Ishq a Bismil - 69 in Hindi Fiction Stories by Tasneem Kauser books and stories PDF | इश्क़ ए बिस्मिल - 69

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इश्क़ ए बिस्मिल - 69

उन दोनों को चाय नाश्ता सर्व करके अरीज वहीं पे सिंगल सोफे पर बैठ गई थी। आसिफ़ा बेगम और सनम एक साथ बैठी हुई थी और उन दोनों की अच्छी ख़ासी बन रही थी, उन दोनों को देख कर कहीं से भी ये नहीं लग रहा था की ये उनकी पहली मुलाकात है। वहीं उमैर सोचों में गुम नज़रें झुकाए बैठा हुआ था।
“मैंने सोच लिया है... सनम भी अब कहीं नहीं जाएगी... वह भी अब हमारे साथ इसी घर में रहेगी।“ आसिफ़ा बेगम ने सनम को खुद से लगाते हुए ऐलान किया था। उनकी बात पर उमैर सोचों से बाहर निकला था और हैरानी से अपनी माँ को और उसके बाद अरीज को देखा था।
अरीज मुस्कुराते हुए सनम को ही देख रही थी।
उमैर चाहता था की वह आसिफ़ा बेगम को मना कर दे मगर इस से सनम की तौहीन होती और वह अरीज के सामने उसकी तौहीन हरगिज़ नहीं करना चाहता था।
“नसीमा?... नसीमा...” आसिफ़ा बेगम नसीमा बुआ को ज़ोर ज़ोर से आवाज़ें दे रही थी।
“सुबह उनको बुखार था तो मैंने उन्हें उनके क्वार्टर में आराम करने के लिए कहा था... आप मुझे बताएं क्या काम है?” अरीज ने उन्हें नसीमा बुआ के ना आने की वजह बताई थी। आसिफ़ा बेगम को जाने क्यों उसका इस तरह से बीच में बोलना अच्छा नहीं लगा था... उपर से उसने नसीमा को आराम के लिए कह दिया था वो भी उनको खबर दिए बग़ैर हालांकि आसिफ़ा बेगम खुद आज कल घर और यहाँ पे होने वाली हर चीज़ से खुद को काट कर रखा हुआ था।
“हाँ अब वो नहीं है तो तुम्हें ही करना होगा...ऐसा करो के उमैर के ठीक सामने वाला कमरा जो बंद पड़ा है उसकी सफाई कर के सनम के लिए रेडी कर दो।“ उन्होंने अरीज को हुक्म सुनाया था और अरीज ने उन्हें “जी” कह दिया था और अब उठ कर जाने वाली थी
सनम खुशी से बेहाल हो रही थी मगर उमैर इस दफ़ा चुप नहीं रह सका।
“इसकी कोई ज़रूरत नहीं है... “ अरीज को उठते देख कर उमैर ने उस से कहा था।
“मॉम बाहर अन्नेक्सी है... आप सनम के रहने का वहाँ इंतेज़ाम कीजिए...” सनम को उसकी बात बुरी लगी थी... अच्छा तो आसिफ़ा बेगम को भी नही लगा था के उमैर ने उनकी बात को अरीज और सनम दोनों के सामने रद किया था।
आसिफ़ा बेगम कुछ कहने के लिए अभी मूंह ही खोल रही थी की उमैर वहाँ से उठ कर चला गया था।
अरीज ने अपनी रिस्ट वॉच देखी थी घड़ी पे तीन बजने वाले थे। हदीद और अज़ीन के स्कूल की छुट्टी का वक़्त होने वाला था। एक driver ने जॉब छोड़ दी थी और नदीम दो दिन पहले ही अपने गाँव गए हुए थे ऐसे में ज़मान ख़ान ऑफिस जाते वक़्त उन दोनों को स्कूल ड्रॉप कर दिया करते थे और अरीज उन्हें स्कूल से पिक कर लेती थी। इसलिए अपने कमरे गई थी.. अपने कपड़े चेंज कर के हाथों में छत्री और उन दोनों का raincoat लेकर बाहर आई थी, मगर वहाँ पे उमैर को खड़ा सिगरेट पीते हुए देख कर उसके क़दम सुस्त पड़ गए थे। अपने पीछे पैरों की आहट सुन कर उमैर ने मुड़ कर देखा था और अरीज को पाकर एक गुसीली नज़र से उसे घूरा था मगर अरीज फ़िल्हाल कुछ देखने या सुनने के मूड में नहीं थी वह उमैर को इग्नोर करती हुई तेज़ क़दमों से वहाँ से निकल पड़ी थी। उमैर अपने दांत किचकिचा कर रह गया था। वह कोस रहा था उस पल को जब उसने अरीज को लिफ़्ट देने का सोचा था।
वह गुस्से से अपनी कार की तरफ़ बढ़ा था और कार चलाता हुआ बाहर निकल गया था। रोड के किनारे उसे अरीज खड़ी हुई दिखी थी। वह टैक्स के इंतज़ार में थी लेकिन इस बार उमैर ने उसके लिए गाड़ी नहीं रोकी थी और ज़न करता हुआ अपनी गाड़ी आगे बढ़ा ली थी। अरीज ने गाड़ी के अंदर गुस्से में बैठे हुए उमैर को देख लिया था।
“उमैर कहाँ हो तुम? इस तरह अचानक से कहाँ चले गए ?...मैं और आंटी परेशान हो रहे है।“ उमैर को गायब देख कर सनम ने उसे कॉल लगाई थी।
“क्यूँ परेशान हो रही हो?... किसने कहा है तुमसे परेशान होने को?” उमैर काफी गुस्से में उस से बात कर रहा था।
“तुम ऐसे क्यों कह रहे हो?... क्या मैं तुम्हारे लिए कभी परेशान नहीं हुई हूँ?” सनम को उसकी बातें बुरी लगी थी।
“परेशान?... फ़िल्हाल तुम बोहत खुश हो सनम...अभी मेरी परेशानी या गम से तुम्हे कोई मतलब नही है... जब मैं मना कर रहा था तब क्यों गई तुम उसके साथ घर के अंदर?” उमैर गुस्से से उबल पड़ा था।
“मैं तुम्हें घुटता हुआ नहीं देख सकती उमैर... इन दो सालों में तुम्हारी क्या हालत हुई है अपने घर वालों के बग़ैर ये मैं अच्छी तरीके से जानती हूँ। और वही घर वाले जब तुम्हें बुला रहे थे तब मैं ए मौका क्यूँ छोड़ती?” सनम कहते कहते रोने लगी थी।
उमैर का गुस्सा अभी भी ठंडा नहीं हुआ था .... उसके पास बोहत सारे सवाल थे सनम से पूछने के लिए मगर उसके रोने की वजह से वह चुप हो गया था।
“बोहत अच्छा हथियार है तुम औरतों के पास।“ उमैर ने इतना कह कर फोन काट दिया था।
उमैर की कार की चाभी के साथ ही एक चाभी सनम के फ्लैट की भी थी। वह ख़ान विल्ला से सीधा सनम के फ्लैट गया था। उसे तन्हाई चाहिए थी जो उसे यहाँ मिल गई थी। कुछ देर यूँही वहाँ पड़े रहने के बाद उसने अपनी ज़रूरी चीज़ों को पैक किया था और वापस ख़ान विल्ला आ गया था।
अरीज हदीद और अज़ीन को घर लाकर सनम के लिए रूम तैयार करने लग गई थी। बाहर अन्नेक्सी में तो नहीं मगर आसिफ़ा बेगम के कहने पर गेस्ट रूम में ही उसके रहने का इंतेज़ाम कर दिया था।
उमैर ये सब देख कर अंदर ही अंदर अपने गुस्से को पी रहा था। वह अपने कमरे में गया था और कुछ देर बाद ही अपने कमरे को देख कर उसका पारा और भी ज़्यादा बढ़ गया था।
उसने सोचने में एक लम्हा भी नहीं लगाया था और अपने रूम से निकल कर अरीज को आवाज़ें देने लगा था।
उमैर के मूंह से अपना नाम सुन कर अरीज चौंक गई थी और इस से पहले और सब सुनते या फिर कोई scene create होता वह भागती हुई सीढ़ियां चढ़कर उसके रूम में गई थी।
“वह शेरों की तरह गुस्सा लिए उसे खा जाने वाली नज़रों से घूर रहा था और अरीज कमज़ोर हिरनी की तरह सेहमी हुई उसके सामने खड़ी थी।
आखिर क्या देख कर उमैर का गुस्सा बढ़ गया था?
क्या होगा अरीज का हाल?