रवि एक रेजिडेंशियल कॉम्प्लेक्स में सिक्योरिटी गार्ड की ड्यूटी
करता है। यह एक बड़ी रहवासी सोसायटी है जो शहर के बाहरी हिस्से में है ।रवि तथा उसके
दो अन्य साथी 24 घंटे शिफ्टवाईज ड्यूटी पर रहते हैं। सुरक्षा गार्ड की ड्यूटी बड़ी
मुश्किल है। कौन जा रहा है और कौन आ रहा है,
इसकी एंट्री गेट पर रखे रजिस्टर में करनी होती है।
प्रायःरवि की ड्यूटी नाइट में ही लगती है।चाहे
सर्दी हो या गर्मी या फिर मूसलाधार बारिश , इन सुरक्षाकर्मियों को अपनी ड्यूटी करनी
होती है। कहने को तो वह सुरक्षा गार्ड है ।गश्त लगाता है,लेकिन सुरक्षा के नाम पर उसके
पास केवल एक लाठी और एक बड़ा टॉर्च है। इसी के सहारे वह ‘जागते रहो’ ‘जागते रहो’ चिल्लाते
हुए रात्रि में सोसायटी के हर कोने में पहुंचता है। इतना ही नहीं इसकी बाहरी चहारदीवारी
और पंप हाउस से लेकर पार्किंग एरिया सभी जगह उसकी दृष्टि बराबर बनी रहती है। कोई भी
खटका होने पर वह तुरंत दौड़ पड़ता है। उसके सामने तब बड़ी विचित्र स्थिति पैदा हो जाती
है जब कोई आगंतुक बिना एंट्री कराए ही काम्प्लेक्स के भीतर प्रवेश करने पर जोर देता
है। खासकर जब कार वाले आते हैं तो कुछ लोग गेट पर रुकने की जहमत नहीं उठाते और कभी
अगर उन्हें गेट बंद मिला तो कार के बाहर सिर निकालकर बस बैठे-बैठे चिल्लाने लगते हैं-
नहीं जानता है, मैं कौन हूं।
-मैं नंबर 7वाले कुमार साहब के यहां का गेस्ट हूँ।
-क्यों रे तू यहां नया आया है क्या।
-यह वर्दी क्या पहन ली,खुद को पुलिसवाला समझने लगा।
इन कड़वे वचनों को सुनकर कभी तो रवि झल्ला जाता है लेकिन वह इंट्री
करा कर और फोन नंबर लिखवा कर ही दम लेता है।
कभी किसी रात बात बढ़ जाती है और जब वह सुबह घर
लौटता है तो उसकी पत्नी रमेसरी कहती है-ऐसी नौकरी को छोड़ क्यों नहीं देते हो। इस पर
रवि अपनी पत्नी को समझाता है कि अभी इस शहर में दस हजार रुपए की नौकरी कौन देगा। रमेसरी
कहती है कि गांव की खेती बाड़ी क्या बुरी है, भले ही मजदूरी कर लें, लेकिन चार बातें
तो वहाँ नहीं सुननी पड़ेंगी। लेकिन जब वह अपने डेढ़ साल के बच्चे सोनू की पढ़ाई लिखाई
और सुनहरे भविष्य की दुहाई देता है तो रमेसरी के सारे तर्क खारिज हो जाते हैं। वह सोचती
है शहर में कम से कम रहने को एक कमरे का घर
भी तो मुफ्त मिल गया है।
रात को 1:30 बज रहे हैं । रवि गार्ड रूम में
कुर्सी पर बैठा हुआ सामने का दृश्य देख रहा है। कभी-कभी बीच-बीच में उसे झपकी भी आती
है लेकिन वह तुरंत चौकस होकर फिर खड़े होकर टहलने लगता है। अचानक सोसायटी के गेट पर
हॉर्न बजने की आवाज आई। रवि लपक कर गेट पर पहुंचा है।ओह तो चैतन्य साहब आज इतनी रात
लौटे हैं।वह तुरंत गेट खोलने लगा।सैल्यूट मार कर साहब का अभिवादन किया ।साहब की कार
धीरे-धीरे पार्किंग एरिया में जाकर रुकी। साहब सरकार के बड़े अधिकारी हैं और लगता है
किसी मीटिंग या दौरे से आ रहे हों। राजधानी से अपने शहर लौटते हुए रास्ते में देर रात
उन्होंने शॉपिंग की होगी, इसलिए उनकी डिक्की में आज सामान अधिक दिख रहा था। रवि इस
तरह की स्थिति में प्रत्येक व्यक्ति की सहायता करता है ।वह तुरंत सामानों को उठाने
लगा और फुर्ती से उसने उनके फ्लैट तक पहुंचा भी दिया।चैतन्य साहब ने धन्यवाद कहा और
फ्लैट के अंदर चले गए। थोड़ी देर में रवि भी सोसाइटी के अंदर गश्त लगाने लगा। ऐसा होते
होते रात को 2:30 बज गए।
अचानक इंटरकॉम की घंटी बजी। रवि ने भागकर रिसीवर उठाया। अब इतनी
रात को किसके घर में क्या मुसीबत आ गई। उन्हें एक बार संदेह हुआ कि चैतन्य साहब भी
इतनी देर रात को घर पहुंचे हैं। हो सकता है उन्हीं के यहां कुछ गड़बड़ होगी। इंटरकॉम
पर चैतन्य साहब ही थे। चैतन्य साहब बिना कुछ पूछे फोन पर ही चिल्लाने लगे।
-अरे तुमने जब डिक्की से सामान उतारा तो सामने सीट पर रखे मेरे छोटे
सूटकेस को भी तुम ही लाए थे ना।
-हां सर।
तो आगे की सीट पर तुम्हें मेरा बटुआ भी मिला होगा।
-नहीं सर।
अरे क्या नहीं सर। अभी आके बताता हूं।
रवि के फोन रखने के 5 मिनट के भीतर ही चैतन्य साहब
गार्ड रूम में आ धमके।आते ही कहने लगे सीधे-सीधे बताओ तुमने बटुआ कहां छुपा रखा है।
रवि-सर,मैं ऐसा क्यों करूंगा ।मैंने आपका बटुआ नहीं लिया। मैं तो
आपके साथ ही सामान उतार रहा था और फिर आपके सामने ही उठाकर आपके फ्लैट के दरवाजे तक
ले गया। चैतन्य साहब को रवि ने अपनी जेब पहले ही दिखा दी। उन्होंने गार्ड रूम की तलाशी
भी ले ली लेकिन बटुआ नहीं मिला। साहब ने हंड्रेड डायल कर पुलिस को बुला लिया।रवि देखता
रह गया। बार-बार साहब को समझाने की कोशिश करने लगा। वे सुनने को तैयार ही नहीं थे।
रवि ने कहा-सर एक बार फिर से देख लीजिए ।हो सकता है घर में ही कहीं नीचे गिर गया हो।
आप एक बार अपनी कार को भी अच्छे से देख लीजिए, लेकिन साहब नहीं माने कि वह तो देख चुके
हैं। अब तो पुलिस ही देखेगी और तुमको भी दिखाएगी।
रात को गश्त कर रही पुलिस की पीसीआर वैन जल्दी ही
सोसायटी के गेट पर पहुंच गई। चैतन्य साहब और रवि को इकट्ठे देख कर हवलदारजी ने पूछा
-तो आपने फोन किया था।
- जी हां
एक सिपाही ने गार्ड से पूछा -क्यों तुमने निकाला बटुआ?
- नहीं सर ऐसा मैं क्यों करूंगा।
- अरे यह क्या उत्तर हुआ।बटुआ निकालने के लिए क्या कोई वजह होगी?
- मैंने नहीं रखा सर।
- अच्छा अभी हम देख लेते हैं। हवलदार साहब ने तुरंत दूसरे सिपाही
से कहा -जल्दी से पहले गाड़ी चेक करो। सिपाही के पीछे पीछे सभी लोग साहब के कार की
ओर बढ़े।अनुभवी कांस्टेबल ने पहले कार की अच्छी तरह तलाशी ली। सीट के नीचे झांकने के
लिए वह घुटनों के बल जमीन पर झुका और अपना सिर सीट के नीचे घुमाते हुए उसने कुछ देखा ।एक हाथ भीतर डाला।
अगले ही पल उसके हाथ में साहब का बटुआ था। साहब को काटो तो खून नहीं ।रवि के चेहरे
पर संतोष झलक रहा था जैसे बहुत बड़ी विपत्ति से वह बाल-बाल बचा हो।
हवलदार जी ने सिपाही से बटुआ अपने हाथ में लेते
हुए साहब को घूरा-अब इस तरह रात को 2:30 बजे आप बिना कन्फर्म हुए कंट्रोल रूम को फोन
करने लगे। हम कहीं और जरूरी गश्त पर थे।साहब
ने झेंपते हुए कहा- सॉरी गलती हो गई।
हवलदार ने आगे झिड़कते हुए कहा-तो सुबह आकर कोतवाली से ले लीजिएगा
अपना बटुआ……. तभी वायरलेस पर कोई संदेश आया ।चैतन्य साहब का जवाब सुने बिना हवलदार
ने बटुआ उनकी ओर उछाला और सिपाही के साथ तेजी से अपने वाहन की ओर बढ़े।थोड़ी ही देर
में उनकी गाड़ी आंखों से ओझल हो गई। चैतन्य साहब रवि से नज़रें मिलाने का साहस नहीं
कर पा रहे थे। अरे यार गलती हो कहते हुए वे अपने फ्लैट की ओर आगे बढ़ गए।रवि सोचने
लगा,अगर कार के बदले बटुआ कहीं और गिरा होता तो शायद मैं अभी हवालात में होता।बरी हो
पाता तो शायद तब,जब मेरा घर तबाह हो चुका होता। ‘धन्य प्रभु बचा लिया आपने।‘