Cactus ke Jungle -2 in Hindi Fiction Stories by Sureshbabu Mishra books and stories PDF | कैक्टस के जंगल - भाग 2

Featured Books
Categories
Share

कैक्टस के जंगल - भाग 2

2

सैल्फ डिफेन्स

आज अंजलि को आवश्यक कार्यवश कालेज से जल्दी घर जाना था। वह शहर के गल्र्स डिग्री कालेज में बी.एस.सी. प्रथम वर्ष मंे पढ़ती थी। अपनी सहेलियों को बताकर वह फिजिक्स क्लास अटेन्ड करने के बाद कालेज से बाहर निकली। साइकिल स्टैण्ड से साइकिल लेकर वह घर के लिए चल दी। अंजलि जैसे ही एक सुनसान गली में पहुंची बाइकों पर सवार शोहदों ने उसका रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती दो शोहदों ने उसे साइकिल से खींचकर अपनी बाइक पर बैठा लिया और बाइक स्टार्ट करके चल दिए।

अंजलि सहायता के लिए चिल्लाई। उसकी चीख पुकार सुनकर कुछ लोग घरों से बाहर निकल आए मगर शोहदों के हाथों में लहराते हुए चाकू देखकर किसी की हिम्मत उन्हें रोकने की नहीं हुई। दिन-दहाड़े एक लड़की को चार शोहदे उठाकर लिए जा रहे थे और वहां मौजूद लोग तमाशवीन बने थे।

तभी गली की दूसरी ओर से पांच-छः लड़कियां साइकिलों से आईं। उन्होंने एक खास किस्म की यूनीफार्म पहन रखी थी और उनके हाथों में स्टिक्स थीं।

उन्होंने अपनी साइकिलें गिराकर उन शोहदों का रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि शोहदे कुछ समझ पाते उन लड़कियों ने शोहदों पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया। स्टिक्स के बार से शोहदों के चाकू दूर जा गिरे थे। अंजलि को उनकी गिरफ्त से छुड़ाकर उन्होंने शोहदों की ऐसी धुनाई की कि वे अपनी मोटरसाइकिलें वहीं छोड़कर जान बचाकर भागे। गली के लोग हैरत से उन लड़कियों को देख रहे ये और उनकी हिम्मत की दाद दे रहे थे।

गली में खड़े एक बुजुर्ग को बुलाकर उन लड़कियों ने कहा-“अंकल जी आप सौ नम्बर डायल कर पुलिस की पिकेट को बुला लेना और उन शोहदों के यह चाकू और मोटरसाइकिलें पुलिस को सौंप देना। हम इस लड़की को इसके घर तक छोड़ने जा रहे हैं।

फिर वे सब अंजलि को साथ लेकर चल दीं। रास्ते में उन लड़कियों ने अंजलि को अपना टेªनिंग सेंटर दिखाया। उस पर सैल्फ डिफेन्स टेªनिंग सेन्टर का बोर्ड लगा हुआ था।

उन लड़कियों ने अंजलि को बताया-“हम लोग शाम को चार से छः बजे तक यहां टेªनिंग लेने आते हैं। हम सब कालेज स्टूडेन्ट्स हैं। हमें टेªनिंग देने वाली दीदी भी अनमैरिड हैं और उनकी उम्र करीब पच्चीस-छब्बीस साल होगी। वे हमें जूड़ों-कराटे, योगा के साथ-साथ आत्मरक्षा के गुर सिखाती हैं। उन्होंने हम लोगों में इतना आत्म विश्वास भर दिया है कि हम किसी भी परिस्थिति का मुकाबला कर सकते हैं। उन्होंने हमारे अन्दर के भय को दूर कर दिया है।

अंजलि बड़े अचरज से उनकी बातों को सुन रही थी। उसने मन ही मन यह निश्चय कर लिया था कि कल से वह यहां टेªनिंग लेने जरूर आएगी।

घर जाकर उसने अपने साथ घटी पूरी घटना अपनी मम्मी को बताई। मम्मी यह सुनकर बहुत घबरा गईं। फिर अंजलि ने उन्हें उस टेªनिंग सेन्टर के बारे में बताया। उसने कहा-“मम्मी मैं भी वहां टेªनिंग लेने जाना चाहती हूँ। अगर वह लड़कियां समय पर नहीं आ जातीं तो वे शोहदे मेरी क्या गति बनाते यही सोच कर मेरी रूह कांप जाती है। मैं भी उन लड़कियों की तरह बनना चाहती हूँ।“

“ठीक है मैं तुम्हारे पापा से इस बारे में बात करूंगी।“ मम्मी ने कहा। मम्मी ने किसी तरह अंजलि के पापा को भी इस बात के लिए तैयार कर लिया।

अपनी मम्मी-पापा की अनुमति लेकर अंजलि ने टेªनिंग सेन्टर पर जाना शुरू कर दिया। उसने जब पहली बार टेªनिंग देने वाली दीदी को देखा तो वह उन्हें देखते ही रह गई। लम्बा छरहरा बदन खिला हुआ गोरा रंग हिरनी जैसी बड़ी-बड़ी आँखें, लम्बी नाक और चेहरे पर आत्म विश्वास की गहरी चमक। कुल मिलाकर उनका व्यक्तित्व बड़ा प्रभावी था। उनके शब्दों में तो मानो जादू था। अंजलि उनसे बहुत प्रभावित थी और वह पूरे मनोयोग से टेªनिंग लेने में लगी हुई थी।

अंजलि को टेªनिंग सेन्टर पर आते हुए कई दिन बीत गए थे। मगर वह अभी दीदी के बारे में केवल इतना ही जान पाई थी कि वह किसी गल्र्स इंटर कालेज में लेक्चरार थीं और कालेज के बाद वह यह टेªनिंग सेन्टर चलाती थीं। सेन्टर की किसी अन्य लड़की को भी उनके बारे में इससे अधिक कोई और जानकारी नहीं थी। वे यह टेªनिंग सेन्टर निःशुल्क चलाती थीं और किसी से कोई फीस नहीं लेती थीं।

अंजलि के मन में दीदी के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ती ही जा रही थी। उसने और लड़कियों से भी इस बारे में बात की। मगर दीदी के कठोर अनुशासन के कारण उनसे कुछ पूछने की किसी को हिम्मत नहीं पड़ रही थी। सभी उचित अवसर की तलाश में थीं।

एक दिन दीदी बड़े अच्छे मूड में थीं। सबने सोचा कि दीदी के बारे में जानने का यही सही मौका है। सेन्टर की सबसे पुरानी स्टूडेन्ट वैशाली ने कहा-“दीदी हम सब लोग जानना चाहती हैं कि आपको यह टेªनिंग सेन्टर चलाने की प्रेरणा कहां से मिली ?“

यह सुनते ही दीदी की मुद्रा एकदम बदल गई। उनके चेहरे पर एक रंग आ रहा था और दूसरा जा रहा था। काफी देर तक वह ऊहापोह में बैठी रहीं। फिर उन्होंने अपने साथ घटी घटना के बारे में बताना शुरू किया। सभी लड़कियां उनकी बातें सुन रही थीं। माह का महीना था, कृष्ण पक्ष की काली अंधियारी रात। हम सब अपनी अपनी रजाइयों मंे दुबके हुए थे। उस दिन मेरे पिताजी किसी जरूरी काम से शहर गए हुए थे। घर पर मैं, मेरी माँ और मेरा छोटा भाई बस तीन लोग थे।

पूरे गाँव में खामोशी का आलम था। कभी-कभी कुत्तों के भौंकने की आवाजें इस सन्नाटे को तोड़ देती थीं। चारों तरफ घना कोहरा छाया हुआ था। रात आधी से ज्यादा बीत चुकी थी मगर मुझे और मेरी माँ को नींद नहीं आ रही थी। पता नहीं क्यों एक अनजाना सा भय हम लोगों के मन में बसा हुआ था।

तभी हम लोगों को आंगन में धम से किसी चीज के गिरने की आवाज आई। कोहरा इतना घना था कि आंगन में क्या गिरा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। मेरी माँ ने उठकर लालटैन जलाई। जब तक हम लोग कुछ समझ पाते तब तक चार आदमी हमारे कमरे में घुस आए थे। सबने अपने चेहरों पर कपड़ा लपेट रखा था जिससे कोई उन्हें पहचान ना ले।

सबसे पहले एक आदमी ने मेरे छोटे भाई की गर्दन पर चाकू तान दिया और हम सबको खामोश रहने की चेतावनी दी। फिर तीन लोगों ने मुझे दबोच लिया। मैंने उनकी पकड़ से छूटने की बहुत कोशिश की मगर तीन-तीन मुसटन्डों के सामने मेरी क्या चलती। वे सब मेरे जिस्म से अपने तन की प्यास बुझाने लगे। भाई के प्राणों के डर से माँ बुत बनी यह सब देख रही थी।

मेरी कराहें और चीखें पूरे कमरे में गूंज रही थीं। मेरी चीखें सुनकर मेरी माँ बोली-“एक-एक करके भाई, अभी मेरी बेटी केवल पन्द्रह साल की है।“ यह कहते-कहते उनका गला रूंध गया और वे फफक-फफक कर रो पड़ीं। मगर उन दरिन्दों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। वे कई घन्टे तक मेरे जिस्म को नोचते और झिंझोड़ते रहे।

जाते-जाते वे यह चेतावनी देना नहीं भूले कि यदि तुम लोगों ने हमारे खिलाफ पुलिस में एफ.आई.आर कराई तो तुम्हारे भाई की लाश किसी नदी-नाले में पड़ी मिलेगी।

उनके जाने के बाद मेरा भाई और माँ मुझसे लिपट गए। बहुत देर तक हमारा रूदन कमरे से गूंजता रहा। रोने के अलावा हम कर भी क्या सकते थे।

अगले दिन पिताजी शहर से लौट आए थे। माँ ने उन्हें पूरी रात बताई। वे मुझे लेकर तुरन्त थाने जाना चाहते थे। मगर माँ ने बेटे का बास्ता देकर उन्हें थाने नहीं जाने दिया। उन्होंने मुझे भी भाई की कसम दिलाकर मेरा मुंह सिल दिया।

कहते हैं खबरों के पंख होते हैं। पता नहीं कैसे यह खबर पूरे गाँव में फैल गई अैर फिर वहां से आस-पास के गाँव में। मेरा घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया। मुझे देखते ही लोग तरह-तरह की बातें। शोहदे फब्तियाँ कसते। मुझे अपने शरीर से अपने अस्तित्व से घृणा सी होने लगी। इच्छा होती कि किसी कुएं या पोखर में कूद कर जान दे दूँ।

उस समय मैं फस्र्ट ईयर में पढ़ रही थीं वह कस्बा जिसमें मेरा कालेज था गाँव से छः किलोमीटर दूर था। अब शोहदों ने मेरा कालेज जाना दूभर कर दियां उनकी बातें, उनकी भद्दी फब्तियां, मेरा कलेजा चीर देतीं। मैं खून के घूंट पीकर रह जाती। मैंने अपने साइकिल के कैरियर में एक मोटा डंडा रखना शुरू कर दिया था।

एक दिन मैं साइकिल से कालेज से लौट रही थी। दोपहर का समय था। मैं एक बाग के पास से गुजर रही थी। तभी अचानक चार लड़के मेरी साइकिल के आगे आकर खड़े हो गये। सबके चेहरों पर कुटिल मुस्कान सैर रही थी। उनमें से एक लड़का मेरा हाथ पकड़ते हुए बोला-“कहां जा रही हो मेरी जान, मेरे दिल की प्यास भी बुझा दो।“

मेरे तन-बदन में मानो आग लग गई थी। मैंने अपना हाथ छुड़ाकर कैरियर में से डंडा निकालकर उसके उस हाथ पर ताबड़तोड़ डन्डे बरसाना शुरू कर दिया। पता नहीं कहां से मुझमें इतनी हिम्मत आ गई थी। मैं तब तक डन्डा बरसाती रही जब तक उसका हाथ कई जगह से टूट नहीं गया। उसकी यह हालत देख उसके साथी वहां से रफूचक्कर हो गये थे।

इस घटना के बाद शोहदों की फब्तियां कम हो गई थीं। मुझे देखकर वे बचकर निकल जाते। इससे मेरा आत्मविश्वास काफी बढ़ गया था, मगर मन हर समय अशांत सा रहता।

कस्बे से इंटर करने के बाद मैं और मेरा भाई पढ़ने के लिए शहर आ गए। मैंने बी.एस.सी. फस्र्ट ईयर मंे एडमीशन लिया भाई ने ग्यारहवीं क्लास मंे।

मेरी फिजिक्स प्रोफेसर ने मुझे एन.सी.सी. लेने की सलाह दी। मैंने पहले दिन जब एन.सी.सी. की परेड में भाग लिया तो मुझे बड़ा आनन्द आया। पढ़ाई के साथ-साथ मैं एन.सी.सी. परेड बिना किसी नागा के अटेन्ड करती। बी.एस.सी. प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण करने के साथ-साथ मुझे एन.सी.सी. का सी सर्टिफिकेट भी हासिल हुआ था।

समय पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। मैंने एम.एस.सी. फिजिक्स से करने का निश्चय किया। उस समय मेरा भाई बी.टेक. कर रहा था। अपनी कुछ क्लासमेट के साथ मैं जूडो करोटे सीखने जाने लगी। पाँच-छः महीने मंे ही मैंने जूडो कराटे के कई गुर अच्छी तरह से सीख लिए। एन.सी.सी. और जूडो-कराटे ने मेरा आत्मविश्वास काफी दृढ़ हो गया। मगर मैं अभी तक उस हादसे से पूरी तरह से नहीं उबर पाई थी। एक अजीब सी आग हर समय दिल में धधकती रहती। जब भी मैं खाली होती मन बहुत अशान्त हो जाता। अक्सर रात में सोते से जाग जाती और फिर कई-कई घन्टे नींद नहीं आती।

एम.एस.सी. करने के एक वर्ष बाद ही आयोग से मेरी नियुक्ति इसी शहर के एक गल्र्स इंटर कालेज में फिजिक्स प्रवक्ता के पद पर हो गई। अब मैंने अपनी माँ और पिताजी को भी रहने के लिए शहर बुला लिया। बी.टेक. करने के बाद मेरे भाई को एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जाॅब मिल गई थी। मेरी अम्मा और पिताजी बड़े खुश थे। मगर मेरे अन्दर प्रतिशोध की ज्वाला हर समय धधकती रहती जिससे कहीं भी मुझे सुकून नहीं मिलता।

एक दिन घर मंे बिना किसी को बताए मैं स्कूटी से अपने गाँव जाने के लिए निकल पड़ी। जेठ महीने की दोपहरी थी। चैपाल पर नीम के पेड़ की छांव में कुछ लोग बैठे हुए थे। वह चारों दरिंदे भी वहां मौजूद थे। इतने वर्षों बाद भी उनकी तस्वीर मेरे जेहन में बसी हुई थी। उन्हें देखकर मेरी आँखों में खून उतर आया।

स्कूटी खड़ी कर मैंने अपनी स्टिक उठाई और उन दरिन्दों को सम्भलने का मौका दिए बिना मैं उन पर टूट पड़ी। मैंने उन चारों को पटक-पटक कर स्टिक से जी भर कर मारा। मेरा यह चण्डी रूप देखकर चैपाल पर बैठे अन्य लोग भाग कर अपने-अपने घरों में दुबक गए। उन दरिन्दों की चीखें और कराहें चैपाल पर गूंज रही थीं। वे दया की भीख मांग रहे थे। मैंने ललकार कर कहा-“अगर तुममें कोई मर्द है तो आज मेरे शरीर को छूकर दिखाए। उन्हें जी भर कर मारने के बाद मैं वहां से लौट आई थी।

उस हादसे के बाद आज मेरे दिल को सुकून मिला था और वर्षों बाद पहली बार मैं रात को चैन की नींद सोई थी।

यह बात मुझे अच्छी तरह से समझ में आ गई थी कि लड़कियों के भय और कमजोरी का ही लोग गलत फायदा उठाते हैं। मैं उनके दिलों में बसे भय को दूर कर, उनमंे आत्मविश्वास भरना चाहती हूँ इसीलिए मैंने यह सेन्टर खोला है। मैं चाहती हूँ कि हर लड़की शारीरिक और मानसिक रूप से इतनी मजबूत हो जाए कि कोई भी उसके साथ छेड़छाड़ करने की हिम्मत न कर सके। क्या तुम लोग इस मुहिम में मेरा साथ दोगी ? सभी लड़कियों ने दोनों हाथ उठाकर उनकी बात का समर्थन किया। उनकी आँखों में एक अनोखी चमक आ गई थी। आज पहली बार उनके चेहरे पर मुस्कान दिखाई दी थी।

00000000000000000000000