soi takdeer ki malikayeen - 44 in Hindi Fiction Stories by Sneh Goswami books and stories PDF | सोई तकदीर की मलिकाएँ - 44

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सोई तकदीर की मलिकाएँ - 44

सोई तकदीर की मलिकाएँ

 

44

 


सरोज का दिल बुरी तरह से धड़क रहा था । पता नहीं वहाँ सुभाष का क्या हाल होगा । कितना भी भला और सीधा इंसान क्यों न हो , अपनी ब्याहता किसी और के साथ रिश्ता जोड़े , सरेआम गुलछर्रे उड़ाए , यह कौन मर्द बर्दाश्त करेगा । यह जयकौर को भी पता नहीं क्या हो गया है , जायज नाजायज जैसी बातें उसे क्यों नहीं सूझ रही । अच्छे खासे गुरु के सिक्खों की बेटी है , इतनी अक्ल तो उसे होनी चाहिए कि लड़कियों के साथ दो परिवारों की इज्जत जुड़ी होती है । उसका एक गलत कदम दोनों परिवारों को समाज के सामने कटघरे में खड़ा कर देगा । पाँच गाँवों में बदनामी होगी , वह अलग । वह कई परिवारों की बर्बादी का सबब बनना चाहती है । पता नहीं कितने कत्ल करवाएगी यह लड़की और ये सुभाष पूरी तरह से उसका दीवाना हुआ पड़ा है । लट्टू की तरह उसके चारों ओर घूम रहा है । क्या जरूरत थी उनके घर में सीरी बन कर रहने की । जिस दिन सरदार ने रंगे हाथों पकड लिया , सारा मजनू पना निकल जाएगा । हो सकता है , यहाँ भी किसी दिन अच्छा खासा हंगामा हो जाय । उसे लगा कि और दो चार मिनट वह यह सब सोचती रही तो उसके दिमाग की कोई नस जरूर फट जाएगी । उसने अपनी गर्दन को झटका दिया मानो अपने सिर पर लदा भारी बोझ उतार कर गिरा देना चाहती हो ।
इतने में उसकी सास ने पुकारा – सरोज बिटिया , ऐसा कर । मुझे थाल में दाल डाल कर दे दे । ला मैं चुग दूँ ।
सरोज ने थाल में साबुत मूंग निकाली और थाल लेकर सास की चारपाई के पैताने बैठ कर दाल चुगने लगी ।
ला थाल मुझे पकड़ा ।
नहीं मम्मी , मैं खाली ही हूँ , मैं ही चुग लेती हूँ ।
क्या हुआ , आज सुबह से कुछ परेशान लग रही है । तेरी तबीयत तो ठीक है न ।
जी मम्मी , परेशान तो हूँ । सोच रही हूँ , आपको कैसे बताऊँ । आप , पता नहीं मेरी बात को कैसे लेंगी । समझ भी पाएंगी क्या ?
बता तो सही । बिना सुने कैसे पता चलेगा कि बात को कैसे लेना है ।
मेरी बात का विश्वास करेंगी न आप ।
ले भला तेरी बात का भरोसा क्यों न करूँगी । तू कोई ओपरी है क्या ? तेरा मेरे से और इस घर से जन्म जन्म का रिश्ता है । निश्चिंत होकर बता , क्या बात है ? ऐसी क्या बात है जिसने तुझे इतना परेशान कर रखा है ।
वो मम्मी अपना सुभाष है न , उसका , अपनी गली में वो हैं न चरणे भा जी , उनकी बहन के साथ पिछले छ सात महीने से चक्कर चल रहा था । दोनों हर रोज चरी काटने , चारा लाने के बहाने खेत में रोज मिलते थे । मुझे लगता है , उसके दोनों भाइयों को इस चक्कर के बारे में शक हो गया होगा । तभी जिस दिन मौका देखा कि सुभाष गाँव में नहीं है , उरे परे गया है , फटाफट जयकौर के लावां फेरे करके दो तीन घंटे में ही विदा कर दिया । ये भी नहीं देखा कि लाङा (दूल्हा ) बडी उम्र का है या पहले से ही शादी शुदा है और एक बीबी घर में है । इससे पहले तो कभी उन्हें बहन की शादी का ख्याल नहीं आया । न कहीं रिश्ता देखने गये , न किसी को रिश्ते के लिए घर बुलाया फिर दो दिन में ही ऐसी कौन सी आफत आ गई थी कि तुरत फुरत में शादी करके लड़की गले से उतार दी ।
कह तो तू सही रही है । मैंने भी सोचा कि ऐसे कैसे चार दिन में ही जयकौर का रिश्ता कर दिया अगलों ने । लडका भी ढूंढ लिया और फेरे भी हो गये , लङकी घर से विदा भी हो गई । देखा तो मैंने भी था कि जयकौर आजकल हर रोज चारा लेने खेत जाने लगी थी । सुभाष को भी कहना नहीं पड़ता था । वक्त होने से पहले ही खुद ही चारा लाने के लिए तैयार हो जाता था । मुझे लगा था , बड़ा हो रहा है । थोड़ा जिम्मेदार हो गया है । अपने आप पशुओं का ध्यान रखने लग पड़ा है । यह तो अच्छी बात है पर मुझे क्या पता था कि चारे की ओट में और ही गुल खिल रहे थे । पहले क्यों नहीं दीखा हमें यह सब । सच कहते हैं – इश्क न देखे दिन और रात ।
इश्क न देखे जात कुजात ।।
वह तो जो होना था हो गया । छ महीने सुख शांति से बीत गये । कोई क्लेश नहीं पङा । गाँव में किसी को कुछ भी पता नहीं चला । यारी दोस्ती रही । यारी दोस्ती तक तो चलता है , असली मुसीबत तो अब शुरू हुई है । सुभाष पर ये इश्क का भूत इस कदर सवार हो गया है कि वहीं जयकौर की ससुराल में जाकर बस गया है । सुना है , सरदार बहुत सरमायेदार आदमी है । आधे से ज्यादा गाँव उसकी जमीन है । बहुत बड़ी हवेली रहने के लिए और मीलों तक फैले खेत । खेतों में दूर दूर तक लहराती फसलें । सैकड़ों तो नौकर चाकर होंगे । ऐसे में सुभाष के प्राण कैसे बचेंगे , यहीं चिंता मुझे खाये जा रही है । जयकौर ने तो कह दिया , जल्दी से कपड़े लेकर आ जा और अपने बुद्धुराम हीरो बने झोला उठा कर पहुँच भी गए । सच में क्या उसे एक बार भी डर नहीं लगा । वो कमजात तो दूसरी हीर बनने की धार के बैठी है । सुभाष को रांझे की तरह ससुराल की भैंसें संभालने के लिए नौकर रख लिया है ।
बात तो चिंता वाली ही थी । सुरजीत भी चिंता में डूब गई । अगर सरोज सच कह रही है तो वाकई खतरनाक हालात है । ऐसे में क्या करना चाहिए । पहले पता लग जाता तो जाने ही नहीं देते । अब सुभाष को समझा बुझा कर वक्त रहते सही सलामत वापिस लाना जरूरी है वरना बात बिगङ गयी तो हाथ कुछ नहीं आने वाला ।
वह पूरा दिन इसी ऊहापोह में निकल गया । शाम ढल गई । रमेश काम से लौटा । सुरजीत ने रमेश को अपने पास बुलाया – बेटा तू ऐसा कर । सुबह दिन निकलते ही बस पकङ कर संधवा चला जा और कान से पकड कर सुभाष को वापिस ले आ ।
माँ ले आऊँगा , तू निश्चिंत रह । पर कल तो नहीं जा पाऊँगा । अभी तो एक हफ्ता खेत में काम बहुत है । फसल की गुड़ाई होनी जरूरी है । काम खत्म होते ही मैं उसे ले आऊँगा ।
सरोज चौंके में रोटी बना रही थी । रमेश वहाँ से सरोज के पास चौके में जा बैठा ।

बाकी फिर ...