science of infinity in Hindi Science-Fiction by Mohit Rajak books and stories PDF | अनंत का विज्ञान

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अनंत का विज्ञान

अनंत का विज्ञान यह संपूर्ण ब्रह्मांड तीन गुणों से मिलकर बना हुआ है जिसे हम धनात्मक पॉजिटिव ऋण आत्मक नेगेटिव और शून्य कहते है
भगवान शिव प्रारंभ में ब्रह्मा के साथ मिलकर प्रगति की रचना करते हैं जिसे धनात्मक कहा जा सकता है और अंत में शिव भगवान विष्णु के अवतारों के साथ मिलकर प्रगति का विनाश करते हैं जिसे रण आत्मक ता कहा जा सकता है
वास्तविकता में शून्य में ही धनात्मक था और नेगेटिविटी दोनों ही विद्यमान है
इस प्रकार एक अर्ध चक्र पूरा होता है इसके बाद प्रतिबिंब प्रगति का अस्तित्व आता है जिसमें विपरीत क्रिया होती है जिसमें शिव भगवान विष्णु के अवतारों के साथ मिलकर रचना करते हैं और ब्रह्मा के साथ मिलकर विनाश करते हैं इस प्रकार एक अनंत चक्र पूर्ण होता है ( ०० - 0 ००) इसी प्रकार यह चक्र अनंत काल तक चलता रहता है और खरबों प्रगतियां बनती और बिगड़ती रहती है।
इस ब्रह्मांड में जो कुछ भी मौजूद है वह उसका एकदम विपरीत भी मौजूद है यदि प्लस है तो - भी है यदि देव है तो दानव भी है सुर है तो असुर भी है हर एक वस्तु का एकदम उल्टा विपरीत प्रगति में मौजूद है
अब हम हमारी पृथ्वी और इस में रहने वाले जीवो की प्रगति के बारे में जानेंगे हमारी पृथ्वी मूलता पांच तत्वों से मिलकर बनी है (जल, अग्नि, वायु, आकाश और धरती )इसके अलावा कुछ दृश्य और अदृश्य तत्व भी प्रगति में मौजूद है ठीक पृथ्वी के जैसे ही पृथ्वी पर रहने वाले जीव भी उन्हीं तत्वों से मिलकर बने होते हैं जिस पर प्रगति के समस्त तत्वों का प्रभाव पड़ता है पृथ्वी और हमारी निहारिका के समस्त ग्रहों विंडो और तारों का प्रभाव सभी जीवो पर पड़ता है परंतु यदि हम इस तत्व को जान लें कि इन सबके अलावा हमारे पास एक ऐसा तत्व है जिस पर ब्रह्मांड के किसी भी ग्रहण का प्रभाव नहीं पढ़ सकता वह तत्व है हमारी आत्मा आत्मा सर्वाधिक दिव्य और स्वयं ईश्वर होती है आत्मा ना तो प्लस होती है और ना ही ऋण होती है वह शून्य होती है और सुनने से अनंत तक की यात्रा भिन्न-भिन्न रूपों में तय करती है मनुष्य रूप में केवल आत्मा से ही अनंत चक्र से बाहर निकला जा सकता है क्योंकि मनुष्य जीवन बुद्धिजीवी प्राणी है जो आत्मा की शून्यता को पहचान सकता है।
मनुष्य के पास आत्मा के अलावा उसका मन ही सर्वोच्च क्षमता का होता है प्रगति के समस्त तत्व शरीर और मन पर ही प्रभाव डाल सकते हैं कोई भी दृश्य और अदृश्य तत्वों में दोनों ही पॉजिटिव और नेगेटिव गुण मौजूद होते हैं काम क्रोध मत लोग आदि नकारात्मक गुणों के साथ इन्हीं के अंदर सकारात्मक गुण भी छुपा होता है सत्य ज्ञान लाभ जय आदि अदृश्य तत्वों में ही गुण मौजूद होते हैं वास्तविकता में यह तीनों कौन मौजूद होते हैं इस ब्रह्मांड में जो भी है वह इन तीनों गुणों से मिलकर ही बना है मनुष्य का मन इन तीनों गुणों से प्रभावित होता है मनुष्य बुरा कर्म करता है तो ऋण को पता है, और यदि अच्छा कर्म करता है तो धन को पाता है परंतु दोनों ही कर्म मनुष्य को अनंत चक्र में घुमाते रहते हैं ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह शून्य में रहकर कर्म करें इसी के माध्यम से वह इस अनंत चक्र से बाहर निकल सकता है जिससे भगवत गीता में निष्काम कर्म बताया है शून्य में रहकर कर्म करने से अर्थ है बिना लाभ-हानि के धर्म पालन हेतु किया गया कर्म।
मनुष्य को जीवन में यदि उच्च कोटि प्राप्त करना है तो वह शून्य को ही सध्य करें और प्रतीक परिस्थिति में सुनने नहीं स्थिर रहे क्योंकि अनंत चक्र की शुरुआत और अंत शून्य से ही होता है यह भी एक मोक्ष का मार्ग हो सकता है।