Nasbandi - 10 - The Final in Hindi Drama by Swati books and stories PDF | नसबंदी - 10 (The Final )

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नसबंदी - 10 (The Final )

पहले मेरे बारे में थोड़ा जान लो, मेरा नाम निवेदिता है, मैं पिछले पाँच साल से महिलाओ और बच्चों का एक स्वास्थ्य सम्बन्धी एन.जी.ओ. चला रहीं हूँ। मैं हर मंच पर महिलाओं और बच्चों के ख़राब स्वास्थ्य को लेकर बात करती हूँ, कितने बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहें है, किस तरह महिलाओ को शादी के बाद होने वाली स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं जैसे, अनियमित पीरियड्स, गर्भपात, मोनोपॉज वैगरह , वैगरह मेरे मुद्दे होते हैं । आप तो अच्छा काम कर रही हैं। मोहन बीच में बोल पड़ा। तुम कह सकते हो, मगर फ़िलहाल मैं कुछ और चाहती हूँ। क्या ? मोहन की आँखों में यह सवाल देखकर निवेदिता बोली, "मैं अब राजनीति में आना चाहती हूँ, मगर मुझे किसी बड़ी पार्टी का हिस्सा बनने के लिये तुम्हारी मदद चाहिए।

मैं क्या कर सकता हूँ ? मैं तो खुद ही हताश हूँ।

तुम अपनी आप-बीती लोगों को बताओ, हमदर्दी हासिल करो, और पुरुषों को नसबंदी की लिए प्रेरित करो।

आपका दिमाग ठीक है, मुझसे यह ज़िल्लत ही नहीं सही जा रही और आप मुझे तिल-तिल कर मारना चाहती हैं।

तुम हमेशा मरने की ही बात क्यों करते हों ? तुम्हारी ज़िन्दगी में क्या कोई नहीं है ?

यह सुनकर मोहन की आँखों के सामने प्रेमा का चेहरा आ गया। और उसकी आँख भर आई, मगर वह कुछ नहीं बोला ।

निवेदिता ने बोलना शुरू किया, मुझे कहीं से पता चला है कि कुछ महीनों के बाद जनसंख्या संबंधी कानून आने वाला है, अगर तुम साथ दोंगे तो मैं अपने एन.जी.ओ के जरिए औरतों के पक्ष में बोलूँगी, और उनकी हमदर्दी हासिल करुँगी, और मुझे लगता है, मेरा सपना ज़रूर पूरा होगा। निवेदिता के चेहरे पर चमक है।

मैं तो आपको अच्छा समझता था, पर आप तो अपने ही बारे में सोच रही हैं।

तुम्हें पता है, मोहन हमारे देश में सिर्फ 10% प्रतिशत पुरुष ही नसबंदी करवाते हैं। और महिलाओं की इस ऑपरेशन के चक्कर में कितनी सेहत ख़राब होती हैं। कितनी तो मर जाती हैं, मैरिटल रेप का नाम तो सुना ही होगा तुमने। 2015 से यह केस कोर्ट में हैं, और अभी भी कोई नतीजा नहीं निकला है। और अगर कल को मैं इस कुर्सी पर बैठो तो इन औरतों के लिए कुछ करने की इच्छा भी रखती हूँ। निवेदिता ने मोहन के चेहरे को पढ़ने की कोशिश की।

मैं अपने गाँव लौट जाऊँगा। मोहन जाने को हुआ ।

वहाँ, तुम्हारे कोई भविष्य है, आगे तुम्हारी मर्ज़ी है। निवेदिता ने भी उसे रोकना ज़रूरी नहीं समझा ।

मोहन उसके घर से बाहर निकला और सोचने लगा, अगर मेरे साथ ऐसा कुछ हो गया है, तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं है। फिर गॉंव जाकर करूँगा क्या, अब तो प्रेमा भी नहीं होगी। अकेले यह सब सोचकर और पागल हो जाऊँगा । अगर भगवान मुझे मारना नहीं चाहते तो वह आख़िर चाहते क्या है।

मोहन के जाने के बाद निवेदिता सोचने लग गई, क्या डरपोक आदमी है, मेरा साथ इसका भी भला हो जाता, मगर यह है तो गँवार ही। तभी घंटी बजी, ज़रूर नंदा आईं होगी । मैंने उसे कहा था कि समता पार्टी के अध्यक्ष से मेरी मीटिंग करवा दें। यहीं सब सोचते हुए उसने दरवाजा खोला और सामने मोहन को देखकर हैरान और खुश हो गई।

मोहन को शुरू में झेंप और हिचकिचाहट महसूस हुई। पर जब उसे लगा, ज़िंदगी ने यहीं रास्ता उसके लिए छोड़ा है, तो उसने बिना किसी झिझक के लोगों के सामने बोलना शुरू किया । उसने अपनी मज़बूरी के साथ-साथ औरतों के सेहत की बात लोगों को समझाई। मोहन ने समाज के पुरुषों को बताया कि नसबंदी कराने में झिझक कैसी, हम भी अपने परिवार की बेहतरी के बारे में सोच सकते हैं, और हमेशा से सोचते आए हैं । अगर आज आदमी अपनी पत्नी के साथ जाकर अपने बच्चे के जन्म के लिए अपनी कमी का ईलाज करवा सकता है, तो बच्चों के पैदा होने के बाद परिवार नियोजन के लिए मदद भी कर सकता है । उसके इन सभी तर्कों ने अनेक लोगों को प्रभावित किया । निवेदिता ने हर सोशल साइट्स पर मोहन की वीडियो डालनी शुरू कर दीं । लोग जुड़ते गए और कारवाँ बनता गया । आख़िरकार, निवेदिता के एन.जी.ओ. 'मानव कल्याण' का नाम भी दुनिया के सामने आने लगा। उसकी संगत में इजाफ़ा हुआ, और उसने लोगों को भावी जनसख्या कानून से जोड़ना शुरू कर दिया। उसकी पहल देखते हुए उसे देश की समता पार्टी ने टिकट दिया और अब निवेदिता को पूरे दो साल हो चुके हैं, विधायक बने हुए । और मोहन को भी नगर-निगम का मेयर बना दिया गया है।

आज तीन साल बाद वो दिवाली पर अपने गॉंव जा रहा है । उसकी बहन को दूसरा बेटा भी हो गया है। उसके छोटे भाई को अंडर-19 क्रिकेट टीम में चुन लिया गया है । पर उसकी माँ बेटे की नसबंदी का सदमा सहन न कर सकीं और हमेशा के लिए दुनिया छोड़कर चली गई । अगर आज माँ होती तो देख पाती, मैंने खोने के साथ-साथ पाया भी बहुत कुछ है, मैंने अपने गॉंव में रोज़गार के साधन लोगों को दिए हैं। आज उसके गॉंव में बच्चों और औरतों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए योजनाएँ चलाई जा रही हैं। पुरुष भी बढ़-चढ़कर नसबंदी कैंप का हिस्सा बन रहे हैं । लोग उसकी बहुत इज्जत करते हैं, उसे अब रेशमा से भी कोई शिकायत नहीं है। उसका दोस्त श्याम जूही के साथ सुख से रह रहा है, वह भी पार्टी का स्टार प्रचारक बन चुका हैं ।


तभी ट्रैन स्टेशन पर रुकी। और उसकी सोच को भी विराम लग गया । स्टेशन पर गाड़ी और ड्राइवर उसका इंतज़ार कर रहे हैं । गाड़ी सीधा उसके बंद पड़े घर के आगे रुकी । फ़िर, उसने भारी कदमों से दरवाजे पर लगा ताला खोला । और अंदर आ गया । सामान उसका ड्राइवर रखकर चला गया। उसने पूरे घर को देखा, उसे माँ की याद आई और उसकी आँखें नाम हो गई। वह चारपाई बिछाकर आँगन में लेट गया। उसने आँखें बंद की और जब आँखें खोली तो सामने उसकी बहन खाना लिए खड़ी है। बेला ! तू कब आई ? बस अभी आई । खाना खा लो, भैया । अभी मन नहीं है, तू रसोई में रख जा । बेला मैं कल शाम की गाड़ी से वापिस जा रहा हूँ । आए हों तो थोड़े दिन रुक जाओ । नहीं, बस घर की हालत देखनी थी, वो छोटी सी खाली पड़ी दुकान तेरे नाम कर दीं है । बाकि कभी कुछ और चाहिए तो बताना। कहकर उसने बेला के सिर पर हाथ रख दिया और बेला उससे लिपटकर रो पड़ी।

वह नहर के पास बैठा है। और घड़ी में शाम के पाँच बज है । इस समय वह सिर्फ़ प्रेमा को ही याद कर रहा है। काश ! हम साथ होते, तभी उसे पानी में किसी की परछाई दिखी और उसने पीछे मुड़कर देखा तो प्रेमा खड़ी है। उसकी आखों को विश्वास नहीं हुआ। उसने उसे छूने की कोशिश की तो वह सिहर गई। प्रेमा तू ? तू तो दूसरे गॉंव बस गई थीं। तेरा घरवाला कैसा है? सब एक सांस में ही पूछ लेगा। प्रेमा नहर के पास बैठते हुए बोली। वो भी उसके पास बैठ गया । वह नहर की तरफ़ देखते हुए बोली । घरवाला मज़े में है। छह महीने हो गए मायके आये हुए । आज बाबा उससे बात करने गए है । शायद एक-दो दिन में यहाँ से चली जाओ।

क्या हुआ ? उदास लग रहीं है ।

तेरी बद्दुआ लगी है ।

तेरा बुरा सोचकर मैं ज़िंदा नहीं रह सकता ।

ब्याह नहीं करवाया ? अब तो बड़ा नेता बना फिरता है।

तेरे जैसी एक मिली थीं, मगर वो सचमुच तेरे जैसी निकली छोड़कर चली गई ।

मार ले ताना, हक़ बनता है, तेरा।

अब दिल की बात भी न बताओ।

दिल तो तू ही ले गया था, मोहन । अब तो पिंजर ही रह गया यहाँ पर । बापू ने अपनी बिरादरी में शादी करा दी। शादी के बाद पता चला कि उसमे कुछ कमी है । और वो मुझे बाँझ बनाने पर तुला था, बहुत लड़ाई-झगड़े हुए । वापिस घर आ गई । उसके माँ बाप ने उसके देसी ईलाज करवाए, तब कहीं जाकर शादी के तीन साल बाद बच्चा हुआ। कुछ महीने सही गुज़रे फ़िर वहीँ गाली-गलौच। फ़िर वापिस बापू के घर आ गई । आज बापू मेरी ससुराल में बात करने गया है। हमेशा ऐसे ही होता है, कई-कई महीने मायके में पड़ी रहती हूँ । पता है, मोहन जब उसने पहला जूता मारा, तब लगा कि इससे अच्छा तो तेरे साथ रहकर दुनिया की बातें सुन लेती। तब तेरी बहुत याद आई। कहते हुए प्रेमा की आँखों में आसूँ आ गए।

अब क्या सोचा है ?

सोचना क्या है । वहीं वापिस जाओ, और झेलो ।

मेरे साथ चल, कुछ नहीं रखा इस रिश्ते में । मैं कानूनी तरीक़े से तुझे उससे अलग करवा दूंगा ।

पागल हो गया है क्या ? दो-ढाई साल की बेटी है, मेरी । और लोग क्या कहेंगे । वैसे भी मैं तेरे लायक नहीं हूँ ।

लोग क्या कहेंगे ? यहीं सोचकर तो तुमने हम दोनों का ऐसा हाल कर दिया । अगर तुझे लगता है कि तूने मुझे कभी प्यार किया है तो अपनी बेटी को लेकर कल शाम स्टेशन पर आ जाइयो, मैं तेरा इंतज़ार करूँगा । कहकर मोहन प्रेमा को बिना देखें चला गया और प्रेमा चिल्लाती रहीं, "मैं नहीं आऊँगी, मोहन, मैं नहीं आऊँगी ।

मोहन फ़िर स्टेशन पर खड़ा है, गाड़ी जाने वाली है । मगर प्रेमा का कहीं कुछ पता नहीं ।

आखिर हारकर वह गाड़ी में चढ़ गया । गाड़ी ने हल्की गति पकड़ी । तभी उसे एक आवाज सुनाई दीं। मोहन ! मोहन उसने दरवाज़े के पास जाकर देखा तो प्रेमा हाथ में बच्चा और थैला लिए भागती आ रही हैं । उसने गाड़ी की चैन खींची और लपककर गाड़ी से उतर गया । प्रेमा! प्रेमा!कहकर वह उसकी तरफ़ दौड़ा । उसने उसे गले लगा लिया। मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ, बहुत प्यार । यह कहते हुए उसने मोहन को गले लगा लिया । गाड़ी रुकने से स्टेशन पर लोग जमा हो गए । उसने जल्दी से प्रेमा को गाड़ी में बिठाया । और गाड़ी फ़िर चलने लगी । क्या नाम है, इसका ? उसने बच्ची को अपनी गोद में लेते हुए पूछा । प्रेमा ने उसकी आखों में देखते हुए कहा, 'मोहिनी ' मोहन हँसा और बच्ची और प्रेमा को गले लगाते हुए बोला, "हमारी 'मोहिनी" ट्रैन सबकुछ पीछे छोड़ते हुए अपनी गति से आगे बढ़ती जा रही है।

 

समाप्त