भाग 5 :इश्क़
का चक्कर भाग 1
आजकल इश्क़ के तौर-तरीके
बदल गए हैं। पहले प्रेम तो विवाह के बाद ही होता था। शादियां इस तरह की होती थीं कि
माता पिता ने जहां विवाह निश्चित कर दिया; लड़का और लड़की उसे ईश्वर आज्ञा समझकर स्वीकार
करते थे और ऐसी शादियां टिकती भी जीवन भर थीं। संयुक्त परिवार में बड़ों की उपस्थिति
में एक दूसरे से मिलना भी मुश्किल काम होता था। एक कठोर अनुशासन और मर्यादा का स्वबंधन
हर जगह दिखाई देता था। यह जमाना चिट्ठी- पत्री का था।आंखों ही आंखों में इशारों का
था ।पति पत्नी एक दूसरे को सीधे नाम से संबोधित करने के बदले "अजी सुनते हो","मुन्नू
के पापा", "नोनी के महतारी" आदि संबोधनों का प्रयोग करते थे। शायद परोक्ष
संवाद की शुरुआत कालिदास के मेघदूत महाकाव्य से हो गई थी, जब विरही यक्ष को अपनी यक्षिणी
से दूर रहने के कारण मेघ को दूत बनाकर प्रेम संदेश भेजना पड़ा था।
अब समय बदला।मेघों
के बदले चिट्ठी पत्री भेजने का काम कॉपी के पन्ने फाड़- फाड़ कर काफिया और रदीफ मिलाते
इश्क की शायरी तैयार करने और उस कागज को हवाई जहाज बनाकर प्रिय के हृदय में लैंड कराने
की कोशिशों का दौर आया। यह दौर हिंदी फिल्मों के सम्मोहन का दौर था, जब पेड़ों के इर्द-गिर्द
नाचते गाते युवा इस बात का ध्यान रखते थे कि घर का कोई सदस्य उन्हें देख ना ले।घर ही
क्यों, मोहल्ले में से भी किसी ने अगर देख लिया तो सारा इश्क रफूचक्कर हो जाता था।
अब दौर सोशल
मीडिया का है।प्रेम करने वाले मोबाइल के विभिन्न एप्स का सहारा लेते हैं। कई तरह के
इमोजी निकल गए हैं। फ्रेंडशिप एप, डेटिंग एप जैसी आभासी दुनिया विशेष रुप से युवाओं
को कुछ इंचों के उस स्क्रीन के भीतर कैद कर रही हैं।अब फ्रेंड रिक्वेस्ट, लाइक आदि
की गिनती के आधार पर व्यक्ति के पावर का पता लगता है। पहले जमाने में संभाल कर रखने
वाली चिट्टियां अब सोशल मीडिया के संदेश के जमाने में कहीं खो गई है। अभी संदेश आया
और कुछ ही क्षणों में वह संदेश न जाने नीचे कहां चला जाता है कि उसे ढूंढना भी मुश्किल
हो जाता है।
सरस्वती पूजा
के बाद मौजी मामा,मामी को लेकर शहर के पार्क गए।आज गणतंत्र दिवस और बसंत पंचमी का त्यौहार
एक ही दिन होने के कारण पार्क में भीड़ कुछ ज्यादा थी।सेल्फियों के इस दौर में मामी
फटाफट सेल्फी खींचने लगी।
मौजी मामा ने उन्हें रोकते हुए कहा- अब बस करो। जो यहां घूमने के
लिए आई हो कि फोटो खींचने के लिए।
मामी ने तुनकते हुए कहा-अब
आप रहेंगे ओल्ड फैशन के। बाल बच्चे वाले होकर के भी ऐसे शर्माते हैं कि अभी भी इस बेंच
पर मुझसे दो फीट की दूरी पर बैठे हुए हैं। आप ऐसा व्यवहार कर रहे हैं जैसे कि हम पहली
बार मिल रहे हैं।
हंसते हुए मामा ने कहा- भागवान यह सार्वजनिक जगह है। यहां मर्यादित
आचरण बहुत जरूरी है।
मामी ने कहा- अब आप रहेंगे
ऐसे ही सिद्धांतवादी और आदर्शवादी। आप ही तो कहते हैं कि वसंत पूजा का दिन प्राचीन
भारत में मदनोत्सव के रूप में भी मनाया जाता था और यह प्रेम का त्यौहार भी था।एक आप
हैं कि बस इश्क़ की कविताएं लिखते रहें लेकिन रहें इश्क से कोसों दूर।
मामा और मामी
की नोंक -झोंक जारी है।बगल की बेंच पर दो युवतियां बैठी हुई हैं। अवस्था और बातचीत
के तरीके से लग रहा है कि वे कॉलेज में पढ़ने वाली हैं और यहां अपने मित्र से मिलने
आई हुई हैं। उनकी बातचीत मामा मामी की कानों में पड़ रही थी।मामा सोचने लगे- ये कॉलेज
में प्रैक्टिकल परीक्षाओं के देन हैं और यहां ये लड़की अपने कैरियर के बदले इश्क के
खयालों की दुनिया में विचरण कर रही है।
एक सहेली ने कहा- तू तो अभी तक सिंगल है ना रे?
दूसरी ने कहा -मैं तेरे जैसी बोरिंग नहीं। रह तू ही सिंगल।मेरा ब्वॉय
फ्रेंड तो बस आता ही होगा।
अब मामा उन्हें
सुधारने और संस्कारवान बनाने का उपाय सोचने (क्रमशः)