Us Ghar ka Darwaja in Hindi Fiction Stories by Girish Pankaj books and stories PDF | उस घर का दरवाज़ा

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उस घर का दरवाज़ा

गिरीश पंकज

शुचिता शाम को जिम से लौटी, तो उसके चेहरे की अतिरिक्त प्रसन्नता को देखकर वन्दना ने पूछ लिया, "बहू, आज तो तुम बहुत खुश नजर आ रही हो. लगता है, वजन कुछ कम हो रहा है?"

शुचिता ने मुस्कराते हुए ज़वाब दिया, " हाँ मम्मा, दो-तीन सौ ग्राम तो कम हुआ है. धीरे-धीरे और भी कम होगा. जिम का हमारा ट्रेनर राहुलकुमार मुझ पर बहुत ध्यान दे रहा है. वह कहता है कि दो महीने में कम-से -कम चार किलो वजन तो कम कर ही देगा."

वंदना ने कहा, ''यह तो बड़ी खुशी की बात है. वजन कम होने से तुम और भी सुंदर दिखने लगोगी."

शुचिता ने तपाक से कहा, " राहुल भी यही कह रहा था. वह तो मुझ पर फिदा है. कहता है, तुम कितनी गोरी हो. कितनी सुंदर हो. तुमको तो फिल्मों में काम करना चहिए. बड़ा ही मजाकिया है."

वंदना अब गम्भीर हो गयी. बोली, '' बेटा, पुरुषों के ऐसे जुमलों पर बहुत ध्यान देने की जरूरत नहीं है. चालाक पुरुष औरतों को इसी तरह चढ़ाकर अपनी ओर करने की कोशिश करते हैं."

सासू माँ की बात सुनकर वन्दना का चेहरा लटक गया. चेहरे पर हल्की-सी की नाराजगी के भाव उभरे.

वह गम्भीर हो कर बोली, ''तो क्या मैं सुंदर नहीं हूं? क्या राहुल मेरी झूठी तारीफ कर रहा था?''

वन्दना ने कहा, "तारीफ झूठी हो या सच्ची, उस पर बहुत अधिक ध्यान देने की जरूरत नहीं होती. खासकर उन महिलाओं को बहुत सावधान रहना चाहिए जो शादीशुदा हैं. परपुरुष की टिप्पणी के पीछे उसकी मंशा क्या है, यह अच्छे-से समझ लेना चाहिए. खैर, कोई बात नहीं. तुम को समझाने की जरूरत नहीं. तुम खुद पढ़ी-लिखी-समझदार लड़की हो. दुनिया का चरित्र समझती हो. अच्छा, चल, तू फटाफट स्नान कर ले. तेरे लिए गरमा-गरम चाय बना देती हूँ."

इतना बोल कर वंदना रसोई घर में घुस गयी और शुचिता मन-ही- मन बड़बड़ाते हुए नहाने चली गयी.वह सोच रही थी कि सासू माँ मेरी सुंदरता से जलती है इसीलिए तो उसको राहुल की तारीफ इतनी बुरी लगी. शिट!! बैकवर्ड लेडी."

शुचिता नहा-धोकर बाहर निकली, तो पाँच मिनट के अंदर उसके लिए चाय हाजिर थी. वंदना ने कुछ कहा नहीं, बस शुचिता के चेहरे को गौर से देखती रही. उसने महसूस किया कि शुचिता जब तक घर पर रहती है, तनावग्रस्त रहती है. मगर जिम से आने के बाद प्रफुल्लित नजर आती है. एक औरत दूसरे औरत की मनोदशा को अच्छे-से समझ सकती है. वन्दना भी शुचिता के बदलाव को समझ रही थी और अपने बेटे अभय को लेकर चिंतित थी. कहीं ऐसा ना हो कि शुचिता उसके बेटे को इग्नोर करने लगे और धीरे-धीरे जिम ट्रेनर राहुल की ओर आकर्षित होने लगे. वंदना का अनुमान गलत नहीं था. देर रात को राहुल के कमरे से जोर-जोर की आवाजें वंदना को सुनाई पड़ने लगी थीं. यह आपस में लड़ने की आवाज़ थी. बहुत कुछ साफ तो सुनाई नहीं देता था लेकिन यह समझ में आ रहा था कि दोनों आपस में लड़ रहे हैं.

उस दिन जब सुबह अभय उठा, तो बहुत गंभीर था. नाश्ते की टेबल पर पड़े अखबार को देख रहा था. ऐसा पहली बार हुआ, जब पास आ कर बैठी माँ को भी उसने नहीं देखा.

माँ ने उसके सिर पर हाथ रखते हुए बड़े प्रेम से पूछा, "क्या बात है, तू आज अपनी मां को भी नहीं देख रहा है ?"

अभय को अपनी भूल का अहसास हुआ. उस ने मुस्कुराते हुए कहा, '' सॉरी ममा, पता नहीं आज यह कैसे हो गया. शायद अखबार देखने के चक्कर में तुझको विश करना भूल गया. और सुनाओ, कैसी हो ? सब ठीक-ठाक?"

वंदना ने कहा, " सब ठीक-ठाक है, बेटे. बस, तुम दोनों भी ठीक-ठाक रहो. यही दुआ ईश्वर से करती हूँ. बहू अब तक कमरे में क्या कर रही है ?"

अभय ने मुस्कुराते हुए कहा, " अभी तक तो सो रही है. देखो, जाग जाय तो हम पर बड़ी मेहरबानी हो."

इतना बोल कर अभय जोर-से हँस पड़ा. वंदना हम को भी हँसी आ गयी.

वह बोली, ''हमारे यहाँ तो कहा गया है, जब जागे तभी सवेरा."

इतना बोल कर वन्दना उठकर जाने लगी, तो अभय ने कहा, "माँ, मुझे बड़ा बुरा लगता है, जब इस उम्र में भी तुमको रसोई में खटना पड़ता है. कितनी बार मैंने शुचिता से कहा कि सुबह जल्दी उठकर खाना बनाने में माँ का हाथ बंटाया करो लेकिन वह मानती ही नहीं. कहती है, खाना बनाने में मेरी कोई रुचि नहीं. ले- देकर वह कभी-कभार चाय बना लेती है. रोज़ देर से ही उठती है. तब तक तो तुम ही चाय बना लेती हो."

माँ ने कहा, "कोई बात नहीं. उसे कुछ तो बनाना आता है. धीरे-धीरे सीख जाएगी."

अभय ने कहा, ''शादी के दो साल हो गये. अब तक नहीं सीख पायी, तब और क्या सीख लेगी?"

अभय ने हँसते हुए कहा, '' सब तेरी गलती है, ममा. अगर शुरू से तू उसे खाना बनाने के लिये प्रेरित करती, तो वह जरूर बनाती."

वंदना बोली, '' ठीक कह रहा है. गलती मेरी भी थी. सोचती थी कि नयी बहू को क्यों तकलीफ दूँ. बस, मैं ही खाना बनाती रही.उसे भी लगा होगा, चलो, आराम हो गया. मुझे शुरू में ही साफ-साफ कह देना था, चल बहू, खाना बनाकर खिला. देखूँ, तेरे हाथों में कितना रस है. लेकिन कुछ कहा नहीं. यही सोचती रही कि बहू एक दिन खाना बनाने लगेगी. नतीजा यह हुआ कि अब शुचिता को खाना बनाना ही अच्छा नहीं लगता. खैर, अभी तो मुझ में काफी ऊर्जा बची है. खाना मैं बना लेती हूं. कामवाली बाई आकर कर झाड़ू-पोछा कर देती है. बर्तन मांज देती है, तो मेरा बोझ हल्का हो जाता है.

तू चिंता मत कर. मैं सब कुछ देख लूँगी."

अभय ने कहा, " मम्मा, तुमने पैंतीस-चालीस साल तक सरकारी नौकरी की. घर का भी काम देखती रही और दफ्तर भी संभालती रही. मेरा भी ख्याल रखती रही और दीदी का भी. डैडी बीमार रहते थे और एक दिन चल बसे लेकिन तुमने हिम्मत नहीं हारी. हम दोनों बच्चों को कितने लाड़- प्यार से पाला. दीदी की शादी भी कर दी और मुझे भी इस लायक बना दिया कि अब मैं भी नौकरी कर रहा हूँ."

बेटे की बात सुनकर वंदना ने हँसते हुए कहा, "अरे, तू आज यह क्या माँ-पुराण लेकर बैठ गया! जल्दी से तैयार हो जा. तुझे दफ्तर भी जाना है."

इतना बोल कर वन्दना रसोई में घुसकर खाना बनाने की तैयारी करने लगी. इस बीच शुचिता उठी, तो मन-ही- मन उसे ग्लानि तो हुई कि हाय, कितनी देर से उठ रही हूँ. सास ने नाश्ता भी बना दिया. अब खाना बनाने की तैयारी कर रही है. अभय दफ्तर जाने की तैयारी कर रहा है.

शुचिता चुपचाप बाथरूम में जा घुसी और तैयार होकर बाहर निकली. उसे देख कर वन्दना ने कहा, "बेटी, चाय पी ले."

" जी ममा, थैंक्स!"

इतना बोल कर शुचित डाइनिंग टेबल पर बैठ गयी और चाय पीने लगी. फिर मोबाइल देखती रही. कभी व्हाट्सएप, कभी फेसबुक. अचानक उस को कुछ सूझा, तो उसने फेसबुक की अपनी वाल पर लिखा, '' कर्म ही मनुष्य का भाग्यविधाता होता है. कर्म प्रधान विश्व करि राखा, जो जस करहिं सो तस फल चाखा".

इतनी देर में वंदना ने उसके सामने नाश्ता के परोस दिया. वह पोहा था. उसे खाते हुए शुचिता ने मुँह बनाया और बोली, " मजा नहीं आया, ममा । चलो कोई बात नहीं । खा लेती हूँ। मेरी माँ जो पोहा बनाया करती है, उसकी बात ही कुछ निराली होती है. एकआध बार माँ से आपकी बात कराऊंगी. उनसे पूछ लीजिएगा."

शुचिता की बात सुनकर वन्दना ने हँसते हुए कहा, "जरूर पूछूँगी. बहुत दिन हो गए, कौशल्या से बात भी नहीं हुई. वैसे एक बार तू भी तो बना कर कुछ खिलाया कर. महीनों हो गये तेरे हाथ का बना हुआ कुछ खाया ही नहीं."

वंदना की बात का सुनकर शुचिता हँसते हुए बोली, "अब तो कुछ मन ही नहीं होता बनाने का. आप इतना सब कुछ बनाकर खिला देती हैं कि मेरी आदत ही खराब हो गयी है. फिर भी कल सुबह जल्दी उठने की कोशिश करूँगी और कुछ बना कर खिलाऊँगी."

शुचिता को बुरा न लगे इसलिए वंदना ने कहा, "अरे, ऐसी कोई हड़बड़ी नहीं. तू तो आराम से उठाकर. तुझे तो कहीं जाना भी नहीं रहता. दिन भर घर पर ही तो रहना है इसलिए टेंशन मत पाल. जब तक मेरे हाथ-पैर चल रहे हैं, तो तुझे कुछ करने की जरूरत नहीं है."

वन्दना की बात सुनकर शुचिता ने कहा, " थैंक यू ममा. आप बहुत अच्छी हैं.... अच्छा अब मैं निकिता के घर जा रही हूं. उसके पास से एक घंटे बैठ कर आती हूँ."

इतना बोल कर शुचिता बाहर निकल गयी और दो घंटे बाद घर लौटी. फिर खाना खाने के बाद सो गयी. पाँच बजे उठी. रसोई घर में घुसकर चाय बनायी और वन्दना की ओर बढ़ाते हुए कहा, " लो ममा, बहुत दिन बाद चाय बनायी है."

वंदना ने चाय की चुस्की लेने के बाद मुस्कुराते हुए कहा, ''बहुत ही स्वादिष्ट बनी है. थैंक यू शुचिता."

शुचिता मुस्कुरा उठी. तभी उसका मोबाइल बजा. उसने उठाया और कहा, ''बस थोड़ी देर में पहुँच रही हूँ." फिर बोली, ''अच्छा ममा, चलूँ। जिम जाने का समय हो गया है. वहाँ मेरी सहेली रोमिला भी पहुँच रही है."

वन्दना शुचिता के पास ही बैठी थी इसलिए उसने इनकमिंग कॉल में आए हुए नाम को पढ़ लिया था. राहुल ने ही कॉल किया था और वन्दना ने रोमिला का नाम ले रही थी. वन्दना को काफी दुख हुआ. ओह! शुचिता तो गलत रास्ते पर चल पड़ी है. वह कुछ बोली नहीं. खुद को संयत रखते हुए कहा,

"ठीक है बेटा, ध्यान से जाना. ट्रैफिक काफी बढ़ गया है। ज़माना बड़ा खराब है. "

" ओके !" इतना बोल कर शुचिता ने स्कूटी उठायी और न्यू हाइट कांप्लेक्स के बाहर निकल गयी.

@@@@

अभय जब सात बजे घर लौटा, तो सुचिता को न पाकर माँ से पूछा, " कहाँ है आपकी प्यारी बहू?" वंदना ने हँसते हुए कहा, '' वह इस समय हेल्थ बना रही है. तुमको तो बताया होगा उसने कि जिम जॉइन किया है?"

अभय ने कहा, " हाँ, बताया तो था. चलो, ठीक है. इसी बहाने उसका कुछ वजन कम हो जाएगा. खा-पीकर तो खूब मोटी हो गई है."

वंदना के मन में एक बार यह विचार आया कि बेटे को इस बात की जानकारी दे दे कि 'तुम्हारी पत्नी जिम ट्रेनर राहुल की तारीफ सुनकर फूली नहीं समाती. पता करो, कोई चक्कर तो नहीं चल रहा', लेकिन उसने ऐसा कुछ नहीं कहा क्योंकि ऐसा करना चुगली हो जाती और ख़्वाहमख्वाह घर में तनाव बढ़ता. वन्दना को विश्वास था कि आज नहीं तो कल अभय सब कुछ समझ जाएगा और शुचिता को डांट-फटकार कर ठीक भी कर देगा लेकिन उसे क्या पता था कि एक बार बहकने वाले कदम मुश्किल से संभलते हैं.

वन्दना कुछ नहीं बोली. इतना जरूर कहा कि "एक बार तुम जिम जाकर देखो तो जरा कि शुचिता कितना वर्कआउट कर रही है."

अभय मुस्करा दिया. फिर चेंज करके टीवी देखने लगा. लगभग आठ बजे शुचिता लौटी. घर में घुसते ही सामने अभय को बैठे देखा, तो थोड़ा-सा झिझकी, फिर बोली, " जिम से तो सात बजे ही मैं लौट गई थी लेकिन निकिता के यहाँ बैठी रही, इसलिए थोड़ा देर हो गयी. सॉरी ममा. सॉरी डियर अभय."

इतना बोलकर वह सीधे नहाने चली गयी। आधे घंटे बाद बाहर निकली, तो देखा,अभय और उसकी माँ दोनों डाइनिंग टेबल पर उसका इंतजार कर रहे हैं. शुचिता को देखकर वन्दना ने कहा, " आओ शुचिता, खाना तैयार है.''

शुचिता चुपचाप खाने बैठ गयी. तीनों में देश दुनिया की बातें होती रही. इस बीच अभय ने मार्क किया कि शुचिता खाना कम खा रही, व्हाट्सएप में ज्यादा व्यस्त है. कोई मैसेज पढ़ती और फिर उसे जवाब देती. अभय से रहा नहीं गया. उसने कुछ नाराजगी भरे स्वर में कहा, " क्या बात है शुचिता? बहुत व्यस्त हो ? ऐसा कौन- सा सन्देश आ रहा है कि तुम खाना भी ठीक से नहीं खा पा रही हो ? बाद में मैसेज कर लेना. पहले आराम से खाना तो खा लो.''

अभय की बात सुनकर शुचिता ने मुस्कुराते हुए कहा, "अरे, निकिता बड़ी शरारती है. वही तंग कर रही है. उसी को जवाब दे रही थी."

इतना बोल कर शुचिता चुपचाप खाना खाने लगी. वन्दना बेटे को देखकर मंद-मंद मुस्कुरा रही थी, मगर अभय के चेहरे पर तनाव तांडव-नर्तन कर रहा था.

खाना खाकर शुचिता अपने कमरे में चली गयी और टीवी ऑन करके समाचार देखने लगी. अभय कुछ देर माँ के साथ ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी देखता रहा, फिर गुड नाइट बोल कर वह भी अपने कमरे में चला गया. वन्दना भी सोने चली गयी लेकिन एक घंटे बाद फिर अभय के कमरे से लड़ने-झगड़ने की आवाज़ें आने लगी. वंदना बाहर निकली और बातचीत सुनने की कोशिश करने लगी. धीरे धीरे आवाज़ें कुछ स्पष्ट सुनाई देने लगीं.

अभय बोल रहा था, "आजकल तुम्हारे रंग-ढंग कुछ समझ में नहीं आ रहे हैं. जिम जाने के नाम पर घर से दो-तीन घंटे गायब रहती हो. हर समय व्हाट्सएप में लगी रहती हो. कितने दिन हो गये, अपना फिजिकल रिलेशन भी नहीं हो पाया.यह क्या मजाक है?"

शुचिता ने कहा, " मुझे यह सब आजकल अच्छा नहीं लगता. मुझे ज्यादा परेशान मत किया करो, वरना मैं घर छोड़ कर चली जाऊँगी."

अभय ने कहा, '' एकदम चली जाओ. तुम्हारी जैसी पत्नी होने से क्या फायदा? न तुमने मेरी माँ को सुख दिया, न मुझे. खाना तक तो बनाती नहीं. माँ का ख्याल भी तुम नहीं रखती. जब देखो, कभी इस सहेली के यहाँ बैठी हो, कभी उस सहेली के यहां। और शाम होते ही जिम चली जाती हो. कहीं तुम्हारा कोई चक्कर तो नहीं चल रहा है?"

" चल रहा है. क्या कर लोगे?" शुचिता ज़ोर से चीखी.

'' चक्कर चल रहा है, तो तुम यहाँ रह कर अपना समय क्यों बर्बाद कर रही हो ? जाओ, जिस के साथ चक्कर चल रहा है , उसके साथ रहो. कल ही अपना बोरिया-बिस्तर बांध लो और निकल जाओ मेरे घर से."

" हाँ-हाँ, चली जाऊँगी. मुझे यहाँ नहीं रहना. यहाँ अब मेरा दम घुटता है. तुम्हारी माँ बड़ा बेस्वाद खाना बनाती है. खा-खाकर मैं बोर हो गई हूँ."

अभय ने कहा, '' तभी इतनी मोटी होती जा रही हो. और तभी तुमको जिम जाने की जरूरत पड़ रही है."

"मैं कहीं भी जाऊँ. तुम मुझे टोकने वाले कौन होते हो?"

" मैं तुम्हारा हसबैंड हूँ. कल से तुम्हारा जिम जाना बंद. समझ गयी न? बहुत हो गया. चुपचाप घर पर रहो और खाना बनाने में मम्मा का हाथ बंटाओ. मम्मा कुछ बोलती नहीं है, इसका मतलब यह नहीं कि मैं कुछ समझ नहीं रहा."

.... फिर आवाज आनी बंद हो गयी. वंदना की आँखों में आँसू थे. वह कुछ देर खड़ी-खड़ी सुबकती रही, फिर बिस्तर पर जाकर लेट गयी. थोड़ी देर बाद अभय का दरवाजा खुला और वह बाहर आकर टहलने लगा. माँ ने खिड़की से झाँक कर देखा. उस का मन तो हुआ कि बेटे के पास जाकर बैठे. उसे धीरज बंधाए, मगर उसने ऐसा नहीं किया. उसे डर था, कहीं अचानक कमरे से बाहर निकल कर शुचिता चिल्लाने न लगे कि माँ-बेटे मिलकर मेरे खिलाफ कुछ साजिश कर रहे हैं.

वन्दना के मन में तड़प थी कि बेटे की गलत लड़की से शादी हो गयी है. लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता. भगवान जाने शुचिता कब सुधरेगी. सुधरेगी या बेटे का जीवन इसी तरह नरक बना रहेगा!

@@@

अभय सुबह कुछ और जल्दी उठ गया. माँ तो सुबह जल्दी उठ ही जाती थी. माँ ने अभय को चाय पिलाई और अखबार देखते हुए चुपचाप बैठी रही.

अभय ने शांत स्वर में कहा , " माँ, अब इस लड़की के साथ ज्यादा रहना मेरे लिए संभव नहीं है."

माँ ने अनजान बनकर कहा, "क्यों, ऐसी क्या बात हो गई ? सब तो ठीक चल रहा है."

अभय ने कहा, " कुछ ठीक नहीं चल रहा है, मम्मा. शुचिता के लक्षण एकदम ठीक नहीं है. उसका किसी और के साथ चक्कर चल रहा है. वह मुझसे न तो प्यार करती है और न ठीक से बात करती है. तुम्हारे साथ भी उसका व्यवहार ठीक नहीं रहता. खाना बनाने से तो उससे न जाने किस जन्म का बैर है. ऐसी पत्नी होने का क्या फायदा, जो न मुझे सुख दे न मेरी मां को सुखी रखे. अब तो तीन साल होने हो जा रहे हैं. संतान का सुख भी वह नहीं दे सकी. अच्छा हुआ. वरना बच्चा भी तुम्हें पालना पड़ता. मैं तो भगवान से यही मनाता हूं कि यह घर छोड़ कर के चली जाय ताकि हम लोग सुख से रह सकें."

वन्दना ने कहा, " ऐसा नहीं कहते बेटा! हो सकता है, वह किसी कारणवश अब तक एडजस्ट नहीं कर पा रही हो. धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा."

" क्या ठीक हो जाएगा? तीन साल हो गये. अब तो मुझे उसके करैक्टर को लेकर भी डाउट हो रहा है. एक बार मैंने उसके जिम का चक्कर लगाया था. जब मैं वहाँ पहुँचा तो देखा, वह कोई 'वर्कआउट' नहीं कर रही थी. जिम के ट्रेनर राहुल के साथ बैठकर हँसी- मजाक कर रही थी. मैंने दूर से ही यह सब देखा और वापस लौट गया. अब तो मुझे पक्का यकीन है कि वह राहुल के साथ ही यह रिलेशनशिप में है."

माँ ने कहा, " यह बात मैं बहुत पहले समझ चुकी थी लेकिन तुमसे कहना नहीं चाहती थी. मुझे डर था, कहीं तुम यह न समझो कि मैं बहू की शिकायत कर रही हूँ लेकिन जिस अंदाज से वह राहुल की तारीफ किया करती थी, उससे ही मुझे समझ में आ गया था कि मामला गड़बड़ है. मैं स्त्री हूं. स्त्रीमन को भलीभांति समझती हूँ. जिम तो एक बहाना है घर से निकलने का. अगर जिम जाकर वह कुछ वर्कआउट करती, तो अब तक उसका वजन कुछ कम न हो जाता."

बातचीत चल ही रही थी, तभी शुचिता बाहर निकली, तो अभय बोल पड़ा, " तुम आज अपना सामान पैक करो और मायके चली जाओ, या कहीं और जा कर रहो. इस घर में तुम्हारे लिए कोई जगह नहीं है."

इतना सुनना था कि शुचिता चीख कर बोली, " मैं कहीं नहीं जाऊँगी. यही रहूँगी. और अगर तुम मुझे परेशान करोगे, तो मैं तुम दोनों के खिलाफ थाने में रिपोर्ट करवा दूंगी कि ये लोग मुझे मारते -पीटते हैं. जीना हराम कर दूँगी तुम लोगों का. मुझे गँवार लड़की मत समझ लेना. मैं मॉडर्न एज की लड़की हूँ. मेरे मन में जो आएगा, वह करूंगी. तुम लोग मुझे रोक नहीं सकते."

शुचिता की धमकी सुनकर अभय दंग रह गया. उसने माँ से कहा, '' देख रही हो न माँ! इसी लड़की के बारे में इसके माता-पिता ने कहा था कि हमारी लड़की बड़ी संस्कारित है. घर के सारे कामकाज जानती है. इसे पा कर आप लोग सुखी रहेंगे. और अब देख लो, कितना सुख दे रही है."

माँ चुप रही. अभय ने भी कुछ नहीं कहा. उठकर बाहर निकल गया. शुचिता कोने में बैठ कर मोबाइल चेक करने लगी. माँ रसोई में चली गयी.

कुछ दिन और इसी तरह से तनावपूर्ण निकल गये. तब एक दिन वन्दना ने तो शुचिता के पिता महेश प्रसाद को फोन करके विस्तार से सब कुछ बता दिया. शुचिता के पिता यह सुनकर दंग रह गये. जिस बेटी का नाम उन्होंने शुचिता रखा था, वह कितना कलंकित आचरण करती है. एक दिन वे पत्नी कौशल्या के साथ शुचिता के घर पहुँचे और अपनी बेटी को जमकर लताड़ लगायी.

शुचिता ने रोने का नाटक करते हुए कहा, " आपको पता नहीं है मुझे उस घर में कितना प्रताड़ित किया जा रहा है. मुझसे दहेज की मांग की जाती है. मेरी सास मुझे हर वक्त जली-कटी सुनाती रहती है. मैं जो खाना बनाती हूँ, इन लोगों को पसंद नहीं आता. मैं घर के बाहर सहेलियों के साथ बैठने जाती हूं, तो ये लोग मुझ पर शक करते हैं."

कौशल्या के कहा, ''तुझ पर शक नहीं करते. तुझे समझाते हैं, लेकिन तेरे दिमाग में तो गोबर भरा है तो मैं क्या करूं? अरे, लड़की की जब शादी हो जाती है, तो उसे अपनी मनमर्जी से बाहर नहीं जाना चाहिए. उसे घर के अनुशासन के अनुसार ही रहना चाहिए. यही संस्कार है. हाँ, अगर कोई अत्याचार हो रहा है, तो उसका विरोध जरूर करना चाहिए लेकिन मुझे पता है तुझ पर कोई अत्याचार नहीं हुआ है. तू खाना भी नहीं बनाती और झूठ बोलती है कि खाना बनाती हूँ. तेरी सास तुझे सुबह-शाम खाना बना कर खिलाती और तू उसके एवज में क्या दे रही है ? वक्त रहते सुधर जा, वरना मैं तुझे जबरदस्ती अपने साथ ले जाऊँगी."

माँ की बात सुनकर शुचिता रोती रही. कुछ नहीं बोली. कमरे में चली गयी. महेशप्रसाद कमरे में गये और उसे प्रेम से समझाने लगे, "अभय बहुत सीधा-साधा लड़का है. बहुत भावुक है. तेरी सास भी बहुत शरीफ है. इनको परेशान मत कर. बाहर की दुनिया का मोह खत्म कर. बाहर सब लोग बहकाने वाले मिल जाते हैं. उस चक्कर में घर टूट जाता है, बेटी. इसलिए मेरी मान, इधर उधर जाना छोड़. कहीं जाना भी है तो अपनी माँ के साथ जा. अभय को साथ ले ले. जमाना बड़ा खराब है." शुचिता कुछ नहीं बोली. चुपचाप सुनती रही. महेशप्रसाद और कौशल्या इस भरोसे के साथ वापस लौट गये कि शायद उनके समझाने का कुछ तो असर होगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. माता- पिता के जाने के बाद उसी शाम को शुचिता बिना कुछ बोले स्कूटी उठाकर सीधे जिम चली गयी. उसने जाते साथ ही राहुल से कहा, " राहुल, आई लव यू! अब मैं तुम्हारे साथ ही रहना चाहती हूँ. क्या तुम तैयार हो ?"

"नेकी और पूछ-पूछ!" राहुल चहक उठा, " लेकिन तुम्हारा वह घर..."

शुचिता बोली, " मैं उसे छोड़ देना चाहती हूँ. वहां मेरा दम घुटता है. मुझे लगता है, तुम मुझे अच्छे से रख सकोगे. रखोगे न?"

राहुल बोला, '' क्यों नहीं मेरी जान, आई लव यू!" "तो फिर ठीक है. कल मैं अपना सामान लेकर आ जाती हूँ तुम्हारे घर."

इतना सुना कि राहुल हकलाने लगा, " कक...क्या तुम सचमुच आना चाहती हो?"

"हाँ, सचमुच."

" तो फिर ठीक है. घर पर मेरी बूढ़ी माँ है. उसकी सेवा तुम्हें करनी होगी. बोलो, मंजूर है?"

शुचिता कुछ देर सोचती रही फिर बोली, " मंजूर है."

... और दूसरे दिन शुचिता राहुल के घर आ गयी. राहुल ने अपनी मां जानकी देवी को बताया कि यह एक दुखी लड़की है.इसे इसके घर वालों ने निकाल दिया है. अब यह यही रहेगी, माँ. हम लोग जल्दी शादी कर लेंगे."

जानकी देवी ने प्रसन्न होकर दोनों को आशीर्वाद दिया और कहा, " सुखी रहो. तुम लोग जल्दी से शादी कर लो ताकि मैं पोते का मुँह देख कर ही इस दुनिया से जाऊँ."

कुछ दिन तक तो सब ठीक चला लेकिन यहां आकर शुचिता को खाना बनाना, बूढ़ी बीमार सास की सेवा करना भारी बोझ लगने लगा. अपने ससुराल के आरामतलब जीवन को याद करके वह दुखी होने लगी. सोचने लगी, कहाँ आकर फँस गयी, लेकिन अब कुछ हो नहीं सकता था. मन मार कर उसे बर्दाश्त करना था क्योंकि अब तो वह वापस लौट भी नहीं सकती थी. उधर राहुल ने भी साफ कह दिया था कि अब तुम शाम को जिम आना बंद करो. खाना बनाओ. माँ की देखभाल करो. जो भी वर्कआउट करना है, घर पर कर लिया करो."

शुचिता को राहुल की सलाह बुरी तो लगी लेकिन वह कुछ कर भी नहीं सकती थी. कभी-कभार राहुल शुचिता को बाहर घुमाने ले जाता. घर लौट कर फिर जिस्मानी मस्ती भी होती. मगर सुबह की कल्पना करके शुचिता तनावग्रस्त हो जाती कि नाश्ता और खाना बनाना पड़ेगा. बूढ़ी बीमार माँ को दवाई देनी होगी. लेकिन अब तो यह सब करना मजबूरी थी.

धीरे-धीरे छह महीने तो बीत गये.

पहले तो राहुल आठ बजे तक घर आ जाया करता था, लेकिन अब वह रात को दस बजे तक ही लौटता. शुचिता जब पूछती, तो कहता, " इस समय आठ बजे के बाद भी बहुत से लोग वर्कआउट के लिये आते हैं. उन्हें सँभालना पड़ता है. देखो, यह सिलसिला कब तक चलता है."

एक दिन शुचिता का मन नहीं माना. उसने सोचा, चल कर देखूँ तो, कैसे लोग आ रहे हैं. और मिस्टर राहुल कितना वर्कआउट करवा रहे हैं.

वह जिम पहुँची, तो देखा एक सुंदर लड़की को राहुल वर्कआउट सिखा रहा है. कभी दायां पकड़े कभी बायां. ऊपर करो, ऐसे नीचे करो. फिर दोनों आपस में हँसने लगे. उसके बाद वर्कआउट रोक कर दोनों चेंबर में जाकर बैठकर हँसी- मजाक करने लगे. शुचिता दूर से सब देख रही थी. फिर चुपचाप लौट कर आ गयी. दस बजे के बाद राहुल लौटा, तो शुचिता ने पूछा, '' आज फिर व्यस्त हो गये तुम."

राहुल ने हँसते हुए कहा, '' हाँ, आज एक सेठ के लड़के के पीछे बड़ी मशक्कत करनी पड़ी. इस चक्कर में देर हो गयी. क्या करें, नौकरी ही ऐसी है. चलो, खाना परोसो. जोरों की भूख लगी है."

उस दिन शुचिता कुछ नहीं बोली. मन-ही- मन कुढ़ती रही. इतनी जल्दी कुछ कहना भी ठीक नहीं था. दूसरे दिन भी उसने चुपचाप जिम जाकर देखा, तो राहुल उसी युवती के साथ हँसी-ठिठोली कर रहा था. यह देखकर शुचिता का खून खौल उठा. वह बड़बड़ाने लगी, यह तो सरासर धोखा है... लगता है, मैं गलत जगह आ कर फँस गयी...लेकिन अब क्या होगा....अब तो मैं वापस भी नहीं लौट सकती...किस मुँह से वापस जाऊँगी ?"

राहुल जब देर रात भर लौटा तो शुचिता गुस्से में उबलते हुए बोली, '' अब तुम देर से घर आने लगे हो. लगता है, जिम की किसी लड़की से इश्क लड़ाने लग गए हो."

राहुल ने कहा, " यह तुम कैसे कह सकती हो?"

शुचिता ने कहा, ''मैं कल भी जिम गई थी और आज भी गई थी। दोनों दिन तुम एक ही लड़की के साथ हँसी-मजाक कर रहे थे."

राहुल नाराज होकर बोला, " तो क्या अब तुम मेरी जासूसी करने लगी हो? हद है. तुम अपने काम से काम रखो. तुम्हारा काम है, घर पर रहना. मेरी मां की सेवा करना. उन्हें खाना खिलाना. दवा पिलाना. मैं जिम में क्या करता हूं, क्या नहीं करता, इससे तुम्हें कोई मतलब नहीं. समझी न?"

राहुल की झिड़की सुनकर शुचिता की आँखों में आँसू आ गये. वह कुछ बोल नहीं सकी. बहुत देर तक रोती रही. अपने को कोसती रही कि '' अब तो इसी जिंदगी को किस्मत मानकर स्वीकार करना होगा... अभय के घर किस मुँह से जाऊँ.... मैंने तो अपने ही पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली है... अब तो बहुत देर हो चुकी है.... उस घर का दरवाजा मेरे लिए हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो चुका है. आखिर हर कोई तो जूठन खाना पसंद भी तो नहीं करता न!"

शुचिता को लगा, वह तो एक जूठन बन कर रह गयी है. राहुल के लिये वह जूठन ही तो थी, जिसे उसने जोश में आ कर स्वीकार तो कर लिया था, मगर बहुत जल्द ही उसका मोह भंग भी हो गया. इसीलिए वह शुचिता से विमुख हो कर नया रास्ता खोजने लग गया था.

गिरीश पंकज