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दादीमाँ (Grandma's Debt is to be paid)
सुना था पेहचान होती है तो रिश्तो की शुरुवात होती है,और पेहचान खत्म हो जाने से रिश्ते खत्म हो जाते है.. मेरी दादीजी कि जिंदगी मैं अब किसीकी पेहचान रहती ही नही है, फिर भी रिश्ते टिके रहते है।
पता नही हम अपनी ज़िंदगी की कहानी श्याही से क्यो लिखते है, कही न कही उसी चाह मैं श्याही से लिखते है कि कोई उसे मिटा न शके,, लेकिन उसे हमेशा क्यों रखना है?? हम एक rubber क्यों नही रखते? जिससे हम सारी गलतियां , गलत फेसले मिटा सकें!! क्यों सब यादों से हमे हर बार गुजरना रहता है?? जिंदगी का मज़ा तो तब है जब हर सुबह की शुरुआत एक नई खाली Book की तरह हो, रोज नई कहानी लिखनी है और गलत होने पर गलतियां भी मिटानी है और सबसे Important दिन के End मैं उसे भूल जाना है जैसे हमारे ज़िन्दगी मैं ऐसा कुछ हुआ ही नही, चाहे वो ख़ुशी हो, गम हो, ऐहसास हो, चाह हो , राह हो...हर दिन की रात सिर्फ सिर्फ एक ही चीज साथ रखती है, चलती सासेऔर दिलो में रहते रिश्ते...
मेरी दादीमाँ हर रोज ये सुनहरें पालो को सजाती है।।।
सुना था कि आदमी अपनी दिन की थकान को नीद लेकर दूर करता है, लेकिन ज़िन्दगी से हारे हुए आदमी की थकान को दूर तो मनपसंद रिश्ते ही कर सकते है । मेरी दादीमा के पास ऐसा कोई रिश्ता बचा ही नही है.. रिश्ते है बहुत सारे, लेकिन कुछ याद नही रहे और कुछ साथ नही रहे । देख कर बहुत बुरा लगता है कि जो सबंधो के भूखे होंगे उसे दादीमाँ का प्यार तो कभी नही मिलेगा और सबसे ज़्यादा दुख तो उस बात का है कि मेरी दादीमाँ को हर रोज एक नया रिश्ता मिलता है जो बस दो पल खुशियाँ दे सकता है बाकी तो सारी ज़िन्दगी वो थकान तो उनके सर पर रहनी ही रहनी है।
बचपन मैं हम सब भाई बेहने मेरी दादीमाँ के साथ ही ज़्यादातर रहते थे, पूरा दिन कुछ नया नया खेलने को मिलता । और रात मैं उनकी कही सारी कहानियाँ जैसे आज भी उस पलो को जोड़े रखी है। आज भी वो सारी कहानियाँ मुझे उस बचपन से जोड़े रखी है जो कभी मैं इससे बेहतर तरीके से नही जिह पाता। दादीमाँ सब कुछ जो इतना आसान बना देते थे कि जिंदगी स्वर्ग से कम नही लगती थी। पर अब जो बिताए पल दादीमाँ जी नही पा रहे। मेरे लिए उनकी दी हुए पहली संभार (संपत्ति), जो बेशकीमती है; उन्हें वो याद ही नही। अगर मेरे बचपन को उन्होंने इतना सुनेहरा बनाया था तो मेरा भी कुछ कर्तव्य बनता है कि मैं उनका बचपन उससे अच्छा बनाऊ।
उनका बचपन!!मैं कैसे ? अब...!कैसे?
जी आपने सुना होगा की बढ़ती उम्र के साथ आदमी का दिमाग बच्चो सा हो जाता है , में तो ये देख पा रहा हु। दादीमाँ सबसे ऐसे ही बर्ताव करते है जैसे कोई बच्चा दुसरो से करता है। फर्क इतना है कि कोई बच्चा अगर ये सब करे तो सबको उसमे मासूमियत दिखती है लेकिन दादीमाँ की उम्र मैं सबको पागलपन लगता है। बढ़ती उम्र हम से सबका प्यार भी छीन लेती है आज पता चला। बड़े होने पर हमें सहानुभूति नही मिलती टकोर मिलती है जो उस उम्र में किसीको भी तोड़ सकती है। मैं try भी नही कर रहा उन्हें वो बचपन दिलाने की जो उन्होंने ने मुझे दिया था। पता नही क्या रोक रहा है मुझे ये करने से?
खुद के घर मे खुद को पराया पाना ऐसी ज़िन्दगी को बुज़ुर्ग की ज़िंदगी कहते है। अपनो के बीच खुदको अकेला कर देता है ये वयोवृद्ध। कहने के लिए तो सब हमारे पास होते है बस साथ कोई नही होता । अगर कल स्वास्थ्य को कुछ हुआ तो एक कतार सी लगती है ये देखने के लिए, दर्द को बांटने ने के लिए लेकिन कोई हमदर्द नही होता। जो दर्द से वो गुज़र रहे है क्या उसका कोई दूसरा विकल्प हो सकता है? दादीमाँ सबके पास से अपना समय माँग रही है और सब समय निकाल के उनके हालचाल पूछने आ रहे है। तभी तो वयोवृद्ध बचपन से अलग होता है, बचपन आपकी हर ख़्वाहिश को पूरा करता है और वयोवृद्ध हर ख्वाहिशो पर मिट्टी डालने की कोशिश करता है। सबसे जरूरी बचपन आपको हर एक अपनो का समय देता है चाहे उसके पास तभी हो भी नही।
जब मैं छोटा था तब दिन के सारे लम्हो को दादीमाँ मेहसूस करना शीखाती थी। शायद तभी तो आज आते हर एक पल को खुशियोँ से भर सकता हु। आज उनके दिन का हर दूसरा पल मौन है, अनिश्चित है, अकल्पनीय है।अगर वो कही बेठ जाए तो बस वहाँ ही बैठे रहते है। उनके सामने सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय ऐसे गुज़र जाता है जैसे मुठ्ठी में से रेत फिसल जाती है। यादें तो सारी भूला बैठे है, रिश्तो से जैसे कोई नाता ही नही रहा तो क्या सोच रहे वोह? फिर पता चला कि दिमाग से निकली यादों से क्या होता है, दादीमाँ ने रिश्ते तो सब दिल से बनाये है। शायद तभी तो आज भी घर आने वाले हर रिश्तेदारों से वो सारी पुरानी बातें एकमिनान से करती है। उन्होंने कभी रिश्तो में दिखावा किया ही नही वोह तोह मसगुल थे रिश्तों को दिलभर कर निभाने ने मे।
ज़िंदगी के उनके येह सुनहरे पल जहा वो रोज एक नए रिश्ते को संजोति है, उस रिश्ते को जीती है। एक दिन के लिए ही सही लेकिन वो एक दिन को पूरे निचोड़कर जीती है। मुझे वोह एक दीन को ऐसा बनाना है की कल दूसरा दिन हो या न हो उन्हें फर्क नही पडेगा वोह आज में मगन होंगे। उन्हें अफसोस नही रहेगा इस बात का की वोह क्या क्या छोड़ रही है वोह खोये होंगे उस नए खिलोने (रिश्ते) के साथ अपना वक्त बिताने मे।
दादीमाँ के साथ एक दम से ऐसा क्यों हुआ? अभी ही क्यों? यह सवाल मन मे उठे ही थे कि एक दम से मन ने जवाब दे दिया की तड़प कर गुज़र जाती है हर रात आखिर, कोई याद नही करे तो क्या सुबह नही होती??
अगर कोई साथ नही है तो उनके मन मे चाह न होगी? वो तो अच्छे से बिता रहे है वक्त को। आपने कभी महसूस नही किया कि ~
Being alone is so addicting once you notice how peaceful it is..
तो बस वो एकांत को अपना रहे है।
क्या ज़िंदगी है ना उनकी , कुछ भी Permanent नही!! फिर एक दम से अहसास हुआ हा यार सचमें कुछ भी Permanent नही है उनके पास । तो मुझे ये सब कुछ उन्हें देना है, permanently..!! जो वोह हर पल चाहेगे, जो उन्होंने मुझे दिया था, और सबसे बढ़कर उनके वक्त पर मेरे ओर से उनके लिए मेरा वक्त ।
Grandma's Debt is to be paid...
हाँ, तो सब रिश्ते संभाल ने चल पड़ा हु, अपने आप को, आपके साथ मिलाना चाहता हू। कुछ खास शोर नहीं है लेकिन जोश के साथ निकल पड़ा हू। जिंदगी में मिलने वाली सभी खुशियों को आपके साथ बाटना चाहता हू, दुखो में अपना का साथ चाहता हू। रिश्तों की यादों को दोहरा रहा हू, इसी चाह में कि जो छूट आऐ हैं रिश्ते सारे उसे अपने साथ ले चलू। वेसे बोले जाने वाले कई रिश्ते है मेरे पास लेकिन कुछ अनकहे रिश्ते बताने आया हू।
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Times stay for none..
30th December, 2022
सुबह 4:50 Am
एक दम से मम्मी जी ने आकर उठा के बोला की," दादीमाँ कुछ बोल नही रही है , उनको कुछ हो गया है " हम सब उनके कमरे तक दौड़ते हुए गए, कमरा पूरा भरा हुआ था , सबकी आँखों में आंसू आ गए थे क्योकि अगला कुछ बोल ही नही रहा । 6 बजे तक सबको फ़ोन चले गए की दादीमाँ को 10 बजे मुक्तिधाम ले जाएंगे ।
उस दिन एक बात पता चली कि जब जनाना किसी बेहद अपने करीब का हो ना, तो वहा मजूद सारे रिश्ते के बवजूद आप अकेले हो जाते हो... क्योंकि जाता हुआ अपनी आखिरी मुलाकात में भी आप का साथ मांग रहा होता है।
दुख उनके जाने का तो था ही , इस बात का ज़्यादा था कि वोह रात में उनके साथ नही था । ज़िन्दगी के मेरे सारे अच्छे-बुरे वक्त में वो मेरे साथ थे और में उनके आखरी पलो में भी उनके साथ नही था। अब वो पास result की खुशी नही होगी जिसके लिए में आपके लिए बर्फी न लाउ, वो BirthDay celebration क्या जिसके cake का पहला टुकड़ा आपको न खिलाओ , वो दिन ही क्या जिस दिन आपकी कहानियॉ याद न आए, वो में ही क्या जिसके साथ आप न हो।
ऐसे बहुत से Regrets दबाये हुए है , ये जो ब्लॉग मेने आपके साथ मे बैठ कर लिखा था, दिल की ख्वाहिश थी जिस दिन publish हुआ उस दिन आपके साथ बैठकर सबको पढ़कर सुनाऊँगा। December 21th को Release होना था, नही होने का Regret आज भी है।
यार जिंदगी के ना सारे गम एक दिन भुल जाने है....एक वक्त तो आएगा जब आपने उससे Move on हो जाना है...लेकिन अगर तुम Regret लेके चल रहे हो तो वो तुमसे दूर होने से रहा...वो तुम्हें हर खुशी के मोको पर भी याद आकार तुम्हें दुखी करेगा और उसकी यादें आपको हर महफिल में सबसे अलग करेगी... यह एक न दिखने वाला रिश्ता है जो जिंदगी के बाद भी आपको निभाना पड़ेगा..
January 11th(13th day after her's death)
सब सूर्यपुत्री तापी में अपने पाप धोने आये है, में अकेला हूँ जो Regrets डुबाने आया हु।
किसी ने पूछा था मुझे उनके होने या न होने से क्या फर्क पड़ता है? मेने कहा उनकी कमी मेरी पूरी कायनात को खाली देती है।
Miss You Dadijaan ❤️