Cactus ke Jungle -5 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | कैक्टस के जंगल - भाग 5

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कैक्टस के जंगल - भाग 5

5

लक्ष्मण रेखा

शर्मा जी कपड़े पहनकर बाहर जाने के लिए तैयार हो गए।

“आप कहां जा रहे हैं ?“ उनकी पत्नी ने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखते हुए पूछा।

कहीं नहीं ऐसे ही थोड़ी देर बाहर घूमने जा रहा हूँ। घर में बैठे-बैठे मेरा तो दम घुटने लगता है।“ शर्मा जी बोले।

“पापा जी रोज टी.वी. पर बार-बार प्रसारित हो रहा है कि साठ साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है। वे लॉकडाउन में घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलें, फिर आप रोज क्यों बाहर जाते हैं। अगर बाहर से कुछ लाना है तो मुझे बता दीजिए मैं ले आऊँगा।“ उनका बेटा उनके पास आते हुए बोला।

“रमेश ठीक तो कह रहा है।“ उनकी पत्नी ने अपने बेटे की बात का समर्थन किया।

“अगर बाहर जा ही रहे हैं तो कम से कम मास्क तो लगा लीजिए पापा जी।“ उनकी पुत्रवधु बोली।

मगर सबकी बातों को सुनी-अनसुनी कर शर्मा जी घर से बाहर निकल आए। शहर में एक सप्ताह पहले लाॅकडाउन लागू हुआ था, मगर इसका शर्मा जी पर कोई असर नहीं पड़ा था। वे रोज दो-तीन घन्टे बाहर घूमा करते थे। ऐसा करने मंे उन्हें बड़ा आनन्द आता था।

शर्मा जी गलियों में घूम रहे थे। जहां कहीं दो-चार लोग दरवाजों पर मिल जाते, वे उनसे बातें करने लगते। कभी किराने की दुकान पर खड़े हो जाते, तो कभी मेडीकल स्टोर के पास। काफी देर तक गलियों में घूमने के बाद वे मेन रोड पर आ गए। सड़क पर चारों ओर सन्नाटे का आलम था। इस सुनसान सड़क पर घूमने में उन्हें बड़ा आनन्द आ रहा था।

शर्मा जी थोड़ी ही दूर चले होंगे कि सामने से प्रशासन की गाड़ी आते देख उनके होश फाख्ता हो गए। उन लोगों की नजरों से बचने के लिए वे एक गली में मुड़ने ही वाले थे कि गाड़ी बिल्कुल उनके पास आकर रुक गई।

“आप कहां जा रहे हैं ? क्या आपको पता नहीं कि लॉकडाउन में घर से बाहर निकलना मना है ?“ एक पुलिस अफसर ने उनको घूरते हुए पूछा।

काफी देर तक शर्मा जी को कोई जवाब नहीं सूझा। फिर वे बहाना बनाते हुए बोले-“मैं तो मेडिकल स्टोर से दवाई लेने जा रहा हूँ।“

“ठीक है डॉक्टर का पर्चा दिखाओ।“ उसने अगला सवाल दागा।

अब शर्मा जी बगलें झांकने लगे। उन्होंने दूसरा पांसा फेंका। वे बोले-“मैं तो अपने एक रिश्तेदार की अंत्येष्टि में शामिल होने जा रहा था सोचा कि दवाई भी लेता आऊँगा मगर जल्दबाजी में पर्चा घर ही रह गया।

“ठीक है, अपने रिश्तेदार के परिवार के किसी सदस्य का मोबाइल नम्बर बताइए ? हम उनसे बात कर लेते हैं। अगर आपकी बात सही हुई तो हम खुद गाड़ी से आपको शमशान तक लेकर चलेंगे।

अब शर्मा जी निरुत्तर हो गये। उसके बाद उन्होंने उन लोगों की बहुत मिन्नतें कीं, दुबारा घर से बाहर नहीं निकलने की कसमें  खाईं, मगर वे लोग नहीं माने। उन्होंने शर्मा जी को गाड़ी में बिठाया और सीधे अस्पताल ले जाकर छोड़ा।

अस्पताल में शर्मा जी को आइसोलेशन रूप में रखा गया। चारों तरफ से बन्द कमरे में बिल्कुल अकेले बैठे शर्मा जी का दम घुटा जा रहा था। उन्हें रह-रह कर अपनी पत्नी और बेटे की बातें याद आ रही थीं।

शर्मा जी के ब्लड का सैम्पल लेकर जांच के लिए भेजा गया। दूसरे दिन जांच रिपोर्ट आ गई। जांच रिपोर्ट में कोरोना पॉजिटिव होने की बात सुनकर शर्मा जी पसीने-पसीने हो गए। उन्हें आई.सी.यू. में शिफ्ट कर दिया गया और डॉक्टरों की टीम उनके इलाज में जुट गई।

एक डॉक्टर से शर्मा जी ने विनती की-“डाक्टर साहब मेरे परिवार वालों को बुला दीजिए। उनके पास रहने से मुझे बड़ी राहत महसूस होगी।

डाक्टर साहब ने उन्हें समझाया-“देखिए आप कोरोना के मरीज हैं। कोरोना के मरीज के पास उसका कोई परिवारीजन, रिश्तेदार या मित्र मिलने नहीं आ सकता। यह जंग उसे अकेले ही लड़नी पड़ती है।

यह जानकर शर्मा जी बड़े परेशान हुए। डॉक्टर साहब से अनुरोध किया-“डॉक्टर साहब मैं अपने परिवार के लोगों को एक बार देखना चाहता हूँ। किसी तरह थोड़ी देर के लिए उन्हें अस्पताल बुला दीजिए।“

“नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता। इससे आपके परिवार के लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा हो सकता है।“ डॉक्टर साहब ने दो टूक शब्दों में कहा।

यह सुनकर शर्मा जी ने गहरी श्वांस ली। वे बड़े मायूस स्वर मे बोले-“डॉक्टर साहब अगर इलाज के दौरान मैं मर जाता हूँ तो मेरी डैड बाॅडी तो अन्तिम संस्कार के लिए मेरे परिवार को सौंप दी जाएगी ?“

नहीं शर्मा जी। कोरोना के मरीज की मृत्यु होने पर उसके दाह संस्कार की व्यवस्था प्रशासन करता है। परिवार वालों को तो केवल उनकी मृत्यु की सूचना दी जाती है।

“क्या ?“ शर्मा जी का मुँह हैरत से खुले का खुला रह गया।

“मगर आप यह फिजूल की बातें क्यों सोच रहे हैं। कुछ दिन के इलाज के बाद आप बिल्कुल ठीक हो जायेंगे।“ डाक्टर साहब ने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा।

डाक्टरों की एक पूरी टीम उनके इलाज में जुट गई। उन्होंने शर्मा जी के इलाज में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी; मगर शर्मा जी की हालात बिगड़ती ही चली गई।

आई.सी.यू. में शर्मा जी बैड पर बेसुध से पड़े थे। तभी यमदूत उन्हें लेने आ गए। लम्बे-चैड़े और भयानक चेहरे वाले यमदूतों को देखकर शर्मा जी की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई।

“इनकी मृत्यु कैसे हुई ?“ एक यमदूत ने वहां बैठी नर्स से पूछा।

“कोरोना से।“ नर्स ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया “क्या ?“ यमदूतों ने नाक-भौंहे सिकोड़ते हुए कहा। फिर उन्होंने जेब से निकालकर मास्क लगा लिए और ग्लब्स पहन लिए। यमदूत शर्मा जी को उठाकर आकाश की ओर चल दिए।

रास्ते में एक यमदूत बोला-“इस अधम प्राणी ने लाॅकडाउन तोड़ने का अक्षम्य अपराध किया है। ऐसा करके इसने ना केवल अपने परिवार को बल्कि पूरी मानवता को संकट में डाल दिया है।“

“मगर हम इसे लेकर भगवान विष्णु के दरबार में गए तो कहीं वहां भी तो कोरोना का संक्रमण नहीं फैल जाए।“ दूसरे यमदूत ने शंका प्रकट की।

फिर इसका क्या किया जाए, दोनों यमदूत सोच में पड़ गए।

“ऐसा करते हैं इसे यहीं पृथ्वी पर वापस फेंक देते हैं।“ एक यमदूत ने प्रस्ताव रखा।

“हां तुम ठीक कह रहे हो। यही इसके अपराध का उचित दंड होगा।“ दूसरे यमदूत ने उसकी बात का समर्थन किया।

फिर दोनों यमदूतों ने शर्मा जी को आकाश से धरती पर फेंक दिया। भय के मारे उनकी चीख निकल गई। और जब वे जागे तो परिवार के सारे लोग उन्हें घेरे खड़े थे।

“क्या हुआ ? आप इतनी जोर से चीखे क्यों ?

“कुछ नहीं बस एक भयानक सपना देखा था।“ शर्मा जी बोले उस भयानक सपने की याद आते ही उनके पूरे शरीर में भय की एक सिहरन सी दौड़ गई। उन्होंने मन ही मन यह ठान लिया कि लाॅकडाउन की लक्ष्मण रेखा को ना तो वे स्वयं लाघेंगे और ना ही अपने परिवार के किसी सदस्य को ऐसा करने देंगे।

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