शादी कर लो।
बिना नौकरी मिले यह नहीं हो पाएगा।
फिर तो पूरी जिंदगी कुँआरे ही रह जाओगे।
बीवी की कमाई खाने से तो कुँआरा रहना ही अच्छा है। कहते हुए विजय अपने कमरे में चला गया।
जिंदगी आसान नहीं
एक सप्ताह तक सरिता टाइपिंग स्कूल नहीं आई। विजय रोज आता रहा और निराश होकर वापस घर जाता रहा। आठवें दिन सरिता के आते ही वह पूछा बैठा कि एक सप्ताह आई नहीं?
जिंदगी में बहुत दिक्कतें हैं। कहते हुए सरिता अपनी सीट पर बैठ गई।
क्या हो गया?
मेरी बहन जो बीए कर रही है किसी लड़के के साथ चली गई। दोनों बिना शादी के ही एक साथ रह रहे हैं।
ऐसा क्यों किया?
उसका कहना है कि यदि वह ऐसा न करती तो उसकी शादी ही नहीं हो पाती।
मतलब?
हमारे घर के आर्थिक हालात। इतना कहकर सरिता चुप हो गई।
मुझे नहीं लगता कि आपकी बहन ने गलत किया है। आज की युवा पीढ़ी विद्रोही हो गई है। वह परंपराओं को तोड़कर नई नैतिकता गढ़ रही है। समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।
पर माँ तो नहीं समझतीं।
हाँ, उनके लिए समझना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन आजकल सब चलता है। हमारा समाज बदल रहा है। बिना शादी के एक साथ रहना पश्चिमी परंपरा है, लेकिन अब ऐसा हमारे यहाँ भी होने लगा है।'
हाँ, बैठकर सपनों के राजकुमार का इंतजार करने से तो बेहतर ही है न कि जो हाथ थाम ले उसके साथ चल दिया जाए। चाहे चार दिन ही सही, जिंदगी में बहार तो आ जाएगी।
विजय को लगा कि कह दे कि फिर तुम मेरे साथ क्यों नहीं चली चलतीं। हम शादी कर लेते हैं पर वह कह नहीं पाया।
'जानते हो मेरी एक बहन बारहवीं में पढ़ रही है। उसका भी एक लड़के से प्रेम चल रहा है। वे दोनों एक-दूसरे से शादी करने को तैयार हैं। अगले साल बालिग होते ही शादी कर लेंगे।'
विजय के मन में आया कि कह दे कि अच्छा ही है। वह अपने आप वर खोज लें तो तुम्हें परेशानी नहीं होगी। वैसे भी पाँच हजार रुपए की नौकरी में तुम कौन सा राजकुमार उन्हें दे दोगी। अच्छा है कि वह अपने-अपने प्रेमियों के साथ भाग जाएँ।
बातों-बातों में एक दिन सरिता ने उसे बताया था कि उसके पिता की मौत हो चुकी है और वह तीन बहन हैं। उसका कोई भाई नहीं है। बहनों में वही सबसे बड़ी है। वह एक ऑफिस में काम करती है और उसे पाँच हजार रुपए मासिक वेतन मिलता है। दूसरी जगह काम पाने के लिए टाइपिंग सीख रही है।
विजय को अपने एक दोस्त के साथ घटी ऐसी ही घटना की याद आ गई। उसके दोस्त की एक बहन अपनी बड़ी बहन के अधेड़ से ब्याह देने के बाद प्रेमी के साथ भाग गई। इसके बाद उसका दोस्त गुस्से में उबल रहा था। तब विजय ने कहा था कि शांत रहो यार। वे दोनों जहाँ हो कुशल से रहें। उसने जो किया अच्छा ही किया। तुम कौन सा उसे राजकुमार से ब्याह देते। आखिरकार जिंदगी उसकी है।
जीना उसे है इसलिए निर्णय भी उसे ही लेना चाहिए। दोस्त के बड़े भाई ने भी विजय की बात का समर्थन किया था। लेकिन थोड़ा दार्शनिक अंदाज में कहा था कि होनी को यही मंजूर था।
मैं भी सोचती हूँ कि एक बहन ने जो किया ठीक ही है। दूसरी जो करेगी वह भी अच्छा ही है। जीवन यदि संघर्ष है तो करो। प्रेमी से पति बना व्यक्ति भी धोखा दे सकता है। जीवन नरक बन सकता है और माता-पिता का खोजा राजकुमार भी यही करता है। लेकिन माँ नहीं मानतीं। सोचती बहुत हैं और तबियत खराब कर लेती हैं।
पुराने जमाने की हैं न।
'हद तो यह हो गई कि वह मुझसे कहने लगी हैं कि तू भी किसी के साथ भाग जा।
मैं उन्हें इस हाल में छोड़कर किसके साथ...'
रो पड़ी सरिता।
विजय की समझ में नहीं आया कि वह क्या कहे और क्या करे।
स्थिति को सरिता समझ गई तो खुद पर काबू किया और फिर से टाइप करने लगी।
दस मिनट बाद सरिता उठी और बिना बोले ही चली गई। विजय की इच्छा हुई कि वह उसके पीछे-पीछे चला जाए, लेकिन वह बैठा रहा और उसे जाते देखता रहा।
मूसलाधारिश में बिजली का गिरना
आसमान में काले बादल घिर आए थे। इस कारण परिवेश में अँधेरा पसर गया था। रह-रहकर आसमान में बिजली चमकती और बादल गरजते। ऐसे मौसम में भी विजय टाइपिंग स्कूल जाने के लिए तैयार था। वह सरिता से मिलना चाहता था। जब वह घर से निकला तो बूँदाबाँदी शुरू हो चुकी थी। फिर भी वह तेज कदमों से टाइपिंग स्कूल की तरफ बढ़ने लगा। कुछ ही दूर गया होगा कि बारिश तेज हो गई। सड़क पर चल रहे लोग भागकर किसी छाँव में खड़े हो गए पर वह अपनी मस्ती में भीगता हुआ चलता रहा।
इंस्टिट्यूट पहुँचकर उसे पता चला कि सरिता नहीं आई है।
इतनी बारिश में आने की क्या जरूरत थी? मैडम ने विजय से कहा।
आप नहीं समझेंगी। सब समझती हूँ, लेकिन अब सरिता यहाँ कभी नहीं आएगी।
क्यों? आपको कैसे पता?
'उसका फोन आया था। उसने कहा कि यदि आप आओ तो बता दूँ।'
वह कभी नहीं आएगी? विजय की आवाज किसी कुएँ में से आती लगी।
विजय टाइपिंग स्कूल से बाहर आया। बाहर मूसलाधार बारिश हो रही थी। जैसे ही उसने नीचे की ओर कदम रखा जोर से बिजली चमकी और बादल गरजने लगा।
विजय संज्ञाशून्य सा भीगता हुआ घर की तरफ चल पड़ा।
उसने सोचा कि वह सरिता के घर जाएगा। लेकिन उसके घर का पता तो मैडम दे सकती हैं। यह सोचकर वापस पलटा लेकिन तब तक टाइपिंग स्कूल बंद हो चुका था।
भीगते हुए घर पहुँचा। तब तक उसका शरीर बुखार से तपने लगा। लगभग पंद्रह दिन वह चारपाई पर पड़ा रहा। जब कुछ ठीक हुआ तो बीसवें दिन टाइपिंग स्कूल पहुँचा। मैडम नहीं मिली। यह सिलसिला पंद्रह दिनों तक चला। सोलहवें दिन उसे मैडम मिली। उसे देखते ही बोल पड़ी कि काफी कमजोर हो गए हो?
उस दिन बारिश में भीगा तो बीमार हो गया।
विजय ने मैडम से सरिता के घर का पता माँगा तो उसने एक कागज पर लिखा और विजय को थमा दिया। मैडम को धन्यवाद बोलकर विजय चल पड़ा। वह आज ही सरिता से मिलना चाहता था।
जब वह मैडम के दिए पते पर पहुँचा तो वहाँ ताला लगा था।
पड़ोसियों से पूछने पर पता चला कि सरिता यहीं रहती थी, लेकिन अब मकान बेचकर चली गई है। कई लोगों से पूछने के बाद भी विजय को उसका नया पता नहीं मिला। निराश होकर वह घर लौट आया।
सरिता के इस व्यवहार से उसे काफी धक्का लगा। उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि सरिता ने ऐसा क्यों किया?
वह सरिता की याद में कविताएँ लिखने लगा।
एक दिन उसने एक सपना देखा और उसके भावों को कविता के रूप में कागज पर लिखा...
सरिता, जो निकली
अपने उद्गम स्थल से
सागर की चाह में चली द्रुतगति से
सामने आ गया पहाड़
टकराने के बाद बदल लिया अपना मार्ग
मार्ग था लंबा
पहाड़ों की श्रृंखला थी
पठार और पथरीली जमीन भी
आदमी भी खड़ा था फावड़ा लिए
बाँध बनाने को तत्पर
खेत सींचने के लिए
चाहिए उसे पानी पीने के लिए भी
बिजली भी तो चाहिए
घर रोशन करने के लिए
कारखाने चलाने के लिए
कारखानों के कचरे को
बहाने के लिए भी चाहिए उसे नदी।
प्रकृति से लड़ते नहीं थकी वह
बहती रही अविरल
दिल में सागर से मिलने की चाह लिए।
भारी पड़ा प्यार अवरोधों पर
पहुँच गई वह साहिल पर
लेकिन मानव ने बना बाँध
रोक दी उसकी धारा
कारखानों की गंदगी उड़ेल
सड़ा दिया उसकी आत्मा को
अपने आँसुओं से धोती रह वह अपना बदन
निर्मलता से मिलना चाहती थी सागर से
विकास उन्मादी मानव ने
रौंद दिया उसकी आत्मा को
जिंदा लाश हो गई वह
उसके लिए तड़पता है सागर।
साहिल पर पटकता है अपने सिर को
उसने तो दम तोड़ दिया मानव के विकास में
सागर भेजता है बादलों को
उसे पुनर्जीवित करने के लिए
वह जानता है बेवफा नहीं है वह
सच्चा है उसका प्यार
कैद है वह मानव के विकास में
बरसते हैं बादल उफनती है नदी
मानव को दिखाती है अपना विकराल रूप
मिलते ही प्यार की ताकत
तबाह कर देना चाहती है वह मानव सृष्टि को
बदला लेना उसकी प्रकृति नहीं
भागती है तेज गति से सागर की ओर
बाँहें फैलाए स्वागत करता है सागर
बताना चाहती है अपने कष्टों को वह
लेकिन कुछ भी नहीं जानना चाहता सागर
जानता है वह मानव स्वभाव को
उसका भी तो पाला पड़ा है इस स्वार्थी प्राणी से
विजय की इस कविता को पत्रिका में छपे एक माह से अधिक हो गया है, लेकिन उसके पास इस बार भी अब तक सरिता का कोई पत्र या फोन नहीं आया है। उसे उम्मीद है कि एक न एक दिन सरिता उससे संपर्क जरूर करेगी। जब से वह कविता प्रकाशित हुई है तब से वह फोन की प्रत्येक घंटी पर चौंक जाता है। यही नहीं हर रोज पोस्टमैन का बेसब्री से इंतजार करता है। और जब उसके आने का समय खत्म हो जाता है तो वह उदासी के समुद्र में डूब जाता है।