भाग 4: मामा
जा पहुंचे मेला :समापन भाग
(पिछले अंक
से आगे)
........मौजी मामा की स्कूटी नदी के तट पर बने
मंच के पास पहुंची।सामने ही मंदिर था और इससे लगा हुआ नदी का तट। मेले में सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का आयोजन करने के लिए मंच बना हुआ था।सबसे पहले मामा परिवार ने मंदिर में
पूजा अर्चना की और नदी के दर्शन किए।अब इस नदी के तट पर भी आरती की परंपरा शुरू हुई
है।मामा खड़े होकर सोचने लगे,यह बहुत अच्छा है कि प्रकृति के पूजन, संरक्षण और संवर्धन
के प्रयत्न से प्रकृति और मानव का माता पुत्र वाला संबंध मजबूत होता है।अगर ये नदियां,
वृक्ष,पहाड़ ,झरने नहीं रहे तो मानव सभ्यता भी नहीं रहेगी।जल है तो हम हैं।चुन्नू और
मुनिया नदी के जल को स्पर्श कर उसके किनारे सीढ़ियों पर बैठकर अब एक दूसरे पर जल के
छींटे फेंक रहे हैं।मामी बीच-बीच में बच्चों को सावधानी बरतने को कह रही थीं।
मुनिया ने कहा, कितना सारा पानी मम्मी, जाने कहां से आ रहा है और
कहां जा रहा है।
चुन्नू ने जवाब देते हुए कहा,अरे इतना भी नहीं जानती, नदिया पहाड़ों
से निकलती हैं और दूर समुद्र तक जाती हैं।
मुनिया ने मुंह बनाते हुए कहा, पता है पता है भाई।
फिर पूछ क्यों रही थी? -चुन्नू ने कहा।
मुनिया ने नहले पर दहला मारते हुए कहा, इसलिए कि तुमको पता है कि
नहीं।
इससे पहले कि दोनों भाई बहनों में कहासुनी और मीठी
नोकझोंक आगे बढ़ती,मामी का ध्यान नदी को निहारते मामा की ओर गया। पास जाकर उन्हें झकझोरते
हुए मामी ने कहा, क्यों जी अब यही खड़े रहना है कि मेला भी घूमना है?क्या आपकी समाधि
लग गई है या अपनी किसी नई कविता के लिए यहीं शब्द ढूंढने लगे।
मामा जी दार्शनिक विचारों की दुनिया से धरातल
पर लौटे।तुरंत बच्चों से बोले- लेट्स मूव चिल्ड्रन।
इसके बाद शुरू हुआ मेला घूमने का दौर। कई तरह के
खिलौने,मिठाईयां,कपड़े,दैनिक उपयोग की चीजों से लेकर कौन बनेगा करोड़पति टीवी शो जीतने
का नुस्खा और क्वेश्चंस बताने वाली किताब…….। मामी और दोनों बच्चों ने जी भर कर खरीदारी
की।बच्चों ने झूला झूलने के बाद एक जादूगर के छोटी अवधि के चलित शो में खाली टोपी के
भीतर से निकलते रुमाल, फूलों और चॉकलेट को देखकर ताली बजाई।जब यह शो चल रहा था,अचानक
एक युवती पास आकर मामा से बातें करने लगी।मामी चौकन्नी हो गईं।अब मामी का ध्यान जादूगर
के ताश के पत्तों, चुन्नू मुनिया की हरकतों से लेकर मामा और उस युवती की बातचीत की
तरफ इधर-उधर होता रहा। मुस्कुराकर वह युवती विदा हुई।मामा के साथ उसने मामी का भी अभिवादन
किया लेकिन मामी ने सिर हिलाकर रुखा सा जवाब दिया।
मामी ने पूछा,कौन थी ये?
मामा ने कहा,अरे अब आपका ध्यान न जाने कहां चला जाता है,एक पाठिका
थी।मेरी एक प्रकाशित रचना पर टिप्पणी कर रही थी।अब आप हो कि इस उमर में भी मुझे चौबीसों
घंटे पहरे में रखना चाहती हो।
मामी हंस पड़ीं।वे समय-समय पर जांच लिया करती हैं कि रिमोट कंट्रोल
सही चल रहा है कि नहीं।
तट से लगे हुए मंच में मेले का उद्घाटन कार्यक्रम
चल रहा था।सामने दर्शकों की भीड़ थी।मामा-मामी,चुन्नू और मुनिया पीछे कुर्सियों में
जाकर बैठ गए।उद्घाटन कार्यक्रम में शहर के साहित्यकारों, खेल प्रतिभाओं आदि उल्लेखनीय
उपलब्धि हासिल करने वाले लोगों को सम्मानित किया जा रहा था।इसके बाद अंचल के प्रसिद्ध
लोक कलाकारों की सांस्कृतिक प्रस्तुति शुरू हुई।उन्हें महसूस हुआ कि मेले में आकर जैसे
हमारे सारे भेदभाव मिट गए हैं।धर्म,जाति, भाषा आदि के सारे कृत्रिम मानव निर्मित भेद
जैसे मेला क्षेत्र में आकर अदृश्य हो गए हैं।विभिन्न राजनैतिक दल,प्रशासनिक मशीनरी,विभिन्न
स्वयंसेवक,आम जनता,.....सब जैसे आपस में हंसी-खुशी और उत्साह के महासमुद्र में एक साथ
इस तरह घुल मिल गए हैं,जैसे मतभेद नाम की कोई चीज ही ना हो।आंखों में नया चश्मा लगाए,हाथों
में गुब्बारे थामे बच्चों और सबसे पीछे गृहस्थी के लिए जरूरी सामानों की खरीदारी के
थैले को प्रसन्नतापूर्वक हाथों में थामकर बैठी मामी को लेकर मामा की स्कूटी मेला क्षेत्र
से घर की ओर निकल पड़ी।
(अगले शनिवार को एक नया प्रसंग आपके सामने होगा..........)
डॉ.योगेंद्र
कुमार पांडेय