उसकी दृष्टि में सैनिकों के रेजिमेंट के ऊपर और उससे पर कुछ नेताओं के सुनिश्चित षड्यंत्र का परिणाम था 1857।यह षड्ययंत मौलवी अहमदुल्लाह,नाना सहब,और झांसी की राानी ने मिलकर रचा था।
अल्फ्रेड लायल सन 1857 के षड्यंत्र का श्रेय इन नेताओं को न देकर मुसलमानो को देते है।उसके विचार में मुसलमान 1857 के विद्रोह के लिए जिम्मेदार थे।कई अंग्रेज अफसर लायल के इस विचार से सहमत थे।
अंग्रेज अफसरों और इतिहासकारों में आपसी मतभेद थे लेकिन उन्होंने कभी यह जाहिर नही किया कि 1857 का विद्रोह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम या सैनिक विद्रोह के साथ साथ जन आंदोलन भी था।
भारतीय इतिहासकारों ने भी 1857 को अंग्रेज इतिहासकारों के चश्मे से ही देखा है।इनमें सर्वप्रमुख है रमेश चन्द्र मजमुदार,।वह भी यह मानते है कि 1857 में जो हुआ वो एक सैनिक विद्रोह था।हमारे भतपूर्व प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के शब्दों में,"सामन्तो की अगुआई में यह मूलतः एक सामंती विस्फोट था।।जिसमे व्यापक रूप से फैली ब्रिटिश विरोधी भावना सहायक थी।
चार्ल्स वॉल के शब्दों में,"अवध में अभियान पर निकले सैनिक बिना रसद के चलते है क्योंकि लोग हमेशा उन्हें भोजन कराते है।बिना पहरेदारों के अपना सामान छोड़कर चले जाते है।कोई उसे लुटाता नही था।उन्हें अपने और अंग्रेजो के मुकाम की खबर हमेशा रहती थी क्योंकि इसकी सूचना उन्हें हर घण्टे पहुंचाई जाती थी।
डिज्रायली ने 1857 में पार्लियामेंटमें प्रश्न किया था,"यह सैनिक बगावत है या एक राष्ट्रीय विद्रोह?साम्राज्यों का पतन और विनाश चर्बिवाले कारतूसों के मसलो पर नही होता है।ऐसी बाते उपयुक्त कारणों से होती है।"
थार्नहिल लिखता है---जब हम शांति के साथ इस प्रश्न पर विचार करते हैकि विद्रोह केवल सैनिक बगावत थी या जन विद्रोह तब हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते है कि सैनिकों ने बगावत की अपनी मर्जी पर छोड़ी गई जनता ने खुलकर सरकार के विरुद्ध शत्रुता के काम किये।यह विद्रोह है।
31 मार्च 1858 को,"टाइम्स ऑफ लंदन ने लिखा है--धर्मान्धता या आर्थिक संत्रास विद्रोह का निर्देशन नही कर रही है।वहाँ स्वतंत्रता प्रेम और विदेशी शासन के प्रति द्वेष लोगों को प्रेरित कर रहा है।
अर्नेस्ट जोहन्स ने 1848,1849 में ही 'दी रिवोल्ट ऑफ हिंदुस्तान' व न्यू वर्ल्ड,नाम की कविता लिख दी थी।
1857 जम के बारे में जो भी जानकारी मिलती है अंग्रेजो के रिकार्ड से ही मिलती है।विधरोहियो ने अपने कोई भी रिकॉर्ड नही छोड़े।लेकिन इतिहासकारों का एक समूह यह कहता है कि यह विद्रोह व्यापक रूप में और योजनाबद्ध तरीके से हुआ था।उसके लिए वे गांव गांव में लाल कमल और रोटी बांटने के उदाहरण देते है।जिसके द्वारा विद्रोह का प्रचार और प्रसार किया गया था।इसी तरह सन्यासियों,फकीरों,मदारियों,ने भी 1857 की क्रांति का प्रचार किया। उन दिनों लिखी किताब'गदर के फूल"और आंखों देखा गदर"में भी इन घटनाओं का जिक्र मिलता हैं।
यो तो 1857 के बारे में सेकड़ो किताबे लिखी गयी है।लेकिन जहाँ तक मेरा मानना है--1857 का वस्तुनिष्ठ इतिहास लिखा जाना अभी बाकी है।अब तक लिखी गयी किताबो में ज्यादातर ब्रिटश नजरिये से लिखी गयी है।यह कथन मौलाना आजाद का है।भारतीय नजरिए से लिखी गयी 1857 के लेेेख क सुुरन्दर नाथ का निष्कर्ष था-धर्म के नाम पर आरम्भ हुआ विद्रोह स्वाधीनता संग्राम में बदल गया।इसमें संदेह नही है कि विद्रोही विदेशी शासन के स्थान पर पुरानी व्यस्था को वापस करना चाहते थे।जिसका प्रतिनिधी दिल्ली का बादशाह था।