Towards the Light - Memoirs in Hindi Motivational Stories by Pranava Bharti books and stories PDF | उजाले की ओर –संस्मरण

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उजाले की ओर –संस्मरण

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स्नेहिल नमस्कार मित्रों

ये लेखन भी है बड़ी मज़ेदार चीज़ ! वैसे लेखन एक चीज़ नहीं कला है जो न जाने कहाँ कहाँ से से लोगों को मिलवा देती है | यानि आपका लेखन कुछ लोगों के बीच पहुंचा नहीं कि आपकी बिरादरी के कई लोग आपसे जुड़ गए | मेरे साथ तो बहुत हुआ है ऐसा और न जाने कब से हो रहा है और आज भी हो ही जाता है | यह अक़्सर किसी अनजान जगह पर बहुत सहायता भी करता है |

आज से शायद 27/28 वर्ष पूर्व मैं अपने देवर के हृदय की सर्जरी करवाने मद्रास गई थी | वहाँ कुछ साहित्य में रुचि रखने वाले लोग मुझसे मिलने आए | उन्होंने मेरी कोई पुस्तक पढ़ी थी या किसी पत्रिका में कहीं मुझे पढ़ा था और न जाने कैसे उन्हें पता चला था कि मैं मद्रास पहुँच रही हूँ | युवा वर्ग के उन 3/4 लोगों से मेरी मित्रता पहली मुलाक़ात में ही हो गई | हम एक मद्रासी फ़िल्म एक्टर के नीचे के भाग में ठहरे हुए थे ,ऊपर उनका निवास था | उनकी पत्नी 'अपोलो अस्पताल' में पी. आर. ओ थीं | उन्होंने अपनी बड़ी सी कोठी के नीचे के भाग में कुछ दो-दो-कमरों के सूट्स बनवा रखे थे जिसमें इलाज़ करवाने वाले लोगों के रिश्तेदार ठहरते थे | सब चीज़ों की सुविधा थी | कमरों के अलावा बड़ा सा सिटिंग-रूम भी था जिसमें टी.वी भी था |

अधिकतर वह बड़ा कमरा ख़ाली ही पड़ा रहता किन्तु जबसे मेरे युवा मित्र वहाँ आने लगे ,हमारी गोष्ठियाँ जमने लगीं और वह बड़ा हॉल गुलज़ार रहने लगा | नाम तो मुझे उन एक्टर का याद नहीं है किन्तु श्याम वर्ण का सुदर्शन युवा एक्टर भी कभी-कभी हमारी गोष्ठी में शामिल हो जाता | हिंदी बहुत अच्छी तरह न बोल पाने पर भी उसे कविताओं में आनंद आता |

कुछ ऐसा हुआ कि हम लोगों को लगभग डेढ़ माह मद्रास रहना पड़ा | मरीज के साथ हम छह लोग गए थे | सब हँसते थे जैसे पूरी बारात एक बीमार के साथ आई हो| मऱीज़ के पास कमरे में केवल एक बंदे को रहने की इज़ाज़त थी सो बारी-बारी से एक मरीज़ के कमरे में बैठा या तो गुमसुम बैठा कोई किताब पढ़ता रहता अगर मरीज़ की इच्छा होती तो टी.वी देखता | तीन लोग फ़ालतू थे जो या तो अस्पताल के आसपास के बाज़ारों में भटकते या कोई दर्शनीय स्थल पर अनचाही पिकनिक जैसी मनाने चले जाते |

एक मैं ही थी जिसे अपनी पसंद की कंपनी मिल गई थी | ये युवा मित्र लगभग हर रोज़ ही उस सूट पर आ जाते जहाँ हम ठहरे हुए थे और हॉल में हमारी गोष्ठी जम जाती | इसलिए मैं मरीज़ के पास अपनी बारी पर जाती थी इसके अलावा मैं कहीं न जाकर अपने नए मित्रों के साथ रचना धर्मिता में व्यस्त रहती | उन युवा मित्रों से बड़ी ऊर्जा मिलती थी |

एक दिन जब मेरे वे मित्र आए मैं कुछ उदास सी थी | मन ही नहीं लग रहा था | वो लोग भी हर दिन कुछ नया लिखकर लाने की कोशिश करते वैसे मेरे लिए तो उनका पहले का लिखा हुआ सब नया ही था और उनके लिए भी मेरा पुराना लिखा हुआ काफ़ी कुछ नया ही था | उस दिन मुझे उदास देखकर उन्होंने पूछा ;

"दीदी ! क्या बात है ? सब ठीक तो है ----?"

पहले सोचा उन्हें क्या बताऊँ लेकिन वे लोग माने ही नहीं | उनके बार-बार पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि मेरे देवर प्रेम भैया के ऑपरेशन की तारीख़ फ़िक्स हो गई है और हमें उनके लिए छह बॉटल ख़ून का इंतज़ाम करना है |

"तो ,क्या हुआ ---हम सब हैं न !" उन्होंने बेबाक़ी से कहा |

"आप बताइए ,कब देना है ब्लड ---हम आ जाएँगे ---"

उस अनजान शहर में उन मित्रों का इस प्रकार कहना ही मेरी शक्ति दुगुनी कर गया | वैसे तो मैं ब्लड-डोनर थी लेकिन मैं एक ही बॉटल खून दे सकती थी | मेरी नन्द का बेटा भी हमारे साथ गया था लेकिन मेरे पति व भांजा दोनों डायबिटिक थे | छोटी नन्द ,नन्दोई व मरीज़ की पत्नी भी ख़ून देने को तैयार थे फिर भी पता नहीं था कितनी ज़रुरत पड़ जाए ? वैसे छह बॉटल तो तैयार रखनी ही थीं |

अगले दिन हम सब समय पर अस्पताल खून देने पहुँचे | पहले हम घर वालों के ब्लड टैस्ट हुए | मुझे तो ब्लड डोनेट करने की आदत थी | मेरे ब्लड देने में दस मिनट भी नहीं लगे होंगे | हम एक ही कमरे में चार पलंगों पर थे जिनके हाथ में सूईं लगी हुई थीं | मैं ब्लड देकर फटाफट उठ खड़ी हुई | बाहर कॉफ़ी व बिस्किट्स इंतज़ार कर रहे थे | बाक़ी तीन में से दो की नब्ज़ ही नहीं मिलीं | वैसे भी वे बुरी तरह काँप रहीं थीं | केवल छोटी नन्द के पति ब्लड दे सके | उन दोनों को अफ़सोस हो रहा था ,खून न दे पाने का |

अब बारी आई उन नए मित्रों की | उनमें से तीन के ब्लड ले लिए गए लेकिन जो सबसे उत्साही लड़का था ,उसका रक्तचाप उच्च हो जाने के कारण डॉक्टर ने उसका खून लेने से मना कर दिया | वह बहुत उदास सा हो गया | उसने डॉक्टर से कहा ;

"मैं पंद्रह मिनिट, में आता हूँ सर ---" उसने किसी से और कुछ नहीं कहा और वहाँ से जल्दी से चला गया | हमें लगा वो किसी को बुलाने गया होगा |

हम अभी कॉफ़ी -बिस्किट का भोग ही लगा रहे थे कि वह उपस्थित हो गया | हम उससे कुछ पूछते कहाँ से ,वह तो सीधे डॉक्टर के कमरे में पहुँच गया था | हमने वहाँ जाकर देखा, डॉक्टर यंत्र से उसका रक्तचाप नाप रहे थे | पाँच मिनिट के अंदर वह पलंग पर लेटा मुसकुराते हुए अपना खून दे रहा था|

आश्चर्य हुआ कि इतनी देर में क्या जादू की छड़ी घूम गई ?

बाद में पता चल कि 10/15 मिनिट में उसने योग करके अपने रक्तचाप को ठीक कर लिया था |

यह बात बड़ी महत्वपूर्ण थी कि इतनी देर में योग से रक्तचाप को ठीक किया जा सकता है | यह ऐसी घटना हुई थी जिसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता और न ही कभी उन युवा मित्रों के उपकार से उऋण हुआ जा सकता है |

 

डॉ .प्रणव भारती