वो फटी आँखों से चारों तरफ़ देखने लगा और उसे सामने ही एक गुड़िया दिखी। बालों से बनी एक साधारण सी गुड़िया। लेकिन उसमें भला इतनी ताक़त कहा से आई कि वो घिनु को पछाड़ दे। तभी घिनु के सामने सोमनाथ चट्टोपाध्याय आ खड़े हुए। अब वे मुस्कुरा रहे थे और घिनु इस वक़्त भी ज़मीन पर गिरा अवाक बैठा था। उसकी समझ से सबकुछ परे हो गया था जैसे।
उसने तिरछी नज़र से एक बार अखिलेश बर्मन की तरफ देखा तो वे अपनी पत्नी को सीने से चिपकाएं खड़े दिखें। अब उसे सबकुछ दिखने लगा था। लिली,प्रज्ञा की रूह और प्राची भी। साथ ही अब उनके साथ दिलेर साहू भी खड़े थे, असल में सोमनाथ चट्टोपाध्याय दिलेर साहू को बीच रास्ते से समझाकर वापस ले आये थे। दिलेर साहू और अखिलेश बर्मन ने मिलकर घिनु को एक मोटी रस्सी से उसी कुएं के साथ बांध दिया। हां अब वो काफ़ी कमज़ोर था। पहली बार उसका सामना एक अच्छी ताक़त से हुआ था। प्रज्ञा की अच्छी ताकतों ने उसे कमज़ोर कर दिया था।
घिनु आज बिल्कुल उसी तरह चिल्ला रहा था जैसे वो कुणाल के मौत के दिन चिल्ला रहा था। आस पास तैनात खड़े पुलिसकर्मियों को जब घिनु के चीखने की आवाज़ आयी तो वे सभी भी कुएँ के पास चले आये। सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने इशारे से उन्हें कुछ भी ना करने को कहा। और जैसा कि मैंने पहले ही लिखा है कि उनका व्यक्तित्व ही वैसा था कि चाहे कितना भी ऊंचे ओहदे का इंसान हो उनकी बात को टाल नहीं सकता था।
घिनु जानता था, ये सब बस कुछ ही देर का खेल है। जल्दी ही अच्छी ताकतों का असर उसपे से ख़त्म होगा औऱ वो इन सब को ख़त्म कर डालेगा। लेकिन तभी उनके सामने प्रज्ञा आ गयी और बोली:-
"आज तक तुमने सिर्फ़ मेरी बुरी शक्तियां ही देखी थी लेकिन आज पहली बार तुम मेरी अच्छाइयों से रूबरू हुये हो। जानती हूं मेरी अच्छाइयां तुम्हें मार नहीं सकती, ये सिर्फ़ इसलिए भी तुमपर काम कर रही है क्योंकि इसे तुमपर फेंकने वाला भी वहीं था जिसपर तुमने यक़ीन किया था। अखिलेश बर्मन ने ही ये गुड़िया तुमपर फेंकी थी, इस दुनियां में तुमने सिर्फ़ मुझपर और अखिलेश बर्मन पर ही तो यक़ीन किया था इसलिए इन दोनों से मिलें धोखें ने ही तुम्हें कमजोर किया है।"
प्रज्ञा की बातें ख़त्म हुई तो सोमनाथ चट्टोपाध्याय बोलने लगे। हम सभी चाहते तो धोखे से ही तुम्हें ख़त्म कर सकते थे, हां तैयारियां थोड़ी और करनी पड़ती लेकिन जानते हो ऐसा करने से क्या होगा....ये श्राप वहीं का वहीं बरकरार रह जाएगा। सिर्फ़ तुम इस श्राप को ख़त्म कर सकते हो। एकलौते तुम ही हो जो सबकुछ ठीक कर सकते हो। तुम्हारे द्वारा की गई एक अच्छाई तुम्हें हमेशा हमेशा के लिए इस श्राप से मुक्त कर देगा। नही तो ये सब फ़िर दोहरेगा...फ़िर वो जन्म लेगा और तुम भी। और हर बार ये जरूरी नहीं होगा कि उसकी मौत इतनी जल्दी हो जाएं। वो सालों साल जियेगा और तुम उसके हिस्से के दर्द को झेलोगे। वहीं तुम्हारा घिनौना रूप होगा जिससे इंसान डरेंगे नहीं बल्कि भागेंगे। लेकिन तुम सबकुछ ठीक कर सकते हो।"
"और अगर मैं ऐसा ना करूँ तो" घिनु ने फ़िर बेहयाई से पूछा।
"तो मैं एक बार फ़िर उसे जन्म दूंगी। फ़िर वो आएगा मेरे पास और इस बार मैं ख़ुद उसे खौलते तेल में झोंक दूंगी ताकि तुम्हें इतनी जलन महसूस हो कि तुम्हारी ये शैतान आत्मा भी मर जाये। इतने लोगों के मरने से अच्छा है कि मेरा ही बेटा हर बार मर जाये।" इस बार कांपते हुए सकुन्तला जी बोल रही थी ये। वे वैसे भी अपने बच्चे की मौत से बौखलाई हुई थी ऊपर से घिनु की ये ढीठता उसे बर्दास्त नहीं हो रहा था।
घिनु के भीतर कुछ बदल रहा था वो समझ रहा था सोमनाथ चट्टोपाध्याय के दिये तर्को को। सबकुछ बार बार शुरू होने से अच्छा है हमेशा के लिए ख़त्म हो जाना। वैसे भी इन सबमें नुकसान तो हर बार उसका ही होगा। वो ही झेलेगा दर्द,उसके ही हिस्से आएगी लोगों की बद्दुआएं। उसने सोमनाथ चट्टोपाध्याय से आखिरकार पूछ ही लिया..:-
"लेकिन मैं भला ऐसा क्या करूँ जिसे अच्छा काम कहेंगे आप सब?"
सोमनाथ चट्टोपाध्याय मुस्कुराये। पहली बार घिनु में उन्हें मासूमियत दिखाई पड़ी और वे बोलें।
"इस अच्छाई को अपने गले से लगाकर उस बुराई से भरे कुए में समा जाओ। इस जगह की मनहूसियत ख़त्म हो जाएगी और उसके साथ ही ख़त्म हो जाओगे तुम और ये श्राप भी ख़त्म हो जाएगा तुम्हारे साथ। प्रज्ञा की रूह यहां से आज़ाद हो जाएगी और उसका नया जन्म हो पाएगा। यहीं होगा तुम्हारे द्वारा किया गया एक अच्छा काम जिसके बदौलत ही ये श्राप हमेशा हमेशा के लिए ख़त्म जो जाएगा।"
घिनु ने एक लंबी आह भरी। अभी जिस दर्द को वो झेलने वाला था उस दर्द की कल्पना भी हम नहीं कर सकते। बहुत मुश्किल होता है बुराई का अच्छाई को गले से लगाना। लेकिन उसने ऐसा किया....सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने सभी को कुएं से दूर जाने का इशारा किया। घिनु उठा और उसने प्रज्ञा की उस बालों वाली गुड़िया को अपने से चिपकाकर एक ही पल में तेज़ी से कुएँ में छलांग लगा दी। उसके बाद कुएँ के भीतर से विस्फोटक आवाजें आने लगी। जैसे कुएँ के भीतर अनगिनत पत्थरों की बारिश हो रही हो। देखते ही देखते कुएँ का नामों निशान ख़त्म हो गया, वो वहीं की मिट्टी में गुम हो गया। और इसके साथ ही प्रज्ञा की रूह भी सफ़ेद आसमान की सफेदी में कहीं गुम हो गई।
जीवन फ़िर से शुरू होने लगा। प्राची वापस अपनी मां के पास लौट गई। सोमनाथ चट्टोपाध्याय भी वापस जर्मन चले गए। अखिलेश बर्मन ने अपने जुर्म कबूल कर लिए थे,जिसकी वजह से उन्हें कुछ महीनों की कानूनन सज़ा भी हुई। अब वे अपनी पत्नी के साथ सुकून से अपने बर्मन विला में रहते है। फ़िलहाल उनकी पत्नी यानी सकुन्तला जी फ़िर से नौ महीने की गर्भवती है। इस बार जब उन्हें प्रसव पीड़ा हुई तो जानबूझकर वे उसी सरकारी अस्पताल में गये, जहां कुणाल का जन्म हुआ था। शायद इस तरह से ही वे लोग कुणाल को याद करते रहेंगे। उनकी दूसरी संतान का जन्म भी इसी सरकारी अस्पताल में हुआ। लेकिन इस बार जन्म के बाद उनकी बच्ची इतने ज़ोर की रोइ की सारा अस्पताल ही बच्ची को देखने के लिये आ गया। उनकी बच्ची जिसका नाम बड़े प्यार से उन्होंने प्रज्ञा रखा था।
समाप्त