Tamacha - 27 in Hindi Fiction Stories by नन्दलाल सुथार राही books and stories PDF | तमाचा - 27 (पहलवाल )

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तमाचा - 27 (पहलवाल )

रात भर करवटे बदलते - बदलते राकेश सोने का निर्रथक प्रयास ही कर रहा था। पर नींद तो उससे कोसो दूर थी।
सुबह किसी तरह अपने आप को थोड़ा हौसला देकर वह अपने आवश्यक डॉक्यूमेंट लेकर दिव्या के पास उनके पार्टी ऑफिस पहुँच गया जहाँ से बाद में उन्हें कॉलेज जाना था।

आज पार्टी ऑफिस में काफ़ी भीड़ जमा थी। तेजसिंह भी अपने साथियों के साथ अभी तक वहाँ मौजूद था। लेकिन उसके मन में कुछ और ही खिचड़ी पक रही थी। उसने अंदर ही अंदर एक बड़ा प्लान बना लिया और भीड़ में उपस्थित अधिकतर विद्यार्थियों को गुपचुप तरीक़े से कुछ लालच और कुछ डर के बल पर अपनी ओर मिला दिया था। वही भीड़ अध्यक्ष पद के लिए दिव्या की जगह तेजसिंह का नाम आगे करने वाली थी।

इस जगत में सभी मानव अपने साथ होने वाले घटनाक्रम को अपने अनुसार चलाना चाहते है। पर होता वही जो होना होता है । उसे चाहे विधाता का लेख कहो अथवा किस्मत की बात। तेजसिंह , दिव्या और राकेश तीनों की ही किस्मत का निर्धारण आज होना था।

पार्टी की मीटिंग शुरू होने में अभी थोड़ा वक्त था। दिव्या एक कमरे में अपने कुछ साथियों के साथ बैठी चर्चा कर रही थी। उधर एक बड़े हॉल में कई विद्यार्थियों के मध्य चाय और नाश्ते के लिए घमासान मची हुई थी। कुछ विद्यार्थी चार-चार प्लेट डकार चुके थे; तो कुछ अभी एक प्लेट नाश्ता पाने की भी जद्दोजहद में लगे हुए थे। एक बार नाश्ते के सामग्री खत्म होने पर, अत्यधिक भीड़ के रह जाने पर पुनः नाश्ता तैयार करना पड़ा । नाश्ता लेने में कॉलेज के विद्यार्थियों के अलावा भी कई लोग थे जो या तो कुछ सालों में कॉलेज में प्रवेश करने वाले कॉलेज का भविष्य थे; तो कुछ कुछ कॉलेज शिक्षा पूर्ण कर चुके कॉलेज के भूतकाल। वोट का पता नहीं पर खाने के लिए अधिकतर विद्यार्थी हमेशा पार्टीयों के समर्थन में रहते। आजकल विद्यार्थियों का स्वभाव हो गया है कि हजारों रुपये भरकर भी ज्ञान मिल जाये तो उसे ग्रहण नहीं करते और कहीं फ्री का समोसा भी मिल जाये तो उसे पाने के लिए पूरी लगन और निष्ठा के साथ कई किलोमीटर पैदल ही निकल जाते है।

तभी एक अनाउंसमेंट होती है और कुछ ही देर में एक बड़े हॉल में सब इक्कट्ठा हो जाते है। भीड़ से वह हॉल पूरा खचाखच भरा हुआ था। हॉल में सबसे आगे थोड़े ऊँचे उठे हुए मंच पर दिव्या,तेजसिंह और पार्टी के अन्य मुख्य कार्यकर्ताओं के साथ ही बीच में विधायक के प्रतिनिधि रायमल सिंह बैठे हुए थे। रायमल सिंह ही पार्टी की ओर से उम्मीदवारों की लिस्ट की घोषणा करने वाले थे। तेजसिंह ने पुनः आँखों से ही अपने साथियों को इशारा कर दिया कि जैसे ही उसको उपाध्यक्ष और दिव्या को अध्यक्ष पद के लिए उम्मीदवार घोषित किया जाए , उनका विरोध शुरू कर दे।

उसी भीड़ में एक जगह राकेश खड़ा था जो तेजसिंह की नजर से बचना चाह रहा था। साथ ही दिव्या की नजरों में समाना चाहता था। कुछ ही देर में दिव्या की नज़र भी उस पर पड़ गयी और दूर से ही दोनों ने हाथ उठाकर एक-दूसरे से मुलाकात कर ली। दिव्या ने उसे आगे आने का इशारा किया पर अत्यधिक भीड़ का बहाना देकर वह वहीं रुक गया।

कुछ ही देर में रायमल सिंह ने अपनी पुरानी घिसी पिटी राय देकर अपने भाषण का आगाज किया और उम्मीदवारों का नाम चयनित करते हुए बोला। " भाइयों और बहनों ,जैसा कि आपको पता है जल्द ही कॉलेज में इलेक्शन होने वाले है और आज हम हमारी पार्टी के उम्मीदवारों का नाम घोषित करने को इक्कठा हुए है। हमारी पार्टी का एकमात्र ध्येय केवल विद्यार्थियों का हित है। विद्यार्थियों की हर समस्या का निदान ही हमारा कर्म है। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस बार आप हमारी पार्टी के चारों उम्मीदवारों को भारी मतों से विजयी बनाएंगे। "
रायसिंह का भाषण अभी तक चल ही रहा था कि तभी हॉल में कुछ पहलवान टाइप के कुछ आदमी प्रवेश करते है। सभी की नज़र उस तरफ टिक जाती है। सभी संदेह की दृष्टि से एक दूसरे को देखने लगे कि यह कौन है ?कहानी में भला अब क्या घटनाक्रम होने वाला है?


क्रमशः........
(अगर अपने यहाँ तक कहानी पढ़ी है और आपको पसंद आई है तो अपनी बहुमूल्य समीक्षा एवं शेयर द्वारा मुझे अवश्य प्रोत्साहित करें जिससे मुझे आगे लिखने की प्रेरणा मिलती रहे।)