हम दोनों चाय पीते हुए बाते करते रहे।काफी देर बाद हम होटल से बाहर आये।पूरन अपने घर और मैं अपने घर के लिए चल दिया।घर लौटने का रास्ता वो ही था जिस रास्ते से मैं बजरिया गया था।मैं वापस प्लेटफॉर्म पर बापू के आफिस के सामने से आया।बापू अपने चेम्बर के अंदर बैठे हुए थे।मैं उनकी तरफ देखता हुआ निकला था।धीरे धीरे चलकर मैं घर आया।आते समय भी मन अशांत था और वो डरावना सपना आंखों के सामने तैर रहा था।
मैने घर आकर कपड़े बदले थे।मेरे पीछे पीछे ही बापू भी घर चले आये थे।उन्हें जल्दी आया देखकर मा बोली,"जल्दी कैसे चले आये?"
"मेरे पेट मे दर्द हो रहा है।"बापू कपड़े बदलकर बिस्तर पर लेट गए।
"पेट मे दर्द है तो अस्पताल क्यो नही गए?"माँ ने बापू को टोका था।
"बिशन सिंह को अस्पताल भेज दिया है।वह दवा लेकर आता ही होगा।"
बिशन सिंह बापू के अंडर में हवलदार था।बापू दर्द से करहाते रहे।कुछ देर बाद बिशन सिंह रेलवे डॉक्टर को अपने साथ लेकर आया था।
रेलवे डॉक्टर जोहरी ने बापू का चेक अप किया कुछ गोलियां दी और इंजेक्शन लगाने के बाद बोला,"कुछ देर बाद दर्द से आराम मिल जाएगा।"
उस दिन दीवाली थी।माँ खाना बनाने की पूरी तैयारी कर चुकी थी।पर बापू की तबियत खराब होने के कारण मा खाना बनाना छोड़कर बापू के पास आ बैठी।हम सब भाई भी वही बैठ गए।करीब एक घण्टे बाद बापू को पेट के दर्द से राहत मिली तब वह माँ से बोले,"बच्चे भूखे होंगे।खाना बनाकर खिलाओ।"
मा खाना बनाने के लिए रसोई में चली गयी।खाना बना लेकिन सबने बेमन से खाया था।बापू खाना खाकर फिर सो गए।हम लोग घर मे ही बैठे रहे।कहि बाहर नही गए।करीब पांच बजे बापू उठ गए।उनके पेट मे फिर से दर्द होने लगा था।मैं बिशन सिंह के पास गया।उसका क्वाटर रेलवे अस्पताल के पास ही था।मैंने उन्हें बापू की तबियत के बारे में बताया।वह बोला,"तुम चलो।मैं डॉक्टर को लेकर आता हूँ।"
मैं घर आ गया।कुछ देर बाद बिशन सिंह रेलवे डॉक्टर को लेकर आया था।डॉक्टर ने फिर बापू को इंजेक्शन लगाया और चला गया।
अंधेरा होने पर सब के घर रोशन हो गए।दिवाली थी इसलिए सब दिए रखने लगे।लेकिन हमारे घर मे अंधेरा था।और इंजेक्शन लगने के एक घण्टे बाद ही बापू को दर्द से राहत मिली थी।
"क्या बात है अपने यहाँ दिए नही जलाए।"
माँ कुछ नही बोली।बापू फिर बोले,"अरे दीवाली है दिए तो जलाओ।"
और बापू ने जोर देकर दिए जलाए थे।लक्ष्मी पूजन का समय होने पर वह हम सबसे बोले,"चलो पूजन करेंगे।"
हर बार बापू ही लक्ष्मी पूजन की तैयारी करते थे।
लक्ष्मी पूजन के बाद वह बरामदे में कुर्सी पर बैठ गए और हमसे बोले,"फटाके चलाओ।"
और वह हम सब से फटाके चलवाने लगे।दीवाली थी इसलिए सभी तरफ फटाके चल रहे थे।बम्ब और रॉकेट चलने और फुलझड़ी चलने की आवाजें आ रही थी।काफी देर तक बापू अपने सामने हमसे फटाके चलवाते रहे।उसी दौरान आस पास के क्वाटर में रहने वाले मिलने के लिए भी आये थे।
फटाके चलाने के वाद हम लोग अंदर आ गए थे।फिर माँ ने सबके लिए खाना परोसा था।सब ने खाना खाया था।
और फिर हम सब सो गए।और मेरे सामने बिस्तर में लेटते ही वह स्वप्न आ खड़ा हुआ।