Pakdouwa - The Forced Bride - 11 in Hindi Moral Stories by Kishanlal Sharma books and stories PDF | पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 11

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पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - 11

और अनुपम सोच में पड़ गया।कोई निर्णय ले पाता उससे पहले रानी आ गयी
"अरे तुम ने शादी कर ली?"रानी,छाया को देखकर आश्चर्य से बोली,"मुझे खबर नही की।"
"नही।शादी अभी नही की।"
"फिर यह कौन?"
"अभी तुम आयी हो सब पता चल जाएगा"
रानी सरकारी काम से मद्रास आयी थी।एक दिन वह अनुपम के साथ मद्रास का फारेस्ट देखने निकल गई।तब अनुपम उससे बोला," रानी आई लव यू।"
"तुमने बताया नही छाया कौन है?"
"पकडौवा के बारे में सुना है?"
"यह क्या है?"
"बिहार में लड़कों को अगवा करके उनकी जबरदस्ती शादी करा दी जाती है।"अनुपम ने रानी को इस बारे में जानकारी दी थी।उसकी बात सुनकर रानी बोली,"मतलब तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हुआ है।"
"हा रानी"।अनुपम ने उसे पूरी बात बताई की कैसे उसकी जबरदस्ती छाया से शादी कर दी गयी।
"लेकिन तुम उसे अपनी पत्नी नही मानते तो अपने साथ क्यो ले आये?"
"मैं उसे अपने साथ नही लाना चाहता था पर उसने मेरा पीछा ही नही छोड़ा"अनुपम ने शादी के बाद से अब तक का पूरा किस्सा बता दिया था।
अगले दिन अनुपम अपनी ड्यूटी पर चला गया तब छाया ने चाय नास्ता बनाया तब छाया रानी से बोली,"दीदी आपको इन्होंने हमारी शादी के बारे में बता दिया होगा।"
"हां।लेकिन तुम्हारे घरवालों ने ऐसा क्यो किया?"
"दीदी ।मैं भी इस शादी के खिलाफ थी।मैने भाई से कह भी दिया था।ऐसी शादी से बेहतर में आजीवन कुंवारी रह लुंगी।मेरा भाई भी इस तरह शादी के पक्ष में नही था।लेकिन मेरी भाभी मेरे चाहे जैसे भी मेरे हाथ पीले करना चाहती थी।अनुपम इस शादी को नही मानता।मैं भी चाहती हूँ,जब अनुपम मुझे पत्नी मानने के लिए तैयार ही नही है तो यहां क्यो रहू।मैं भी जाना चाहती हूँ।पर कहा जाऊ?"
रानी सुनती रही छाया की बातों को।
"दीदी एक काम करो"
"क्या?"
"मेरी कंही नौकरी लगवा दो"
"क्यो?
"अब भाई के घर तो मैं वापस लौटकर जा नही सकती।भाभी ने विदा करते समय ही कह दिया था।"
"क्या?"रानी ने छाया रहा कि तरफ देखा था।
"हमने अपना कर्तव्य निभा दिया।तुम्हारे हाथ पीले कर दिए।अब अपना घर सम्हलना तुम्हारी जिम्मेदारी है।पति को कैसे अपना बनाना है तुम जानो,"भाभी कार में बैठते समय बोली थी,"मेरे चार बेटी है।उन्हें भी देखना है।"
रानी के पिता ईसाई थे लेकिन मा हिन्दू थी।इसलिये वह हिन्दू रीति रिवाज जानती थी।पति के साथ वह चर्च जाती थी।ईसाई धर्म के सभी उत्सव पिता के साथ मनाती थी।लेकिन अपने धर्म से पूर्ण लगाव था।हर त्योहार को मनाती।पिताजी भी मा के साथ रम जाते।रानी ईसाई और हिन्दू दोनो धर्मो में पली और रीति रिवाज से परिचित थी।ईसाई मर्द से शादी करके भी हिन्दू धर्म के सुहाग चिन्ह को धारण करती थी।
रानी ध्यान से छाया की बाते सुनती रही।शाम को वह छाया से बोली,"बाजार चलते है।"
रानी और छाया बाजार गए थे।एक जेवलर्स पर रानी ने सोने की चेन खरीदी थी।साड़ी व अन्य कपड़े खरीदे।घर आकर सोने की चेन अनुपम के सामने वह छाया को देने लगी तो अनुपम बोला,"यह क्यो दे रही हो?"
"मुह दिखाई।"
"रानी मैं तुम्हे हकीकत बता चुका हूँ।"
"अनुपम मर्द के लिए शादी मजाक या मख़ौल हो सजती है।पर औरत जिसके साथ अग्नि के साथ सात फेरे लेती है।उसे अपने मन मंदिर में बिठा लेती है।"
"मुझे जबरदस्ती दूल्हा बनाया गया।"
"जो भी हो तुमने छाया की मांग में सिंदूर तो भरा