Life and work of Chhatrapati Shivaji Maharaj in Marathi Short Stories by DS The Writer books and stories PDF | छत्रपती शिवाजी महाराज यांचे जिवन व कार्य

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छत्रपती शिवाजी महाराज यांचे जिवन व कार्य

भारत का इतिहास इस धरती पर जन्म लेने व अनगिनत महिलाओं और पुरुषों के शौर्यगाथा से भरा हुआ है। इन्हीं शूरवीरों में से एक थे मराठा साम्राज्य के प्रथम शासक 'शिवाजी महराज'। शिवाजी महराज के ऊपर अपने माता-पिता का गहरा प्रभाव पड़ा था। उनकी माता जी का नाम जीजाबाई भोसले और पिताजी का नाम शाहजी भोसले था। शिवाजी महराज एक साहसी योद्धा थे, 15 साल की उम्र में उन्होंने तीन किलों पर कब्जा कर लिया था। साल 1674 में रायगढ़ के किले में उन्हें छत्रपति शिवाजी की उपाधि से नवाजा गया।

शिवाजी महराज पर निबंध : शिवाजी महराज का जीवन (Essay on Shivaji Maharaj : Life of Shivaji Maharaj)

शिवाजी महराज बेहद ही आस्तिक इंसान थे और उनका बचपन अपनी माँ जीजाबाई के मुख से धार्मिक ग्रन्थों को सुनते हुए बिता था। एक आस्थावान हिन्दू होने के बावजूद भी शिवाजी महराज ने हमेशा दूसरे धर्म के लोगों के आस्था का सम्मान किया।

जब शिवाजी महराज ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की तो उन्होंने रायगढ़ को अपने राज्य की राजधानी के तौर पर चुना। इसके बाद धीरे-धीरे उन्होंने सीमावर्ती किलों पर जीत हासिल कर इस साम्राज्य का और भी विस्तार किया। अपने साम्राज्य के विस्तार के दौरान उन्होंने मुगल सल्तनत, ब्रिटिश हुकूमत और अन्य सामंती हुकूमतों से लोहा लिया।

शिवाजी महराज पर निबंध : युद्ध (Essay on Shivaji Maharaj : Battles)
शिवाजी महराज ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े जैसे कि प्रतापगढ़ का युद्ध। 10नवंबर 1659 को उनका युद्ध आदिलशाही सल्तनत के सेनापति अफजल खान से महराष्ट्र के सातारा शहर में हुआ। इस युद्ध में पैदल सैनिकों के अलावा हाथी, ऊंट व तोपों का भी इस्तेमाल किया गया था।

शिवाजी महराज के जीवन काल में दूसरे महत्वपूर्ण युद्ध के तौर पर 'कोल्हापुर का युद्ध' देखा जाता है। 28 दिसंबर, 1659 को यह युद्ध वीर मराठा छत्रपति शिवाजी और आदिलशाही साम्राज्य के सैनिकों के बीच में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में लड़ा गया था। दोनों ही सेनाओं में लगभग बराबर मात्र में सैनिक थे, लेकिन शिवाजी की बेमिसाल रणनीति की वजह से उन्होंने ना सिर्फ ये युद्ध जीता बल्कि इसके बाद कोल्हापुर पर उनका आधिपत्य भी स्थापित हुआ।

इसके अलावा, 13 जुलाई, 1660 को आदिलशाह के सिद्दी मसूद और मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे के बीच, कोल्हापुर, महाराष्ट्र, भारत के पास विशालगढ़ किले के पास, पवन खिंड की लड़ाई लड़ी गई थी।शिवाजी महराज पर निबंध : शिवाजी महराज और मानसिक युद्ध (Shivaji Maharaj in hindi : Shivaji Maharaj and Mental Warfare)

शिवाजी के पास मानसिक युद्ध करने का एक बुद्धिमान तरीका था। शिवाजी ने थोड़ी किन्तु सक्षम व स्थाई सेना रखी। शिवाजी को अपनी सेना की सीमा का ध्यान था। उन्होंने महसूस किया कि पारंपरिक सैन्य रणनीति मुगलों की विशाल और अच्छी तरह से प्रशिक्षित घुड़सवार सेना, जो साथ ही साथ, जमीनी जंग लड़ने वाले असलहों से भी लैस थी, से निपटने में असमर्थ थी। इस प्रकार शिवाजी ने 'गनीमी कावा' नामक गुरिल्ला युद्ध रणनीति अपनाई। शिवाजी गुरिल्ला युद्ध में माहिर थे।

उन्हें रोकने के लिए भेजे गए सशस्त्र बलों को उन्होंने गुरिल्ला युद्धनीति की बदौलत नियमित रूप से अचंभित किया और अपनी कुशल तकनीकों से उन्हें युद्ध छोड़ कर भागने के लिए मजबूर कर दिया। उन्हें समझ आ गया था कि तत्कालीन विशाल मगर सुस्त सेनाओं में आपूर्ति एक महत्वपूर्ण मगर सबसे कमजोर कड़ी थी। वे अपनी स्थानीय इलाके की विशेषज्ञता और अपनी हल्की घुड़सवार सेना की बेहतर गतिशीलता का उपयोग करके दुश्मन की आपूर्ति को काट दिया करते। शिवाजी शारीरिक युद्ध से ज्यादा मासिक युद्ध को तरजीह देते। वे बुद्धिमानी से दुर्गम इलाकों का चयन करते और फिर अपने शत्रुओं को आकर्षित करते, उन्हें वहाँ फँसाते और फिर उन्हें वहाँ से भागने के लिए मजबूर कर देते।शिवाजी एक योद्धा की आचार संहिता और उनकी नैतिक उत्कृष्टता के दृढ़ पालन के लिए जाने जाते थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान, उन्हें एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित किया गया था। जबकि शिवाजी के कुछ संस्करणों का दावा है कि ब्राह्मण गुरु समर्थ रामदास का उन पर महत्वपूर्ण प्रभाव था, दूसरों का तर्क है कि बाद के ब्राह्मण लेखकों ने अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए रामदास के प्रभाव पर अधिक बल दिया। स्वराज्य की मान्यताओं और मराठा विरासत का बचाव करके और अपनी प्रशासनिक क्षमताओं का उपयोग करके, छत्रपति शिवाजी महराज ने इतिहास में अपने लिए एक शाही नाम बनाया।

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