नंदिनी के गर्भवती होने की ख़बर सुनते ही पूरे परिवार में खुशी की लहर फैल गई किंतु नंदिनी के चेहरे पर खुशी कम और चिंता की लकीरें ज्यादा दिखाई दे रही थीं। श्यामा नंदिनी की दोस्त भी उसी समय नंदिनी से मिलने आई थी। गर्भवती होने की बात सुनते ही श्यामा भी खुशी से झूम उठी और नंदिनी को गले से लगा लिया पर कुछ ही पलों में श्यामा ने महसूस किया कि नंदिनी ख़ुश नहीं है।
"क्या हुआ नंदिनी ? तुम क्यों उदास हो, इतनी खुशी की ख़बर है। क्या तुम्हारी इच्छा नहीं थी अभी गर्भधारण करने की? यह सब यूं ही क्या बिना योजना के हो गया ?"
"नहीं नहीं श्यामा ऐसी बात नहीं है, गर्भधारण तो सोच समझकर ही किया है लेकिन मुझे डर लग रहा है कहीं मुझे बेटी ना हो जाए।"
"कैसी बात कर रही हो नंदिनी आज के इस ज़माने में तुम ऐसी विचारधारा रखती हो?"
श्यामा की बात ख़त्म होने से पहले ही नंदिनी ने उसके मुंह पर अपना हाथ रख कर उसे चुप कर दिया।
"नहीं श्यामा मैं बेटियों से बहुत ज्यादा प्यार करती हूं। हम भी तो बेटी ही है ना किंतु आज हमारा समाज ख़ूँख़ार भेडियों का जंगल बन चुका है, जहां बेटी का जन्म होते ही एक डर भी जन्म ले लेता है, जो हर पल हमारे सीने में सांस की लय के साथ चलता रहता है। बेटी घर से बाहर गई, तो सही सलामत वापस आएगी या नहीं, कोई नहीं जानता ? हम अपनी बेटियों को जूडो कराटे सिखा भी दें तो भी क्या ? चार-चार गुंडों से वह अकेले कैसे जीत पाएगी। बस इसीलिए डरती हूं कि भगवान कृपया मुझे बेटी मत देना।"
देखते ही देखते नौ महीने बीत गए और भगवान ने नंदिनी की विनती का मान भी रख लिया, नंदिनी ने एक बेटे को जन्म दिया। वह अब बहुत ही ख़ुश थी
आलीशान बंगला, नौकर चाकर, गाड़ी, धन दौलत से भरपूर परिवार था नंदिनी का, घर में चारों तरफ़ सुख ही सुख, खुशी ही खुशी बिखरी पड़ी थी। ठाट बाट से पल रहा था नंदिनी का बेटा रोहन। वक़्त बीतते भला वक़्त कहां लगता है, रोहन 5 वर्ष का हो गया और स्कूल जाने लगा। स्कूल में भी वह सबका प्यारा था।
रोज़ दोपहर को नंदिनी बस का इंतज़ार करते हुए नीचे खड़ी रहती थी और रोहन के आते ही उसे गोद में उठाकर उसकी प्यारी-प्यारी बातें सुनती।
आज स्कूल बस से रोहन वापस नहीं आया तो नंदिनी तथा परिवार में सब चिंतित हो गए। रोहन को ढूंढने की हर मुमकिन कोशिश असफल हो रही थी। पुलिस भी जान लगा कर कोशिश कर रही थी, किंतु रोहन का कहीं पता नहीं चल रहा था। परिवार में सभी अनिष्ट की आशंका से कांप रहे थे, मन में तरह-तरह के डरावने ख़्याल मंडरा रहे थे।
दो दिन के उपरांत पुलिस को रोहन की लाश विकृत अवस्था में मिली, जिसे वह नंदिनी के घर ले आए और परिवार को सौंप दिया। रोहन के शरीर पर चोट के अनगिनत निशान थे। उसका शरीर निर्वस्त्र था, मासूम नन्हा रोहन किसी हैवान की हैवानियत का शिकार हो चुका था। नन्ही नासमझ उम्र में वह दुनिया का घिनौना, दरिंदगी से भरा चेहरा देख चुका था।
रोहन को इस हालत में देखकर नंदिनी खून के आंसू रो रही थी। पूरा परिवार दुख के सागर में डूब रहा था।
तभी श्यामा भी वहां आई और नंदिनी को गले से लगा लिया, सांत्वना के दो शब्द भी वह कह नहीं पा रही थी। वह स्वयं भी ऐसा दृश्य देखकर कांप रही थी।
श्यामा के गले लगते ही नंदिनी फूट-फूट कर रो पड़ी और उससे कहने लगी, "श्यामा मैंने गलती कर दी भगवान से बेटा मांग कर। मुझे तो भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए थी कि मुझे निःसंतान ही रखना। मुझे नहीं पता था कि इस समाज में अब कोई भी सुरक्षित नहीं है।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक