nasbandi - 5 in Hindi Drama by Swati books and stories PDF | नसबंदी - 5

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नसबंदी - 5

बेला की शादी हो गई, वह हँसी-ख़ुशी से अपने नन्द किशोर के घर आ गई। मगर मोहन की पूरी दुनिया ही उजड़ गई थीं । उसने सोच लिया कि वह अपनी ज़िन्दगी ख़त्म कर देगा क्योंकि अब जीने का कोई फ़ायदा नहीं है। यही सोचकर, वह नहर में कूदने के उद्देश्य से चला गया और जैसे ही उसने छलाँग लगानी चाही, किसी ने उसकी बाजू पकड़ ली और उसने पीछे मुड़कर देखा तो बिरजू खड़ा था, मोहन, क्या करने जा रहा है? दिमाग बस में नहीं है, क्या? मोहन की रुलाई फूट पड़ी। और मोहन को ऐसी हालत में देखकर बिरजू ने उसे गले लगा लिया।

बिरजू उसका बचपन का दोस्त है। उसके पिता एक मजदूर है, वह भी मोहन के साथ शहर जाकर अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी बदलना चाहता है। उसने भी मोहन की तरह बारहवीं तक पढ़ाई की हुई हैं । दिखने में सांवला, नाटा कद, भूरी आँखें और दुबला-पतला सा बिरजू मोहन को कसकर पकड़कर खड़ा रहा, बता भी दे क्या बात है? मोहन ने खुद को उससे अलग किया और वहीं जमीन पर बैठ गया। उसे समझ नहीं रहा है कि बिरजू को कैसे बतायें, मगर बिरजू बड़ी उम्मीद से उसकी तरफ़ देख रहा है। उसने हिचकी ली और उसे बताना शुरू किया ।" यार ! किसी को मत कहियो, वैसे भी मैं अपनी जान ले रहा था, तूने रोक लिया। अरे ! भरोसा रख ! ।" बिरजू ने उसे आश्वासन दिया। मोहन ने उसे एक ही सांस में सारी बात बता दी । जिसे सुनकर बिरजू के होश उड़ गए। यह क्या कर लिया तूने ? बहन तो माँ बन जाएगी, मगर तू क्या करेगा ? बिरजू ने सिर पकड़ लिया। खैर ! मरने से क्या होगा। अपनी अम्मा और भाई के बारे में सोचा है? अब जीकर क्या करूँगा, यार ! सब ख़त्म, मोहन फिर रो पड़ा। यार ! सुना है, शहर वालो ने बहुत तरक्की कर ली। वहाँ तो पता नहीं क्या-क्या गज़ब होता है। तू प्रेमा से ब्याह कर लियो, फिर कोई न कोई रास्ता निकल जायेगा । मगर प्रेमा मुझसे अब ब्याह करेगी ? क्यों प्यार नहीं करती क्या ? उसे बुला और दोनों मिलकर कोई रास्ता निकाल लेना । बिरजू ने हिम्मत बंधाई तो उसने अपनी आँखें साफ़ की। मैं प्रेमा को यहाँ भेजता हूँ, तू कुछ मत करना ।

करीब आधे घंटे बाद प्रेमा आई और उसने मोहन की ऐसी हालत देखकर सवाल किया । मोहन ने उसकी आँखों में देखकर सारी कहानी सुना दी और प्रेमा को काँटो तो खून नहीं। ये क्या कर लिया तूने ? बहन की ख़ातिर, हमारी बलि क्यों चढ़ा दी ? अब क्या होगा ? अब सब ख़त्म । उसने रोना शुरू कर दिया। देख ! प्रेमा, मैं परसो शहर जा रहा हूँ, चार-पाँच महीने बाद वापिस आऊँगा और हम शादी कर लेंगे। फ़िर शहर में रहेंगे, कोई न कोई रास्ता निकल जायेगा । मोहन ने उसे समझाते हुए कहा। प्रेमा कुछ नहीं बोली, फिर सोचकर कहने लगी," यह आसान नहीं है, तुझे कोई कुछ नहीं कहेगा, सब मुझे कहेगे कि कमी मुझ में है। यह ज़िन्दगी भर का रोना है, समझा।" मोहन ने उसका चेहरा घुमाते हुए कहा कि परसो मैं स्टेशन पर तेरा इंतज़ार करूँगा, अगर तू आई तो मैं समझूंगा, तू मेरे साथ है। और अगर नहीं आई तो अपने रास्ते अलग हो गए । प्रेमा को यह कहकर भारी मन से मोहन वहाँ से चला गया।

परसो माँ और भाई से विदा लेकर मोहन स्टेशन पहुँचा तो बिरजू गाड़ी में सीट ढूंढ़ने लगा और मोहन वही स्टेशन पर प्रेमा की राह देखता रहा। दिल्ली की गाड़ी छूटने में सिर्फ दस मिनट है। बिरजू, ट्रैन के दरवाजे पर खड़ा मोहन को देख रहा है। जैसे ही मोहन ने गाड़ी के जाने की आवाज़ सुनाई दीं । बिरजू ने उसे बुलाया, मोहन ने एक बार फ़िर स्टेशन की तरफ देखा तो उसे प्रेमा नज़र नहीं आई। वह बुझे कदमों से ट्रैन पर चढ़ा और दरवाज़े पर खड़ा रहा और फ़िर प्रेमा की राह देखने लगा कि शायद वो आ जाए, मगर प्रेमा का कोई अता-पता नहीं था। गाड़ी उसके गॉंव से आगे निकलती जा रहीं है और वह पीछे छूटती हुई, सभी चीजो को देख रहा है, उसे मालूम हो चुका है कि अब ज़िन्दगी के सफर में प्रेमा भी कहीं छूट गई है । उसने गीली आँखों को साफ़ किया और बिरजू के पास आकर बैठ गया।

ट्रैन ठीक अपने समय पर नई दिल्ली स्टेशन आ लगी। दोनों ने रिक्शा किया और अपने दोस्त श्याम के किराए के मकान पर पहुँच गए। चोट लगने के कारण श्याम अभी भी गॉंव में है । श्याम भी एक कॉल सेंटर में काम करता है। उसने अपने दोनों दोस्तों की नौकरी की बात भी वहीं कॉल सेंटर में कर रखी है। आज रविवार है, कल उन दोनों को वहीं जाना है। मोहन और बिरजू जमीन पर रखे बिस्तर पर लेट गए और दोनों की कब आँख लगी, उन्हें पता ही नहीं चला। मोहन ने देखा कि अँधेरा हो चुका है, उसने समय देखा तो रात के आठ बज रहे है, मगर सड़क पर इतनी रौनक है कि जैसे अभी भी दिन हो। वह कमरे के साथ, बनी छोटी सी रसोई में गया और खाने-पीने की चीजों को टटोलने लगा तो उसे कुछ नज़र नहीं आया। उसने बिरजू को उठाया और बोला,आज बाहर जाकर कुछ खा लेते हैं। उसने पैसे देखें तो वह सिर्फ़ 5000 रुपए लेकर शहर आ गया है। जिसमे से 200रुपए खर्च भी हो चुके हैं। मगर फिलहाल तो बाहर से खाना खाने के अलावा कोई और उपाय भी नहीं है। दोनों कमरे को बंद करके बाहर निकल गए। उनका कमरा पहली मजिल पर है। सीढ़ियों से उतरते वक़्त उसने देखा कि दो लड़कियाँ हँसती हई ऊपर से नीचे उतर रही है। पहली मंजिल पर कोई मजदूर का परिवार रहता है। शायद तीसरी या चौथी मंजिल पर ही ये दोनों रहती होगी। श्याम ने बताया था कि संकरी गली होने के कारण मकान का किराया भी कम है। दोनों बाहर रोड की रौनक को बड़े ही हैरान होकर देख रहे हैं। फ़िर रोड के किनारे खड़ी एक रेहड़ी के पास पहुँच गए। दाल-रोटी के लिए बोलकर, वहीं पास खड़ी ख़राब स्कूटर पर बैठ गए । यार! कैसे होगा? घर में सिर्फ चावल है, और हम दोनों के पास कुल मिलाकर सिर्फ़ 7000 हज़ार रुपए है। बिरजू की आवाज़ में चिंता है।

एक काम करते हैं, आटा और दाल खरीद लाते हैं। अब महीना खत्म होने में पंद्रह दिन रह गए हैं । अगर पंद्रह दिन बाद वेतन मिला तो थोड़ा सहारा हो जायेगा। मोहन ने उसे तसल्ली दी। खाना खाकर कोई स्टोर देखा और सबसे सस्ते दाल, आटा , ब्रेड, चायपत्ती खरीद लाए । दाल से अच्छे से कंकड़ निकाल लेना, क्योंकि तुमने बड़ी ही हल्की दाल ली है। दुकानदार ने उसे समझाते हुए कहा। दोनों दस बजे के करीब घर पहुचे। रात को मोहन को अजीब बेचैनी हो रहीं है, उसे नहर, गॉंव और प्रेमा की बड़ी याद आ रही है । उसने आँखें बंद की तो उसे प्रेमा नज़र आने लगी । और वह मुस्कुराने लगा। अब उसे लग रहा है कि ज़िन्दगी से बेहतर यह सपने ही हैं।