अभी शाम का सूरज पूरी तरह से डूब भी नहीं पाया था कि, 'मदार गेट' की इस तवायफों की जुर्म और पाप से सनी गन्दी बस्ती में आकाश में उड़ते हुए तमाम भूखे गिद्धों के समान, गर्म गोश्त के सौदागर आकर टहलने लगे थे. कोठों की खिड़कियों, चकलाघरों के छज्जों और बालकनियों में सज-धज कर बैठने वाली सुंदर-से-सुंदर अपने बदन की नुमाईश लगाने वाली, बहुत-सी मजबूर और काफी कुछ अपनी मर्जी से, अपने जवान बदन को बेचकर पेट की भूख शांत करने वाली वेश्याओं ने घूमना और इठला-इठलाकर नीचे खड़े लोलुप वैश्यागामियों को लुभाना आरम्भ कर दिया था. किसी भी शर्म से महरूम, बे-हया और निर्लज्ज, अपने वक्षों का जान-बूझकर प्रदर्शन करने वाली ये लाजहीन स्त्रियाँ, तवायफों की मंडी में हरेक रात बिकनेवाली इन वेश्याओं के बारे में कौन जानता होगा कि, चकलाघरों और कोठों की चौखट की रौनक बनने वाली इन औरतों का एक समय वह भी था कि, जब यहाँ आने से पहले जब कोई इनको भूले से छू भी देता था तो मारे लाज के इनकी जान ही निकल जाती थी. मगर, वक्त-वक्त की बात थी. समय का तकाजा था कि, आज इन्होने अपनी समस्त लाज और शर्म एक ताख पर रख दी थी- और धड़ल्ले से अपने जवान जिस्म का सौदा करती थीं.
सारे शहर की विद्दुत बत्तियां मुस्करा रही थीं, इसलिए इस बदनाम बस्ती का सारा माहौल पहले से और भी अधिक रंग में लाल और तासीर में गर्म हो चुका था. इतना ही नहीं, प्रशासन की तरफ से अपने कंधों पर सरकारी रायफिलें लटकाएं हुए सुरक्षा के लिए कुछेक सिपाही अपनी खाकी वर्दी में बड़े ही शान और इत्मीनान से टहलते नज़र आ रहे थे. कारण था कि, जब देखो, तब ही इस बस्ती में जघन्य अपराध हो जाया करते थे. खुले-आम वैश्यावृत्ति का धंधा इस बस्ती में हर दिन, हर रात होता था. मजबूर लड़कियां, चोरी से, मूर्ख बनाकर, सिनेमा और फिल्मों में हीरोइन बनने का सपना दिखाकर, झांसा देकर, मां-बाप को बेवकूफ़ बनाकर उनकी भोली-भाली लड़कियों से विवाह कराकर यहाँ इन काले कोठों में लाई जाती थी और फिर बाद में उन्हें अपना बदन बेचने पर मजबूर कर दिया जाता था.
जो लड़कियां इस कुकृत्य में तैयार नहीं होती थीं, उन्हें पहले तो कई-कई दिनों तक भूखा रखा जाता था. बाद में उन्हें जब भोजन दिया भी जाता था तो उसमें पहले ही से नशे में गहरी नींद में सोने की दवाई दी जाती थी. भूखी लड़कियां भोजन खाती थीं और फिर जब सो जाती थीं तो बेहोशी की दशा में उनसे सबसे पहले कोठे के दलाल और अन्य चकलाघरों में पलने वाले गुंडे-बदमाश उनकी अस्मत से जी-भर कर खेलते थे. यह सब होने के बाद जब इस जाल में फंसी हुई लड़की कहीं की भी नहीं रहती थी, तो फिर वह विवश होकर, अपनी किस्मत पर बरबादी की चादर ओढ़कर इस गंदे बाज़ार में कूद पड़ती थी.
सबसे पहले किसी नई लड़की का सौदा उनकी बड़ी मां के निर्देश में किया जाता था. यह पहला सौदा करने वाले कोई भी नामी-गिरामी गुंडे-बदमाश न होकर, शहर के सम्मानीय, अमीर, जाने-माने और हर रोज़ अदब से मुंह उठाकर चलने वाली कोई-न-कोई मशहूर सख्शियत होती थी. तवायफों की भाषा में इस पहले दिन के पहले सौदे का गंदा और घिनौना नाम- 'नथ उतारना' कहा जाता है. पैसों का सौदा भी रुपया न कहकर 'तोड़ा' बोला जाता है. एक 'तोड़े' में एक हजार रूपये माने जाते हैं. कितने 'तोड़ो' में किसका कितना सौदा होता है, यह सब उस लड़की के जिस्म और खूबसूरती पर निर्भर रहता है.
मोहिनी को भी इस चकलाघर में आये हुए अब तक दस दिन से अधिक हो चुके थे. वह पढ़ी-लिखी और समझदार भी थी. उसने इन चकलाघरों और कोठों के व्यापार के बारे में किताबों में पहले से ही पढ़ा भी था. इसके साथ ही इस चकलाघर में उसकी एक सहेली मलिका नाम की भी थी. मलिका भी मोहिनी के समान ही झांसा देकर यहाँ लाई गई थी. ट्रेन में जो नसीमा नाम की अधेड़ औरत उसे मिली थी, उसका ख़ास काम और धंधा यही था. वह रेल में सफर करती थी और उसकी नज़रें इसी प्रकार की लड़कियों पर रहती थी. फिर वह बड़े ही लाड़-प्यार से ऐसी घर से भागी हुई और अपने पतियों के जुल्मों से बचकर भागने वाली स्त्रियों को अपने जाल में फंसाती थी और फिर उनका सौदा करके उन्हें कोठों और चकलाघरों में बेच देती थी.
मलिका ने मोहिनी को इस चकलाघर की एक-एक बात बताकर उसे पहले ही से होशियार और आगाह कर दिया था. उससे कहा था कि, अगर उसने इस काम के लिए मना किया अथवा कोई भी विरोध किया तो यहाँ के लोग उसके साथ बड़ा ही बद-सलूक और घृणित व्यवहार करेंगे और उसको कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ेंगे. इसलिए बेहतर यही होगा कि, वह खुद कोई तरीका इन्हीं लोगों को मूर्ख बनाकर निकाले और अवसर मिलते ही यहाँ से भाग जाए, तभी उसके लिए कुछ भला हो सकता है, बरना नहीं.
फिर जब मोहिनी का नंबर आया तो उसको, इस चकलाघर की कई लड़कियों ने गुलाब जल से स्नान कराया. महकते हुए कई तरह के इत्रों से सने हुए उन वस्त्रों से सजाया गया जिनमें उसके अनछुए शरीर का अंग-अंग यूँ ही सहजता से नज़र आता था. किसी बड़े शरीर वाले, भारी-भरकम सेठ से उसका सौदा उसकी बड़ी मां ने किया था. बेचारी, लकड़भग्गों और मरी पर टूटने वाले गिद्धों के भयानक जाल में फंसी मोहिनी क्या करती? वह चुपचाप, मन-ही-मन अपने उस परमेश्वर से, अपनी हिफाज़त की भीख मांग रही थी जिसने उसे मरने के बाद भी, स्वयं उसी की मिन्नतों और दोहाई के फलस्वरूप इकरा के बदन में भेज दिया था. कभी वह सोचती थी कि, उसने दोबारा इस संसार में आकर अपने जीवन की कोई फिर से बड़ी भूल कर दी है. इससे तो अच्छा उसका भटकी हुई आत्माओं का एकान्तमय, शान्ति से भरा हुआ संसार ही भला था. वहां कम-से-कम इतने घृणित और जघन्य अपराध तो नहीं होते थे. बेबस और मजबूर स्त्रियों के बदन को नोचने वाले मनुष्यों के रूप में निर्दयी भेड़िये तो नहीं थे.
मोहिनी, अभी इसी प्रकार से बैठी सोच रही थी कि, तभी उसे बड़ी मां की एक बेहूदगी से भरी कड़कती आवाज़ ने डरा डरा दिया,
'अब बैठकर टिसुये मत बहा. बहुत खर्च कर दिया है, मैंने तुझ पर. अंदर जाकर कोई बबाल मत कर बैठना. यह रंडियों का इलाका है. यहाँ कोई भी लाज-शर्म की बात नहीं करता है.'
बड़ी मां, अपने ताने से भरे कटु शब्द सुनाकर, अपने गंदे-पीले दांतों से पान को बे-दर्दी से चबाती हुई चली गई तो दो लड़कियों ने उसे अंदर एक कमरे में धकेलकर बाहर से दरवाज़ा बंद कर दिया.
मोहिनी जैसे ही अंदर गई तो अंदर पहले से बैठे हुए एक निहायत ही बदसूरत, काले शरीर वाले दानव जैसे अधेड़ व्यक्ति को देखकर उसकी रही-बची जान भी सूख गई. मगर उसने संयम से काम लिया. उस व्यक्ति को देखते ही वह हल्का सा मुस्कराई और फिर तवायफों के अंदाज़ में ही उसने अपने सीधे बाजू को माथे से लगाते हुए कहा कि,
'आदाब अर्ज़ है. . .आदाब. . .आदाब अर्ज़ हो.'
उत्तर में वह व्यक्ति मुस्कराया तो मोहिनी ने वहां रखी हुई बोतलों में से उसके लिए ड्रिंक बनाया और उसे देते हुए बोली,
'हुजूर की किस्मत में ये मेरी तरफ से सबसे पहला जाम. ..'
'क्यों, इससे पहले ऐसा जाम कभी किसी को नहीं पिलाया क्या?' उस व्यक्ति ने पूछा.
'ऊं. . .हूँ ..नहीं.' मोहिनी ने अपनी गर्दन हिलाकर मना किया.
'इसका, मतलब मैं बहुत भाग्यशाली हूँ जो तुम जैसी हसीन मुझे सबसे पहले मिली है?'
'बे-शक.' यह कहते हुए मोहिनी ने शराब का जाम उस व्यक्ति के सामने बढ़ाया तो उसने उसे हाथ से खींचकर अपनी गोद में जैसे ही घसीटा तो तुरंत ही उसे लगा कि जैसे किसी ने उसके मुंह पर एक झन्नाटेदार थप्पड़ दे मारा हो. इस प्रकार कि, उस थप्पड़ के प्रहार से वह व्यक्ति अचानक ही बिस्तर पर पीठ के बल गिर पड़ा. अपने साथ इस तरह का सलूक देखते ही उस आदमी का क्रोध का पारा अचानक ही सातवें आसमान पर जा पहुंचा. मोहिनी को उसने अपने पैर से धक्का देकर हटाया तो वह बिस्तर से नीचे गिर पड़ी. वह आदमी जैसे खिसियाते हुए मोहिनी से बोला,
'तूने मुझ पर हाथ उठाया? बुला अपनी बड़ी अम्मा को. तुझे मैंने पूरे पांच लाख में एक रात के लिए खरीदा है? अब नखरे दिखाती है?'
'?'- मोहिनी कुछ कहती, इससे पहले ही उस आदमी के मुख से किसी दूसरी स्त्री की आवाज़ ने उसे उत्तर दिया. कहा कि,
'उस बे-खतागार पर इलज़ाम मत लगा. मैंने तुझे मारा है.'
'तू, कौन है?' वह व्यक्ति अपनी आवाज़ में बोला.
'मैं इकरा हूँ.' उस व्यक्ति के मुहं से इकरा बोली तो नीचे पड़ी हुई मोहिनी की समझ में सारा मामला आ चुका था. इकरा की भटकती हुई आत्मा ने आकर उस व्यक्ति को दबोच लिया था. वह उसके समस्त शरीर पर चढ़ बैठी थी.
'तू, इकरा है और यह लड़की मोहिनी, जिसके साथ मैंने पांच लाख का सौदा किया है, उससे तेरा क्या रिश्ता है, जो मुझ पर जुल्म करने चली आई है?' उस आदमी ने पूछा तो इकरा उसी के मुंह से क्रोध में अपने दांत पीसते हुए बोली,
'उस मोहिनी के पास मेरा ही बदन है और तू मेरे बदन, मेरे साथ जबरन मेरी अस्मत को लूटने आया है. मेरी इज्ज़त लूटेगा? अभी बताती हूँ तुझे?'
इकरा की आत्मा का इतना कहना भर था कि, उस व्यक्ति की गर्दन पीछे की तरफ मुड़ती गई. . .इस प्रकार कि, कोई जैसे उसे मरोड़ रहा हो. उस व्यक्ति की गर्दन ऐंठती हुई पीछे की तरफ हो गई, और उस आदमी ने गों. . .गों. . .करते हुए अपने प्राण त्याग दिए. प्राण निकलते ही आदमी के मुंह से लगभग एक छोटी बाल्टी भरके ताज़ा खून निकला, जिसने सारे बिस्तर को कुछेक पलों में ही लाल कर दिया था.
'?'- मोहिनी भयभीत खड़ी यह सब कांपती हुई देख रही थी कि, तभी इकरा ने उससे कहा कि,
'मैंने इस जंगले से नीचे उतरने के लिए रस्सी बाँध रखी है. बचना है तो तू नीचे उतर कर भाग जा और फिर कभी इस गन्दी बस्ती की तरफ लौटने की मत सोचना.'
इकरा के इतना भर कहने के उपरान्त, कमरे में बना हुआ जंगला अचानक ही खुला और उसमें इकरा की आत्मा बाहर अँधेरे में, आकाश की तरफ एक बड़ी सफेद लकीर बनाती हुई टिम-टिम करते हुए तारों की आकाश गंगा में जाकर विलीन हो गई. एक भटकी हुई आत्मा अपने संसार, अपनी उस दुनियां में चली गई थी कि, जहां पर मनुष्यों के नहीं बल्कि आसमान और संसार बनाने वाले ईश्वर के कायदे-कानून चला करते हैं.
मोहिनी ने देखा तो उसे तुरंत अपना भी ज़माना याद आ गया. एक समय था कि जब वह भी इकरा के समान इसी आकाश और संसार में भटकती फिर रही थी. एक बार उसने सोचने के बाद उस आदमी के निर्जीव शरीर को देखा. फिर अपना हुलिया ठीक किया. चेहरे पर लगे हुए तमाम 'मेक-अप' को पौंछा और फिर अपने कपड़े संवारती हुई जंगले से बंधी हुई रस्सी से नीचे उतर गई. नीचे कोई अंधी, पतली गली-सी थी. बिलकुल सन्नाटे-से भरी हुई, नितांत चुप्पी के साथ, अँधेरे-से भरी हुई, अकेली. अपने मुख को दुपट्टे से ढांक कर वह सीधी गली में जल्दी-जल्दी चलती गई. गली आगे जाकर किसी बड़ी सड़क से मिल रही थी. इस सड़क पर कोई अधिक यातायात नहीं था. थोड़ी बहुत कारें, गाड़ियां और इक्का-दुक्का मनुष्यों का आवागमन था.
जल्दी-जल्दी चलते हुए मोहिनी ने सड़क के पार जाना चाहा था कि, तभी वह किसी कार से टकराई और नीचे गिर पड़ी. हांलाकि, कार के ड्राईवर ने बड़ी सावधानी से कार में ब्रेक लगा दिए थे. मोहिनी के गम्भीर चोट तो नहीं आई होगी, परन्तु कार के धक्के से वह नीचे अवश्य ही गिर जरुर गई थी.
मोहिनी नीचे पड़ी थी कि, तभी कार की ड्राईवर वाली सीट से एक युवक नीचे हैरानी में भरा हुआ उतरा और वह मोहिनी को ध्यान से देखने लगा. तभी मोहिनी ने उठना चाह तो उस युवक ने अपने हाथ का सहारा दिया तो वह उठकर खड़ी हो गई.
'कौन हैं आप? क्या मरने का इरादा था?' उस युवक ने पूछा तो मोहिनी कुछ कहती, इससे पहले ही, वह नीचे गिरकर तुरंत ही बेहोश हो गई. मोहिनी को यूँ बेहोश होते देख उस युवक ने उसे गोद में उठाया और कार की पीछे वाली सीट पर लिटा दिया. मोहिनी को कार में लिटाकर उसने कार को चालू किया और सीधा चल दिया- शहर के जाने-माने अस्पताल- 'कलवरी मेडीकल होस्पीटल की तरफ.
-क्रमश: