यादों के कारवां
में :अध्याय 5
पुरानी यादें .....
जैसे डायरी के पन्ने पलटते हुए
अतीत में पहुंच जाना..............
जैसे एल्बम देखते हुए
पुरानी तस्वीरों का
वर्तमान में सजीव हो उठना.......
और कुछ पाने की खुशी
तो कुछ खो देने की कसक.....
पर
पुरानी यादों की रील में कुछ डिलीट
करनी की नहीं होती कोई सुविधा...
इसीलिए
ये आंखें भिगो जाती हैं कई बार
कभी खुशी में
तो कभी अफ़सोस में.....
(14) चाय और
इंतजार
चाय के दो प्यालों में आकर
जैसे ठहर जाती है सारी दुनिया
जैसे रोज की भागदौड़ और जद्दोजहद के
बीच कहीं मिल जाता है एक विराम ,
जब तक चाय की आखिरी घूंट तक
ना खत्म हो गई हो
और
इसीलिए,
मिल बैठ मित्र के साथ
चाय पीने के समय तक
ठहरा रहता है वक्त भी….
और
इसीलिए
कहीं-कहीं ठंडी हो जाती है
दूसरी प्याली की चाय
मित्र के इंतजार में……
(15) तुम बिन
जीवन ऐसे
तुम बिन जीवन ऐसे
जैसे पुष्प बिन गंध
जैसे मीन बिन जल
जैसे खग बिन पंख
जैसे नदी बिन प्रवाह
जैसे नर बिन उत्साह
जैसे ज्वाला बिन तेज
जैसे हवा बिन वेग
जैसे सूर्य बिन ताप
जैसे चंद्र बिन शीत
जैसे मानव बिन नेह
जैसे आत्मा बिन ; देह।
(16) आखिरी
मुलाकात
लंबी छुट्टी के दूसरे ही दिन
यूनिट से बुलावा आ जाने पर
सामान पैककर
रवाना होने की तैयारी करने लगा सैनिक;
पति के हाथों में कागज़ को देखकर
और संजीदा होकर उन्हें पढ़ते देखकर
समझ गई थी पत्नी
कि अचानक उन्हें
ड्यूटी पर वापस लौटना है;
पापा से परी और राजकुमार की
कहानी सुनकर
अपनी खिलौना गुड़िया से चिपटकर
देर रात गहरी नींद में
सो रही अपनी बिटिया की ओर
कुछ देर अपलक निहारकर
फिर तैयारी में जुट जाता है जवान,
और इधर भारी मन से
बैग में सामान रखने में
मदद करने लगती है पत्नी,
और चल पड़ता है बातों का मूक सिलसिला,
"अब लौटना कब होगा?"
"पता नहीं,लंबा ऑपरेशन है,
आतंकवादियों के खिलाफ,एकदम बॉर्डर पर….."
"तो अपना ध्यान रखना।"
"हां जरूर…..
तुम्हारी दुआएं,तुम्हारा प्रेम जो साथ है,
और लेकर जा रहा हूं
साथ अपने
झिलमिल की मुस्कान,
जब वो पापा कहते हुए दौड़कर
पास आके लिपटती है मुझसे….
और जेब में तुम्हारी दी हुई
हनुमान जी की मूर्ति भी तो है
जो मुझे बचाती है हर बुरी नजर से….
और ये तुम्हारी आंखों में आंसू क्यों….?
तुमसे यह मुलाकात
मेरी आखिरी मुलाकात तो नहीं…
लौटूंगा तो अवश्य,
तुमसे मिलने…..
चाहे मिशन पूरा होने के बाद
लंबी यात्रा के बाद
अपना शहर आ जाने से,
स्टेशन पर उतरते ही
रिजर्व ऑटोरिक्शा करके…..
घर पहुंचकर….
या फिर भारत के तिरंगे में लिपटके….
घर पहुंचकर……
दोनों ही स्थितियों में;
इस बहादुर का स्वागत
अपने घर के द्वार पर
मुस्कुराकर करना….
आंसुओं से नहीं….
……तुम्हीं झिलमिल से कहती हो ना
कि वतन पर मरने वाले
वास्तव में कभी नहीं मरते,
वे बन जाते हैं
आसमां में
एक और सदा चमकता हुआ ध्रुव तारा…..
(17) लेखक का
जीवन
लेखक का जीवन
जैसे
कभी खुशी,तो कभी गम
की स्याही से
ज़िंदगी के कागज़ पर
कविताएं और किस्से- कहानियों
को शब्दों में ढालते हुए स्वयं जीना….
जैसे
देख किसी के आंसू
कलम का खुद-ब-खुद उठ जाना….
जैसे
नफरत भरे दौर में
दुनिया के
आखिरी पाषाण हृदय व्यक्ति तक
प्रेम संदेसा पहुंचा देना……..
योगेंद्र ©
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