडी बनायी और खायी गई साथ में चटनी पापड और आचार।
"भुवन बेटा कल किस समय निकलना है ? हम पैंकिग कर के सोएँगे तो सुबह टाइम से चल देंगे"। "नहीं माँ जी, कल मोहन के दोनो बेटे और इसके दोनो भाई जा रहे हैं आप भी चले जाओगे तो घर खाली हो जाएगा। बस कल का दिन और रह जाइए"। भुवन की माँ ने हाथ जोड़ कर कहा तो भुवन के पापा ने भी कहा, "हाँ माँ जी ये सही कह रही है, कल का दिन और रूक जाओ"।
"ठीक है जी, जैसा आप कहो", टीना ने हाँ कहा तो उमा जी ने भी सहमति जताई। "थैंक्यू टीना, थैंक्यू दादी!! सोमवार को सुबह पाँच बजे निकलेंगे। मैं भी अपनी क्लास लेने के टाइम तक पहुँच जाऊँगा"। भुवन ने अपनी खुशी का इजहार करते हुए कहा।
"माँ जी अब आप आराम कीजिए, आज थक गयी होंगी"। "हाँ सही कह रही हो शांता बेटी" (भुवन की माँ) । "टीना चलो आज बहुत मस्ती हो गयी तुम भी सो जाओ"। भुवन ने कहा तो नरेन बोला, "अभी सो जाँएगीं थोड़ी देर हम बातें करेंगे, क्यों टीना"। "हाँ और क्या मैं तो मस्ती ही तो करने आयी हूँ, थोड़ी देर बाद सो जाएँगें"।
मैं दादी को बेड लगा कर दे आती हूँ, कह वो दादी के साथ कमरे में चली गयी। दादी को दवा खिला कर वो भुवन के कमरे में चली आई। टीना को देख कर सब खुश हो गए। वो सब आगे की पढाई की बातें कर रहे थे। अभी वो लोग बातें ही कर रहे थे कि भुवन का फोन बज गया।
फोन पर बात करने के लिए वो कनरे से बाहर जाने लगा तो टीना ने कहा आप यहीं रूको हम बाहर जाते हैं, टीना उठी तो रवि, नरेन, राजेश और शाम सब बाहर आ गए। बात पढाई से चलते हुए फिल्मो, दोस्तों से होते हुए पसंद नापसंद पर आ कर रूक गयी। बात - बे बात पर हँसते हुए 1 बज गया। "तुम लोगो को कल जाना है, सो जाओ"। टीना ने कहा तो श्याम बोला," दीदी ट्रेन में जाना है, आराम से सोते हुए जाएँगे आप टेंशन मत लो"।
"फिर ठीक है, पर ध्यान रखना ट्रेन ना मिस हो जाए"। "दीदी भुवन भैया के होते हुए यह नामुमकिन है, वो हम को उठा देंगे"। इस बार राजेश ने जवाब दिया। टीना मुस्करा दी। क्या हुआ शेरनी बातेॆ खत्म नही हुई तुम लोगो की अभी, भुवन भी बात करके वहीं आ गया।
रवि चुप चाप सबकी बातें सुन रहा था, पती चला कि वो कम बोलता है। टीना ने बोला "अरे कुछ तो बोलो , मैंने तो ठीक से आपकी आवाज भी नही सुनी क्या आपको मुझसे बात करना पसंद नही"? "नहीं आप ऐसे मत कहिए , मुझे ज्यादा बात करना आती नही है", मुझे सुनना पसंद है। "यह तो बहुत अच्छी आदत है आपकी", टीना ने कहा तो वो हल्का सा मुस्करा दिया।
"रवि और मैं एक जैसे हैं टीना, हम जल्दी से दोस्त नहीं बना सकते, तुम मेरी पहली दोस्त हो जिसके घर मैं गया और मेरे घर तुम्हे़ं लाया हूँ", भुवन ने कहा। हाँ टीना भैया सही कह रहे हैं मेरे तो बहुत दोस्त हैं और उनको यहाँ लाता रहता हूँ, मैं भी उनके साथ घूम आता हूँ, नरेन बात को आगे बढाते हुए बोला।
"ओह तो ये बात है"!! टीना ने ऐसे कहा कि सब हँस दिए। हाँ यही बात है शेरनी," तुम बस पहली और आखिरी दोस्त हो इस दुनिया में। मैं हमेशा दोस्ती निभाऊँगा, तुमसे वादा करता हूँ"। "आज आप इतने इमोशनल कैसे हो गए, सडडू प्रसाद"!!! टीना ने अपने आँसुओ को हँसी में छिपाते हुए कहा।
"चलो बच्चो सब सो जाओ, कल निकलना है तो अपनी बुक्स याद से रखो और अब वहाँ जा कर ढँग से पढना है"। भुवन के कहने पर सब अपने कमरो में चले गए। "शेरनी तुम भी जा कर सो जाओ, कल तुम्हे बैलगाड़ी में घुमाने का सोच रहा हूँ"। "ठीक है, आप भी रेस्ट करो, थक गए होंगे"। टीना कह कर अपने कमरे में आ गयी।
कमरे में आ तो गयी थी, पर थकान के बाद भी नींद आँखों से दूर थी। एक ही ख्याल मन को बार बार सता रहा था कि उसके बचपन के दोस्तों ने बिल्कुल उसकी परवाह नहीं की। भुवन कितना अच्छा दोस्त साबित हुआ है। भुवन के पूरे परिवार ने कितना प्यार और सम्मान दिया है।