Agnija - 100 in Hindi Fiction Stories by Praful Shah books and stories PDF | अग्निजा - 100

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अग्निजा - 100

लेखक: प्रफुल शाह

प्रकरण-100

मोबाइल में भावना का मिस कॉल आया और केतकी को होश आया। ‘अब अपने जीवन के ये कुछ आखरी घंटे अपने प्रिय लोगों के साथ हंसते-खेलते बिता लेती हूं। इन पलों को अपनी सांसों में बसा लूंगी। ये मेरे आखरी सफर में साथ होंगे। जन्म जन्मांतर तक मेरे साथ रहेंगे, ये आखरी चार घंटे...उनका मैं भरपूर उपयोग कर लूंगी....’

केतकी भविष्य का अधिक विचार नहीं कर पायी। आंखों की किनारी पर आए आंसुओं को उसने अपनी उंगली से हटा दिया। वह बाहर निकली तो यशोदा उसकी तरफ देखती ही रह गयी। केतकी भी अपनी मां नयी साड़ी में देख कर खुश हो गयी।

‘एक मिनट में आई...’ इतना कहकर केतकी ने पंखा बंद किया और बाथरूम की ओर निल गयी। वहां पर मेन स्विच बोर्ड था। मां की नजर बचाकर उसने स्विच बंद कर दिया। अचानक अंधेरा छा जाने के कारण यशोदा के मुंह से निकला, ‘केतकी बेटा संभल कर...’

लेकिन केतकी इस अंधेरे में भी अपने कमरे तक ठीक से पहुंच गयी। हल्के कदमों से केक बाहर लेकर आयी। उसी समय मुख्य दरवाजे से भावना ने अंदर प्रवेश किया। केतकी ने बड़ी सावधानी से टेबल पर केक रखा और धीरे से केक पर रखी हुई मोमबत्ती जलाई। उस मोमबत्ती के उजाले में केतकी और भावना को देख कर यशोदा का जी भर आया। दोनों के चेहरे पर कितना आनंद था अपनी मां का जन्मदिन मनाते हुए। जन्मदिन मनाने की धुन में भावना अपने चेहरे पर बंधा हुआ स्कार्फ भी खोलना भूल गयी थी जो उसने स्कूटी चलाते हे बांधा था। मेरी दोनों बेटियां एकदम पगली हैं। यशोदा उस क्षण सोच रही थी कि वह दुनिया की सबसे सौभाग्यशाली मां है। घुप अंधेरे में एक मोमबत्ती के प्रकाश में दोनों ने यशोदा से केक कटवाया। यशोदा केक का टुकड़ा केतकी को खिलाने जा रही थी तो केतकी ने वह लेकर मां के मुंह में ठूंस दिया। फिर भावना ने दूसरा टुकड़ा लेकर यशोदा को खिलाया। यशोदा की एक आंख में खुशी तो दूसरी में आंसू था। बड़े प्रयत्न से वह अपने आंसुओं को रोकते हुए केक के टुकड़ों को निगलने की कोशिश कर रही थी। भावना केतकी को प्रेम से केक खिलाने के लिए बढ़ी, लेकिन केक मुंह तक पहुंचता, इससे पहले ही केतकी हिचकियां लेकर रोने लगी। यशोदा डर गयी। केतकी भाग कर गयी और मेन स्विच शुरू किया। फुल स्पीड पर पंखा चला दिया। वह पास आती उतनी देर में ही पंखे की हवा से भावना के सिर पर पड़ा हुआ दुपट्टा उड़ कर नीचे गिर गया।

भावना की ओर देखते ही केतकी को झटका लगा। यशोदा के मुंह से चीख निकल गयी। वह जैसे तैसे भावना के पास पहुंची, ‘क्या हुआ बेटा, कहो तो सही।’ केतकी सख्त कदमों से आगे आयी। उसके चेहरे पर कठोर भाव और उसकी चाल में सख्ती थी। उसने अपनी मुट्ठियां भींच ली थीं। उसने बांये हाथ से भावना का हाथ पकड़कर उठाया और दायां हाथ उठा कर एक जोरदार थप्पड़ उसके गाल पर रख दिया। ट्यूबलाइट के उजाले में भावना के सिर पर बिना बालों वाला सिर चमक रहा था। यशोदा को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था। ये किसने किया? क्यों किया? कैसे किया? लेकिन केतकी ने बिना कोई विचार किए एक और थप्पड जड़ दिया।

‘तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई? तुम्हें इसका मतलब भी समझ में आता है भला?’

अपनी हिचकियों को जैसे-तैसे रोक कर भावना ने कहा, ‘हां समझ में आता है...अच्छे से आता है। बालों का महत्व भी मुझे मालूम है...’

‘महत्व मतलब क्या? बिना समझे बूझे कुछ भी मत बोलो....’

‘बाल का महत्व मतलब बहुत महत्व होता है...ऑक्सीजन से भी अधिक होता है...अपने नजदीकी लोगों से भी अधिक होता है...प्रिय होते हैं बाल। बाल इतने जरूरी होते हैं कि वे न हों तो आदमी अपनी जान तक दे सकता...’

यशोदा ने धीरे से उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया.. ‘बेटा...कोई जान थोड़े देता है...’ भावना न दौड़ कर अपने बैग से वे चार बोतलें निकालीं। दो चूहे मारने और दो खटमल मारने वाले जहर की।

‘केतकी बहन, मुझे भी देखना था कि बालों को खोने के बाद कैसा लगता है? तुम्हें हो रही तकलीफ को मैं भी झेल कर देखना चाहती थी। और बालों के बिना यदि जीवन नहीं होगा तो हम दोनों इन बोतलों को पी लेंगे...ऊपर जाएंगे...साथ रहेंगे...हमेशा के लिए ।’ इतना सुनकर केतकी एक-एक कदम पीछे हटने लगी। भावना रोते-रोते बोलती रही, ‘सच कह रही हूं केतकी बहन..मैं तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी...और मुझे तुम्हारे बिना जीना भी नहीं है।जी कर भी क्या करना है?’

केतकी बिना कुछ कहे पीछे हटती रही। पीछे दीवार से टकराते ही वह नीचे बैठ गयी। भावना चारों बोतलें लेकर केतकी के पास बैठ गयी। ‘बालों के न होने से तुम्हें हो रहीं यातनाएं, तुम्हारा दुख मैं देख रही थी। लोगों द्वारा किया जा रहा अपमान और अवहेलना, अत्याचार या अपराध से भी गंभीर होता है। लेकिन इस अपराध की सजा हम किसको देंगे? तुम हमेशा कुढ़ती रहती हो...मन ही मन दुखी होती रहती हो...रोज रोज हर क्षण मरती रहती हो...तड़पती रहती हो...मुझसे नहीं देखी जाती तुम्हारी यह हालत...अधमरी हालत में दुनिया में रहना...वह दुख वह यातना क्या होती हैं, मैं भी अनुभव करना चाहती थी...इसीलिए मैंने अपने सारे बाल कटवा लिये...कम से कम अब तो मैं तुम्हें अपने सरीखी लगूंगी न...मुझे अपने साथ रखोगी न?’

केतकी कुछ भी न कह सकी। वह आंखें फाड़कर भावना की तरफ देख रही थी। भावना की बातें उसके कानों तक कितनी पहुंच पा रही थीं, पता नहीं। भावन ने एक बोतल उठायी। ‘गंजेपनकी बीमारी पर यही एक दवाई है, यदि तुमको ऐसा लगता है तो मुझे भी यह स्वीकार है। लेकिन तुम न रहोगी तो मेरे लिए भी जीना मुश्किल होगा...चलो तुम भी उठाओ एक बोतल...दोनों चीयर्स कहकर गटागट पी जाएंगे। बालों से लेकर ईश्वर तक के इस सफर में हम दोनों बहनें एक साथ ही रहेंगी..’

यह सब कुछ चुपचाप सुन रही यशोदा के भीतर का भी ज्वालामुखी फट पड़ा। ‘हां...उठा लो बोतलें...पी लो गटागट...दोनों...एक भी बूंद मत छोड़ना...गिराना मत। तुम दोनों जहर पीकर आराम से सो जाओ...सभी यातनाओं से मुक्ति मिल जायेगी...जल्दी करो...जाओ मरो जल्दी...’

 

अनुवादक: यामिनी रामपल्लीवार

© प्रफुल शाह

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