Agnija - 108 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 108

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अग्निजा - 108

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-108

केतकी भागते-भागते सीधे पुलिस चौकी में ही रुकी। वहां पर मौजूद दशरथ पटेल हवलदार ने उसे पहचान लिया, ‘दीदी, आप यहां?’ दशरथ का बेटा केतकी का विद्यार्थी था। स्कूल के कार्यक्रम में उसने केतकी को देखा था, अपने बेटे के मुंह से उसके बारे में बहुत कुछ सुना था। उसकी तारीफ सुनी थी।

‘शिकायत दर्ज करवाने आयी हूं...’

‘पहले बैठिए...पानी पीजिए...उसके बाद आराम से साहब को सब बताइए...’केतकी वहां रखी बेंच पर बैठ गयी। उसने पानी लिया। तब तक हवलदार दशरथ ने अपने साहब इंस्पेक्टर विजय चावड़ा से बात कर ली। केतकी ने साहब को घटना की तफ्सील से जानकारी दी। चावड़ा सोच में पड़ गये, ‘जीतू का पता और फोन नंबर मुझे दीजिए। हम उसको समझाइश देंगे।’ ‘साहब, यह सब कुछ मेरे सामने नहीं हो सकता क्या? आपके सामने यदि उसने कह दिया कि आगे से वह मुझ पर हाथ नहीं उठाएगा, तो मुझे भरोसा होगा...’

चावड़ा ने जीतू को फोन लगाया। उधर से फोन उठाते साथ उन्होंने ऑर्डर दिया. ‘पंद्रह मिनट के अंगर आस्टोडिया पोलिस स्टेशन में हाजिर हो। यदि नहीं आओगे तो मेरा हलवदार रास्ते पर तुम्हें मारते हुए तुम्हारी शोभायात्रा निकालते हुए लाएंगे...समझ में आ गया?’ उधर से उत्तर सुनने के बाद चावड़ा ने कहा, ‘ठीक है...ठीक है...जल्दी से आओ...वरना...’

‘अभी आ जाएगा....जाएगा कहां? पटेल...दीदी के लिए चाय लेकर आओ...’

‘थैंक्यू सर, लेकिन चाय की आवश्यकता नहीं है...सॉरी, मैंने आपको तकलीफ दी...’

केतकी के साथ चावड़ा ने बहुत बातचीत की। चावड़ा का सपना था शिक्षक बनने का। उसने बहुत से इंटरव्यू भी दिए थे, लेकिन घूस न दे पाने के कारण उसे नौकरी नहीं मिल पायी और फिर वह बच्चों को पढ़ाने की बजाय गुनाहगारों को पाठ पढ़ाने लगे। बीसेक मिनट के अंदर जीतू वहां आ गया। चावड़ा के सामने केतकी को देखकर वह चौंक गया। चावड़ा ने जीतू की ओर देखा। उसका फटा हुआ टीशर्ट देखकर वह पहचान गये, ‘क्यों रे...तेरी मर्दानगी उफन रही है क्या...? चल अंदर चल, देखता हूं कैसा मर्द है तू...’

‘अरे साहब, छोटी सी बात को इसने बेवजह ही....’

‘मेरे सामने होशियारी दिखाना नहीं....कागज-पत्रों पर जबरदस्ती दस्तखत करने के लिए दबाव बनाना, मारपीट, गलत तरीके से घर में घुसा और एक औरत पर अत्याचार इतनी धाराएं लगाऊंगा न... कि सारे देवता याद आ जाएंगे। इसके पहले तो मेरे हवलदार तुम्हारी खातिरदारी करेंगे, तब समझ में आएगा कि बेल्ट की मार क्या होती है...’

‘साहब, इतनी बड़ी बात नहीं थी...हमारी शादी होने वाली है...’

‘अच्छा...?यानी तुमने ये सब प्रेमवश किया है...प्रेम में इतना करते हो तो गुस्से में न जाने क्या-क्या करोगे? तुमको बाहर रखना ठीक नहीं...’

‘साहब, आगे से याद रखूंगा...दोबारा ऐसा नहीं होगा...’

‘सबसे पहले तो इस दीदी से माफी मांगो और वचन दो कि इसके बाद उसे तकलीफ नहीं दोगे...उसके बाद मैं तय करूंगा कि करना क्या है...’

जीतू ने अपने दोनों हाथ जोड़े, ‘मुझसे गलती हो गयी...आगे से ऐसा नहीं होगा।’

साहब ने केतकी की तरफ देखा।‘बताइए, शिकायत दर्ज करके इसको अंदर करना है क्या?’

केतकी उठ खड़ी हुई, ‘नहीं, इसकी आवश्यकता नहीं है। थैंक्यू सर।’ केतकी वहां से निकल गयी। चावड़ा साहब ने जीतू को बहुत देर तक अपने पास बिठा कर रखा, और अच्छे से समझा दिया। आधे-पौन घंटे के बाद उसे  जब छोड़ा तो वह रिक्शा पकड़कर सीधा अपने दोस्त के पास पहुंचा...पव्या के पास... ‘आज तो दारू पीये बिना दिमाग ठिकाने पर आने वाला नहीं साला।’

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केतकी जब घर पहुंची तो यशोदा और भावना चिंतामग्न थीं। भावना के ध्यान में आ गया था कि केतकी किसी मुश्किल में फंसी होगी। ‘मेरे पिताजी यहां आए थे क्या? ’ उसने पूछा।

केतकी शांति से नीचे बैठ गयी। दोनों को अपने पास बिठाया, ‘तुम्हारे पिताजी नहीं आए थे, एक मस्ताया हुआ सांड आया था। उसे सीधा करने के लिए गयी थी।’

यशोदा अधीर हो गयी, ‘ऐसी गोलमोल बातें मत करो...ठीक से बताओ क्या हुआ...’

केतकी ने सबकुछ विस्तार से बताया।  उसकी बातें खत्म होने के बाद भावना ने तालियां बजाते हुए उसे गले से लगा लिया। ‘बहुत खूब मेरी झांसी की रानी....बधाई...’यशोदा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उमड़ गयीं। उसे केतकी की शादी और उसके भविष्य की चिंता सताने लगी।  लेकिन वह बोली कुछ भी नहीं। भावना का उसका इस तरह चुप्पी साधना अच्छा नहीं लगा। उसने सुझाया, ‘उपाध्याय मैडम और प्रसन्न को आज अपने घर बुलाते हैं। उनके कारण वातावरण बदलेगा। ’

केतकी ने कहा, ‘तुम्हें जो ठीक लगे, करो...मैं जरा लेटती हूं...’ वह बेडरूम में गयी तो वहां पर चटाई, चादर और तकिया पड़ी हुई थीं। बाजू में प्लास्टिक की छह कुर्सियां, एक टीपॉय था। एक गद्दी बिछी हुई थी। केतकी गद्दी के ऊपर लेट गयी। पंखे की तरफ देखती रही। उसका सिर भारी हो गया था। विचारों के कारण नींद नहीं आयी। करीब पांच बजे वह उठकर बैठ गयी। सेब काटकर तीनों ने खाया। वह भावना की ओर देखकर बोली, ‘अब तो चाय चाहिए..भावना हम तीनों के लिए चाय मंगवा लो।’

शाम को सात बजे के आसपास उपाध्याय मैडम और प्रसन्न साथ-साथ ही आए। दोनों के हाथों में बढ़िया से गुलदस्ते थे। नये घर के लिए गिफ्ट थे। प्रसन्न ने झुक कर यशोदा के पैर छुए। यशोदा ने आशीर्वाद दिया, ‘सदा सुखी रहो।’ भावना, उपाध्याय मैडम के गले लग गयी। सभी कुर्सियों पर बैठ गये तो भावना ने पूछा, ‘सबसे पहले बताइए कि आप लोग खाने में क्या लेंगे?’ उपाध्याय मैडम ने प्रसन्न की ओर देखा, प्रसन्न बोला, ‘खाना ऑर्डर करने की जरूरत नहीं है, वह आ जाएगा अपने समय पर। ’

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

 

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