Pakdouwa - The Forced Bride - 12 - Final Part in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 12 - अंतिम भाग

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पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 12 - अंतिम भाग

"मैं नही मानता"
""अनुपम यह तुम्हारे मानने का सवाल नही है।यह हमारी संस्कृति है,रीति रिवाज है,परंपराएं है।"
"रानी तुम जानती हो।मैं तुमसे प्यार करता हूँ।तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।"
"अनुपम तुमने मुझे कब प्रपोज किया?"
"मैं चाहता था पहले माँ को इस शादी के लिए राजी कर लूं।"
"पहले तुम अपने प्यार का इजहार तो करते।अपनी इच्छा तो जाहिर करते।अगर तुम्हारी माँ तैयार नही होती तो तुम तब तक प्रतीक्षा करते,"रानी अनुपम को समझाते हुए बोली,"अब तुम छाया को अपना लो।"
"मतलब तुम्हे भूल जांऊ?"
"नही,"रानी बोली,"मुझे पत्नी बनाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन बहन नही।"
"क्या मतलब?"
"अनुपम तुम्हारे कोई बहन नही है और मेरे भाई नही है।मैं चाहती हूँ तुम मुझे बहन बना लो और मेरा कन्यादान करना।"
अनुपम को रानी के प्रस्ताव पर नतमस्तक होना पड़ा।उसने रानी का भाई बनना तो स्वीकार कर लिया था पर छाया को अपनी पत्नी मानने के लिए उसका मन तैयार नही था।
जब रानी वापस जाने लगी तब अनुपम उसे छोड़ने के लिए स्टेशन जाने लगा तब वह छाया से बोली,"भाभी तुम भी चलो।"
और छाया भी उनके साथ स्टेशन गयी थी।अनुपम ने रास्ते के लिए बिसलेरी,बिस्कुट आदि सामान लेकर रखा था।ट्रेन चलने से पहले रानी,छाया का हाथ अनुपम के हाथ मे देते हुए बोली,"अब यही यथार्थ है।इसे स्वीकार कर लो।मेरी भाभी को कोई कष्ट न हो।"
और रानी चली गयी थी।अनुपम,छाया के साथ वापस लौट आया था।रानी उसे समझा गयी थी।पर अनुपम का मन इस बात को स्वीकार ही नही कर पा रहा था।अगर शादी से पहले अगर उसके दिल मे रानी का ख्याल न होता तो वह इतनी सुंदर पत्नी को स्वीकार करने में देर न लगता। कोई कमी न थी छाया में।पर उसका मन माने तब ने।और इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए।छाया ने भी खामोशी ओढ़ ली।
और इतवार को वह शहर जाने लगा।तब छाया बोली,"कहा जा रहे हो?"
" शहर,"अनुपम बोला,"क्यो?"
"मैं भी चलूँ?"
अनुपम मुह से कुछ न बोला लेकिन उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया।
छाया अनुपम के साथ कार में जा बैठी।अनुपम को कुछ बनियान आदि खरीदने थे।दुकानदार उसे देने के बाद छाया से बोला,"आपको भी दिखाऊँ?"
"हा"छाया कुछ बोलती उससे पहले अनुपम ने जवाब दिया था।
"कुछ और लेना है?"दुकान से बाहर आने पर अनुपम ने उससे पूछा था।
"सब तो है।"
"देख लो।"
और कुछ खाने का सामान लेकर वे वापस चल दिये।वे गए तब धूप खिली हुई थी।लेकिन लौटते समय आसमान में बादल मंडराने लगे।ठंडी हवा बहने लगी।बीच जंगल मे आकर कार अचानक खराब हो गयी।अनुपम नीचे उतर कर कार को देखने लगा।काफी देर तक प्रयास करने के बाद भी कार नही चली तब वह बोला,"इसे भी अभी खराब होना था।"
"पैदल चले।"
"चलना ही पड़ेगा।"
और अनुपम और छाया पैदल बंगले की तरफ चल दिये।आसमान से पानी की बूंदे गिरने लगी जो धीरे धीरे तेज हो गयी।रास्ते मे पेड़ के नीचे रुकने से कोई फायदा नही था।वे रुके नही।बंगले तक पहुंचते पहुंचते वे पूरी तरह भीग चुके थे।घर पहुंचते ही अनुपम ड्राइंग रूम में कपड़े बदलने लगा।छाया बेड रूम में चली गयी।
अनुपम कपड़े बदलकर बेड रूम में चला गया।वहाँ का दृश्य देखकर
छाया निर्वस्त्र खड़ी अपने नग्न शरीर को तोलिये से पोंछ रही थी।छाया की नग्न देह को देखकर वह अपने आप पर काबू नही रख पाया
और
उसने छाया को पकड़कर अपनी तरफ खींचा
छाया शायद इसी दिन के इन्तज़ार में थी।