Chutki Didi - 18 in Hindi Fiction Stories by Madhukant books and stories PDF | छुटकी दीदी - 18

Featured Books
Categories
Share

छुटकी दीदी - 18

- 18 -

सोमवार को सलोनी स्कूल गई तो उसने निश्चय कर लिया कि स्कूल के बच्चों के माध्यम से वह प्रत्येक घर में कैंसर के प्रति जागरूकता फैलाने का प्रयास करेगी। वह कोई डॉक्टर तो नहीं जो किसी के कैंसर का उपचार कर सके, परन्तु वह एक शिक्षिका है। वह समाज में इतनी जागरूकता फैला सकती है कि कैंसर जड़ से समाप्त हो जाए। सलोनी ने स्कूल में कैंसर के विरूद्ध एक अभियान चलाने के लिए प्राचार्या जी से अनुमति माँगी तो उन्होंने सहर्ष स्वीकृति प्रदान कर दी।

प्रथम दिन सलोनी ने प्रार्थना सभा में सब बच्चों को कैंसर की भयानकता के विषय में समझाया, ‘प्यारे बच्चो! आज हम आपको एक ऐसी बीमारी के विषय में बताते हैं जो हमारे देश में तेज़ी से फैलती जा रही है। आज प्रत्येक दस व्यक्तियों में से एक व्यक्ति कैंसर से पीड़ित है। कैंसर मूलतः असामान्य कोशिकाओं की वृद्धि के कारण फैलता है। प्रारम्भिक अवस्था में इसका पता लगने पर आधुनिक युग में इसका उपचार आसानी से किया जा सकता है, परन्तु देरी होने पर नहीं। आरम्भ में इसका पता बहुत कम लोगों को लग पाता है। फिर भी आज हम आपको इस बीमारी के कुछ लक्षण बताते हैं, जिनके शरीर में होने से रोग की पहचान हो सकती है। … तेज़ी से शरीर का वजन घटना, थकान होना, शरीर पर गाँठों का बनना, लम्बे समय तक खांसी का रहना आदि कोई भी लक्षण शरीर में अनुभव हो तो उसकी तुरन्त जाँच करानी चाहिए। इस बीमारी का इलाज भी बहुत महँगा है, इसलिए घर के किसी भी सदस्य को यह बीमारी लग जाए तो शरीर और घर दोनों लुट जाते हैं। … अब आप सोचते होंगे, इस भयानक रोग से कैसे बचा जाए? सबसे पहले ध्यान रखें कि प्रारम्भ में इसका इलाज सम्भव है, बाद में नहीं। अब समझ लो कि जीवन में कैंसर से बचने के लिए क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिएँ। … शराब, धूम्रपान, सुपारी-गुटका आदि नशीली वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। अधिक तला हुआ या बाज़ार का फ़ास्ट फ़ूड खाने से बचें। पौष्टिक भोजन करें तथा नियमित व्यायाम को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएँ। शरीर में कहीं भी गाँठ बनने पर डॉक्टर को अवश्य दिखाएँ। प्रदूषण वाले वातावरण में ना रहें और हमेशा ख़ुश रहने की कोशिश करें। मोबाइल आज हमारी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गया है, लेकिन जहाँ तक सम्भव हो, इसे अपने शरीर से दूर रखें। वर्ष में एक बार डॉक्टर से शरीर की जाँच अवश्य कराएँ। … यदि कोई घाव हो गया हो और ठीक ना हो रहा हो, उल्टी में खून के धब्बे आएँ तो डॉक्टर से सलाह लेने में देरी ना करें। … प्यारे बच्चो! आज पहले दिन कैंसर के विरूद्ध अभियान का आरम्भ हुआ है। आपने इसकी चर्चा अपने घरों में भी करनी है। कल हम इसकी जागरूकता फैलाने के लिए भाषण प्रतियोगिता, स्लोगन प्रतियोगिता, चित्रकला प्रतियोगिता, वाद-विवाद प्रतियोगिता तथा जागरूकता रैली पर चर्चा करेंगे। … हमारे स्कूल का प्रत्येक बालक इस भयंकर रोग को जड़ से उखाड़ फेंकने के युद्ध में सजग सैनिक की भूमिका अदा करेगा।… धन्यवाद।

सारा काम समाप्त होने के बाद ज्योत्सना सलोनी के कमरे में आई, ‘बेटी, अब तेरी तबीयत कैसी है? तू पहले से अधिक भागदौड़ करने लगी है।’

‘माँ, तबीयत तो ठीक लग रही है और हम सेवा-कार्यों में भागदौड़ इसलिए कर रहे हैं कि इस बीमारी से ध्यान हटा रहे। सच में, किसी रोगी की सेवा करने से बहुत सुख मिलता है, माँ।’

‘सलोनी, सीताराम भाई ने पहले भी रिश्ते की बात चलाई थी, आज उसका फिर फ़ोन आया था। बेटी, मैं तो कहती हूँ कि तुझे भी अपना घर बसा लेना चाहिए।’

‘माँ, आपको तो मालूम है कि यह कैंसर की बीमारी कभी भी दुबारा उठ सकती है। फिर अभी तो हमारा उपचार चल रहा है। जब तक अंतिम रिपोर्ट सौ प्रतिशत ठीक ना आ जाए, तब तक हम शादी के बारे में सोच भी नहीं सकते। और सीताराम मामा जी को तो मना ही कर दो। पहले एकदम ठीक हो जाने दो, फिर विचार करेंगे।’

‘एक सलाह और करनी है तुमसे!’

‘कहो माँ।’

‘अगले मास तुम्हारी नानी की छमाही है। सोच रही हूँ कि छमाही वाले दिन ही बरसौदी की पूजा भी साथ ही करवा दें। बार-बार लोगों को एकत्रित करना बहुत झंझट-सा लगता है और फिर तेरी तबीयत भी ठीक नहीं रहती।’

‘बात तो तुम्हारी ठीक है माँ, परन्तु हम एक बात और सोच रहे थे, क्यों ना हम नानी की छमाही पर बरसौदी स्वामी जी के आश्रम में मनाएँ? सबके लिए प्रसाद वहाँ बन जाएगा, वहीं पंडिताइन को भोजन कराकर दान-दक्षिणा दे देंगे।’

‘सलोनी, दो-चार रिश्तेदार भी आएँगे। अपने घर को छोड़कर आश्रम में करेंगे तो क्या यह अच्छा लगेगा?’

‘अच्छा लगने ना लगने की तो कोई विशेष बात नहीं। देखो माँ, नानाजी का स्वर्गवास कैंसर से हुआ, इसलिए नानाजी की अर्जित सम्पत्ति का कुछ हिस्सा हम कैंसर के रोगियों पर खर्च कर दें तो नानी जी की आत्मा को शान्ति मिलेगी।’

‘बात तो तेरी ठीक लगती है, परन्तु लोग क्या कहेंगे?’

‘देखो माँ, जब हम लीक से हटकर कोई काम करते हैं तो एकदम किसी को अच्छा नहीं लगता बल्कि विरोध भी होता है, परन्तु अच्छे काम करने के लिए किसी-ना-किसी को तो उत्साह दिखाना ही पड़ता है। बाद में वह एक परम्परा बन जाती है।’

‘लेकिन वहाँ करेंगे क्या?’

‘रोगियों के लिए कमरा बनवाया जा सकता है, हॉस्पिटल के लिए आवश्यक सामान ख़रीदा जा सकता है, रोगियों के मनोरंजन के लिए टीवी की व्यवस्था तथा खेल-खिलौने दिए जा सकते हैं। पहले हमें अपना खर्च करने का बजट स्वामी जी को बताकर उन्हीं से सलाह लेनी पड़ेगी।’

‘सलोनी, तुम्हारी नानी के पचास लाख रुपए जमा हैं। यदि उनके आधे खर्च कर दिए जाएँ तो कोई हर्ज नहीं है, बाक़ी तुम बताओ।’

‘ठीक है माँ। हम पच्चीस लाख रुपए का बजट स्वामी जी को कह दें, फिर चार-पाँच अधिक भी लग जाएँगे तो हमें कोई दिक़्क़त नहीं।’

‘शनिवार को तुमने आश्रम में जाना ही है। तब तक भाग्या से भी सलाह कर लेंगे और मैं भी तुम्हारे साथ चल पड़ूँगी।’

निश्चिंत होकर माँ कमरे से बाहर आ गई।

सुबह माँ मन्दिर में गई तो उन्होंने पंडित जी से भी नानी की छमाही की चर्चा कर ली। पंडित जी ने बताया कि उनकी स्मृति में दान-पुण्य तो आप कहीं भी करो, परन्तु छमाही का कार्य तो उनके स्थान पर ही होना चाहिए।

घर आकर जब माँ ने यह बात सलोनी को बताई तो उसे भी ठीक लगी। सुबह नानी की स्मृति में पंडिताइन को घर पर भोजन कराकर, दान-दक्षिणा का सामान दिया जाएगा। उसके बाद सब आश्रम में जाकर दान की राशि स्वामी जी को भेंट करेंगे।

‘चर्चा करने से कई बार अच्छा सुझाव मिल जाता है,’ कहते हुए माँ रसोई घर में सलोनी के लिए दूध गर्म करने तथा लंच पैक करने के लिए चली गई।

…….

शनिवार को सलोनी आश्रम गई तो इस बार उसकी गाड़ी कैंसर रोगियों के लिए एक दर्जन कैरम बोर्ड, चौपड़, लूडो, फ्लाइंग डिस्क आदि सामान से गाड़ी लदी हुई थी। खेलने का सामान देखकर सभी के चेहरों पर मुस्कान खिल उठी। स्वामी जी ने इस उपक्रम पर ख़ुश होकर उसे भरपूर आशीर्वाद दिया।

गाड़ी से निकलवा कर सारा सामान तीन टेबलों पर रखवा दिया गया। सभी रोगियों के साथ स्वामी जी और सलोनी को खड़ा करके फ़ोटो खिंचवाया गया। सलोनी अपने साथ एक रजिस्टर लाई थी। प्रत्येक सामान का इंचार्ज बनाकर सामान उनको सौंप दिया गया। सभी रोगी सामान उठाकर अपने-अपने बेड पर चले गए तथा मस्ती में ताली, चुटकी बजाकर गाने लगे -

छुटकी दीदी           छुटकी दीदी         छुटकी दीदी रे

सलोनी दीदी          सलोनी दीदी        सलोनी दीदी रे

प्यारी दीदी             प्यारी दीदी          प्यारी दीदी रे

न्यारी दीदी             न्यारी दीदी           न्यारी दीदी रे

अच्छी दीदी            अच्छी दीदी          अच्छी दीदी रे

 

सभी महिला, पुरुष और बच्चे सलोनी और स्वामी जी को मध्य में खड़ा करके नाचने लगे। उनके चेहरे की चमक और मन का उल्लास देखकर ऐसा नहीं लग रहा था कि वे किसी हॉस्पिटल में कैंसर के रोगी हैं बल्कि ऐसा लग रहा था जैसे वे किसी उत्सव में एकत्रित होकर नाच रहे हों! उनके चेहरे पर इतनी प्रसन्नता देखकर सलोनी को बहुत संतोष हुआ।

……..

नानी की छमाही पर सारा परिवार एकत्रित हुआ। भाग्या भी अपने परिवार के साथ आई। कॉलोनी के मन्दिर में बनी धर्मशाला के अन्दर सब व्यवस्था हो गई। हलवाई ने भोजन बनाया। ईश्वर को भोग लगाया गया। एक पंडिताइन को भोजन खिलाकर दान-दक्षिणा देकर विदा किया गया। गाँव से पुरोहित जी आए थे, साथ में भाग्या थी। उन दोनों को शेष सभी उत्तरदायित्व सौंपकर सलोनी माँ के साथ स्वामी जी के आश्रम में चली गई। पूर्व में हुए विचार विमर्श के अनुसार आज सलोनी की माँ द्वारा अपनी माई की स्मृति में हॉस्पिटल में ‘शारदा देवी ब्लड बैंक’ निर्माण हेतु पच्चीस लाख रुपए का दान दिया जाना था। सलोनी तो नहीं चाहती थी कि इस विषय को इतना महत्त्व दिया जाए, लेकिन परम्पराओं के निर्वहन के लिए दान-दाताओं का सम्मान किया जाता है, सो स्वामी जी ने दोनों का सम्मान करने की योजना बना रखी थी।

जैसे ही स्वामी जी के पास समाचार आया कि डॉक्टर भाटिया हॉस्पिटल में पहुँच गए हैं, स्वामी जी अपने सभी भक्तों के साथ सलोनी और माँ को मध्य में लेकर हॉस्पिटल की ओर चल पड़े।

हॉस्पिटल के मुख्य द्वार को सजाया गया था। वहाँ के स्टाफ़ ने स्वामी जी के समक्ष माँ-बेटी को बुके देकर स्वागत किया। हॉस्पिटल के एक विंग में ब्लड बैंक बनाया गया था। अन्दर सब मशीनों की व्यवस्था हो गई थी। डॉक्टर भाटिया ने बताया, ‘स्वामी जी, ब्लड बैंक चालू होने में केवल लाइसेंस आने की प्रतीक्षा है, बाक़ी सब काम पूर्ण हो चुका है। लाइसेंस भी अगले सप्ताह तक आने की सम्भावना है।’

इस इमारत के मुख्य द्वार के ऊपर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था - ‘शारदा देवी ब्लड बैंक’। इसे पढ़कर नानी की स्मृति में सलोनी की आँखें नम हो गईं। डॉक्टर भाटिया तथा डॉक्टर भारती ने स्वामी जी तथा दोनों सम्माननीय अतिथियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया। स्वामी जी ने अपने हाथों से सलोनी के हाथ में कैंची देकर रिबन काटने को कहा।

आश्रम के पुजारियों द्वारा शंख ध्वनि, घड़ियाल के साथ मंत्रोच्चारण के बाद सलोनी ने माँ का हाथ पकड़कर रिबन काटा और इस प्रकार ‘शारदा देवी ब्लड बैंक’ का विधिवत उद्घाटन हुआ। ब्लड बैंक में प्रवेश किया तो एक ओर खड़े कैंसर रोगियों ने ताली बजाकर स्वागत गान आरम्भ कर दिया:

 

छुटकी दीदी           छुटकी दीदी         छुटकी दीदी रे

छुटकी की अम्मा     छुटकी की अम्मा    छुटकी की अम्मा रे

शारदा नानी           शारदा नानी          शारदा नानी रे

ख़ुशियाँ लाईं          ख़ुशियाँ लाईं        ख़ुशियाँ लाईं रे

ब्लड बैंक बनाया      ब्लड बैंक बनाया    ब्लड बैंक बनाया रे

अच्छी छुटकी          अच्छी अम्मा          अच्छी नानी रे

 

ब्लड बैंक के अन्दर सभी को ग्रुप में खड़ा करके स्वामी जी ने माँ-बेटी के हाथ से पच्चीस लाख का चेक लेकर डॉक्टर भाटिया को सौंप दिया। इतना मान-सम्मान देखकर सलोनी को लगा कि उन्होंने नानी की स्मृति में एक श्रेष्ठ कार्य तो किया ही है, नानी अवश्य ही स्वर्ग में प्रसन्न हो रही होगी।

ब्लड बैंक की इमारत के दाईं ओर पंडित जी हवन कर रहे थे। स्वामी जी ने मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञ की पूर्णाहुति करवाई। आरती के साथ सब कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। चलते समय सलोनी और माँ ने स्वामी जी के चरणस्पर्श किए और स्वामी जी ने माँ की झोली प्रसाद से भर दी।

*****