विवाह समारोह आजकल बदल से गए हैं। एक तो पहले की होने वाली 4 से 5 दिनों तक चलने वाली शादियां और उसमें कम से कम हफ्ते भर पहले से आने वाले मेहमान। अब नजदीकी रिश्तेदार भी बस शादी वाले दिन ही पहुंचते हैं और वे भी कोशिश इस तरह करते हैं कि रिसेप्शन होने के समय तक पहुंच जाएं ताकि एक पंथ दो काज हो जाए।
पंगत में बैठकर खाने- खिलाने के दिन तो कब से गए। बफे सिस्टम के रूप में भोजन की जो अवधारणा सामने आई है वह,भीड़भाड़ के कारण विचित्र सा नजारा निर्मित करती है।
पिछले दिनों एक विवाह समारोह के रिसेप्शन में मौजी मामा को खाने की प्लेट लिए हुए इधर से उधर जाते देखा।
मैंने कहा, "यह क्या मामा, आप तो एक जगह स्थिर नहीं हैं।"
"क्या बताऊं? जब भोजन का समय शुरु होता है तो एकाएक इतनी भीड़ सामने आ जाती है कि लगता है प्लेट लेकर सही काउंटर पर पहुंचकर भोजन प्राप्त करना फुटबॉल लेकर विपक्षी खिलाड़ियों को छकाते हुए गोल पोस्ट में गोल कर देने के समान एक बड़ा टास्क हो गया है।"
सवाली राम ने जवाबी सवाल दागा,"ऐसा क्यों? काउंटर तो सारे अलग-अलग बने हैं।बस आपको अपनी प्लेट लेकर आहिस्ता आहिस्ता एक जगह से दूसरी जगह पहुंचना है।"
मौजी मामा ने उत्तर दिया,"अब यही आहिस्ता आहिस्ता पहुंचते रहे तो आखिरी काउंटर तक पहुंच ही नहीं पाएंगे।"
सवाली राम ने एक और सवाल दागा,"तो मामाजी, आप थोड़ा रुक कर भोजन ग्रहण करें।"
"अगर भीड़ छंटने की प्रतीक्षा करूं तो डर यह है कि भोजन ही ना खत्म हो जाए।"
"अरे भोजन खत्म हो गया तो घर में मामी जी से बनवाकर खा लीजिएगा।"
" नहीं, यहां का आंखों देखा हाल देखकर तुम्हारी मामी ने पहले ही कह दिया है- मैं न बनाऊंगी खाना। रात 11:00 बज जाएंगे यहां से लौटते। अच्छा है रास्ते में किसी ढाबे में खा लेना।"
एक जगह काउंटर खाली दिखाई दिया, जहां पूडियां और एक दो मसालेदार सब्जियां रखी हुई थीं।मौजी मामा ने कहा," मैं रोटियों की तलाश में हूं।"
एक जगह खड़े होकर सभी स्टालों का दूर से ही मुआयना करते हुए सवाली राम ने बताया, "अब रोटी का स्टाल तो उस दूसरे कोने में है,जहां पहले से ही सात - आठ लोग पंक्ति में हैं, न जाने वहां आपका कब नंबर आए?"
घड़ी को 10:00 बजते देखकर अब मौजी मामा ने यही सोचा कि जो मिल रहा है उसे ही ग्रहण किया जाए। एक जगह पुलाव था उन्होंने उसे ही अपने प्लेट में लिया।बगल में पनीर की सब्जी थी।
सवालीराम बाल बच्चों के साथ थे।वे उनकी सेवा जतन में व्यस्त हो गए। भोजन करते- करते मौजी मामा का ध्यान स्टेज पर एक वीडियो प्रजेंटेशन की ओर गया, जहां दूल्हा- दुल्हन के फोटोग्राफ्स सम्मोहक बैकग्राउंड और हल्के संगीत के साथ आ रहे थे। बगल में स्टेज पर आर्केस्ट्रा भी चल रहा था। युवाओं के समूह और कुछ बड़े परिवार के सदस्य भी स्टेज के ठीक नीचे नाच रहे थे। मौजी एक कुर्सी खींच कर बैठे और प्लेट में इकट्ठा हो पाई भोजन की सामग्री को ग्रहण करते हुए यह सब नजारा देखने लगे।
वे सोचने लगे, अच्छा है अब इतनी सारी सुविधाएं आ गई हैं।बराती-घराती सभी एक जगह इकट्ठा होने लगे हैं।महिलाएं भी ऐसे समारोह में बराबर से शामिल हो रही हैं। लोग आनंद उठा रहे हैं। समय बदल रहा है। आधुनिक तकनीकों ने विवाह समारोह को हाईटेक कर दिया है। बस मुझे इसी बात का डर है कि खाने खिलाने की ओर ध्यान कहीं थोड़ा कम तो नहीं होने लगा कि बस स्टाल लगा दिया, ठेके पर दे दिया और आगे सब कुछ भगवान भरोसे। दूसरा,वे सोचने लगे। कोरोना काल के बीतने के बाद अभी कुछ ही दिन हुए हैं और इतनी भारी भीड़ भाड़।
सोच का सिलसिला आगे बढ़ा। विवाह तो आनंद का उत्सव है। लोगों का एकत्रित होना और मेलजोल तो अपनी जगह सही है लेकिन विवाह समारोह पर बेहिसाब होते खर्चों के बीच क्या एक साधारण हैसियत वाले उसी समाज के आदमी के लिए अपने घर के किसी समारोह में ऐसे स्तर को बनाए रखना आर्थिक रूप से क्या कठिनाई भरा नहीं हो जाएगा?
तभी दूर से मामी आती हुई दिखाई दीं, उन्होंने पास आकर उलाहना देते हुए कहा,
" अरे अब कब तक प्लेट को लेकर बैठे रहोगे? मंच पर नहीं चलना क्या?.... वर वधू को आशीर्वाद देने?"
"हां ….."कहते हुए मुस्कुराकर मौजी मामा उठ खड़े हुए।
(पूर्णत: काल्पनिक रचना)
डॉ. योगेंद्र कुमार पांडेय