Bandhan Prem ke - 8 in Hindi Fiction Stories by Dr Yogendra Kumar Pandey books and stories PDF | बंधन प्रेम के - भाग 8

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बंधन प्रेम के - भाग 8

अध्याय 8

जिस रहस्य को शांभवी मेजर विक्रम को सुनाना चाहती थी, वे उसे ध्यान से सुन रहे हैं।

आगे उत्सुकता व्यक्त करते हुए मेजर विक्रम ने पूछा- तो शौर्य जी के पिता कैप्टन विजय का आगे क्या हुआ शांभवी?बाद के किस्सों में हम उनके बारे में बहुत कम सुन पाते हैं....

शांभवी -आगे की कहानी अद्भुत साहस और विजय की कहानी है मेजर साहब.... अपना सब कुछ खोकर भी कोई जंग कैसे जीतता है....

मेजर विक्रम ध्यान से सुनने लगे.....

(19)

कैप्टन विजय दो दिनों बाद घर लौटे।उन्होंने अपने आने की सूचना पहले ही दे दी थी।आर्मी की गाड़ी क्वार्टर तक छोड़ने के लिए आई ।उन्हें देखते ही शौर्य लहक उठा ।दौड़कर पिता के पास पहुंचा। विजय ने उसे अपनी गोद में उठा लिया और हवा में उछाल कर फिर लपक लिया। खुश होते हुए बच्चे ने कहा-

- पापा आप जल्दी क्यों नहीं लौटते? इतने दिन क्यों लगाते हो ?

- मेरे राजा बेटे, तुम तो जानते ही हो कि देश की हिफाजत के लिए हमें कई-कई दिन बॉर्डर पर रहना होता है। इधर अंदर के एरिया में भी आतंकवादियों को पकड़ने के लिए जब अभियान चलता है, यही स्थिति बनती है।

- मैं सब जानता हूं पापा! आप बहादुर हो और मातृभूमि की रक्षा कर रहे हो फिर भी, कम से कम एक फोन तो कर ही सकते हो ना।

विजय ने शौर्य सिंह को अपने कंधे पर बिठाते हुए कहा- बेटे हम लोगों के पर्सनल फोन तो पहले ही जमा हो जाते हैं ।अगर हम उन्हें ऑपरेशनल एरिया में ले जाएं तो शत्रुओं के द्वारा इंटरसेप्ट कर लिए जाने का डर है और फिर हमारी लोकेशन भी पता लग जाएगी।

-अब समझा पापा।

- बहुत अच्छे बेटा । परसों तुम्हारी मम्मी को पर्सनल नंबर से भी तब फोन कर पाया, जब अचानक किसी काम से मुझे फील्ड से हटके कुछ घंटे के लिए वापस कमांड आना पड़ा था और अनायास ही मुझे कमांडर साहब ने फोन उपलब्ध करा दिया था।

पिता के गले में बाँहें डालते हुए शौर्य सिंह ने कहा-

- बस बस पापा, अब मैं आपसे और डिटेल नहीं पूछूंगा,सब समझ गया।

शौर्य इस तरह की परिस्थितियों में बहुत दिनों के बाद अपने पापा को देखता था।सब कुछ जानने के बाद भी शिकायत करना न सिर्फ उसका हक था बल्कि यह उसकी बाल सुलभ इच्छाओं की अभिव्यक्ति भी होती थी। तभी दरवाजे पर खड़ी दीप्ति भी बाहर आ गई।तीनों हँसी खुशी के साथ बातें करते हुए अंदर लौटे।

इस सीमाई कस्बे के बाहरी इलाके में आर्मी का एरिया है।यह इलाका कड़ी सुरक्षा वाला है। आर्मी का कमांड कार्यालय और रिहायशी इलाका एक साथ है।इस पूरे एरिया को ऊंची चहारदीवारी से कवर किया गया है। इसके भी ऊपर कंटीले तार हैं,वाचिंग टावर है।बाहर बड़े से गेट पर चौबीसों घंटे आर्मी के जवान लोडेड रायफलों के साथ पहरा देते हैं।मुख्य द्वार से लगभग 100 मीटर पहले ही सभी गाड़ियां रोक दी जाती हैं और सघन जांच के बाद ही मुख्य द्वार तक पहुंचती हैं। पिछले महीने पास के एक कस्बे में आतंकवादियों ने आर्मी की ही वर्दियां पहनकर घुसपैठ करने की कोशिश की थी और वे दोनों आतंकवादी गेट पर ही मारे गए थे। तब से आर्मी की सारी यूनिटें हाई अलर्ट पर हैं और यहां तक कि आर्मी के लोगों को भी कई तरह की सुरक्षा जांच के बाद ही भीतर आने दिया जाता है।स्वयं सीओ साहब इसका पालन करते हैं। आर्मी एरिया अपने आप में एक छोटा शहर है,जहां आवश्यकता की वस्तुओं की दुकानों से लेकर अस्पताल, डाकघर,स्कूल और तमाम तरह की नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं। बच्चों के खेलने के लिए मिनी स्टेडियम, जिम और सुबह की सैर के लिए बहुत बड़ा मैदान सभी यहां उपलब्ध है। सामान्य दिनों में विजय, सिक्का सिंह और दीप्ति तीनों सुबह की सैर पर निकलते हैं और पूरे आर्मी एरिया का एक चक्कर लगा लेते हैं। उसके बाद जिम में जाकर कैप्टन विजय एक्सरसाइज करते हैं तो शौर्य सिंह और दीप्ति पास के पार्क में चले जाते हैं।यहां बच्चे और उनके माता-पिता अपने परिवार के साथ होते हैं। इस तरह एक अत्यंत खुशनुमा माहौल होता है।आर्मी का अनुशासन भी कड़ा होता है।लोगो में देशभक्ति की भावना कूट-कूट कर भरी होती है।आर्मी एरिया के अनूठे वातावरण में ही देशभक्ति, त्याग और उच्च आदर्शों की बातें कण-कण में बिखरी होती हैं।

स्वास्थ्य ठीक ना होने से दीप्ति घर पर है।विजय और शौर्य आज सुबह की सैर पर निकले हैं। शौर्य सिंह बड़ी उत्सुकता के साथ अपने पापा को स्कूल की बातें बता रहा है और विजय बड़े मनोयोग से उसे सुन रहे हैं।बात आर्मी,बॉर्डर,शत्रुओं और सेना पर

भी होती है। शौर्य सिंह पिता से पूछता है-

-पापा आप सबसे अधिक किससे प्यार करते हैं?

- तुमसे और किससे?

- और मम्मी से?

- हां पर तुम्हारे बाद ही।

- और हमारे भारत देश से?

- सबसे ज्यादा, सबसे बढ़कर।

- क्या मुझसे और अपने परिवार के प्यार से भी बढ़कर पापा?

-हाँ शौर्य,वतन पहले। उसके बाद ही और कुछ।

- वाह ! आप कितने अच्छे हो पापा।मैंने भी स्कूल में पढ़ा है कि मातृभूमि सबसे बढ़कर होती है।

बातों का सिलसिला चल रहा है और पिता पुत्र के कदम भी धीरे-धीरे बढ़ रहे हैं ।शौर्य सिंह पिता से अनेक बातें पूछता है और अनायास ही उसके जीवन की भावी दिशा और लक्ष्य तय होने लगते हैं।

(20)

शौर्य सिंह है तो बॉर्डर में लेकिन कई साल पहले की आर्मी एरिया की यह सब बातें उसके दिमाग में जैसे आज भी ताजा हैं……... पास में हल्की आहट होने से शौर्य सिंह की तंद्रा टूटती है। तत्काल उसका एक हाथ राइफल में जाता है और वह दबे पांव आहट की दिशा में आगे बढ़ता है।पास पहुंचकर उसे संतोष होता है कि खतरे वाली कोई बात नहीं है।वहां एक हिरण था । शौर्य सिंह के वहाँ पहुंचने के साथ ही वह कुलांचे भरता हुआ अदृश्य हो गया। आसपास के इलाके का एक और चक्कर लगाकर शौर्य सिंह फिर एक ऊंचाई वाली जगह पर बैठ गया।अपनी दृष्टि उसने उस नाले पर बराबर बनाए रखी है। शाम होने में अभी वक्त है फिर भी घने पेड़ों के कारण सूर्य की रोशनी छन छन कर ही नीचे आती है।दूर उसे अपनी कल्पना में एक धब्बा दिखाई दिया और वह धब्बे एक से दो हो गए और फिर वही बरसों पुराना दृश्य जिसमें शौर्य सिंह और उसके पिता विजय आर्मी एरिया में सुबह चहलकदमी कर रहे हैं।

शौर्य सिंह पिता से बराबर प्रश्न पूछ रहा है:-

-पापा, आप तो लड़ाई के मैदान में जाते हैं।वहाँ फायरिंग होती है। गोली लगती है और सैनिक घायल होता है। और पापा जब किसी की मौत होती है तो मरने वाले को बहुत कष्ट होता होगा ना?

-हाँ बेटे,लेकिन बहादुर जवान इसकी परवाह नहीं करते।

- मैं जानता हूं पापा लेकिन उनके मरने के बाद उनके परिवार का क्या होता है? उसकी देखभाल कौन करता है?

अपनी आंखों में आ रहे आंसू को बमुश्किल रोकते हुए विजय ने कहा:-

- बेटा उनकी देखभाल देश करता है।सेना करती है और देश की जनता करती है और फिर मातृभूमि के लिए शहीद होने का सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है।

-आप ठीक कह रहे हैं पापा।

- और सोचो बेटा अगर सैनिक मरने से डरने लगे तो वह क्या बंदूक उठाएगा? और शत्रुओं पर क्या फायरिंग करेगा?वह ऐन मौके पर मौत के डर से भाग खड़ा होगा तो सेना में उसके आने का मतलब ही क्या?

-मैं समझ गया पापा। देश की रक्षा के लिए अगर सैनिक अपने प्राणों को दे दे तो भी कम है और देश सबसे ऊपर है, अपने परिवार से भी।

शौर्य सिंह के विचार सुनकर विजय को भी गर्व की अनुभूति हुई।बेटे की पीठ ठोंकते हुए उन्होंने शाबाशी दी।

(21)

अब विजय और शौर्य सिंह आर्मी एरिया का लगभग एक चक्कर पूरा लगा चुके थे…….. लेकिन यह क्या?आखिरी छोर पर बने छोटे से सूखे नाले के पास उन्होंने कुछ हलचल देखी। पानी निकासी की सूखी नाली के पास एक व्यक्ति झुका हुआ था और हाथों को सहारा देकर एक दूसरे व्यक्ति को खींचकर भीतर लाने की कोशिश कर रहा था। अंदर आ चुके व्यक्ति की पीठ पर गन देखते ही कैप्टन विजय समझ गए कि वे आतंकवादी हैं और इस अप्रत्याशित जगह से अंदर घुसने का प्रयास कर रहे हैं। तुरंत उनका माथा ठनका। शौर्य सिंह की ओर अपना फोन उछालते हुए और नाले की ओर भागते हुए उन्होंने उससे कहा-

-वापस भागो और दौड़ते हुए तुरंत कमांड ऑफिस को फोन करो कि आतंकवादी इस एरिया में घुसने की कोशिश कर रहे हैं ।वहां का नंबर डायल किए गए नंबरों की लिस्ट में सबसे ऊपर ही है। मैंने सुबह ही वहां बात की थी।

शौर्य सिंह हतप्रभ था लेकिन उसने साहस का परिचय दिया।उसने भागते हुए एक बार मुड़कर पिता की ओर देखा और फोन पर कमांड ऑफिस डायल करने लगा।

इधर विजय ने सोचा न जाने आतंकी कितनी संख्या में हों। अगर ये अंदर घुस गए तो इस आर्मी एरिया में बड़ी तबाही मचा सकते हैं।उस व्यक्ति का ध्यान अपने साथी को सहारा देकर भीतर लाने पर था ।आव देखा न ताव ,पास पहुंचकर विजय ने ललकार कर उस पर छलांग लगा दी और उसे अपने काबू में कर लिया। गर्दन पर अपने मजबूत प्रहार से ही निहत्थे विजय ने उस आतंकवादी को वहीं ढेर कर दिया।इससे पहले कि विजय आतंकवादी की पीठ से राइफल निकाल पाता, तेजी से सरककर बाहर निकल चुके आतंकी ने विजय पर ओपन फायर कर दिया। गोलियां सीने पर लगीं और मातृभूमि की रक्षा के लिए कैप्टन विजय वहीं शहीद हो गए। तेजी से दौड़ते बालक शौर्य सिंह ने कमांड ऑफिस फोन कर दिया और पलक झपकते ही पहले से हाई अलर्ट पर चल रहे सेना के जवान मिनटों में उस एरिया में पहुंचे। सभी आतंकवादी बमुश्किल अभी नाले से होकर अंदर आ पाए थे।वे अभी तक खुले में थे और भागकर कहीं छिपने की कोशिश कर रहे थे। सेना के जवानों ने तीन से चार मिनटों में चारों आतंकवादियों को मार डाला। मरने से पहले विजय एक को पहले ही ठिकाने लगा चुके थे।सभी आतंकवादी मौत के घाट उतार दिए गए थे।


(क्रमशः)


योगेंद्र