वो (चंदन मित्तल ) गाड़ी के पीछे बैठे ऊंघ रहे थे। लेकिन फ़िर उन्हें महसूस हुआ रास्ते घुमावदार होने लगे है। एक झटके में वो उठ बैठे।
"अरे यार अखिलेश ये घाटियों वाले रास्ते को क्यों लिया तूने, इधर का माहौल ठीक नहीं है। देख गाड़ी मोड़, हाईवे से होकर चलते है।"
लेकिन अखिलेश जी ने कोई जवाब नहीं दिया। वे तेज़ी से कार दौड़ाते रहे। पीछे बहुत देर तक कुछ बुदबुदाने के बाद चंदन मित्तल एक बार फ़िर नींद के आगोश में चले गए।
घाटी से थोड़ी ही दूर पर गाड़ी रुकी। यहां झाड़ियों की वजह से घना अंधेरा था। अखिलेश जी ने कार की दोनों हेडलाइन्स भी बंद कर दी थी ताकि किसी पुलिस वाले कि नज़र इधर ना पड़े। फ़िर किसी तरह गाड़ी से छुपते छुपाते उन्होंने चंदन मित्तल को बाहर निकाला और अपने कंधों के सहारे से उन्हें लेकर आगे बढ़ने लगे। इस बीच चंदन मित्तल बेहोशी में ही रहे। वे लड़खड़ा कर चल रहे थे, शायद उनके मन में था कि अखिलेश उन्हें उनके घर तक छोड़ने जा रहा है।
लेकिन वे तो उन्हें लेकर मौत के करीब जा रहे थे। जब तक चंदन को होश आता तब तक बहुत देर हो चुकी थी। वे घाटी के अंदर उसी कुएं के पास थे। सामने ही कुएं के दीवार पर घिनु बैठा अपने जीभ से लार चुआ रहा था, औऱ फटी आंखों से चंदन मित्तल कभी घिनु को तो कभी अखिलेश बर्मन को देख रहा था। ये वही वक़्त होता है जब इंसान अपने सोचने और समझने की क्षमता को खो देता है। उसे समझ नहीं आता आख़िर सामने चल क्या रहा है। वो यहां से भागना चाहता था, लेकिन उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसका पुराना दोस्त क्यों इस ख़तरे के करीब होकर भी मुस्कुरा रहा था। वो उसका हाथ पकड़कर भागना चाहता था , लेकिन पहला झटका उसे तब लगा जब अखिलेश बर्मन ने उसका हाथ झटक दिया और उसके सामने से हटकर वो घिनु के पीछे जाकर खड़ा हो गया। इसका क्या मतलब था...? बेवकूफ़ चंदन ये भी नहीं समझ पाया उसका दोस्त अब अब उसका दुश्मन बन चुका था। वो बस ठहरी हूई आँखों से उसे देख रहा था।
धोखा देना कितना आसान होता है ना, लेकिन जिसे धोखा मिलता है ना उसकी मनोस्थिति कैसी होती होगी इसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते। कल तक जो आपका अपना बिल्कुल ख़ास था अचानक वो दुश्मन बन जाता है। आदमी उस धोखे से बचकर निकल भी जाएं तब भी वो दुबारा कभी आत्मविश्वास इकट्ठा नही कर पाता।
कभी दुबारा किसी पर यकीन नहीं कर पाता। इसलिए छोटा ही सही लेकिन किसी के साथ भी बेईमानी करने से पहले हम इंसानो को हज़ार बार सोच लेना चाहिए।
घिनु वहीं बैठा हल्के हल्के गुर्रा रहा था। उसने अखिलेश बर्मन से लगभग गुर्राते हुए ही कहा "तुम्हें जो करना है, जल्दी कर लो। मैं ज़्यादा देर रुकूँगा नही।"
उसका ऐसा बोलना था कि अखिलेश जी ने अपने कोट के दाहिने पॉकेट से एक कागज निकाला और चंदन मित्तल की तरफ़ बढा दिया। वो एक अग्रीमेंट पेपर था जिसमें साफ़ साफ़ लिखा था कि चंदन मित्तल की मौत के बाद उनकी सारी प्रोपटी पर मालिकाना हक़ अखिलेश बर्मन की होगी, क्योंकि किसी वक़्त में अखिलेश बर्मन से ही कर्ज़ लेकर उन्होंने अपना व्यवसाय शुरू किया था ( जो कि सरासर झूठ था )।
ख़ैर वो अग्रीमेंट पढ़ने के बाद भी चंदन मित्तल हैरान नही हुए। उन्हें अब तक माहौल का अंदाजा हो गया था। उनका नशा पूरी तरह उड़ गया था, उन्हें पता चल चुका था उनके यार ने ही उनकी मौत का सौदा इस शैतान से कर लिया था। उन्होंने अखिलेश बर्मन की तरफ़ देखा और कागजो में साइन कर दिया। अग्रीमेंट पेपर पर तारीख़ भी छह महीने पहले की थी ताकि कोई उनपर शक भी ना करें। अपनी इस चालाकी पर अखिलेश बर्मन मुस्कुरा पड़े।
उस रात बड़ी ही बेरहमी से घिनु ने चंदन मित्तल को मौत के घाट उतारा। वो नज़ारा इतना हौलनाक था कि जानवरों का भी डरकर बुरा हाल था लेकिन सामने ही खड़े अखिलेश बर्मन पर इसका कोई ख़ास असर नही हुआ। हां हमेशा की तरह इंसानी शरीर के खून से सने लोथड़ों को देखकर उन्हें उल्टियां आनी जरूर शुरू हो गई।
वे दबे पावँ वहां से भागकर अपनी गाड़ी तक आ गए और जल्दी ही वे अपने घर भी पहुँच गए। घरपर उन्हें सोमनाथ चट्टोपाध्याय उनका ही इंतजार करते मिलें, लेकिन आज अखिलेश बर्मन ने उनसे कोई बात नहीं कि और सीधे अपने कमरे में जाकर सो गए। उनका व्यवहार अब थोड़ा रूखा हो गया था। शायद उनपर पैसों का गुरुर हावी होने लगा था।
सुबह लिली को साथ लेकर सोमनाथ चट्टोपाध्याय फ़िर एक बार घाटी में पहुँचे। जहां पुलिस भी थी और चंदन मित्तल की लाश को उठाकर ले जा रही थी। साथ ही आस पास के इलाकों में खोजबीन भी चल रही थी। किसी तरह पुलिस की नजरों से बचते हुए दोनों प्रज्ञा के उस खंडहरनुमा घर के अंदर चले गए। लिली को इन दिनों सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने छुपाकर एक गेस्ट रूम में ही रखा था, वो बाद में उनके काम आ सकती थी। और अगर इस वक़्त वो दुनियां के सामने गयी भी तो रिपोर्टर्स उसे जीने नहीं देगी।
प्रज्ञा वहीं थी....उसके चेहरे में अपार निराशाजनक भाव थे। लिली को देखकर वो मुस्कुराई और सोमनाथ चट्टोपाध्याय को देखकर वो उदास हो गयी। वो कल रात वही थी जब घिनु ने चंदन मित्तल की बुरी तरह से जान ले ली। उसे अफ़सोस था कि किसी बेईमान को ख़त्म करने के लिए जिस शख्स को सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने चुना था वो तो ख़ुद ही एक बेईमान निकला। उसने सारी बातें उन दोनों को बता दी। सोमनाथ चट्टोपाध्याय के तो होश ही उड़ गए ये सब सुनकर।
अब कहानी उतनी सुलझी हुई नहीं रह गयी। बुराई ने बहुत से खेल खेलें थे अब बारी अच्छाई की थी। बस अब बहुत हुआ अब जो भी करना है जल्दी ही करना होगा, इस तरह लोगो को मरने के लिए और नहीं छोड़ सकते। वे लिली को लेकर वापस जाने के लिए जैसे ही उस घर से बाहर निकले फ़िर एक बार चौक पड़े। उसी घर के दरवाज़े पर कोई खड़ा था। वो एक अठारह उन्नीस वर्ष की लड़की थी। जीन्स और टॉप में थी। उसकी आँखों में उत्सुकता भरी थी। वो घर के अंदर झांक रही थी। सोमनाथ चट्टोपाध्याय ने ज़रा सा डांटते हुए ही उस लड़की को पूछा....( दरसल उन्हें लगा था, ये कोई युवा पत्रकार है। जो मसालों की तलाश में यहां तक आ गयी है।)
"कौन हो तुम..? यहां क्या कर रही हो, पता भी है ये जगह कितनी ख़तरनाक है।"
"जी...मैं प्राची। एक जरुरी काम के लिए आई हूँ। बस अभी चल जाऊंगी।" (उसने सर झुकाएं जवाब दिया)
"प्राची...ये नाम तो सूना हुआ लग रहा।" लिली बुदबुदाई। उसने उस लड़की को ग़ौर से देखा तो उसके हाथों में एक गुड़िया दिखी। बालों से बनी एक गुड़िया। जिसके भीतर प्रज्ञा की रूह की सारी अच्छी शक्तियां शामिल थी। वो प्रज्ञा की छोटी बहन प्राची थी। अच्छाईयों की शुरुआत हो गयी थी।
क्रमश :- Deva sonkar