देवर्षि नारद बहुत बड़े संत थे। वे जहाँ चाहें, आ-जा सकते थे। नारायण के भक्त थे। लेकिन एक बार उनके मन में यह जानने की इच्छा पैदा हुई कि आखिर संत के क्या लक्षण हैं? संत कैसा होना चाहिए? संत कौन होता है? वे श्रीकृष्ण के पास गए और अपनी जिज्ञासा बताई। बोले “भगवन्, मेरी शंका का समाधान करें।”
श्रीकृष्ण ने कहा “नारद जी आप अमुक यादव के पास जाओ। उसकी पत्नी गर्भवती है। उसके घर बच्चा पैदा होने वाला है। जब बच्चा पैदा हो, तो तुम उस बच्चे से यह सवाल पूछना, वह सब कुछ बता देगा।”
नारद जी यादव के घर पहुँचे। उनसे मिले और बोले “तुम्हारे घर बच्चा पैदा होने वाला है। मैं उससे मिलना चाहता हूँ। जब तक बच्चा पैदा न हो मैं यहीं इंतजार करूंगा।”
एक दिन बच्चे ने जन्म लिया। नारद जी खुश हो गए। बच्चे के पास गए और अपना प्रश्न रखा। भगवद् कृपा से, बच्चे ने नारद जी का प्रश्न सुना और बहुत जोर से हंसने लगा। यह देख नारद जी हैरान हुए। वह सोचने लगे, 'बच्चा कुछ ही घंटों का है और यह मेरा प्रश्न सुनकर खिलखिलाकर हंस रहा है। आश्चर्य? क्या कुछ गलत पूछा? क्या इसने मुझे पागल समझा? लेकिन यह तो बच्चा है। इन दुनियावी चीजों का इसे क्या पता?'
और फिर नारद जी ने देखा, बच्चे की रंगत बदल रही है। बच्चे की हंसी खत्म हो रही है। वह चुप होता जा रहा है। नारद ने फिर पूछा "मेरे प्रश्न का उत्तर तो अभी बाकी है, उत्तर तो देते जाओ।"
बच्चे ने कहा "अमुक ब्राह्मण के घर गाय बछड़ा जनने वाली है, आपके प्रश्न का उत्तर वह बछड़ा ही देगा। वह सब कुछ जानता है।" और यह कहते ही बच्चे ने प्राण त्याग दिए।
यह देखकर नारदजी हैरान हुए, जब मेरे प्रश्न का उत्तर एक मानव नहीं दे सका तो एक बछड़ा कैसे देगा? नारद जी निराश हुए। ब्राह्मण के घर गए। बछड़े ने जन्म लिया, बछड़े ने होश संभाला। नारद जी ने उससे अपना प्रश्न पूछा "संत
कैसा होना चाहिए? संत कौन होता है?"
बछड़े ने ध्यान से नारद जी का प्रश्न सुना। मनुष्य की आवाज में बछड़ा हंस दिया। कहने लगा "नारद जी, आपके इस प्रश्न का उत्तर मैं नहीं दे सकता। आपके प्रश्न का उत्तर इस नगरी के राजा के घर पैदा होने वाला बच्चा दे सकता है।"
और यह कहते-कहते बछड़े ने भी अपने प्राण त्याग दिए।
नारद जी बहुत हैरान हुए। वे सोचने लगे, 'यादव के बेटे ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। ब्राह्मण की गाय के बछड़े ने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया। दोनों ही मेरे प्रश्न का उत्तर देने से पहले ही मर गए। अब भला राजा का पुत्र क्या उत्तर देगा। कहीं वह भी मर गया तो मेरा प्रश्न अधूरा ही रह जाएगा। कभी उत्तर नहीं पा सकूंगा।'
फिर भी नारद जी राजा के घर गए। वाकई राजा के घर संतान पैदा होने वाली थी। नारद जी वहीं रुक गए। आखिर राजा के बेटे ने जन्म लिया। नारद जी शिशु के पास गए। अपना वही प्रश्न उसके सामने रखा, 'संत कैसा होना चाहिए, संत कौन होता है? प्रश्न राजा भी सुन रहा था। सोच रहा था नारद जी के प्रश्न का उत्तर भला यह बच्चा कैसे दे सकता है। लेकिन उसने स्वयं देखा नारद जी का प्रश्न सुनते ही बच्चा खिलखिलाकर हंस दिया और बच्चे के हंसने के साथ ही, उसकी रंगत भी बदलने लगी, आवाज धीमी पड़ने लगी, हाथ-पांव शिथिल होने लगे। यह देख नारद जी डर गए। राजा भी कांप उठा। कहा "मेरा बेटा मर तो नहीं रहा।" लेकिन नारद जी ने राजा के बेटे से पूछाा "तुम्हारी आवाज धीमी हो रही है। तुम्हारी हंसी बंद हो रही है, लेकिन तुम्हें मेरे प्रश्न का उत्तर अभी देना है। मेरे प्रश्न का उत्तर दिए बिना कैसे जा सकते हो?"
बच्चे ने कहा “नारद जी, संत ऐसा ही होना चाहिए, जैसे आप हैं, निर्मल और निश्छल। जिसके दर्शन मात्र से देह के छूटते ही मोक्ष मिल जाए, जिसे देखते ही पाप मिट जाए, दुनिया बदल जाए। नरक से स्वर्ग मिल जाए। जन्म-जन्म के बंधन छूट जाए, दुनिया बदल जाए नरक से स्वर्ग मिल जाए। बैकुंठ मिल जाए। आपके दर्शन मात्र से ही मैं मृत्युलोक से स्वर्गलोक जा रहा हूँ। इससे पहले मैं एक यादव के घर जन्मा था। वहाँ मैंने आपके दर्शन किए। मैंने प्राण छोड़ दिए। फिर बछड़े के रूप में जन्म लिया, आपके दर्शन किए। वह योनि भी समाप्त हुई फिर राजा के घर जन्मा हूँ।
अब आपके दर्शन से ही मैं इस मृत्युलोक से विदा हो रहा हूँ, बैकुंठ जा रहा हूँ। पिछले जन्म सभी मेरे थे। आपके दर्शन से सभी छूट गए, उनसे मुक्ति मिली। नए जन्म लिए, आपके दर्शन से अब मोक्ष मिल रहा है। जन्म-मरण के चक्कर से मुक्त हो रहा हूँ। संत ऐसा ही होना चाहिए, आप जैसा।