Ek Ruh ki Aatmkatha - 44 in Hindi Human Science by Ranjana Jaiswal books and stories PDF | एक रूह की आत्मकथा - 44

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एक रूह की आत्मकथा - 44

कामिनी की भाभी उमा अपने पति स्वतंत्र के साथ खुश नहीं थी फिर भी उससे अलग नहीं हो पा रही थी।इस बात के लिए वह खुद को अपराधिनी मानती थी।उसकी बचपन की एक दोस्त थी जया।जया की जिंदगी से उसे सबक मिलती थी।
दो दिन पहले ही जया उससे मिलकर गई थी।
जया परेशान थी। इस बार उसकी परेशानी का कारण कोई विजय थे। इस स्त्री में सारी अच्छाईयों, अपार सौन्दर्य व चुम्बकीय आकर्षण के बावजूद एक बड़ा दोष यह है कि यह ऐसा पुरुष मित्र चाहती है, जिससे वह सब कुछ तो शेयर करे, पर देह नहीं। देह को तो मानों यह ‘लाकर’ में छिपाकर रखती है। अब भला पुरुष-मित्रों को यह कहाँ मंजूर कि बिना फायदे के इस स्त्री की मित्रता का खतरा उठाये और बदनामी मोल ले, क्योंकि जया तलाकशुदा अकेली स्त्री भी है। इसलिए उसके व्यक्तित्व से आकर्षित होकर मित्र आते हैं और निराश होकर चले जाते हैं। जया अकेली ही रह जाती है। वह गुस्से में कहती है- "ऐसा क्यों है?क्या स्त्री-पुरुष सिर्फ मित्र नहीं हो सकते? क्यों हर रिश्ते में देह घुसा चला आता है? जब दो पुरुषों के बीच मित्रता हो सकती है, तो स्त्री-पुरुष के बीच क्यों नहीं?
पर कम उम्र के युवक हों या फिर साठ पार के भी पुरुष ....सबकी चाहत-बस देह! जानती हो, किसी को मेरी परेशानियों, जरूरतों व समस्याओं की चिंता नहीं होती, चिंता होती है तो बस इस बात की कि रूप-सौंदर्य से भरपूर यह युवा स्त्री बिना पुरुष के कैसे रहती है? घूम-फिरकर इसी मुद्दे पर आ जाते हैं। अपने आपको सबसे बड़ा पौरुषवान साबित करने के लिए संसार के सभी पुरुषों को कमजोर बताने लगते हैं।"
उसके आक्रोश के भीतर छिपे दर्द को उमा समझती है, इसलिए कभी उसे समझाती है, तो कभी डांट देती है कि क्यों वह पुरुषों से कोई उम्मीद रखती है? क्यों नहीं शान से अकेले जीती? क्या नहीं है उसके पास! इतने हादसों व यथार्थ के कड़वे घूँट पीकर भी क्यों वह पुरुष के सपने देखना नहीं छोड़ती? एक जवान, सुंदर, शिक्षित, आत्मनिर्भर स्त्री को अकेली देखकर लालची पुरुष तो पास आयेंगे ही, और प्रतिदान न पाकर बदनाम करेंगे ही, इसलिए उसके लिए यही बेहतर है कि पुरुष मोह से मुक्त हो जाये, पर जया सपने देखना नहीं छोड़ती, ‘पुरुष’ शब्द का आकर्षण उसे अपनी ओर खींचता रहता है।
उमा कभी-कभी सोचती है कि अकारण ही उसको डाँटती है शायद अकेले होने की पीड़ा से वह वाकिफ नहीं है,इसलिए डांटती है। आखिर जया ऐसा क्या गलत चाहती है? एक अच्छे पुरुष की कामना हर स्त्री को उसी तरह होती है जैसे पुरुष को स्त्री की । इसमें अस्वाभाविक क्या है? समस्या जया के तलाक़शुदा होने से है। हमारे समाज में ऐसी स्त्री को अच्छी नजर से स्त्रियाँ ही नहीं देखतीं, तो फिर पुरुषों की बात ही क्या है!पर जया जाने क्यों अपना अतीत भूल जाती है। वह सोचती है कि उसकी प्रतिभा पुरुषों को उसकी ओर खींचती है, पर उमा को पता है कि पुरुष सिर्फ उसके सुंदर शरीर को पाने के उद्देश्य से आगे बढ़ते हैं। उन्हें हमेशा यही लगता है कि ऐसी स्त्री आसानी से उपलब्ध हो सकती है, क्योंकि उसकी भी शारीरिक जरूरतें होती होंगी। पर जब ऐसा नहीं हो पाता, तो पुरुष का अहंकार तिलमिला उठता है- ‘एक क्षुद्र स्त्री की इतनी मजाल कि उसके पौरुष को नकार दे।‘
जया भी अपने रिश्ते टूटने की बात हँस-हँसकर बताती है, पर वह भी अंदर से टूटती जाती है। हर बार उसका अतीत अपनी उपस्थिति दर्ज करा देता है। असफल पुरुष उसको बुरी स्त्री कहता हुआ यूँ निकल लेता है कि वह आश्चर्य में पड़ जाती है कि कुछ समय पूर्व ही प्रेम के गीत गाने वाला शख्स ऐसे कैसे निर्लिप्त भाव से चला जा रहा है,जबकि उसका मन कसक रहा है। शायद यही स्त्री और पुरुष के मन में अंतर होता है।
जया की आँखों में जिस आदर्श पुरुष का सपना है, वह सिर्फ फिल्मों और उपन्यासों में मिल सकता है, यथार्थ में नहीं। ऐसा नहीं कि पूरे संसार में ऐसे पुरुषों का अस्तित्व नहीं, पर उन तक पहुँचना शायद सबके वश की बात नहीं। वह उसे इस बात को समझाती है, पर वह समझकर भी नहीं समझती।
जया कहती है कि 'इस सपने की वजह से ही तो जिन्दा हूँ, वरना जीने को क्या है?' उसकी इस दयनीय सोच पर उमा को क्रोध आता है। जो नहीं है उसके लिए इस कदर दु:ख क्यों मनाना? पुरुष तो स्त्री के लिए इस तरह शोक नहीं मनाता। जया कहती है-- ‘मनाता है क्योंकि दोनों को एक-दूसरे की जरूरत है.....चाहत है। इस सच्चाई को कोई विमर्श नहीं झुठला सकता। ‘विमर्श’ वहीं होता है, जहाँ स्त्री-पुरुष का रिश्ता प्राकृतिक नहीं रह जाता, जब उनके बीच प्रेम नहीं रह जाता।'
–‘अच्छा !....’ उमा मज़ाक में उसे अपनी तरह खींच लेती है.. ‘और अप्राकृतिक रिश्तों के बारे में आपका क्या ख्याल है ?’ जया धीरे से खुद को अलग करते हुए कहती है-‘छि: ।’
- ‘क्यों आजकल तो सभी प्रगतिशील इसके समर्थन में सिर हिला रहे हैं। स्त्री का स्त्री से और पुरुष का पुरुष से यौन रिश्ता.... कानून भी बन गया है।’ उमा उसे छेड़ती है।
- "नहीं, अप्राकृतिक रिश्ते प्रकृति के साथ खिलवाड़ है जिसका परिणाम कभी-भी मनुष्य के हित में नहीं हो सकता। शारीरिक, मानसिक विकृतियों को जन्म देता है ऐसा सम्बन्ध! वैसे भी यह एक मानसिक व्याधि है जिसका इलाज होना चाहिए। स्त्री पुरुष के सहज रिश्ते का विकल्प नहीं हो सकता यह।"
जया के इन विचारों से उमा में उसके प्रति एक ईष्या जगती है। जी चाहता है कि कह दे –‘इतनी ही जानकार थी, फिर क्यों अपने पति से अलग हो गई? निभाती रहती सहज-प्राकृतिक रिश्ता.... ।’ पर प्रकट में बस इतना ही कहती है-- 'तुम क्यों अपने पति से अलग हो गई थी जया।‘
जया फूट-फूटकर रोने लगती है। पुरुषों के तानें शायद उसे इतनी पीड़ा न पहुँचाते, जितना उमा के एक वाक्य ने पहुंचाया। शायद उसने इस वाक्य में उस बात को भी पढ़ लिया था, जिसे उमा ने छिपा लिया था। उस दिन जया ने उसे वह सब कुछ बताया, जिसे आज तक कोई नहीं जानता था.... उसकी अभिन्न सहेली उमा भी!
जया के पति को उसमें नहीं लड़कों में रुचि थी। रोज रात को वह दरवाजे में बाहर से ताला लगाकर गायब हो जाता।