विश्वास (भाग -21)
"शेरनी अगले शुक्रवार तुम तैयार रहना, मेरे गाँव चलना है"। भुवन ने टीना को फोन पर बोला।
टीना ---- गाँव क्यों??
भुवन --- क्यों हमारे गाँव चलने में परेशानी है? मैं तुम्हारे बुलाने पर आया था ना?
टीना --- मैं जाने से मना नहीं कर रही हूँ, कुछ खास बीत है? पूछ रही हूँ।
भुवन --- हाँ ऐसा ही समझो।
टीना --- अच्छी तो बताओ क्या खास है?
भुवन --- वहाँ चल कर देखना, दो दिन रहेंगे, तुम्हे गाँव भी दिखा दूँगा ।
टीना --- हाँ गाँव तो मुझे भी देखना है, पर घर पर पूछ कर बताती हूँ।
भुवन --- तुम पूछ लेना और मैं भी फोन पर तुम्हारे पापा से बात कर लूँगा।
टीना --- नहीं, पहले मैं बात कर लेती हूँ।
भुवन -- ये हुई न शेरनी वाली बात। चल रात तक पूछ कर बताना।
टीना -- ठीक है।
रात को टीना ने डिनर करते हुए मम्मी पापा से जाने के लिए पूछा तो उमेश ने मना कर दिया। टीना उदास हो गयी। उमा जी ने कहा, "उमेश जाने दे बेटा भुवन जिम्मेदार लड़का है"। "अरे माँ, मुझे भुवन के साथ भेजने में दिक्कत नही है, पर आप जानती हो कि गाँव में ऐसे भेजना ठीक नही, शहरों की बात अलग होती है"।
"हाँ बेटा, यह बात तुम बिल्कुल सही कह रहे हो। बेटे की बात सुन उमा जी ने कहा। "पापा अगर ऐसा है तो मैं दादी के साथ चली जाऊँ ? चलोगी ना दादी "? मीनल समझ रही थी कि टीना भुवन के साथ जाना चाह रही है।" माँ टीना के साथ जाएँगी तब तो ठीक है"!!! उमेश की तरफ देखते हुए उसने कहा। "ठीक है माँ आप घूमा लाओ इसे"। उमा जी ने टीना की तरफ देखते हुए कहा, " भुवन को कह दे कि, "हम चलेंगे मैं भी इसी बहाने सरला बहन से मिल लूँगी"।
रात को उसने जब भुवन को बताया," पापा ने दादी के साथ जाने को कहा है।शायद उनको लग रहा होगा कि, मैं अपनी मेडिसंस और तबियत का ध्यान नहीं रखूँगी"तो वो खुश हो गया। "बिल्कुल ठीक कह रहें हैं वो, दादी जी के लिए भी थोड़ा बदलाव अच्छा है"।
टीना और दादी ने जाने की सारी तैयारी कर ली। दादी ने सरला जी और भुवन के परिवार को देने के लिए मिठाई और गिफ्ट मँगवा लिए। शनिवार को भुवन और उसका रसोइया सुबह 5 बजे टीना के घर के बाहर थे। टीना और दादी भी तुरंत नीचे आ गयी। भुवन ने रसोइए से परिचय करवाया, "दादी ये मोहन भैया हैं, जिसके हाथ का खाना आप खा चुके हो। मोहन ये दादी हैं ये इनकी पोती टीना"।
मोहन ने दादी और टीना को नमस्ते किया और दादी के पैर छू कर आशीर्वाद लिया। "मैं आपको दीदी कह सकता हूँ"। उसने टीना से पूछा तो टीना ने हँसते हुए कहा, "आप तो बहुत बड़े हो मुझसे आप बेटी कहिए मुझे अच्छा लगेगा"।
टीना की बात सुन कर मोहन भावुक हो गया, "जीती रहो बिटिया और हमेशा खुश और स्वस्थ रहो"। सफर लंबा तो था ही, दादी मोहन के साथ बातें करने में मश रूफ रही। बातों में ही पता चला कि, "मोहन भुवन के गाँव से ही है। परिवार के नाम पर सिर्फ दो बेटे हैं, जिनकी जिम्मेदारी भुवन और उनका परिवार उठा रहा है, दोनों बच्चे हॉस्टल में पढते हैं तो मोहन को भुवन अपने साथ ले आया। वो घर के सब काम करता है"।
लंबा सफर बातों के साथ स्नैक्स खाने से अच्छा कट रहा था। रास्ते में 2-3 बार वाशरूम जाने के लिए कार को रोका। 1 बजे घर पहुँच गए। भुवन का घर देख कर टीना हैरान थी। बहुत खुला और बडा़ घर शायद शाम तक घर मेॆ कहीं भी बल्ब या टयूब लाइट जलाने की जरूरत पड़ती होगी।
आँगन इतना बड़ा था कि 6-7 सौ लोग आराम से बैठ कर खाना खा लें।
भुवन के परिवार ने बहुत गर्मजोशी के साथ उनका वेलकम किया था। भुवन के भाई और मोहन के दोनो बेटों से परिचय हुआ। सब सहज ढँग से बात कर रहे थे। दिखावा लेशमात्र नहीं। टीना और दादी को उनके कमरे तक छोड़ , उनको फ्रेश होने को बोल कर खुद भी फ्रेश होने चला गया।
कमरा बड़ा था और हवादार भी। नहा कर दोनो तैयार हो गयी। भुवन की माँ उनको खाने के लिए बुलाने आयीं। खाना सादा पर बहुत टेस्टी लगा। लस्सी के लिए पीतल के बडे बडे गिलास देख टीना घबरा गयी, " आँटी जी ये बहुत ज्यादा है, मुझे कम दीजिए। उसने अपने लिए अलग गिलास में थोड़ी सी ली"। "शहरो में तो लस्सी कहो तो मीठी लस्सी समझते हैं और नमकीन लस्सी को छाछ। पर यहाँ लस्सी नमकीन थी गाँव में लोग मट्ठा कहते हैं, भुवन के पापा ने बताया"।
खाना खाने के बाद दादी ने मिठाई और भुवन की माँ के लिए लायी साड़ी उनको दी तो वो उन्होंने बिना किसी औपचारिकता के स-सम्मान ले दादी को चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। "दादी जी आप लोग कुछ देर आराम कर लो तब तक सरला चाची भी अपने सिलाई सेंटर से फ्री हो जाँएगी"।
क्रमश: